☆☆☆ परिवर्तन और सहयोग ☆☆☆
आज हम सब चाहते हैं कि अपने अनुकूल परिवर्तन हो। जिसकी अजीब सी छटपटाहट दिखाई भी दे रही है। कोई विद्यालय समय में परिवर्तन चाहता है,  कोई मध्यान्ह भोजन में परिवर्तन चाहता, कोई वेतन भत्तों में, कोई दूर से नजदीकी विद्यालय में आदि- आदि।
परन्तु क्या हमने भी कभी सोचा कि किसी सार्थक और सामूहिक परिवर्तन के लिए हमने कितनी मेहनत की और कितने प्रयास किए ?? शायद अपने हाथ की अंगुलियां ही इसकी गणना के लिए असंख्य नजर आयेगी। क्या हमने कभी विज्ञान का क्रिया प्रतिक्रिया के नियमानुसार अपने मन मष्तिष्क को सोचने के लिए विवश कर कोई सार्थक हल तलाशने की कोशिश की या कोशिश कर रहे हैं, जिससे कुछ नयी सोच, नया विचार और नया समाधान दिखाई दे ? आज सार्थक और सामूहिक परिवर्तन हमारेे निश्छल और निष्कपट सहयोग का आकांक्षी है।
कुछ सार्थक करने के लिए हम सब को ईमानदारी से दो पहलुओं पर चिंतन मनन और सार्थक पहल करनी ही होगी।
(1) अपने विद्यालय के बच्चों के शैक्षिक स्तर में सुधार के लिए सहयोग।
माना कि शिक्षक के सामने आज शिक्षण कार्य करने में अनेकानेक बाधाएं, समस्याएं और परेशानियां है,  तो क्या हम अपने शिक्षक होने के मूल कर्तव्य/दायित्व को छोड़ कर अन्य सभी कार्यों को करके कितने दिन इस शिक्षक जीवन को सतत और व्यापक बनाकर रह सकते हैं।
जैसे माना कि मनुष्य के जीवन में अनेक दुख सुख, उलझन, परेशानियां आती हैं तो क्या हम मनुष्य के जीवन के लिए अतिआवश्यक ऊर्जा स्रोत/ भोजन को छोड़ कर अन्य सभी काम करते रहेंगे, तो आखिर कब तक और कैसे? ऐसे में तब एक न एक दिन हमारे शरीर का पतन अवश्यम्भावी है। इसलिए हम सब को निश्चित ही शिक्षा, शिक्षक और शिक्षण को बचाने के लिए शिक्षार्थी के प्रति और अपने शिक्षक धर्म के प्रति वफादार होने के रास्ते तलाशने ही होगें। इसके लिए नयी सोच और विचार का रास्ता संगठन से होकर जाता है। जो हम सब के विचारों को मूर्त रूप में बदल सकता है। तो आइए हम सब सहयोग और परिवर्तन के लिए आगे बढ़ें।
(2) शिक्षक संगठनों का एकीकरण और लोकतान्त्रिक पारदर्शिता।
हम इस वाक्य से तो भली भाँति परिचित हैं -
"फूट डालो राज करो।"  फिर भी इसके शिकार होने से बचाव के रास्ते अभी तक हम नहीं खोज सके। जबकि आज हम अपने आपको पहले से अधिक शिक्षित, जागरूक और टेक्नोलाॅजिस्ट समझते या मानते हैं, और यह भी जानते हैं कि आज हमारे शिक्षण कार्य करने में सबसे अधिक बाधक किसी तरह राज करने की महत्वाकांक्षा और निजी स्वार्थ रखने वाले ही हैं। फिर चाहे वह सरकार और शासन हो अथवा शिक्षक, समाज और अधिकारी हो। जो हमारे शिक्षक को अनेकों समूहों में बाँट कर भ्रमित कर रहे। जबकि हम सभी की समस्याएं और जीवन शैली एक सी है।
तो आइए हम सब शिक्षा और शिक्षक के भविष्य की रक्षा के लिए एक होने का प्रयास करें। क्योंकि हम आज हैं कल कोई और होगा।   हम और हमारा अस्तित्व जिससे है उसे रहना चाहिए। अर्थात शिक्षा, शिक्षण और शिक्षक रहना चाहिए।  इसके लिए हमें समय के साथ बदलना भी चाहिए और संगठित होकर एक शिक्षक संघ की पहल करने के लिए आगे आना चाहिए।
लेकिन जब हम परिवर्तन की बात करते हैं तो कहा जाता है कि हमारा संविधान इजाजत नहीं देता है। ये कहना बहुत ही तुच्छ और लालच का प्रतीक है। क्योंकि दुनिया में जब हम पैदा हुए थे तब से क्या परिवर्तन नहीं दिखाई दे रहा है?
''हमारे पूर्वजों ने तो यहाँ तक कहा है कि जो देश काल अर्थात समय और परिस्थिति के अनुसार न बदला तो वह पत्थर के समान है।,,
तो क्या अब हम अपरिवर्तित हो गये? नहीं। हम शिक्षक अपने जीवित होने का प्रमाण संगठनों के संविधानों में परिवर्तन करा के दे सकते हैं। जिससे एक संगठन, एक आवाज और लोकतान्त्रिक पारदर्शिता हो सके।
तो आइये कुछ पाने के लिए कुछ खोना सीखें और  परिवर्तन की अलख जगाने के लिए जो जहाँ जैसे हैं, सकारात्मक सोच और सहयोग के लिए तत्पर रहें। बिना किसी पद या पहचान की किसी लालसा, लालच एवं लोलुपता के, हम इसके लिए संगठनों में सक्रिय सहयोगी बन अपनी आवाज और सोच को बाहर निकालें, वर्तमान पदाधिकारियों पर सार्थक एवं लोकतान्त्रिक बदलाव के लिए दबाव बनाएं, क्योंकि बीज बोने के बाद ही फल मिलता है और बीज सदैव फल की प्राप्ति के लिए अपने को मिट्टी में भी मिला देता है।
जय हिन्द!
जय शिक्षक!
लेखक
विमल कुमार
कानपुर देहात
मिशन शिक्षण संवाद उ० प्र०

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