आँख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता,
मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और
स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता।

चाणक्य

Post a Comment

 
Top