सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारीप्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है।
श्री अरविंद

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