केंद्र सरकार ने अपने अधीन लगभग सभी विभागों में 01-01-2004 से पुरानी पेंशन योजना समाप्त करते हुए नव नियुक्त सभी कर्मचारियों/अधिकारियों को नवीन पेंशन योजना से आच्छादित कर दिया। केंद्र सरकार ने पुरानी पेंशन के स्थान पर नवीन पेंशन योजना का आगाज क्या किया कि लगभग सभी राज्य सरकारें भी उसी रास्ते पर चल पड़ीं। उत्तर प्रदेश सरकार भी पीछे नहीं रही। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी अपने अधीन लगभग सभी विभागों में  01-04-2005 के बाद नियुक्त सभी कर्मचारियों/अधिकारियों को पुरानी पेंशन योजना सुविधा से वंचित कर नवीन पेंशन योजना से आच्छादित करने का फरमान जारी कर दिया।
         केंद्र/राज्य सरकार द्वारा घोषित नवीन पेंशन योजना तत्कालीन कार्यरत कर्मचारियों/अधिकारियों पर लागू न होकर बाद में होने वाली नियुक्तियों पर ही लागू होने के कारण तत्समय पुरानी पेंशन योजना समाप्त करने का कर्मचारियों/अधिकारियों और उनके संघों द्वारा जिस रूप में विरोध होना चाहिए था नहीं हुआ।
     समय बीतता गया पुरानी पेंशन योजना से वंचित पीड़ितों की संख्या दिन-प्रतिदिन हर नयी नियुक्ति के साथ बढ़ती गई। परिणामत: नयी पेंशन योजना का विरोध और पुरानी पेंशन योजना बहाली की मांग भी जोर पकड़ने लगी।
        पुरानी पेंशन योजना से वंचितों की संख्या का वोट-गणित सर्वप्रथम तमिलनाडु की वर्तमान मुख्यमंत्री जयललिता जी ने समझा। तमिलनाडु में बीते विधानसभा चुनाव प्रचार में जयललिता जी ने ये चुनावी घोषणा कर दिया कि उनकी सरकार बनने पर नवीन पेंशन योजना समाप्त कर सभी कर्मचारियों/अधिकारियों को पुरानी पेंशन योजना से आच्छादित कर दिया जाएगा। बाद में तमिलनाडु में जयललिता जी की सरकार बन गई। अब नवनियुक्त मुख्यमंत्री जयललिता जी पर अपने चुनावी घोषणा को पूरा करने की बारी थी। उन्होंने अपनी चुनावी घोषणा को लागू करने के क्रम में राज्य में नयी पेंशन योजना को समाप्त कर पुरानी पेंशन योजना लागू करने के लिए तकनीकी सुझाव देने हेतु एक समिति का गठन भी कर दिया। फिलहाल ये समिति अपना रिपोर्ट तैयार कर रही है।
      इधर उत्तर प्रदेश में भी नयी पेंशन का विरोध और पुरानी पेंशन योजना बहाली की मांग का भी जोर पकड़ता जा रहा था। पुरानी पेंशन योजना बहाली की मांग पर आधारित नये-नये संगठनों का उदय भी हुआ, जिसमें पुरानी पेंशन बहाली के एकसूत्रीय मांग पर आधारित 'अटेवा' संघ के संघर्ष की भूमिका अहम है। पुरानी पेंशन बहाली के मुद्दे पर 'अटेवा' संघ की बढ़ती भूमिका और लोकप्रियता ने पुराने संघों को झकझोर दिया। अब पुराने संघों ने पुरानी पेंशन बहाली की मांग को अपने मांगपत्र में नीचे के स्थान पर रखने की जगह नंबर एक पर स्थान देना शुरू कर दिया।

        कर्मचारियों/अधिकारियों और उनके संघों में पुरानी पेंशन बहाली के संघर्ष का उत्साह उस समय क्रान्ति का रूप ले लेगा जिस दिन तमिलनाडु सरकार अपने राज्य में नयी पेंशन योजना के स्थान पर पुरानी पेंशन योजना लागू करने के फैसले पर अंतिम मुहर लगाते हुए शासनादेश जारी कर देगी। उस समय बहुत हद तक सम्भव है कि विभिन्न राजनीतिक दलों में कर्मचारियों/अधिकारियों को नयी पेंशन के स्थान पर पुरानी पेंशन योजना बहाल कर श्रेय लेने की होड़ भी मच सकती है। कोई भी सत्ताधारी पार्टी इस मुद्दे पर हीलाहवाली कर विपक्षी पार्टी को चुनावी मुद्दा बनाने या श्रेय लेने का जोखिम नहीं उठा सकती।
       वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव द्वारा 29 अगस्त को पुरानी पेंशन योजना बहाली मुद्दे पर वार्ता के लिए बुलाई गई बैठक को संघर्षरत कर्मचारियों/अधिकारियों की प्रारंभिक सफलता का सुखद संकेत समझा जा सकता है।

पुरानी पेंशन योजना बहाली सरकारों के लिए फायदे का सौदा

नयी पेंशन योजना में कर्मचारियों के वेतन से उनके मूलवेतन और मंहगाई का दस प्रतिशत धनराशि कटौती कर कर्मचारी के टीयर-1 खाते में जमा किया जाता है और उतनी ही धनराशि सरकार को कर्मचारियों के टीयर-1 खाते में भी जमा करना पड़ता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो नयी पेंशन योजना से आच्छादित कर्मचारी के नियुक्त होने के बाद से ही सरकार पर टीयर-1 धनराशि जमा के रूप में अतिरिक्त राजकोषीय दबाव का बोझ बढ़ जाता है। वहीं पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारियों/अधिकारियों के नियुक्त होने के बाद नयी पेशन योजना की तरह कर्मचारी के मूलवेतन और मंहगाई के दस प्रतिशत के बराबर धनराशि सरकार को कर्मचारी के खाते में जमा नहीं करना पड़ता बल्कि कर्मचारी के वेतन से ही जीपीएफ की कटौती कर धनराशि जमा होती रहती है। हम कह सकते हैं कि वर्तमान समय में राजकोषीय घाटे से जूझ रही सरकारों के लिए नयी पेंशन योजना के मुकाबले पुरानी पेंशन योजना राहत भरी योजना है। इसका एक अन्य पहलू ये भी है कि नयी पेंशन योजना से आच्छादित कर्मचारी/अधिकारी प्रायः युवा है। इस कारण सरकार पर पुरानी पेंशन भुगतान सम्बन्धी अतिरिक्त राजकोषीय भार आज से ही नहीं बल्कि लगभग बीस वर्ष  बाद ही पड़ेगा। बीस वर्ष बाद पड़ने वाले वित्तीय भार के लिए कोई भी राजनीतिक पार्टी पुरानी पेंशन योजना से वंचित पीड़ित कर्मचारियों/अधिकारियों के एक बहुत बड़े समूह की मांग को कैसे और कब तक नजर अंदाज करेंगी अथवा बीस वर्ष बाद पेंशन भुगतान के रूप में पड़ने वाले राजकोषीय भार के कारण राजनीतिक पार्टियां अपना वर्तमान खराब करने का जोखिम क्यों और कब तक उठाएंगी। निष्कर्षत: कहा जा सकता है। पुरानी पेंशन बहाली के संघर्ष का भविष्य निश्चित रूप से उज्ज्वल है।

दुर्गेश चन्द्र शर्मा,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय छितही बुजुर्ग,
क्षेत्र- फरेन्दा, जनपद- महराजगंज।

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