त्तर प्रदेश राज्य के मुजफ्फरनगर जिले में कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय में महिला वार्डन द्वारा छात्राओं के कपड़े उतरवाए जाने की घटना से देश स्तब्ध है। बताया जा रहा है कि वार्डन की इस घिनौनी करतूत के पीछे वजह सिर्फ इतनी थी कि स्कूल के टॉयलेट में खून के धब्बे मिले थे, जिसे देखकर वह आगबबूला हो गई और सभी 70 छात्राओं को क्लासरूम में निर्वस्त्र कर दिया। यह अच्छा हुआ कि जिला शिक्षा अधिकारी ने मानसिक रूप से विकृत इस महिला वार्डन को निलंबित कर दिया। लेकिन असल सवाल यह है कि शिक्षा के मंदिरों में बच्चों के साथ इस तरह का अमानवीय, अमर्यादित और घिनौनापूर्ण व्यवहार कब तक चलेगा? यह पहली बार नहीं है जब स्कूलों में बच्चों के साथ इस तरह की क्रूरता से पेश आया गया हो। आए दिन इस तरह के कृत्य से देश शर्मसार होता रहा है। 

हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि जिन शिक्षा मंदिरों से ज्ञान की गंगा प्रवाहित होनी चाहिए, वहां अब बच्चों के शारीरिक-मानसिक शोषण की चीत्कारें उठ रही हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर चौथा स्कूली बच्चा यौन शोषण का शिकार है। हर ढाई घंटे के दरम्यान एक स्कूली बच्ची हवस का शिकार बन रही है। यूनिसेफ की रिपोर्ट से भी उद्घाटित हो चुका है कि 65 फीसद बच्चे स्कूलों में यौन शोषण के शिकार हो रहे हैं। इनमें 12 वर्ष से कम उम्र के लगभग 41.17 फीसद, 13 से 14 साल के 25.73 फीसद और 15 से 18 साल के 33.10 फीसद बच्चे शामिल हैं। यह सच्चाई हमारी शिक्षा व्यवस्था की बुनियाद को हिला देने वाली है। इस रिपोर्ट पर विश्वास करें तो स्कूलों में बच्चों को जबरन अंग दिखाने के लिए बाध्य किया जाता है। उनके नग्न चित्र लिये जाते हैं। दूषित मनोवृत्ति वाले अधम शिक्षकों द्वारा बच्चों को अश्लील सामग्री दिखायी जाती है।

 एक दौर था जब गुरुजनों द्वारा बच्चों में राष्ट्रीय संस्कार विकसित करने के लिए राष्ट्रीय महापुरुषों और नायकों के साथ अमर बलिदानियों के किस्से सुनाए जाते थे। इन कहानियों से बच्चों में आत्माभिमान जाग्रत होता था। लेकिन आज बच्चों में आदर्श भावना का संचार करने वाले खुद आदर्शहीनता से शापग्रस्त दिखने लगे हैं। शिक्षा मंदिरों में अराजक वातारवरण के कारण बच्चे स्कूल जाने से कतराने लगे हैं। सवाल यह उठता है कि ऐसे विकृत माहौल को जन्म देने के लिए कौन लोग जिम्मेदार है? सिर्फ शिक्षक या समाज या फिर हमारी संपूर्ण शिक्षा प्रणाली? आश्रमशालाओं के छात्रावास सुरक्षित क्यों नहीं रह गए हैं? प्रशासन उसकी सुरक्षा को लेकर गंभीर क्यों नहीं है? सवाल यह भी कि अगर शिक्षा मंदिरों का माहौल इसी तरह अराजक बना रहा तो फिर बच्चों में नैतिकता और संस्कार का भाव कैसे पैदा होगा? जब शिक्षा देने वाले ही अनैतिक आचरण का प्रदर्शन करेंगे तो फिर राष्ट्र की थाती बच्चों का चरित्र निर्माण कैसे होगा? पिछले वर्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बच्चों के शोषण पर गहरी चिंता जताई थी। आयोग ने आपत्ति जाहिर करते हुए कहा कि बच्चों की सुरक्षा के निमित्त सरकार द्वारा सकारात्मक कोशिश नहीं की जा रही है। एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की रिपोर्ट में भी आशंका जताई जा चुकी है कि शिक्षण संस्थाओं में बढ़ रहा यौन शोषण समाज को विखंडित कर सकता है। उसकी रिपोर्ट के मुताबिक उसने देश की राजधानी दिल्ली में ही 68.88 फीसद मामले छात्र-छात्राओं के शोषण से जुड़ा मामला पाया है। गौर करें तो ये आंकड़े समाज को शर्मिदा करने वाले हैं। समझा जा सकता है कि जब देश की राजधानी में बच्चों के साथ इस तरह का आचरण-व्यवहार हो सकता है तो फिर दूरदराज क्षेत्रों में बच्चों के साथ क्या होता होगा इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है? स्कूलों में समुचित वातावरण निर्मित करने के उद्देश्य से गत वर्ष राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने शिक्षकों के लिए मानक आचार संहिता पेश की। उद्देश्य था-छात्रों को मानसिक और भावनात्मक संरक्षण प्रदान करना। लेकिन जिस तरह शिक्षा के केंद्रों में बच्चों के शारीरिक शोषण की घटनाएं बढ़ रही हैं, उससे शिक्षा के सार्थक उद्देश्यों पर ग्रहण लगना तय है। जरूरत इस बात की है कि सरकार और स्कूल प्रबंधन बच्चों के साथ होने वाली ज्यादतियों को रोकने के लिए ठोस रणनीति तैयार करें और शिक्षकों की नियुक्ति के पहले उनके आचरण-व्यवहार का मनोवैज्ञानिक परीक्षण कराएं।

लेखक
अरविंद जयतिलक
 

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