रेयान प्रकरण बताता है कि स्कूल में बच्चों के साथ होने वाले अपराधों में स्कूल प्रबंधन जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकता

सबसे खौफनाक अपराध वे होते हैं जिनमें बच्चों को निशाना बनाया जाता है। ये अपराध तब और गंभीर दिखने लगते हैं जब वे स्कूलों में होते हैं। गुरुग्राम के नामी रेयान इंटरनेशनल स्कूल में कुछ दिन पहले सात वर्षीय बच्चे की निर्मम हत्या से देश भर में चिंता की लहर देखी जा सकती है। इसी समूह के स्कूल में लगातार दूसरे साल फिर से एक बच्चे की मौत कई सवाल खड़े करती है। 2016 में रेयान इंटरनेशनल स्कूल के वसंत कुंज, दिल्ली परिसर में पानी के टैंक में एक स्कूली छात्र की लाश मिली थी। गुरुग्राम के रेयान स्कूल की घटना पर यह समझना कठिन है कि आखिर बस कंडक्टर को स्कूल के अंदर और खासकर बच्चों के टॉयलेट वाले स्थान तक आने की अनुमति कैसे मिली? स्कूल प्रबंधन ने पिछले साल हुई मौत से कोई सबक क्यों नहीं लिया? इस सबके बीच कुछ पुराने सवाल आज भी अनुत्तरित हैं-जैसे कि निजी स्कूलों में राज्य सरकार के शिक्षा विभाग ने अब तक क्या जांच-परख की और बच्चों की सुरक्षा को लेकर किस प्रकार के दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं? स्कूलों में बच्चों की सलामती की फिक्र करना क्या सिर्फ सरकार की ही प्राथमिकता है? अगर नहीं तो क्यों नहीं? प्राइवेट स्कूल जिनका सुरक्षा के मोर्चे पर बेहद लचर रिकॉर्ड रहा है उन्हें अभी तक अपने किए की सजा नहीं मिली है और वे पुराने ढर्रे पर ही चल रहे हैं। प्रोटेक्ट अवर चिल्ड्रन यानी बच्चों की सुरक्षा नाम से एक मुहिम मैंने 2014 में तब शुरू की थी जब एक पीड़ित छात्र के अभिभावक ने मुझसे संपर्क किया था। एक नामी स्कूल में पढ़ने वाली इस छात्र का स्कूल के एक ड्राइवर ने यौन उत्पीड़न किया था। मुझे याद है कि उस समय मेरे राज्य-कर्नाटक के गृह मंत्री ने यह बयान दिया था, ‘अभिभावकों को किसने कहा था कि वे बच्चे को स्कूल भेजें?’ आखिर पीड़ित बच्चे के माता-पिता को इस संवेदनहीन जवाब से कितनी पीड़ा पहुंची होगी? बहरहाल बच्चे के माता-पिता द्वारा न्याय पाने के दृढ़ निश्चय और शांतिपूर्ण तरीके से चल रही कार्रवाई ने मुझे इस मुहिम को शुरू करने के लिए प्रेरित किया। उस बच्ची के अभिभावकों ने यह तय कर लिया था कि वे अपनी बेटी को न्याय दिलाकर ही रहेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि वह अपराधी अगली बार किसी और बच्चे की ओर नहीं देखे।

स्कूलों में बच्चों के साथ अपराध अथवा हादसे से लोगों के बीच आक्रोश फूटता है, पर कुछ महीनों बाद वैसा ही एक दूसरा हादसा हो जाता है। सवाल उठता है कि ‘हम उन्हें रोकने के लिए क्या कर रहे हैं?’ अब बदलाव का वक्त आ गया है। स्कूलों में बच्चों के साथ हो रही घटनाओं-दुर्घटनाओं से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि एक दिन यह सब अपने आप शांत हो जाएगा। बाल अपराध क्रूरता का सबसे भयंकर रूप है। स्कूल में बच्चे के साथ किया गया अपराध तो और भी भयंकर होता है, क्योंकि न सिर्फ अभिभावक, बल्कि बच्चे भी अपने स्कूल और शिक्षकों पर भरोसा रखते हैं। ऐसे अपराधों से यह विश्वास तार-तार हो जाता है। यह बहुत ही स्वाभाविक है कि इन अपराधों से अन्य अभिभावक भी खौफजदा हो जाते हैं और वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने से डरते हैं। 

जाहिर है कि गुस्सा स्कूल प्रबंधन पर भी उतरेगा। यह बहुत ही शर्मनाक है कि जब अभिभावक घृणित अपराध में स्कूल प्रबंधन की जिम्मेदारी पर सवाल उठाते हुए विरोध प्रदर्शन कर रहे थे तो उन पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज जैसी कार्रवाई की गई। हरियाणा सरकार को स्कूल प्रबंधन के लोगों को गिरफ्तार कर उनके विरुद्ध मुकदमा चलाना चाहिए। उन्हें कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए और साथ ही उन पर जुर्माने के तौर पर अधिक से अधिक हर्जाना लगाना चाहिए। उनके खिलाफ कार्रवाई ऐसी मिसाल बननी चाहिए कि दूसरे लोग सबक सीखें। कानून का इतना डर होना जरूरी है, क्योंकि यह तो साफ है कि तमाम स्कूल बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं हैं। प्रत्येक स्कूल प्रबंधन तक यह बात पहुंचनी चाहिए कि सरकार इस मामले में गंभीर है। इससे ही भविष्य में ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकेगा। रेयान प्रकरण यही बताता है कि स्कूल प्रांगण में बच्चों के साथ होने वाले अपराधों के लिए स्कूल प्रबंधन ही जिम्मेदार माना जाना चाहिए।यह केंद्र और राज्य सरकारों का दायित्व है कि वे स्कूल में बच्चों के साथ होने वाली अनहोनी रोकने के ठोस उपाय करें। सभी राज्य सरकारों को बच्चों की स्कूल में सुरक्षा का मुद्दा प्राथमिकता में रखना चाहिए। निजी स्कूलों को भी ‘चलता है’ वाले रवैये को छोड़कर जरूरत के मुताबिक अपने नियम बदलने चाहिए ताकि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित हो। स्कूलों के लिए दिशानिर्देश एवं ऑडिट आवश्यक कर दिए जाने चाहिए। उनके लिए यह भी अनिवार्य बना दिया जाना चाहिए कि वे अपने स्कूल के स्टाफ की पृष्ठभूमि आवश्यक रूप से जांचें, क्योंकि स्कूल का स्टाफ बच्चों के काफी नजदीक होता है। पुलिसिया तौर भी काफी कुछ सुधारने की जरूरत है ताकि बच्चों के प्रति बढ़ते अपराधों को प्राथमिकता के आधार पर दर्ज किया जा सके और उनकी उचित जांच हो सके। बाल अदालतें बनाकर सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि आरोपियों को जल्द से जल्द सलाखों के पीछे डाला जाए। बच्चों के साथ हो रहे अपराधों में आरोपियों का छूटकर बाहर आना इसलिए कहीं अधिक खतरनाक है, क्योंकि अधिकांश अपराधियों में फिर से अपराध करने की प्रवृत्ति होती है। चूंकि कानून दशकों पहले बनाए गए थे लिहाजा उनमें सुधार कर उन्हें अद्यतन करने की गुंजाइश है। बच्चों की सुरक्षा का मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है और इस संबंध में कुछ ठोस किया जाना जरूरी है।मैं प्रधा नमंत्री नरेंद्र मोदी एवं सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से निवेदन करता हूं कि समय की इस मांग को समझते हुए आगामी पीढ़ियों पर मंडराते हुए खतरे को जल्द से जल्द भांप लें और यह सुनिश्चित करें कि हमारे स्कूल बच्चों के लिए सुरक्षित स्थान बनें। यही हमारा राष्ट्रीय मिशन होना चाहिए। हम अपने बच्चों के प्रति उत्तरदायी हैं और चूंकि वे समाज का सबसे मासूम वर्ग हैं इसलिए हमें उन्हें भयमुक्त वातावरण प्रदान करना चाहिए।

लेखक
राजीव चंद्रशेखर
(लेखक राज्यसभा सदस्य हैं) 
response@jagran.com 
 
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