मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण
59 - आज की कहानी का शीर्षक- ‘रिश्ते बहुत ही नाज़ुक होते’

मीना के स्कूल की चार दिन बाद छुट्टियाँ होने वाली हैं। मीना व उसकी सहेलियां चिंतित हैं कि हम लड़कियां स्कूल के अंतिम दिन कौन सा कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगी? क्लास के लड़के संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे हैं। सरपंच जी ने जीतने वाली टीम को एक इनाम देने की घोषणा भी की है।
मीना कठपुतलियों का खेल प्रस्तुत करने का प्रस्ताव रखती है। सभी सहेलियां कार्ययोजना बनाती हैं....................कोई कठपुतलियां बनाएगा,कोई रंग करेगा,कोई कपडे लायेगा,कोई रंग-बिरंगे धागे। रीना कठपुतलियाँ चलाना भी जानती है क्योंकि उसके चाचा भी शहर में कठपुतलियों का खेल दिखाते हैं।

(कल रविवार है)
सुमी- रीना, तुम कल ९ बजे मेरे घर आ जाना। दोनो मिलकर कठपुतलियों पर रंग कर देंगे।
मीना- (सुमी से) मैं और रानों ११ बजे तक तुम्हारे घर पहुँच जायेंगे।
मीना रानो ,सुमी के घर पहुंची.....
सुमी- मीना! हमारी टीम में या तो रीना रहेगी या मैं।
मीना- हुआ क्या है सुमी? तुम और रीना तो बहुत अच्छे दोस्त हो।
सुमी- दोस्त हैं नहीं दोस्त थे।

मीना और रानों वहां से रीना के घर पहुंचे.......
रीना- मीना....मुझे सुमी के बारे में कोई बात नहीं करनी। ...सुमी सारा कम अकेले ही करना चाहती है अगर मेरी जरूरत नहीं थी तो मुझे बुलाया ही क्यों?
रानो- चलो!.....गुस्सा छोड़ दो रीना।



मींना और रानो सोच में पड़ जाती हैं....
मीना और रानों दौड़ी-दौड़ी बहिन जी के घर पहुंची.......
बहिन जी ने उन्हें सुमी और रीना को ले के आने को कहा।

बहिन जी ने सबको अपने पास प्यार से बैठाया और पूँछा-
बहिन जी- सुमी! पहले तुम बताओ क्या हुआ था?

सुमी ने सभी सहेलियों का फैसला बताया...लेकिन ये पहुंची १० बजे, पूरे एक घंटे बाद। तब तक मैं कठपुतली पे रंग कर चुकी थी। रीना को ये देखकर गुस्सा आया और वह वहां से चली गयी।

बहिन जी- अच्छा!.....रीना तुम्हे सुमी के घर पहुँचाने में देर कैसे हो गयी?
रीना- माँ ने उसे पारो को सम्भालने को कह दिया था क्योंकि उन्हें बाज़ार जाना था। अब मैं अपनी छोटी बहन को अकेली छोड़कर कैसे जाती?

बहिन जी- लेकिन तुम्हे सुमी के घर पहुँचकर गुस्सा क्यों आया?
रीना- बहिन जी हम दोनों को एक साथ कठपुतलियों पे रंग करना था,लेकिन इसने मेरे बिना ही रंग करना शुरू कर दिया।
सुमी- बहिन जी, मैंने ऐसा इसलिए किया ताकि हमारा काम समय से खत्म हो सके।

बहिन जी समझाती हैं कि दोस्ती हो या कोई रिश्ता ..तीन चीजें याद रखना बहुत जरूरी है –
अपने आपको दूसरों की जगह पर रखकर स्थिति को समझने की कोशिश करना।
स्थिति को समझते हुए अपने सोचने के तरीके को बदलना।
तीसरी और सबसे जरूरी चीज .....
अपने और सामने वाले की सोच के अंतर को पहचानना।

रीना और सुमी को गलती का अहसास होता है..और वे एक दूसरे से मांफी मांगती हैं। ....और लड़कियों की टीम ने लड़कों की टीम को हरा दिया।




आज का गीत-

तुम सुनो हमारी हम सुने तुम्हारी
इक दूजे की बात समझना यही है समझदारी। -२
इक दूजे के दिल की समझो इक दूजे को जानो
कहे चाहे दोस्त बात जो उसको तुम पहचानो।
बात-बात में बात है बनती सही कहावत प्यारी
इक दूजे की बात समझना यही है समझदारी।
अपनी इक मुस्कान से ही बस बिगड़ी बात बनालो
कभी जो कोई रूठे तो तुम हँस के उसे मन लो ।
मीठे-मीठे झगड़ों से हो पक्की और भी यारी
इक दूजे की बात समझना यही है समझदारी।
तुम सुनो हमारी हम सुने तुम्हारी
इक दूजे की बात समझना यही है समझदारी।




आज का खेल- ‘ कड़ियाँ जोड़ पहेली तोड़’

१)
मेहनत करना मुझसे सीखो,मुझसे सीखो हरदम चलना।
मुझसे सीखो मिलके रहना,मुझसे सीखो आगे बढ़ना। ।

२)
यूँ तो हूँ में बहुत ही छोटी फिर भी कभी न थकती।
एक बार जो चलने की ठानी फिर में कभी न रुकती।

३)
नहीं अकेली रहती,साथ में हरदम मेरे साथी।
खाने में मुझको चावल और चीनी बहुत ही भाती। ।

-चींटी


मीना एक बालिका शिक्षा और जागरूकता के लिए समर्पित एक काल्पनिक कार्टून कैरेक्टर है। यूनिसेफ पोषित इस कार्यक्रम का अधिकसे अधिक फैलाव हो इस नजरिए से इन कहानियों का पूरे देश में रेडियो और टीवी प्रसारण किया जा रहा है। प्राइमरी का मास्टर एडमिन टीम भी इस अभियान में साथ है और इसके पीछे इनको लिपिबद्ध करने में लगा हुआ है। आशा है आप सभी को यह प्रयास पसंद आयेगा। फ़ेसबुक पर भी आप मीना की दुनिया को Follow कर सकते हैं।  

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