ब तो लगभग सभी प्रमुख परीक्षा बोर्डों ने अपने मैट्रिक और इंटर के परिणाम घोषित कर दिए हैं। बीते सालों की भांति इस बार भी मेधावी छात्र-छात्राओं ने अपनी मेहनत, लगन और प्रतिभा के बल पर शानदार सफलताएं अर्जित की हैं। बहुत से विद्यार्थी विपरीत पारिवारिक हालातों से जूझने के बावजूद बेहतर अंक ला सके हैं। लेकिन इस सबके बीच एक नकारात्मक ट्रेंड भी देखने में सामने आ रहा है। इस ट्रेंड को गति दे रहे हैं कथित मोटिवेशनल गुरु और अपने को करियर काउंसलर होने का दावा करने वाले। ये डंके की चोट पर कह हैं कि अधिक मार्क्स लेना सफलता का पैमाना नहीं है। आप रट्टा लगाकर बेहतर मार्क्स ले सकते हैं। इस तरह के थोथे और बेबुनियाद दावे करने वाले किसी भी खास परीक्षा के परिणाम आने के बाद अपनी सघन कैंपेन चलाने लगते हैं। ये खड़े हो जाते हैं उनके साथ, जो फेल हो गए होते हैं या कम अंक ला पाते हैं। ये जोर-शोर से दावा करने लगते हैं कि अब जिस तरह के अंक दिए जाते हैं, उसमें कोई भी भारी-भरकम अंक ले सकता है। हालांकि, अधिक अंक लेने वालों की उपलब्धियों को कमतर साबित करने वाले यह भूल जाते हैं कि जब कुछ विद्यार्थी शानदार अंक ले रहे हैं तो उनकी भी संख्या कम नहीं है, जो फेल हो रहे हैं। क्या इन्हें मालूम है कि सीबीएसई की 2015 की इक्नोमिक्स की परीक्षा में भाग लेने वाला हरेक पांचवां छात्र फेल हुआ। यानी वो 12वीं कक्षा की परीक्षा में उत्तीर्ण भी नहीं हो सका। बहुत अच्छे अंक लेने की तो बात ही मत करिए। 

इस साल भी हजारों छात्र-छात्राएं फेल हुए। इसलिए ये मत कहिए कि सबके 90 प्रतिशत से ऊपर ही अंक आ रहे हैं। 90 प्लस अंक लेने वाले बच्चे सच में बहुत कम होते हैं। हां, इन्हें मीडिया की सुर्खियां जरूर नसीब हो जाती हैं। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। क्योंकि किसी खास परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने वालों को सम्मान तो मिलना ही चाहिए। साफ है कि यह एक रणनीति के तहत किया जा रहा है, जिसमें अधिक अंक लेने वालों को भी सामान्य साबित किया जा रहा है। जो अपेक्षित अंक लेने में सफल नहीं हुए, उनको लेकर कहा जा रहा है कि उन्हें हतोत्साहित होने की जरूरत नहीं है। यह कहा जा रहा है कि बिल गेट्स और सचिन तेंदुलकर जैसी बेहद सफल हस्तियां भी बहुत अच्छे स्टूडेंस नहीं थे। इसके बावजूद वे आगे बढ़ सके करियर में। मतलब पढ़ने में खराब होने को कहीं न कहीं सही ठहराया जा रहा है। 

बिल गेट्स और सचिन का उदाहरण देने बाले यह बताएं कि कितने पढ़ने में फिसड्डी स्टूडेंट करियर की दौड़ में आगे बढ़ पाते हैं। अब तो सारी दुनिया ही ज्ञान पर आधारित है। जिसके पास ज्ञान नहीं है, उसके लिए अवसर तेजी से सिकुड़ रहे हैं। यही दुनिया की ताजा अर्थव्यवस्था का कड़वा सच है। कुछ दिन पहले महान क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग का इंटरव्यू पढ़ रहा था। वो कह रहे थे कि क्रिकेट में करियर बनाने का सपना देखने वाले कभी अपनी पढ़ाई को नजरअंदाज न करें। क्योंकि पढ़ाई के बिना सब कुछ अधूरा सा है। आप समझ सकते हैं कि इतना बड़ा खिलाड़ी भी पढ़ाई को कितना अहम मानता है। टाटा संस के नए चेयरमेन एन. चंद्रशेखरन, माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला तथा इंफोसिस के सीईओ विशाल सिक्का सभी मेधावी छात्र रहे हैं। इसलिए ही वे आज शिखर पर हैं। पूरी दुनिया में आईटी सेक्टर का बोलबाला है। आज के दौर में आईटी सेक्टर की बिना पत्ता भी नहीं हिलता। इससे अकेले भारत में ही करोड़ों पेशेवर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। क्या आईटी सेक्टर में पढ़ने में कमजोर विद्यार्थी सफल हो सकते हैं। कतई नहीं। देश की प्रमुख आईटी सेक्टर कंपनी इंफोसिस को कुछ पेशेवरों ने चालू किया था। इसमें एन. नारायाणमूर्ति और नंदन नीलकेणी सरीखे उद्यमी थे। ये सब आईआईटी से पढ़े थे। इन्होंने अपने ज्ञान और सूझबूझ से इंफोसिस को दुनिया की बेहतरीन आईटी कंपनी बनाया। अब इसमें तीन लाख पेशेवर काम कर रहे हैं। इस तरह के दर्जनों उदाहरण हमें मिल जाएंगे। यानी पढ़ने में मेधावी ही कैरियर में आगे बढ़ा। दरअसल, देश में दो तरह की बयार एक साथ बहने लगी हैं। एक तरफ छोटे शहरों और कस्बों में भी ज्ञान पाने से लेकर करियर की दौड़ में आगे बढ़ने की नौजवानों में ललक पैदा हो चुकी है। ये छोटी-मोटी नौकरियों या उपलब्धियों से संतुष्ट नहीं होते। अब ये थोड़े में गुजारा करके संतोष नहीं करना चाहते। ये अपनी पढ़ाई पर बहुत ही ज्यादा फोकास रखते हैं। दूसरी तरफ हैं तथाकथित मोटिवेशल गुरु। ये असफलता में भी संभावनाएं तलाशते हैं। मोटिवेशनल गुरु यह कहते नहीं थकते कि बच्चों को वही विषय पढ़ने चाहिए, जो वे पढ़ना चाहते हैं, तभी न केवल वे अच्छे नंबर लाएंगे, बल्कि बेहतर करियर भी चुन सकेंगे। पर कोई उनसे पूछे कि क्या 12वीं कक्षा के सारे बच्चे अपने फैसले खुद ले पाने में सक्षम हो जाते हैं। सवाल ही नहीं है। इन्हें बच्चों के अभिभावकों में तमाम कमियां नजर आती हैं। क्या कोई अभिभावक अपने बच्चों से बेहतर अंक लेने की अपेक्षा करके कोई अपराध कर देते हैं। क्या कोई उनसे बड़ा अपने बच्चों का हितैषी हो सकता है। लेकिन करियर काउंसलर और मोटिवेशनल गुरु कुछ इस तरह के सारी बातों को रखते हैं, मानो बच्चों के सबसे बड़ें शत्रु हों उनके अपने ही माता-पिता। सदगुरु जग्गी वासुदेव ने बिलकुल ठीक कहा है कि बच्चे को पालना एक बीस वर्षीय प्लान है। अगर इस पर ढंग से काम कर लिया जाए तो आपकी जिंदगी बेहतर होगी, नहीं तो ताउम्र बच्चे को पालना पड़ सकता है। इसलिए बच्चे के करियर पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। यदि बेहतर अंक लेने या मेरिट का कोई अर्थ ही नहीं होता तो फिर तो परीक्षा आयोजित करने की भी क्या जरूरत है। इसलिए किसी भी परीक्षा में टॉप करना सदैव महत्वपूर्ण बना रहेगा। इस बिंदु पर बहस करने का कोई मतलब नहीं है। हां, यह ठीक है कि जो स्टूडेंट्स किसी कारण से बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते, उनके लिए भी अवसर रहते हैं। वे भी आगे चलकर बेहतर अंक ले सकते हैं। पर पढ़ाई कोई मजाक नहीं है। ज्ञान अर्जन करने के लिए कसकर मेहनत करनी होती है। इसका कोई विकल्प भी नहीं है। आप तमाम खास परीक्षाओं में टॉपर रहे विद्यार्थियों से मिल लीजिए। उनसे पूछिए कि वे कैसे इतने बेहतरीन अंक ले सके। सबके उत्तर एक ही होंगे कि उन्होंने दिन-रात पढ़ाई की। इसलिए आप भी अगर कोई परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आपका लक्ष्य टॉपर बनना होना चाहिए। परीक्षा में मात्र उत्तीर्ण होने में क्या आनंद है। उत्तीर्ण तो बहुत होते हैं, टॉपर गिनती के ही होते हैं। आप टापर बनने का लक्ष्य लेकर पढ़ाई करें, बेहतर सफलता मिलेगी।

लेखक
आर0के0 सिन्हा
rkishore.sinha@sansad.nic.in 
(लेखक भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं)

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