आज हम जिस युग मे जी रहे है उसे कलियुग कहते हैं। कलिकाल में प्रत्येक दिशा एवं क्षेत्र में परिवर्तन अवश्यंभावी है। जीवनशैली, विचार, रहन-सहन आदि के स्तर में परिवर्तन आ चुका है यहां तक की सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों का परिवर्तन हो चुका है। यह परिवर्तन यहां तक हो चुका है की नैतिक मूल्य विलुप्त होने के कगार पर है।
नैतिक मूल्य के अवमूल्यन के कारण ही हम आज समाज में भ्रष्टाचार अनैतिक आचरण महिलाओं में बालिकाओं के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं दिख रही है। इन सब घटनाओं के मूल कारणों की ओर ध्यान दें तो पता चलता है की वर्तमान परिदृश्य में परिवार एवं समाज में नैतिकता का अभाव ही प्रमुख कारण है।
परिवार में अभाव ही समाज का अभाव बनता है । हमें ज्यादा दूर नहीं कुछ वर्ष पीछे देखने की आवश्यकता है कि
पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता था सदाचार की शिक्षा दी जाती थी परंतु आधुनिक व वैज्ञानिक बनाने की होड़ ने नौनिहालों को नैतिक मूल्यों से दूर कर दिया मैं वैज्ञानिकता को दूर करने की बात नहीं कर रहा पर बच्चे अपने नैतिक मूल्यों के प्रति विमुख होते गए। मात्र पश्चिम के अंधानुकरण ने उनसे बचपन छीन लिया पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा हटा ली गई और यदि है अभी तो केवल खाना पूर्ति के लिए पिछले 10 वर्षों में जो पीढ़ी तैयार हुई उसके लिए केवल मैं और मेरा तक सीमित कर दिया गया।
प्रायः देखने में आता है कि बच्चे चचेरे भाई बहनों को भी भाई या बहन नहीं बल्कि चाचा का बेटा या बेटी कहकर संबोधन करते हैं पहले ऐसा नहीं था चाचा, ताऊ, मामा, मौसा आदि के बच्चे भाई या बहन ही कहलाते थे । नैतिकता के अभाव के कारण ही परिवारों व विद्यालयों में अनुशासनहीनता दिखाई पड़ रही है परिवार, समाज, विद्यालय में अनुशासन ही राष्ट्र एवं चरित्र निर्माण करता है। जिस परिवार व संस्था में अनुशासन नहीं होता है वहां हर समय झगड़े होते हैं वह शिक्षण संस्था जहां अनुशासन नहीं होता अच्छी शिक्षा नहीं दे पाता है। आज के परिप्रेक्ष्य में नैतिकता व नैतिक मूल्यों कि महती आवश्यकता है कहने को कोई कितना भी कहे कि हम सब नैतिक मूल्यों का पालन करते हैं पर ज्यादातर माता-पिता अध्यापक, व्यवसायी, सरकारी अफसर, राजनीतिज्ञ सभी जहां जिसको मौका मिलता है अनैतिक ढंग से व्यवहार व आचरण करते हैं वह युवाओं वह बच्चों के समक्ष भ्रष्टाचार अनैतिकता का उदाहरण रखते हैं और अपने बच्चों से नैतिकता की आशा रखते हैं वह भूल जाते हैं कि जो उन्होंने किया बच्चे वही सीख रहे हैं। हम झूठ बोलने की आदत बच्चों में घर से ही डालते हैं जैसे कि देखो बेटा कोई आए तो कह देना पापा घर पर नहीं है और सोने चले जाते हैं और बेटा सोचता है कि पापा क्यों झूठ बोल रहे हैं। यहीं से बच्चे सीख जाते हैं झूठ बोलने की कला और हमें पता भी नहीं चलता हमें नैतिक मूल्यों का प्रादुर्भाव बच्चों में बचपन से ही डालना चाहिए जॉर्ज बर्नाड शॉ, रविंद्रनाथ टेगौर, जेम्स वाट बाल्यावस्था में बुद्धिमान नहीं थे और आगे चलकर उन्होंने नाम कमाया यदि बच्चों को गलत शिक्षा या प्रशिक्षण प्राप्त होगा तो उनका भविष्य नष्ट हो जाएगा। बच्चे बड़ों की नकल करते हैं इसलिए उन्हें उचित मार्गदर्शन एवं नैतिक मूल्यों से परिचित कराया जाए। बड़ों व हम शिक्षकों का कर्तव्य है कि अपना आचरण शुद्ध रखें। हो सकता है कि नैतिकता के कारण कभी-कभी मनुष्य को असफलता का सामना करना पड़े इसलिए हतोत्साहित न हो बार-बार प्रयास करना चाहिए। यही बच्चों में भरना होगा असफलता ही अनुभव प्रदान करती है और अनुभव बुद्धिमान बनाता है। सफलता नैतिकता के रथ पर ही चढ़कर प्राप्त की जा सकती है, नैतिक मूल्यों का दामन नहीं छोड़ना चाहिए नैतिकता से ओतप्रोत व्यक्ति निस्वार्थी होता है बच्चों को बताना होगा कि नैतिकता से कुछ कठिनाई भी आ सकती है परंतु धैर्यपूर्वक सामना करना चाहिए हमें अपने घर, विद्यालय, परिवार समाज में नैतिकता का उदाहरण प्रस्तुत करना होगा तभी राष्ट्र व समाज की उन्नति संभव है।
धन्यवाद ।
लेखक
अनुपम कौशल,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय नगला बिहारी,
सैफई, इटावा ।
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