हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं.............. ****************************************** आज का संघर्षशील पेंशनहीन व्यक्ति कबीरदास की भांति हठी और योगी हो गया है। कबीर का हठ किसी हठयोगी से कम न था । कबीर ने समाज के जो लोग जो हठी न थे- अपनी कला और हुनर से उन्हें हठी बना दिया । और क्या था ............... आज सारा संसार उसके इस हठयोग की प्रशंसा करता है, उसके ज़ज्बे को सलाम करता है। इस परिवार मे शिक्षक और कर्मचारी जिनकी संख्या तक़रीबन पूरे प्रदेश में ०९ लाख है, वह कबीर की ही भाँति हठ कर बैठा है और कहता है- कबिरा खड़ा बाजार मे, लिए लुखाठी हाथ जो घर जारे आपणा, चले हमारे साथ। लुखाठी लेकर चलने वाले इस वयक्ति के क्या कहने । आनन्दित हो कर वह गाता हुआ चलता है- इस मिशन के लक्ष्य को पाने के लिए मै तो अपना घर, संसार पहले ही फूक आया हूँ अब डर कैसा। वह सोचता है जब मेरा भविष्य ही अच्छा नहीं है तो वर्तमान की चिंता क्या करना। कबीर एवं उनके अनुनायियो के इस हठ (हंगामा) मे कई बाधाऐं भी आईं पर वह- जिन्दगी के हर फिक्र को धूंए मे उडाता गया...... कबीर के इस हंगामे की न कोई विधा होती है न ही जात। हंगामा तो अनायास खड़ा हो जाता है। 

हंगामा तो होकर ही रहता है- जब लोग बातों को सुनते नहीं है। बचपन की हरकतें आप लोगों को अच्छी तरह याद ही होगी जब सभी को किसी वस्तु अथवा उद्येश्य की प्राप्ति के लिए अनायास ही घर मे हंगामा खड़ा कर देते थे जबकि इस हंगामे का उद्देश्य किसी को परेशान करना नही होता था अपितु अपनी बात किसी ढंग से मनवाना था। इस बात को मनवाने के लिए हम कई तरीके भी अपनाते थे, मसलन- भूख हड़ताल, रूठ जाना, तोड़ फोड़ करना अथवा घर के सभी भाई बहनों का संगठित हो जाना या घर कोई ऐसा कोना पकड़ लेना जहाँ हमें लाख प्रयासों के बाद भी सुबह से शाम तक कोई हमें खोज न सके। अब वह दिन दूर नहीं जिस लक्ष्य को पाने के लिए हम सभी एक मंच पर आए है उसे अपने हठयोग भूख हड़ताल, चाक डाउन, असहयोग एवं बहिष्कार जैसे हंगामेदार हठयोग का सहारा क्यों न लेना पड़े? आपका यह हठयोग लोगो के विचार से- विशाल, आदि से अनंत तक का हो सकता है ।

जब व्यक्ति के पास कुछ भी खोने के लिए होता ही नहीं है तो वह लक्ष्य की और तेजी से दोलन करता है ।
वह यह भी जानता है कि- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, लेकिन भडभूजे की ................. यंहा एक चना नहीं, अनेक चने है जो इस सरकार एवं सरकारी व्यवस्था की आँख ही नहीं, पूरा सिस्टम को तोड़ फोड़ सकता है । सरकारी व्यवस्था के पास २०१७ का लक्ष्य है और हमारे पास २०१७ के पहले का । यह २०१७ सरकार के ताबूत की अंतिम कील भी हो सकती है और यदि वह चाहे तो उसके विजयश्री की भी । जो अब तक इस हठयोग और हंगामे के ०९ लाख अनुनायी है वह सरकार और सत्ता को बदलने के लिए काफी है । २०१७ के इस महापर्व मे हमारा नारा भी हो सकता है- तख़्त बदल दो ताज बदल दो इन सरकारों का राज बदल दो हंगामे को नयी दिशा देते हुए इस हठयोग को लक्ष्य तक पहुंचना होगा । हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++, हंगामे के बाद सिर्फ तस्वीर बदलनी चाहिए.............. हंगामे का तात्पर्य जीत का अहसास, प्रफुल्लित चेतना, आशावादी उर्जा का संचार, जैसे मानो हमने सब कुछ पा लिया हो।

लेखक
राकेश कुमार 
प्रा०वि० परौसा क्षेत्र कदौरा 
जिला जालौन

 

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