खनऊ अपनी नजाकत और नफासत के लिए भी जाना जाता है। लेकिन एक घटना ने जैसे लखनऊ की कोमलता को दाग लगाने की कोशिश की। वहां के जॉन विली स्कूल में अध्यापिका बच्चों की अटेंडेंस ले रही थी। उनमें से एक बच्चा प्रेजेंट मैडम या तो कह नहीं पाया या उसने सुना नहीं। बस फिर क्या था। आगे की सीट पर बैठने वाले इस छोटे बच्चे पर टीचर किसी हिंसक पशु की तरह टूट पड़ी। वह बच्चे के दोनों गालों पर देर तक थप्पड़ मारती रही। बताया जाता है कि उसने बच्चे के दोनों गालों पर चालीस थप्पड़ मारे। जब इससे भी उसका मन नहीं भरा, तो उसने बच्चे को उसके डेस्क से घसीटकर दूसरी पंक्ति के डेस्क की तरफ फेंक दिया। बच्चा एक ओर जा गिरा। खैरियत है कि इस तरह से फेंके जाने पर और गिरने से बच्चे को गंभीर चोट नहीं लगी।
जब उसके पिता से इस बारे में पूछा गया, तो उसने कहा कि अगर इस तरह से फेंकने और पीटने से बच्चे के साथ कोई हादसा हो जाता, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होता? कई बार शिक्षक की पिटाई से बच्चों के कान के पर्दे फट जाते हैं। उनकी आंखों की रोशनी चली जाती है। लेकिन बच्चों के प्रति ऐसे व्यवहार की खबरें प्रायः सरकारी स्कूलों की तरफ से आती हैं। इस स्कूल के नाम से तो पता चल रहा है जैसे कोई बड़ा भारी पब्लिक स्कूल हो और बच्चों के मन को पहचानने वाले अध्यापक वहां पढ़ाते हों।
वर्ष 2014 में चीन में एक शिक्षक ने छोटे बच्चे के होमवर्क पूरा न करके लाने पर उसके साथ पढ़ने वाले बच्चे से चालीस थप्पड़ मरवाए थे। बच्चे की आंख की रोशनी चली गई थी। शायद लखनऊ की इस शिक्षिका को इस खबर के बारे में मालूम होगा। तभी तो उसने भी गिनकर चालीस थप्पड़ बच्चे को जड़े। जब वह बच्चा इस तरह पिट रहा था, तभी उसके किसी संगी-साथी द्वारा उसका वीडियो बना लेने से या सीसीटीवी फुटेज से यह घटना प्रकाश में आई। वर्ना तो शिक्षक का यह अपराध कभी पकड़ में ही नहीं आता।
अपने देश में गुरु को आदर देने के लिए गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। सप्ताह का एक दिन गुरुवार नाम से जाना जाता है। आसमान का सबसे बड़ा और चमकीला तारा बृहस्पति भी गुरु के नाम से ही मशहूर है। स्वर्गीय राष्ट्रपति और शिक्षाविद डॉ. राधाकृष्णन का जन्मदिन पांच सितंबर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। मगर गुरुओं का हाल यह है कि वे अपना क्षोभ बच्चों पर उतारते हैं।
ऐसे गुरुओं की मनोवैज्ञानिक जांच करने पर पाएंगे कि वे खुद किसी मानसिक रोग के शिकार हैं और छोटे बच्चों के प्रति हिंसा कर अपनी नाराजगी दिखा रहे हैं। कोई महिला ऐसा करती है, तो और भी आश्चर्य होता है। जिन बच्चों ने इस बच्चे को पिटते देखा होगा, उन पर क्या गुजरी होगी! अक्सर ऐसी घटनाएं देखकर बच्चे स्कूल जाने से डरने लगते हैं।
अपने यहां एक मुश्किल यह भी है कि छोटे बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक में जो विशेषताएं होनी चाहिए, अक्सर इनकी परीक्षा नहीं होती। बस एक बार आप टीचर्स ट्रेनिंग कर परीक्षा पास कर लें, तो जिंदगी भर के लिए अध्यापक-अध्यापिका बनने का अधिकार मिल जाता है। मगर वे छोटे बच्चों को समझते हुए पढ़ा सकते हैं या नहीं, इस पर ध्यान नहीं दिया जाता। हालांकि सभी शिक्षक ऐसे नहीं होते और न ही सभी इस अध्यापिका की तरह बच्चे के प्रति इतना हिंसक बर्ताव करते हैं। फिलहाल इस अध्यापिका को नौकरी से निकाल दिया गया है। ईश्वर करे कि फिर कभी कोई बच्चा इस तरह की हिंसा का शिकार न हो।

लेखिका
क्षमा शर्मा
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