रेयान इंटरनेशनल में मासूम की निर्मम हत्या के बाद देश भर में भय का माहौल है स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर देशव्यापी बहस छिड़ी है प्राइम टाइम डिबेट में तरह-तरह के उपाय सुझाये जा रहे हैं। न्यायपालिका ने स्कूल में छात्रों की सुरक्षा को लेकर गाइडलाइन बनाने का आदेश दे दिया है। कुछ दिनों या कुछ सप्ताह की कवायद के बाद फिर जनजीवन सामान्य हो जाएगा। निजी विद्यालय कुछ बेहतर सुरक्षा व्यवस्थाओं के साथ अपना प्रचार-प्रसार करने लगेंगे और सुरक्षा के लिए किये गए खर्च को अभिभावकों से ही वसूल कर लेगें।
        प्रश्न यह भी है कि रेयान जैसे स्कूल में देश की कितनी आबादी पढ़ती है शायद यह प्रतिशत 10 से अधिक ना होगा। अधिसंख्य आबादी तो सरकारी स्कूल या मान्यता प्राप्त कम सुविधा युक्त निजी विद्यालयों के भरोसे पर ही है। अगर हम किसी भी प्रदेश के पूर्ण सरकारी  विद्यालयों की बात करें तो शायद ही किसी विद्यालय में चौकीदार या गार्ड जैसा कोई व्यक्ति कभी आपको नजर आया हो। लगभग 50 प्रतिशत सरकारी विद्यालयों में वर्ष भर में 1 बार चोरी होना आम बात है आधे से अधिक विद्यालयों के एक से अधिक कक्षा कक्ष की खिड़कियों के सरिया तोड़े जा चुके हैं कई विद्यालयों में स्कूल समय के बाद जुआ खिलता आसानी से देख सकते हैं। कई स्कूल में सुबह शराब के खाली क्वार्टर और अन्य आपत्तिजनक सामग्री मिलना आम बात है। सैकड़ों स्कूल में ग्रामीण आपको विद्यालय समय में ही एक बनियान पहने लुंगी लगाये पानी भरते और घूमते मिल जायेगें ये वही लोग हैं जिनके बच्चे उसी विद्यालय की किसी ना किसी कक्षा में अध्ययनरत हैं। इसलिए एक इन्हें रोक पाना आसान नहीं होता। अधिकांश विद्यालयों के भवनों को अराजकतत्वों द्वारा प्रतिवर्ष क्षतिग्रस्त कर दिया जाता है जिसकी मरम्मत उसी वर्ष करानी आवश्यक हो जाती है। अन्यथा विद्यालय का समस्त सामान ही गायब हो जाता है।
    तो क्या हम सरकारी विद्यालयों में किसी बड़े हादसे का इंतज़ार करें ताकि सुप्रीम कोर्ट इन विद्यालयों के लिए भी मार्गदर्शन जारी करे। सरकारी स्कूल ना तो सी सी टी वी लगाने की स्थिति में है और ना इन्हें चोरों से बचाए रखने की क्यूंकि चोरों की निगरानी के लिए सी सी टीवी के साथ एक चौकीदार भी जरुरी होता है और यहाँ तो अध्यापक तक पर्याप्त संख्या में नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि सरकारी स्कूल में ऐसे हादसे नहीं होते। अनेक विद्यालयों  में अराजक तत्व आकर अध्यापकों और बच्चों से मारपीट कर चुके हैं पर मामला थाने में एक रिपोर्ट और अधिकारियों की निष्क्रियता के चलते अंततः समझौता द्वारा ही निपट जाता है। 

सरकार तो पहले हत्या का इंतज़ार करती है फिर एक आन्दोलन और अंत में सुप्रीम कोर्ट की फटकार का और इतना जब होगा तब शायद सरकारी विद्यालयों की सुरक्षा के बारे में भी चिंता होगी। सरकारी स्कूल के बच्चों के पिता ना तो रसूख वाले होते हैं ना ही पैसे वाले इसलिए इनकी सुरक्षा की कोई विशेष चिंता करना सरकार की प्राथमिकता में भी नहीं है। बड़े न्यूज़ चैनल भी शायद गरीब बच्चों और सरकारी स्कूल में सुरक्षा को लेकर उतने गंभीर नहीं दिखते जितने निजी विद्यालयों की सुरक्षा को लेकर हैं। बिना आया, बिना गार्ड, बिना चपरासी के संचालित चारो तरफ से खुले इन विद्यालयों की सुरक्षा भगवान भरोसे ही है।

     चलिए हादसों के बाद ही सही बच्चों की सुरक्षा को लेकर देश चिंतित तो दिखा पर देश को तो भूल जाने की आदत है अभी पिछले वर्षो में स्कूल बस हादसे के बाद भी स्कूल वाहन के लिए एक कड़ा कदम उठाया गया था। इस बार भी सुरक्षा को लेकर कड़ा कदम उठाया जायेगा और भविष्य में भी किसी दुर्घटना या हादसे में किसी मासूम की मौत के बदले कोई कठोर कदम उठाया जायेगा। हर बार कठोर कदम उठाने के लिए किसी हादसे का होना जरुरी है तो फिर लाखों की तनख्वाह लेने वाले केन्द्रीय सलाहकार मंडल के सदस्य और विभिन्न कमेटियों के अधिकारी इतने वर्षों से बच्चों की बेहतर स्कूल शिक्षा को लेकर कौन सी योजनायें बना रहे थे। यह विचारणीय ही है। 

लेखक
अवनीन्द्र सिंह जादौन
सहायक अध्यापक
महामंत्री टीचर्स क्लब उत्तर प्रदेश
 

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