आज बेसिक शिक्षा परिषद का अध्यापक समाजिक दृष्टि से पतन के कगार पर है, जिस ग्रामीण ने कभी पाठशाला का भी मुँह नही देखा वो भी दो-चार ताने तो मार कर निकल ही जाता है । अध्यापक गरिमा जैसे धुमित हो गयी है, मन इतना व्याकुल होता है कि इस बेसिक अध्यापक से  अच्छे तो हम किसी अन्य ऑफिस में बाबू(क्लर्क) ही क्यो न भर्ती हो गए थे, सेलेरी चाहें कम ही सही कम से कम सब "बाबूजी" तो पुकारते । कोई सम्मानजनक शब्द तो कानों को मोहित करता ।
वास्तिवकता में इस पतन का कारण सरकार की कमजोर नीतियां, स्वयं हमारे अधिकारी जो  छोटी-छोटी कमियों को भी अगले दिवस पर समाचार पत्रों में प्रकाशित कर स्वयं को गौरवशाली महसूस करते है । क्या कभी उन्होंने यह न सोचा कि 
क्या बेसिक के अतिरिक्त भी कोई अन्य विभाग अपने कर्मियों की कमियां यूँ समाचार पत्रों में प्रकाशित कराता है क्या ? ऐसा कदापि नही होना चाहिए, यदि निरीक्षण के समय कोई खामियां मिलती है तो उस विद्यालय के शिक्षकों को दंडस्वरूप और अधिक कर्मठता व लगन से शिक्षण हेतु उत्साहित किया जाए । मात्र कमियां समाचारपत्रों में छपवाने से कमियों का निस्तारण नही होता ।
ऐसा नही है कि अध्यापको का दामन पाक साफ है, हम भी कहीं न कहीं बहुत सी कमियां करते है जिन पर समय रहते विचार न किया गया तो भविष्य और भी अधिक भयावह होगा ।

कबीर जी का दोहा यदि हम स्वयं पर चरितार्थ करे तो परिणाम अवश्य सकारात्मक होंगे :-

"बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोये।
जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोये॥"


हमे स्वयं का अवलोकन समय रहते करना अब अति आवश्यक हो गया है ।

आओ आज से स्वयं का अवलोकन करें :--

1. क्या मैं निर्धारित समय पर विद्यालय पहुँचता/पहुँचती हूँ ?

2. क्या मैं नियत समय पर विद्यालय उपस्थित होने पर अपनी पूर्ण लग्नता व ईमानदारी से शिक्षण करता/करती हूँ ?

3. क्या मेरे द्वारा वास्तव में निर्धारित पाठ्यक्रम पूर्ण कर लिया गया है ?

4. क्या मेरी कक्षा के बालकों/बालिकाओं का शिक्षण स्तर आपके शिक्षण द्वारा इतना बढ़ गया है कि वो अन्य विद्यालय के बालकों को चुनौती दे सकें ?

5. अधिकांशत: हम रोना रोते हैं कि हमारे विद्यालय में नामांकित बालक विभिन्न कारणों से प्रतिदिन विद्यालय नही आते, किन्तु क्या हमने कभी ये भी अवलोकन किया है जो छात्र/छात्रा नियत विद्यालय आ रहा/रही है उसका अधिगम स्तर आपके द्वारा शिक्षण से कितना बढ़ा है ?

6. क्या हम खेल द्वारा शिक्षण प्रणाली का प्रयोग नित्य कर पाते है ?

7. क्या मेरा कर्तव्य विद्यालय पहुचकर मात्र वहां कुर्सी तोड़ना ही है ?

8. क्या मेरे विद्यालय में मेरे व्यक्तिगत प्रयास से इतनी शिक्षण अधिगम सामग्री बना ली गयी है कि मैं किसी शीर्षक को उनके द्वारा अध्ययन करवा सकता/सकती हूं ?

9. क्या मेरे व्यक्तिगत प्रयास से मेरी कक्षा में छात्र/छात्रा संख्या में  वृद्धि हुई है ?

10. क्या मेरे द्वारा समय-समय पर अभिभावक सम्पर्क किया जाता है ?

अवलोकन योग्य बहुत से बिंदु शेष हैं...... किन्तु क्या मैं उक्त बिंदुओं पर खरा उतरता/उतरती हूं । अधिकतर मेरे साथी दूसरो में ही कमियां निकालते मशगूल नजर आते है । किंतु वास्तवकिता  कुछ और ही है अतः मित्रों अपने अंतर्मन को टटोलने का यही उचित समय है ।

मित्रो, आज शपथ लें कि हरेक परिस्थिति में प्राथमिक शिक्षक खुद की गरिमा को बचा सकता है ।

लेखक 
डॉ0 अनुज कुमार राठी 
(कलम का सच्चा सिपाही) 
लेखक परिषदीय विद्यालय में प्रधानाध्यापक पद पर कार्यरत है ।
(8869088009)


 
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  1. ऐसे भी विद्यालय है जहाँ पर एक अध्यापक पढाता है तो उसके खिलाफ षडयंत्र होने लगते है।क्योंकि प्रधानाध्यापक सहित सभी की आदत है कि देर पहुँचो और जल्दी चल दो,वो यह चाहते है हमारी तरह तुम भी करो।पढाने पर ध्यान किसी नहीं है क्योंकि गरीब घरों के बच्चे ही हमारे विद्यालयों में आते हैं अभिभावक भी इतने जागरूक नहीं है जहाँ है भी वो मजबूरीवश कुछ कह नहीं पाते।इस प्रकार काम करने का इच्छुक अध्यापक तनाव में रहने पर मजबूर हो जाता है।

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