बाल दिवस पर भूली-बिसरी भाषाओं के बच्चों के लिए साहित्य उपलब्ध कराने की एक पहल की चर्चा।
रेडियो के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होने के तुरंत बाद से हमारी दुनिया में किताबों के अंत की बात उठती रही है। पिछले कुछ वर्षो में व्यापक हुई डिजिटल क्रांति ने इस डर को और बढ़ाया है। लेकिन यही डिजिटल क्रांति संख्या के स्तर पर छोटे समुदायों की भाषा के लिए संजीवनी सिद्ध होती दिख रही है। एक वर्ष पहले शुरू हुआ स्टोरीवीवर प्रथम बुक्स का खुला डिजिटल मंच है, जिस पर लेखक, अनुवादक, संपादक और चित्रकार बच्चों की सामग्री उपलब्ध करवाते हैं। उपयोग करने के लिए कोई भी इस सामग्री को डाउनलोड कर सकता है। कुछ उत्साही भाषा-प्रेमी इसका इस्तेमाल अपनी-अपनी भाषा में बच्चों को पढ़ाने के लिए कर रहे हैं।
ईरान, इराक, सीरिया और तुर्की तक बिखरे अल्पसंख्यक कुर्द समुदाय
की बोलियों का समूह है। कुर्द समुदाय की अस्मिता से जुड़ी यह भाषा पश्चिम
एशिया की सामरिक-राजनीतिक स्थितियों के कारण खतरे में है। इसे बोलने वाला
समुदाय लगातार अपने परंपरागत क्षेत्रों से विस्थापित हो रहा है। नए देशों
में नई भाषा बोलने-बरतने का दबाव कुर्द बच्चों को तेजी से अपनी संस्कृति से
काट रहा है। कुर्दी घरों में वयस्कों के आपसी वार्तालाप में बच्चों को यह
भाषा तो मिल जाती है, पर उन्हें कुर्दी पढ़ने के लिए प्रेरित करना कठिन काम
है। कुर्दी में बच्चों के लिए आधुनिक/समकालीन साहित्य उपलब्ध नहीं है। यही
स्थिति भारत में तिब्बती भाषा की है और तीन-चार लिपियों में लिखी-पढ़ी
जाने वाली कोंकणी की भी। हिमाचल प्रदेश में एक तिब्बती स्कूल में अंग्रेजी
के अध्यापक तेनजिन धारग्याल फेसबुक पर स्टोरीवीवर से रूबरू हुए। उन्होंने
फेसबुक पर अपने मित्रों-सहकर्मियों को सुझाव दिया कि इनमें से कुछ कहानियों
को तिब्बती में अनुवाद करके इस्तेमाल किया जाए। धर्मशाला के तिब्बती स्कूल
के मुख्य अध्यापक तेनजिन दोर्जी ला और उनके छात्रों ने दो
कहानियों का अनुवाद किया, धर्मशाला की लाइब्रेरी ऑफ तिब्बतन वर्क्स ऐंड
आर्काइव्स के स्कूल में पढ़ा रहे जिग्मे वांग्डेन ने भी कुछ अनुवाद किए।
उधर, वर्ल्ड कोंकणी सेंटर और कोंकणी भाषा मंडल भी महाराष्ट्र, गोवा,
कर्नाटक, उत्तरी केरल, दादर ऐंड नागर हवेली और विदेशों में फैले कोंकणी
बच्चों के लिए बाल साहित्य के कोंकणी अनुवाद के अलावा मौलिक कहानियां भी
स्टोरीवीवर पर अपलोड कर रहे हैं। ईरान के करमानशाह जिले के भाषा-विज्ञानी
मुहम्मद रजा बहादुर इंटरनेट का उपयोग लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी
दक्षिणी कुर्दी के माध्यम से साक्षरता बढ़ाने के लिए करते हैं। उन्होंने एक
वर्ष में 22 कहानियों का अनुवाद कुर्दी में (रोमन और अरबी लिपियों में)
किया है, ताकि कुर्द बच्चे कुर्दी में कहानियां पढ़ पाएं और पूरी दुनिया के
बच्चों से जुड़ सकें। मुहम्मद रजा का लक्ष्य कुर्दी का शब्दकोश और व्याकरण
तैयार करना है।
मधु बी जोशी
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
Post a Comment