शिक्षा का विचार मन में आते ही एक आशा का संचार भविष्य की राह को जीवन के उद्देश्य की और ले जाता हुआ प्रतीत होता है ।किसी भी राष्ट्र का विकास इस बात पर निर्भर करता है कि वहाँ के रहने वाले लोग अपने अधिकारों और कर्त्तव्य के प्रति कितने सजग हैं? जो कि निःसन्देह शिक्षा से जुड़ा हुआ प्रश्न है । जो मानव की नियति तो निर्धारित करता ही हैं  साथ ही साथ उसके राष्ट्र की  दिशा भी।इस परिप्रेक्ष्य में अभिभावक ही केंद्र बिंदु है क़ि वे अपने बच्चो को राष्ट्र के विकास की मुख्यधारा में किस प्रकार भागीदार बना सकते है ?यहाँ एक बात और है जो किसी भी राष्ट्र की प्रगति को मुख्य आधार प्रदान करती है वह है एक शिक्षक का नैतिक दायित्व। एक शिक्षक का कार्य ही मानवता को गौरवान्वित करते हुए विश्व को नई दिशा देना है तभी तो इतिहास में गुरु को गोविन्द से भी बढ़कर बताया गया है। एक नागरिक होने के नाते क्या हमें केवल अपने परिवार तक ही सीमित हो जाना हमारे मानवता के उद्देश्य को पूर्ण करता है यह प्रश्न स्वयं से पूछा जाना जरूरी हो जाता है ।

शिक्षा के द्वारा सभी प्रश्न के समाधान का मार्ग मिलता है ।बचपन का समय हर एक बच्चे के जीवन का भविष्य तय करता है शिक्षा ही वह माध्यम है जिससे उसके आने वाले कल को सशक्त और सुदृढ़ बनाया जा सकता है ।बस यही से एक राष्ट्र की दिशा और दशा निर्धारित होती है ।यहाँ यह बात भी स्मरण रखने योग्य हो जाती है कि आज भी कुछ लोग दो वक़्त की रोटी बमुश्किल जुटा पाते है तो शिक्षा का  प्रश्न यहाँ करना इस स्थिति के लिये  एक कठिन परीक्षा का अभ्यास है जो निश्चय ही मानवता के महान उद्देश्य और मानव के महामानव बनने की और का एक मार्ग हो सकता है बस उन गरीब तबके के लोगो के बच्चो को किस प्रकार शिक्षा की मुख्य धारा में लाया जा सकता है ? प्रश्न बड़ा ही महत्वपूर्ण है तो निश्चित ही समाज के शिक्षित व्यक्ति विशेष तौर पर शिक्षक की जिम्मेदारी और समाज के प्रति उसके योगदान का कुछ विशेष महत्व हो जाता है । शिक्षा के द्वारा एक व्यक्ति शून्य से शिखर तक की यात्रा कर अपनी प्रतिभा से समाज को चकित कर देता है ।

शिक्षा समाज के हर वर्ग की पहुँच में हो इसी बात को दृष्टिगत रखते हुए वर्ष 2002 में भारत के संविधान में 86वां संशोधन हुआ और अनुच्छेद 21अ में शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार में जोड़ दिया गया जिसके अनुसार 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चो को अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान है ।बस यहीं से समाज के शिक्षित व्यक्ति की जिम्मेदारी की दिशा स्वयं तय हो जाती है । यदि  गाँव की ओर देखा जायें तो यहाँ शिक्षित व्यक्ति के साथ साथ ग्राम प्रधान की भूमिका भी बढ़ जाती है कि वो अपने गाँव के गरीब बच्चो को शिक्षा की मुख्य धारा में लाने में सहयोग करे जिससे वो गरीब बच्चे मुश्किलों  को पराजित करते हुए अपने स्वर्णिम भविष्य की एक नई इबारत लिख सके । कोशिश का हर कदम सफलता की और ले जाता है और परिवर्तन की आधारशिला रखता है । अतः एक सभ्य समाज की श्रेष्ठता के लिये एक शिक्षक के त्याग और समर्पण की क्या उपयोगिता है उसके विषय में जो भी कहा जाये वह अतिश्योक्ति ना होगा ।एक शिक्षक अक्षर और मात्राओं के ज्ञान से एक ऐसे इंसान की रचना करता है जो देश को एक   नई दिशा देते है। सच्चे अर्थ में वे समाज के शिल्पकार ही है जो समाज को शिक्षित कर देश के भविष्य को दिशा दे रहे है । परन्तु जब जिम्मेदारी की बात आती है तो अभिभावक की  भी जिम्मेदारी अपने बच्चे के भविष्य के प्रति मुख्य भूमिका में होती हैं जो कि एक मानवीय उत्कर्ष का भाग है और मानव के जीवन को मूल्यांकित करता हुआ जीवन का उद्देश्य बताता है जिससे समाज बदलता है और एक बदलाव का जन्म होता है और मानव अपने जीवन के उद्देश्य को सार्थक करता है ।

जय हिंद जय भारत ।
लेखक
प्रमोद कुमार, सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय धावनी हसनपुर,
वि0क्षे0-बिलासपुर,
जनपद-रामपुर।

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