विज्ञान शिक्षक क्या करें ?
विज्ञान विषय के साथ प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद बच्चों में किन दक्षताओं का विकास होगा?
1. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास।
2. परिवेश में होने वाली घटनाओं एवं उनके रहस्यों के प्रति जिज्ञासा का विकास।
3. दैनिक जीवन में विज्ञान के उपयोग (कार्यकारण के मध्य अन्तर्सम्बन्ध) की समझ तथा सिद्धान्तों को दैनिक जीवन से जोड़ने की समझ का विकास।
4. खोजी प्रवृत्ति का विकास।
5. प्रेक्षण, विश्लेषण एवं निष्कर्ष निकालने की क्षमता का विकास।
दी गई चुनौतियों के उत्तर ढूँढने की प्रक्रिया में बच्चों द्वारा किये गये पूरे प्रयास यथा-अवलोकन / प्रेक्षण, प्रयोग आदि को शिक्षक अपनी अवलोकन पुस्तिका में लिखते जाएँ। बच्चों की अवलोकन / रयोग पुस्तिका देखते समय शिक्षक यह ध्यान रखें कि यदि बच्चों का अवलोकन मानक उत्तर से भिन्न है तो शिक्षक उसे गलत कहने से बचें। बेहतर यह होगा कि शिक्षक बच्चों को साथ मिलकर मानक उत्तर से विचलन के कारणों का पता लगाएँ। आप जानते हैं कि वैज्ञानिक प्रयोग के परिणाम बहुत सारे कारकों पर निर्भर करता है। उक्त प्रक्रिया को करने से बच्चों को खुद की समझ बनाने में बहुत सुगमता होगी तथा वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण के व्यवहारिक पक्ष से भी अवगत हो सकेंगे।
बच्चों के समक्ष शिक्षक यह स्पष्ट करें कि विज्ञान के नियमों को कभी भी स्थिर व सार्वजनिक सत्य की तरह नहीं देखा जा सकता है। यहाँ तक कि विज्ञान के सार्वभौम और सत्यापित समझे जाने वाले सत्यों को भी अन्तरिम ही माना जाता है। नये प्रयोगों और विश्लेषण के आधार पर उनमें बदलाव होने की संभावना हमेशा ही रहती है।
बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, खोजी प्रवृत्ति के विकास, तथ्यों के प्रेक्षण, विश्लेषण आदि के विकास के लिए कक्षा-कक्ष में कौन-कौन से तरीके अपनाये जा सकते हैं? विज्ञान में खोज और जिज्ञासा का एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे एक सामान्य समस्या समाधान की प्रक्रिया के साथ तुलना करते हुए समझा जा सकता है। समस्या समाधान व खोज, दोनों ही प्रक्रियाओं का प्रारम्भ अवलोकन से होता है जिसके आधार पर आगे की क्रियाविधि तय होती है और अन्त समस्या के समाधान एवं नई खोज के साथ होता है। इसके अलावा दोनों ही प्रक्रियाओं में प्रयास, सत्यापन एवं विश्लेषण एक महत्वपूर्ण भाग है जिनके बिना प्रक्रिया अपूर्ण रहती है।
बच्चों में जिज्ञासा पैदा कर हम उनका सीखना आसान कर सकते हैं और तब हम पायेंगे कि हमारा काम आसान होता जा रहा है। प्राथमिक स्तर पर बच्चों को विज्ञान सम्बन्धी अवधारणाओं, सैद्धान्तिक तथ्यों की समझ विकसित करने हेतु उपकरण व सामग्री क्रय करने की अधिक आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है, बल्कि परिवेश में उपलब्ध सामग्री के साथ ही बच्चों के काम करने की आवश्यकता है।
अतः यह स्पष्ट होता है कि प्रारम्भिक स्तर पर प्रयोगशाला विकास हेतु भारी-भरकम धनराशि, बड़े-बड़े उपकरण या सुसज्जित कक्ष की आवश्यकता नहीं है। विद्यालय स्तर पर परिवेश में बहुत सामग्री उपलब्ध है जिनका बेहतर प्रबन्धन करके अच्छी प्रयोगशाला का विकास आसानी से कर सकते है।
इसी क्रम में एक छोटे समूह ने कुछ सोचा और परिवेश में उपलब्ध कबाड़ और कुछ सामग्री को जोड़कर प्रयोगशाला विकास व संवर्धन की दिशा में सार्थक प्रयास किया है। उन्होंने आर्कमिडीज के सिद्धान्त व प्लवन के नियम का सत्यापन के लिए एक प्लास्टिक टब, भिन्न आकार के लकड़ी का गुटका, तराजू/बैलेंस आदि का उपयोग कर बच्चों के साथ प्रयोग किया। उसी प्रकार उन्होंने टूटे दपर्ण के टुकड़े से प्रकाश के परावर्तन के नियम का सत्यापन किया।
उसी प्रकार आपेक्षित धनत्व पर बच्चों के साथ प्रयोग करने के लिए एक छोटी शीशी लें (होमियोपैथी दवा की शीशी) और इस पर एक छोटा स्केल बना लें। इस शीशी को किसी द्रव में डालें। शीशी का कितना भाग द्रव में डूबा है, यह शीशी पर बने स्केल के माध्यम से ज्ञात कर लें। इसी प्रकार शीशी को जल में डालकर शीशी का कितना भाग हवा में है उसे भी ज्ञात कर लें।
इसी प्रकार ’प्रकाश सीधी रेखा में चलती है’, इसे समझने के लिए प्लास्टिक एक से टुकड़ेे, सीधी पाइप एवं छोटी पाइप की मदद से प्रयोग कर सकते हैं।
क्या आप इसी प्रकार कुछ और प्रयोगों के लिए अपने आस-पास में पायी जाने वाली सामग्रियों की सूची बना सकते हैं?
क्रमशः ...
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