प्रतिवर्ष स्कूली बच्चे किसी न किसी हादसे में बेमौत मारे जा रहे हैं। कभी बसों के नदियों में गिरने से बच्चे डूबकर मर जा रहे हैं तो कभी दुर्घटनाओं में मासूमों को मौत नसीब हो रही है। 19 अक्टूबर, 2016 को राजधानी दिल्ली के उतर-पश्चिम इलाके के स्वरूप नगर के एक नामी स्कूल की नर्सरी में पढ़ने वाली चार साल की मासूम बच्ची नंदिनी की स्कूल के 20 फुट गहरे सेफ्टी टैंक में गिरने से मौत हो गई। बच्ची को बचाने के लिए बच्ची की मां टैंक में कूद गई, परंतु अपनी बेटी को नहीं बचा सकी। लोगों ने बच्ची की मां को बाहर निकाला। जब तक बच्ची को निकाला गया, तब तक उसकी सांसे थम चुकी थीं। इससे स्कूल प्रशासन की लापरवाही साफ नजर आ रही है, ऐसी लापरवाही बहुत ही संगीन अपराध है। ऐसे संचालकों के विरुद्ध कारवाई करनी चाहिए, ताकि फिर कोई नन्हीं जान बेमौत मारी जाए। स्कूल में सेफ्टी टैंक का काम चल रहा था। देश में कहीं न कहीं हर रोज ऐसे हादसे घटित हो रहे हैं। न जाने कितने नन्हें फूल खिलने से पहले ही मुरझा रहे हैं। स्कूलों की लापरवाहियों के कारण सैकड़ों घरों के चिराग बुझ रहे हैं। इन लापरवाहियों पर संज्ञान लेना होगा तथा आने वाले समय में इन हादसों को रोकने के लिए एक खाका तैयार करना होगा और तभी इन पर लगाम लग सकती है। देश में हजारों हादसे हो चुके हैं। मगर व्यवस्था बहरी बनी हुई है। बच्चों के डूबने के हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। ऐसी खौफनाक त्रासदियां असमय मासूमों को निगल रही हैं। जनवरी 2016 में दिल्ली में चार दिनों में टैकों में गिरकर डूबने से दो स्कूली बच्चों की अकाल मौत से स्कूलों की लापरवाहियां साफ झलक रही हैं। पहली घटना 27 जनवरी को कापसहेड़ा के एमसीडी स्कूल में हुई, जबकि 30 जनवरी 2016 को दूसरी घटना दक्षिणी दिल्ली के बसंतकुंज में स्थित प्रतिष्ठित स्कूल रेयान इंटरनेशनल में भूमिगत टैंक में गिरने से हुई। इससे पहले 21 दिसंबर 2015 को ऐसे ही एक दर्दनाक हादसे में दिल्ली में ललिता नगर इलाके में स्थित सीनियर सेकेंडरी स्कूल में छठी कक्षा के एक बच्चे की दिल्ली दर्शन के ट्रिप के दौरान सराय काले खां में इंद्रप्रस्थ पार्क के गेट नंबर चार के पास एक मैनहोल में डूबने से एक छात्र की मौत हो गई थी। 23 जनवरी, 2016 को हिमाचल प्रदेश के मंडी के नाड़ी में भी सिंचाई टैंक में गिरने से एक 11 साल के बच्चे की डूबने से मौत हो गई थी। कुछ साल पहले हिमाचल में स्कूलों की खेल प्रतियोगिता के दौरान एक बच्चे की तेल की कड़ाही में गिरने से मौत हो गई थी। वर्ष 1997 में राजधानी दिल्ली में एक स्कूल बस यमुना नदी में जलमग्न हो गई थी, जिसमें 28 बच्चों की मौत हो गई थी, जबकि 56 जख्मी हुए थे। बस में सवार सभी बच्चों की उम्र 15 वर्ष थी। वर्ष 1998 में कोलकाता में बच्चों को पिकनिक पर ले जा रही बस पद्मा नदी में गिर गई, जिसमें लगभग 53 बच्चे मारे गए थे। अगस्त 2004 में तमिलनाडु के कुंभ कोणम में स्कूल में आग लगने से 90 नौनिहालों की मौत हुई थी। एक अगस्त, 2006 को हरियाणा के सोनीपत के सतखुंबा में स्कूली बस नहर में गिर गई थी, इस हादसे में 6 मासूमों की मौत हो गई थी। 30 मई, 2006 को श्रीनगर में पिकनिक पर गए बच्चों की नाव का संतुलन बिगड़ने से 22 बच्चों की मौत हो गई थी। 26 जनवरी, 2008 को गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने जा रहे बच्चों की बस रायबरेली के मुंशीगंज में ट्रक से भिड़ी, जिसमें 5 बच्चे मारे गए और 10 घायल हो गए थे। 16 अप्रैल, 2008 को गुजरात के वडोदरा जिले में नर्मदा नदी में स्कूली बस पलटी, जिसमें 44 बच्चे मारे गए। 14 अगस्त, 2009 को कर्नाटक के मंगलौर में फाल्गुनी नदी में स्कूली बस गिरने से दर्जनों बच्चों की डूबकर मौत हो गई थी। 

देश में प्रिंस व माही जैसे बड़े से बड़े हादसे हो चुके हैं, मगर लोग सबक नहीं सीखते। प्रिंस तो बच गया, मगर प्रिंस जैसा भाग्यशाली हर बच्चा नहीं होता। प्रिंस तो बच गया था, मगर उसके बाद मैनहोल में डूबने से माही की दर्दनाक मौत को आज भी देश नहीं भूला है। पिछली घटनाओं से न तो प्रशासन ने सबक सीखा और न ही स्कूल प्रबंधन ने सीखा। ऐसी लापरवाहियां बहुत ही भयानक तस्वीर पेश कर रही हैं। लगातार मौत के गड्ढों में मासूम बच्चे जमींदोज हो रहे हैं। मगर न तो प्रशासन अमला सबक लेता है और न ही आम लोग। जब पता है कि ये गड्ढे बच्चों को निगल रहे हैं तो आखिर इनको खोदकर खुला छोड़ा ही क्यों जाता है। देश में हर रोज कहीं न कहीं ऐसे हादसे होते रहते हैं, मगर सुधारात्मक कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। देश में आज तक हजारों बच्चों की मौत डूबने से हो चुकी है। कुछ दिन तक प्रशासन भी कार्यवाही करता है, फिर वही परिपाटी चल पड़ती है। अगर सही तरीके से हर निरीक्षण किए जाएं तो इन हादसों पर रोक लग सकती है। 

समय-समय पर ऐसी खौफनाक वारदातें होती रहती हैं, पर प्रशासन मुआवजा देकर इतिश्री कर लेता है। मगर मुआवजा इसका समाधान नहीं है। इन बढ़ते हादसों के लिए व्यवस्था की संवेदनहीनता भी काफी हद तक जिम्मेदार है। प्रशासन को चाहिए कि हर महानगर से लेकर गांव सरकारी व प्राईवेट स्कूलों का निरीक्षण किया जाए तथा खामियां दूर की जाएं। अगर उसके बाद भी कोई लापरवाही बरतता है तो उसके खिलाफ कानूनी कारवाई की जाए। प्रशासन अगर ऐसे लापरवाही बरतने वाले लोगों पर शिकंजा कसेगा तो ऐसे हादसे रुक सकते हैं। केंद्र सरकार व राज्य सरकारों को ऐसे स्कूलों पर छापे मारने चाहिए, जो बच्चों के प्रति लापरवाही बरत रहे हैं। ऐसी वारदातें हादसे नहीं, सरासर हत्याएं हैं। 

लेखक
नरेंद्र भारती
nkbhartijournalist@gmail.com

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