तीन करोड़ बच्चे अपना घर-बार छोड़ कर दूसरों की शरण में जाने को अभिशप्त हैं।

हम जिस दुनिया में जी रहे हैं, वहां मानव शरीर के सूक्ष्मतम तत्व डीएनए में फेरबदल करके मनचाहा मनुष्य बनाने की तैयारियां हो रही हैं। पृथ्वी के विकल्प के रूप में मंगल ग्रह अथवा बीच-बीच में अंतरिक्ष स्टेशन बना कर मानव जाति को बसाने की कोशिशें भी शुरू हो चुकी हैं। गूगल और ऐपल चाय के प्यालों जैसी छोटी सी डिब्बेनुमा मशीनों को सूचनाओं के समुद्र से इस तरह जोड़ रहे हैं कि आप उनके सामने बैठ कर कोई भी सवाल पूछें तो वे सेकंड भर में जवाब पेश कर देती हैं। मैं इसी विकसित दुनिया में रहने वाले ऐसे करोड़ों बच्चों की बात कर रहा हूं, जो मानव जाति के लिए ईश्वर प्रदत्त सबसे बड़े उपहार आजादी तक से वंचित हैं। 

चॉकलेट का स्वाद

कुछ वर्ष पहले मैं पश्चिमी अफ्रीका के देश आइवरी कोस्ट के एक गांव में बैठा था। वहां के करीब सभी बच्चे कोको बीन्स की खेती में गुलामों की तरह काम करते थे। उनके हाथ-पांव में घावों के निशान थे। इन्हीं कोको बीन्स से चॉकलेट पाउडर बनाया जाता है। मैंने कौतूहलवश पूछा कि उन्हें चॉकलेट का स्वाद कैसा लगता है/ बच्चे एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। मेरे लिए यह आश्चर्यजनक था कि चॉकलेट जैसी किसी चीज को चखना तो दूर उन्होंने उसका नाम तक नहीं सुना था।

अभी दो दिन पहले हमने विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस मनाया है। मजे की बात यह कि आज भी ऐसे प्रबुद्ध लोगों की कमी नहीं जो मानते हैं कि गरीबों के बच्चे मजदूरी नहीं करेंगे तो भूखे मर जाएंगे। मुझे उनकी बुनियादी नैतिकता पर तरस आता है। क्या कभी किसी बच्चे ने गरीबी पैदा की/ अगर नहीं तो उसकी गरीबी को गुलामी में तब्दील करने का हक आप को किसने दिया/ आज जब दुनिया में करीब 21 करोड़ वयस्क लोग बेरोजगार हैं तो 17 करोड़ बच्चों से मजदूरी कराने का क्या तर्क हो सकता है/ सिर्फ यह कि वे सस्ते या मुफ्त के मजदूर हैं और उनके शोषण से अनैतिक काली कमाई करने वालों को आसानी रहती है।

हमारा सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक जीवन दोहरेपन पर टिका है। ईश्वर ने हमारे दिलों में करुणा जैसा अमृत दिया है। इसे बांटेंगे तो समुद्र की तरह यह फैलता चला जाएगा, और स्वार्थी बन कर पकड़े रहेंगे तो भाप की तरह तिरोहित हो जाएगा। आज करुणा को आंदोलन बनाने की, इसका भूमंडलीकरण करने की जरूरत है। ताकि जिस तरह हमने अपनी संतानों या छोटे-भाई बहनों में इस दुनिया को सिकोड़ लिया है, उससे बाहर निकल सकें। जब तक संसार के सभी बच्चे स्वतंत्र, सुरक्षित और शिक्षित नहीं हो जाते, तब तक यह दुनिया सुरक्षित और शांतिमय नहीं बन सकती। गुलामी की ईंटों से कभी भी विकास के स्थायी महल नहीं बन सकते।
दुनिया के इतिहास में करीब तीन करोड़ बच्चे अपना घर-बार और देश छोड़ कर दूसरों की शरण में जाने के लिए कभी भी अभिशप्त नहीं थे, लेकिन आज हैं। 23 करोड़ बच्चे खौफ, असुरक्षा और अनिश्चितता में जीते हुए युद्ध और हिंसा से ग्रस्त इलाकों में रहते हैं। इनमें बड़ी संख्या उन बेटियों की है, जिन्हें माता-पिता से छीन कर हवस के लिए गुलामी कराई जा रही है। लाखों बच्चों को बंधुआ और बाल मजदूरी में धकेला जा रहा है। कोई बताए कि इतिहास के किस दौर में बच्चे युद्ध की विभीषिका का कारण बने/ कौन सा धर्म खदानों, खेत-खलिहानों, धधकती भट्टियों, वेश्यालयों में रोज मरते बच्चों के करुण क्रंदन को भुला कर आरतियों, अजानों और प्रार्थनाओं से ईश्वर को खुश करना सिखाता है।

मैं समस्याओं को हमेशा चुनौती की तरह लेता हूं और उनका समाधान ढूंढ़ने में विश्वास करता हूं। इसी सोच ने मुझे एक बार फिर एक विश्वव्यापी युवा आंदोलन खड़ा करने के लिए प्रेरित किया। मैंने बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए कई आंदोलन और जनजागरूकता अभियान चलाए हैं। बाल मजदूरी के खिलाफ मैं 1998 में ग्लोबल मार्च अंगेस्ट चाइल्ड लेबर नाम से दुनिया की सबसे लंबी यात्रा आयोजित कर चुका हूं। 80,000 किलोमीटर की यह यात्रा तब 103 देशों से होकर गुजरी थी और करीब डेढ़ करोड़ लोग इसमें शामिल हुए थे। इस यात्रा के जरिए ही पहली बार बाल मजदूरी और बाल दासता की तरफ विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित हुआ था।

आईएलओ कनवेंशन-182 और विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस भी इसी यात्रा का परिणाम है। अब मैंने दुनिया भर के बच्चों को हिंसा और शोषण से मुक्त कराने के मकसद से भारत की धरती से ‘100 मिलियन फॉर 100 मिलियननामक एक अभियान की शुरुआत की है। पांच साल तक चलने वाले इस आंदोलन से 10 करोड़ युवाओं को जोड़ा जाएगा जो दुनिया के 10 करोड़ वंचित बच्चों को शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए अभियान चलाएंगे। यह दुनिया का अपनी तरह का सबसे बड़ा युवा आंदोलन होगा। इसी अभियान के तहत मैं भारत में बाल यौन शोषण और बाल तस्करी के खिलाफ जन-जागरूकता फैलाने के लिए देशव्यापीभारत यात्राका आयोजन कर रहा हूं।

तोड़ो बंधन तोड़ो

विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस के अवसर पर मेरी आप सब से अपील है कि आप भी मेरे साथ इस यात्रा में शामिल हों और उन करोड़ों गुलाम बच्चों की सिसकियों को मुस्कराहट में बदलें जो मुक्ति के लिए झटपटा रहे हैं। उनकी बेड़ियां तोड़िए। मेरा दृढ़ विश्वास है कि गुलामी की बेड़ियां आजादी की चाहत से ज्यादा मजबूत नहीं होतीं। इसलिए जल्द ही वह दिन आएगा जब दुनिया से बाल मजदूरी और बाल दासता खत्म हो जाएगी। सभी बच्चे आजाद होंगे, खेलने के लिए, पढ़ने के लिए और सपने देखने के लिए भी।

लेखक
कैलाश सत्यार्थी
(लेखक नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और जाने-माने बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं)
 

 

 
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