प्राइमरी का मास्टर डॉट कॉम के फैलाव के साथ कई ऐसे साथी इस कड़ी में जुड़े जो विचारवान भी हैं और लगातार कई दुश्वारियों के बावजूद बेहतर विद्यालय कैसे चलें, इस पर लगातार कोशिश विचार के स्तर पर भी और वास्तविक धरातल पर भी करते  है। चिंतन मनन करने वाले ऐसे शिक्षक साथियों की कड़ी में आज आप सबको अवगत कराया जा रहा है जनपद इटावा के साथी  श्री अवनीन्द्र जादौन जी से!  स्वभाव से सौम्य, अपनी बात कहने में सु-स्पष्ट और मेहनत करने में सबसे आगे ऐसे विचार धनी शिक्षक  श्री अवनीन्द्र जादौन जी  का 'आपकी बात' में स्वागत है।

इस आलेख में उन्होने ग्रामीण परिवेश के बालकों की शिक्षा के लिए उनके अभिभावकों की आमदनी संबंधी समस्याओं पर नजर डालते हुये ऐसा कोई मैकानिज़्म बनाने की ओर सुझाव दिया है जिससे बच्चे स्कूलों तक नियमित रह सकें। हो सकता है कि आप उनकी बातों से शत प्रतिशत सहमत ना हो फिर भी विचार विमर्श  की यह कड़ी कुछ ना कुछ सकारात्मक प्रतिफल तो देगी ही, इस आशा के साथ आपके समक्ष   श्री अवनीन्द्र जादौन जी  का आलेख प्रस्तुत है।




फसल बोने और काटनें  का समय प्राइमरी स्कूलों के लिए बड़ा मुश्किल भरा समय होता है वर्तमान समय में गाँव की कुल खेती के हिसाब से मजदूरों की संख्या काफी कम हो गयी है ज्यादातर लोग काम और रोजी रोटी की तलाश में शहर पलायन कर चुके है और शिक्षित नवयुवा खेती में रूचि नहीं ले रहे है जिससे गाँव में रह रहे गरीब परिवार ही खेती और मजदूरी कर रहे हैं और अधिकांश इन्ही गरीबी रेखा से नीचे अभाव में जीवन यापन करने बाले अभिभावकों के बच्चे हमारे प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ते हैं।

     फसल की बुबाई और कटाई के समय खेतों पर काम करने बाले बच्चों को एक दिन मजदूरी के बदले  150 से 200 रुपये तक मिल जाते हैं इस तरह पूरा परिवार एक दिन में 1000 -1200 रुपया कमा लेता है और 2 महीने में लगभग 50000 रुपया तक कमाता है। गरीब परिवार के लिए ये पूरे वर्ष के भरण पोषण के लिए पर्याप्त कमाई है। ऐसे में अपने बच्चों से काम करवाना इनकी मज़बूरी है और यह मज़बूरी बच्चों की पढाई पर हमेशा भारी पड़ती है।

        ग्रामीण बच्चों के लिए खेती के महीने पिकनिक टाइम जैसा है। मजदूरी कर बचाए गए पैसों से उनकी कई छोटी छोटी ख्वाहिश पूरी हो जाती हैं सो मास्टर जी की नियमित स्कूल आने की सलाह उन्हें नागवार गुजरती है। दो महीने स्कूल से गायब रहने बाले इन बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में शामिल करना अध्यापकों के लिए एक कठिन चुनौती है साथ ही शिक्षा विभाग की मंशा के अनुरूप पाठयक्रम पूर्ण कराना भी लगभग असंभव कार्य है।

   कुछ छोटे बच्चे मजदूरी का कार्य नहीं करते है पर उनके माँ बाप और बड़े भाई बहनों के खेतों पर चले जाने के कारण घर के दुधमुँहा बच्चों के देखरेख की जिम्मेदारी इन पर आ जाती है। अगर आप कभी गांव की गरीब बस्ती में जाए तो 5 -6 वर्ष वय के बच्चे अपने 1-2 वर्ष के बच्चों को गोद में लिए घूमते मिल जायेगें।

   चूँकि वर्तमान समय में बेसिक शिक्षा रोजगार परक नहीं है और कक्षा 8 या 10 पास छात्रों को सरकार रोजगार नहीं देती है ऐसे में उनके अभिभावकों का शिक्षा से विमुख होना तर्कसंगत ही लगता है।

  ग्रामीण अभिभावकों से बातचीत पर पता चलता है उन्हें शिक्षा से अधिक आवश्यकता जीवन यापन की न्यूनतम सुबिधायें जुटाने की है उनकी व्यक्तिगत जिंदगी काफी संघर्ष भरी है। रोजगार का स्थायी साधन ना होने के कारण और भविष्य के असुरक्षित होने से उनकी प्रथम प्राथमिकता अर्थोपार्जन ही है। अशिक्षित और गरीब माता पिता शिक्षा के दूरगामी परिणामों को स्वीकार करनें को तैयार नहीं हैं। जबकि शिक्षा की सबसे अधिक आवश्यकता इन्ही परिवारों को है।




   बेसिक शिक्षा के अधिकारियों ने आज तक धरातल से जुडी इन समस्याओं को जानते हुए भी हमेशा नजरंदाज किया है उनकी नजर में इन विद्यालय में कम उपस्थिति और ड्राप आउट के लिए उपर्युक्त कारण जिम्मेदार नहीं है और शतप्रतिशत उपस्थिति केवल अध्यापक की जिम्मेदारी है। 


   राज्य स्तर पर जितने भी सर्वेक्षण किये जाते है वह अंततः जिला स्तर द्वारा प्रदत्त सूचनाओं और आकड़ो पर ही निर्भर रहते है ये आंकड़े भी स्थानीय अधिकारीयों द्वारा अपनी कलम और नौकरी को बचाते हुए प्रेषित करने के कारण 100 प्रतिशत प्रमाणिक नहीं है। निजी सर्वे संस्थान प्रथम जैसी संस्थाएं भी केवल सैंपलिंग करने तक सीमित है और उनकी रिपोर्ट्स में भी अध्यापक ही शिक्षा के गिरते स्तर का प्रमुख कारण है, और इन्होंने शिक्षा के गिरते स्तर के लिए अभिभावक को कटघरे में खड़ा नहीं किया है।  ग्राम शिक्षा समिति, ग्राम प्रधान ,एस एम सी की विफलता भी सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की स्तर के लिए जवावदेह हैं परन्तु इनके प्रति कोई कानून न होने से इन्हें जिम्मेदार बनाकर कार्यवाही के दायरे में नहीं लाया जा सकता है जिससे शिक्षा में इनका योगदान एक कल्पना मात्र ही साबित हुआ है। 

अब या तो सरकार सभी ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराये ताकि उनके बच्चे बाल श्रम से दूर रहकर केवल पढाई करें या फिर स्कूल ना भेजने बाले अभिभावकों को सख्त क़ानूनी कार्यबाही के दायरे में लाया जाए । आइये हम सब मिलकर इस समस्या का समाधान खोजे और जो भी इस समस्या से ग्रसित है अपनी उपस्थिति जरुर दर्ज कराएं।


अवनीन्द्र सिंह जादौन
सहायक अध्यापक
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कैलोखर
जसवंतनगर इटावा उत्तर प्रदेश
महामंत्री, टीचर्स क्लब उत्तर प्रदेश


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