दुनिया भर में अभिभावक अब बच्चों को अधिक समय देने लगे हैं, पर हमारे यहाँ ऐसा नहीं हो रहा।

मां-बाप और बच्चों के बीच बढ़ती दूरी पर इतना कहा और लिखा जा चुका है कि अब हम इसे परम सत्य की तरह मानने लगे हैं। लेकिन इस समस्या पर जो शोध हुए हैं, वे कुछ और ही कहानी कहते हैं। 

हाल ही में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय ने एक अध्ययन किया, तो यह पाया कि अधिकांश पश्चिमी देशों में माता-पिता साठ के दशक के माता-पिता के मुकाबले अपने बच्चों के साथ अधिक समय बिता रहे हैं। 1965 में जहां माताएं आमतौर पर अपने बच्चों के साथ रोजाना मात्र 54 मिनट बिताती थीं, वहीं 2012 में यह समय बढ़कर 104 मिनट हो गया। माताओं के मुकाबले पिताओं ने बच्चों के साथ वक्त बिताने में ज्यादा लंबी छलांग लगाई है। पहले पिता जहां मात्र 16 मिनट अपने बच्चों के साथ बिताते थे, अब यह समय छह गुना बढ़ गया है। शोधकर्ता यह देखकर हैरान हो गए कि शिक्षित और सुविधा संपन्न माता-पिता बच्चों को अधिक समय दे रहे हैं। जबकि पहले समझा जाता था कि साधन संपन्न माता-पिता काम के सामने बच्चों को समय देना नहीं चाहते, क्योंकि वे पैसा खर्च करके बच्चों के लिए दूसरों का समय खरीद सकते हैं। 

उच्च शिक्षा प्राप्त माताएं हर रोज 123 मिनट, जबकि कम शिक्षित माताएं 94 मिनट बच्चों के साथ बिताती हैं। अधिक पढ़े-लिखे पिता 74 मिनट और कम पढ़े-लिखे 50 मिनट बिताते हैं। इस अध्ययन में 18 से 65 साल तक की 68,532 माओं और 53,719 पिताओं से बात की गई। ऐसे परिवारों को चुना गया, जिनका कम से कम एक बच्चा जरूर था। कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका, डेनमार्क, नार्वे, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, इटली, स्पेन और स्लोवानिया में किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि फ्रांस ऐसा इकलौता देश है, जहां माताएं आज भी बच्चों के साथ पहले से कम समय बिता रही हैं। हाल ही में अमेरिका में रहने वाली दो महिलाओं से बात हुई, तो पता चला कि उन्होंने नौकरी छोड़ दी है। उनका कहना था कि बच्चे बड़े हो रहे हैं, इसलिए घर में उन्हें माता-पिता में से एक चाहिए, जो न केवल उनकी पढ़ाई, बल्कि दोस्तों तथा अन्य भावनात्मक समस्याओं को निपटाने में उनकी मदद कर सके। इन महिलाओं का कहना था कि वे चाइल्ड केयर के भरोसे अपने बच्चों को नहीं छोड़ सकतीं। साथ ही यह भी कि व्यस्त दिनचर्या के चलते वे बच्चों के बचपन का आनंद नहीं उठा सकीं, पर अब किशोरावस्था में वे उनका हर कदम पर साथ देना चाहती हैं। इसके विपरीत अपने आस-पास हम पाते हैं कि माता-पिता के पास बच्चों और परिवार को देने के लिए समय ही नहीं बचा है। पहले बच्चों का लालन-पालन संयुक्त परिवार के हवाले होता था, अब ऐसे परिवार रहे नहीं और मां-बाप के पास बच्चों के लिए समय नहीं है। और फिर अपने यहां अभी तक अच्छी चाइल्ड केयर सुविधाएं भी विकसित नहीं हो पाई हैं, जो माता-पिता की अनुपस्थिति में बच्चों की उचित देखभाल कर सकें। 

लेखिका
क्षमा शर्मा
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)


Enter Your E-MAIL for Free Updates :   

Post a Comment

 
Top