Click here to enlarge image ह वैश्वीकरण का दौर है, जहां पूंजी को दुनियाभर में विचरण करने की छूट है, लेकिन इससे बनाई गई संपदा पर चुनिंदा लोगों का ही कब्जा है, जबकि इसकी कीमत राष्ट्रों की पूरी आबादी उठा रही है। वर्तमान में बड़ा अजीब सा त्रिकोण बना है, एक तरफ पूंजी का भूमंडलीकरण हुआ है तो दूसरी तरफ तमाम मुमालिक अभी भी राष्ट्र-राज्यों में बंटे हुए हैं। अब तो दुनिया भर में अंधराष्ट्रवाद की नई बयार भी चल पड़ी है, इधर विभिन्न देशों के बीच और खुद उनके अंदर आर्थिक विषमता की खाई बढ़ती ही जा रही है। चर्चित फ्रांसीसी अर्थशास्त्री टॉमस पिकेट्टी अपनी किताब कैपिटल इन द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी में इसी बात को रेखांकित करते हंै कि कैसे 1970 के दशक के बाद से आर्थिक विषमता लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले साल ऑक्सफैम ने यह अनुमान लगाया था कि 2016 तक दुनिया की आधी संपत्ति पर एक प्रतिशत लोगों का कब्जा हो जाएगा। इस साल ऑक्सफैम की रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया के 62 सबसे अमीर व्यक्तियों के पास इतनी दौलत है, जितनी इस धरती पर मौजूद आबादी के आधे सबसे गरीब यानी तीन अरब लोगों के पास भी नहीं है। भारत में भी करीब एक प्रतिशत लोगों का मुल्क की आधी दौलत पर कब्जा है। यकीनन असमानताएं बहुत तेजी से बढ़ रही हैं, भारत जैसे देशों में जहां भुखमरी, बेरोजगारी, बेरोजगारी और कुपोषण की दर बहुत अधिक है, इसको लेकर शर्मिंदिगी होनी चाहिए, लेकिन इसके उलट खोखले विकास के कानफोड़ू नगमे बजाए जा रहे हैं, जिसपर हमसे झूमने की उम्मीद भी की जाती है। लेकिन बात सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, आज जब यूनिसेफ अपनी एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाता है कि साल 2030 तक दुनियाभर में पांच साल से कम उम्र के 16.7 करोड़ बच्चे गरीबी की चपेट में होंगे, जिसमें 6.9 करोड़ बच्चे भूख और देखभाल की कमी से मौत का शिकार हो सकते हैं तो किसी को हैरानी नहीं होती। इस वैश्विक व्यवस्था को चलाने वाली ताकतों के कानों पर भी इस खबर से जूं तक रेंगते हुए दिखाई नहीं पड़ती है। ऐसा नहीं है कि यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में जिन वजहों से इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत होने की संभावना जताई है, उन्हें रोका नहीं जा सकता है। लेकिन समस्या उस व्यवस्था की जड़ में है, जिसके बने रहने का तर्क ही ऐसा होने नहीं देगा।28 जून को यूनिसेफ द्वारा 195 देशों में जारी स्टेट ऑफ द वर्ल्ड चिल्ड्रेन रिपोर्ट 2016 का थीम है- सभी बच्चों के लिए समान अवसर। रिपोर्ट में दुनिया भर में बच्चों की स्थिति, असमानता के कारण उनके जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों के विश्लेषण के साथ इस बात की भी वकालत की गई है कि दुनिया को पिछले 25 वषोंर् में हुई प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए सर्वाधिक गरीब बच्चों की मदद करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह रिपोर्ट बताती है कि असमानताओं के कारण बच्चों का जीवन संकट में है, असमानता के केंद्र में अभाव और गरीबी है, जो काफी हद तक वैश्विक हैं। लेकिन इसके कई अन्य स्तर भी हंै जैसे देश, समुदाय, लिंग आदि, जिसके आधार पर तय होता है कि बच्चों को जिंदा रहने, पढ़ने, सुरक्षित रहने, बीमारियों से बचाव और एक अच्छा जीवन जीने का अवसर मिलेगा या नहीं।एक तरफ मानवता मंगल ग्रह पर बसने के इरादे पाल रही है तो दूसरी तरफ पूरी दुनिया में करीब 12.4 करोड़ बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। 1990 के मुकाबले मौजूदा दौर में पांच साल से कम उम्र के गरीब बच्चों की मौतों का आंकड़ा दोगुना हो गया है, जिसकी मुख्य वजह कुपोषण है। इस बात की पूरी संभावना है कि आगामी 14 सालों में 75 करोड़ लड़कियां कम उम्र में ब्याह दी जाएंगी। रिपोर्ट के अनुसार, अफ्रीका के उप सहारा क्षेत्र तथा दक्षिण एशिया में रहने वाले बच्चों की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। अगर सुधार की यही रफ्तार रही तो एसजीडी लक्ष्यों के तहत 2030 तक शिशु मृत्युदर को प्रति 1000 जीवित बच्चों पर 12 तक लाने का जो लक्ष्य रखा गया था, उसे पूरा करने में दक्षिण एशियाई देश 2049 और सब-सहारा अफ्रीकी देश आधी सदी तक का वक्त लगा देंगे। भारत के संदर्भ में बात करें तो इस रिपोर्ट में भारत में प्री-स्कूलिंग की समस्या पर ध्यान दिलाया गया है। 

अगर बच्चों को प्री-स्कूल की औपचारिक शिक्षा न मिले तो स्कूल में उनके सीखने की क्षमता पर असर पड़ता है। लेकिन हमारे देश में तीन साल से छह साल की उम्र के कुल 7.4 करोड़ बच्चों में से करीब दो करोड़ बच्चे औपचारिक पढ़ाई शुरू करने से पहले प्री-स्कूल नहीं जा पाते इनमें से ज्यादातर बच्चे गरीब व समाज के कमजोर वर्गों के हैं। सबसे बड़ी संख्या मुस्लिम समुदाय की है, जिसके 34 फीसदी बच्चों को प्री-स्कूल में दी जाने वाली शिक्षा नहीं मिल पाती है। जानकार बताते हैं कि स्कूल शुरू होने से पहले की औपचारिक शिक्षा के बिना ही जो बच्चे प्राथमिक स्कूल में जाते हैं, उनके बीच में ही पढ़ाई छोड़ने की आशंका अधिक होती है। 

रिपोर्ट में भारत को चेताया गया है कि अगर सरकार बाल मृत्युदर के वर्तमान दर को कम करने में नाकाम रही तो 2030 तक भारत सवार्धिक बाल मृत्युदर वाले शीर्ष पांच देशों में शामिल हो जाएगा और तब दुनिया भर में पांच साल तक के बच्चों की होने वाली कुल मौतों में 17 फीसदी बच्चे भारत के ही होंगे। रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में स्कूलों में नामांकन दर तकरीबन सौ फीसदी तक पहुंच गई है, जोकि एक बड़ी उपलब्धि है, इसका श्रेय शिक्षा का अधिकार कानून को दिया जाना चाहिए। हालांकि, देश के 61 लाख बच्चे अभी भी शिक्षा की पहुंच से दूर हैं, जिसमें से 26 प्रतिशत यानी करीब 16 लाख बच्चे उत्तर प्रदेश के हैं। होना तो यह चाहिए था कि नामांकन का पहला चरण पूरा कर लेने के बाद इस बात पर जोर दिया जाता कि कैसे बच्चे को स्कूलों में टिकाकर उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाई जाए, इसके लिए सार्वजनिक शिक्षा में निवेश बढ़ाया जाता, लेकिन इसके बदले सार्वजनिक शिक्षा के क्षेत्र में बजट को लगातार घटाया जा रहा है और शिक्षा के निजीकरण की जबरदस्त पैरवी हो रही है। बीते सालों में दुनिया ने प्रगति तो की है, लेकिन यह न्याय संगत नहीं रही है, इसने असमानता के दायरे को बढ़ाते हुए इसे और जटिल बना दिया है। अपनी रिपोर्ट में यूनिसेफ ने दुनियाभर के देशों से बच्चों पर ज्यादा ध्यान देने की अपील करते हुए कहा है कि सरकारों को अपनी नीतियों में बदलाव करते हुए अधिक अवसर प्रदान करने की जरूरत है। कारपोरेट सेक्टरर व अंतरराष्ट्रीय संगठनों से भी कहा गया है कि अगर सामाजिक क्षेत्र में निवेश करते हुए गरीब परिवारों की मदद नहीं की गई तो आने वाले समय में तस्वीर बेहद भयानक हो सकती है। इस स्थिति से बचने के लिए बच्चों को गरीबी से निजात दिलाकर शिक्षा मुहैया कराने की दिशा में प्रयास तेज करने की अपील की गई है।असमानता बच्चों की अदृश्य कातिल है, यह असमानता सरकारों की गलत नीतियों की वजह से नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें मौजूदा आर्थिक व्यवस्था में निहित हैं। समाजवादी खेमे के ढहने के बाद कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना धूमिल पड़ चुकी है और अब सबकुछ पूंजी व बाजार के हवाले कर दिया गया है। भूमंडलीकरण के बाद उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों को सभी मर्जों की एकमात्र इलाज के तौर पर पेश किया जा रहा है, लेकिन मुनाफे के तर्क पर टिकी यह व्यवस्था जनता के बड़े हिस्से को लगातार आर्थिक संसाधनों से वंचित करती जा रही है। भारत जैसे देशों को यह समझना होगा कि विकास का मतलब केवल जीडीपी में उछाल नहीं है, असली और टिकाऊ विकास तब होगा, जब समाज के सभी वगोंर् के बच्चों का समान विकास हो और उन्हें बराबर का अवसर मिले या कम से कम हम एक ऐसा देश और समाज बना सकें, जहां सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षित माहौल मुहैया हो। स्टेट ऑफ द वर्ल्ड चिल्ड्रेन रिपोर्ट जारी होने के बाद युवा कार्टूनिस्ट संदीप अध्वर्यू ने एक कार्टून बनाया था, जिसमें चिथड़ों में लिपटे कमजोर बच्चे जिनकी हड्िडयां बाहर झांक रही हंै, प्रधानमंत्री मोदी से पूछ रहे हैं- एनएसजी (न्यूट्रीशन सप्लायर्स ग्रुप) में शामिल होने के बारे में क्या ख्याल है। सुधार मुमकिन है, अगर सरकारों की प्राथमिकता में बच्चों और वंचितों के सवाल भी शामिल हो जाएं ।

लेखक
जावेद अनीस


Enter Your E-MAIL for Free Updates :   

Post a Comment

 
Top