अगर हम शिक्षित समाज के व्यवहार का अध्ययन करते हैं तो देखते हैं कि अधिकतर व्यक्ति पूर्वाग्रह से ग्रसित नजर आते हैं। किसी धर्म जाति समुदाय या सामाजिक क्रियाकलापों के प्रति व्यक्ति की सोच जड़ हो चुकी है जिसमे अब कुछ भी नया प्रवेशित करा पाना असंभव सा लगता है और यह जड़ता उसकी उसकी आधी अधूरी शिक्षा का ही परिणाम है। जड़ता के कारण ही लोग अपने तर्कों को भाषा के संयम खोने तक कुतर्क पर उतर आते हैं। जड़ता, अल्पज्ञता से ज्यादा ख़राब दशा है क्यूंकि जड़ व्यक्ति स्वयं को शिक्षित मान कर अपने मन के द्वार को बंद कर लेता है जिससे उसके सीख पाने का रास्ता बंद हो जाता है।
            ज्यादातर लोग आज तक यह जान ही नहीं पाए कि उन्हें विद्यालय से क्या मिलता है। लोगों का मानना है कि विद्यालय में पढने से उन्हें एक प्रमाणपत्र प्राप्त होता है जो उन्हें नौकरी प्राप्त करने में जरुरी है। वास्तव में यही अवधारणा तो शिक्षा के पतन का कारण है। शिक्षा एक व्यापक अवधारणा है जो व्यक्ति का व्यक्तित्व निर्माण करती है और विद्यालय अच्छे समाज के निर्माण की फैक्ट्री हैं। लोग अक्सर यह पूछते हैं कि कौन सा स्कूल अच्छा है और ज्यादातर लोग नगर के उस विद्यालय का नाम बताते हैं जिसमें ज्यादा नंबर लाने वाले छात्र होते हैं या जिसके छात्र अच्छे कार्यालयों में नौकरी कर रहे हैं। तो क्या जिस स्कूल में बच्चे के सर्वांगीण विकास का कार्य होता हो पर वह प्रमाणपत्र जारी नहीं करता हो वह स्कूल ख़राब कहा जायेगा? कभी कभी लोग कहते हैं कि सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई नहीं होती है तो मेरा जबाव होता है कि वहां बच्चे विषय भले ही ना सीखते हों पर जीवन के कौशल बड़ी तन्मयता से सीख रहे हैं ,भले ही विषयात्मक ज्ञान के रूप से वह शून्य ही रहे हों पर वह स्कूल को जीवन में जी पा रहे हैं, उसकी दहलीज़ में आकर खुश हैं यही बेसिक शिक्षा की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
         विद्यालय मनुष्य को जड़ता से चैतन्यता तक ले जाने का साधन है। विद्यालय ही वह स्थान है जहाँ घर के चार सदस्यों के बाद किसी बालक को समाज की अवधारणा से परिचित होने का प्रथम अवसर मिलता है। स्कूल ही वह जगह है जहाँ स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा के बाद जीतने और हारने का अवसर उपलब्ध कराया जाता है ताकि बालक जीत और हार दोनों परिस्तिथियों को जीवन में स्थान दे सके। 
       स्कूल ही वह जगह है जहाँ बाल हठ को अनुशासन से समाप्त कर उसमें हर परिस्थिति में सामंजस्य बनाने के गुण को बाहर लाया जाता है। स्कूल ही वह जगह है जहाँ सूक्ष्म से स्थूल और पुनः स्थूल से सूक्ष्म की और ले जाकर उसके दृष्टिकोण को व्यापक बनाने का कार्य होता है। स्कूल ही वह जगह है जहाँ स्वयं के चिंतन को साकार करने के लिए साधन उपलब्ध कराये जाते हैं। विद्यालय ही बच्चों की सृजन शक्ति को ज्ञान से जोड़कर नव निर्माण की प्रेरणा देता है। विद्यालय ही किसी बालक को सामाजिक रूप में विकसित होने का माहौल देता है और उसे वैचारिक मनोवैज्ञानिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाकर एक भावी नागरिक के रूप में तैयार करता है। वास्तव में विद्यालय बालक की समस्त इन्द्रियों को विकसित होने के लिए एक माहौल प्रदान करता है।
        वैदिक काल में विद्यालयों द्वारा कोई प्रमाणपत्र जारी नहीं किया जाता था इसके बाबजूद लोगों में शिक्षा ग्रहण करने की ललक थी उस समय गुरुकुलों  केवल जीवन उपयोगी विषयों का शिक्षण और प्रशिक्षण होता था।जिनके सहारे लोग जीवन जीने का कौशल विकसित कर लेते थे। पिछले 5 दशक में समाज द्वारा शिक्षा को अपने हित में बांधने का प्रयास होता दिखाई पढ़ रहा है। राज्य और सरकार शिक्षा के द्वारा कुशल कामगार और अधिकारी कर्मचारी पैदा करने के लिए प्रयासरत हैं वही अभिभावक भी अपने बच्चों को सरकारी कामगार बनाने के इच्छुक दिखाई देते हैं इसलिए शिक्षा के उद्देश्य निजी हितों में बंधते जा रहे हैं पाठ्यक्रमों का निर्धारण एक उद्देश्य के तहत है विषय चयन भी भविष्य को लेकर हैं चुकि शिक्षा का वर्तमान उद्देश्य ही कामगार निर्माण है इसलिए शिक्षा में मानव निर्माण के क्रियाकलापों को हाशिए पर लाकर रख दिया है।
         चूंकि शिक्षा का उद्देश्य बदल चुका है इसलिए व्यक्तित्व निर्माण में बाधाएं आना शुरू हो गयी हैं जिसका प्रत्यक्ष अवलोकन आप समाज की घटनाओं में देख सकते हैं। हमने स्कूल की शिक्षा से आवश्यक कामगार या सेवक बनने की योग्यता तो हांसिल कर ली पर जीवन जीने की कला हांसिल नहीं की, जीवन में रचनात्मकता का कौशल विकसित नहीं किया, हमने स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा करने की मनोस्तिथि हांसिल नहीं की। हमने आपस में सहयोग करना नहीं सीखा। हमने न्याय के लिए साथ आना नहीं सीखा, हमने स्व अनुशासन नहीं सिखा, इसलिए हम जड़ हो गए। इस जड़ता को ख़त्म करने के लिए प्राथमिक शिक्षा को  बन्धनों से मुक्त होकर मानव निर्माण हेतु प्रेरित होना होगा। 

लेखक
अवनीन्द्र सिंह जादौन
सहायक अध्यापक
महामंत्री टीचर्स क्लब उत्तर प्रदेश

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