मनमानी फीस वृद्धि को गंभीरता से लेते हुए प्रदेश सरकार ने निजी विद्यालयों पर शिकंजा कसने की जो तैयारी की है, उसकी निश्चित रूप से सराहना की जानी चाहिए। निजी स्कूल अच्छी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के नाम पर हर साल अभिभावकों की जेब काट रहे हैं। इससे पहले की सरकारें उन्हें नियंत्रित करने के दावे तो करती रहीं, लेकिन कोई सार्थक कदम नहीं उठाया। यह अच्छी बात है कि सरकार अब फीस वृद्धि पर जनता की राय भी लेगी।

यह पहला अवसर है जबकि इस मुद्दे पर जनता की बात सुनी जाएगी जबकि इसके पहले लोग जिलों में आंदोलन भी करते थे तो प्रशासन संज्ञान नहीं लेता था। निजी स्कूल इतने बेलगाम हैं कि वे शासनादेशों की परवाह भी नहीं करते। इस तरह के कई मामले पहले प्रकाश में भी आ चुके हैं। प्रशासन इसलिए उनके खिलाफ कोई कदम नहीं उठाता, क्योंकि अधिकांश अधिकारियों के बच्चे इन स्कूलों में पढ़ रहे होते हैं। इसका लाभ इन विद्यालयों का प्रबंध तंत्र उठाता है।

किसी भी देश में शिक्षा के अवसर सबके लिए समान होने चाहिए लेकिन निजी विद्यालयों ने इसे अघोषित रूप से उच्च वर्गीय और सामान्य वर्ग के खांचे में बांट दिया है। इन स्कूलों के प्रबंधक जोंक की तरह साल दर साल अभिभावकों के गाढ़े पसीने की कमाई को चूसते रहते हैं। हर नए शैक्षिक सत्र में प्रवेश शुल्क देना होता है। जितना प्रसिद्ध स्कूल उतना ही ज्यादा प्रवेश शुल्क। सरकार इस पर भी लगाम लगाने जा रही है।

वस्तुत: शिक्षा को व्यापार बनाने वाले इन तथाकथित व्यवसायियों पर नकेल कसना समय की मांग है क्योंकि इससे निम्न मध्यम आय वर्ग के अभिभावकों के बच्चों को भी बड़े स्कूलों में पढ़ने का अवसर हासिल हो सकेगा। केंद्र सरकार पहले ही यह अनिवार्य कर चुकी है कि हर निजी स्कूल में गरीब बच्चों को भी प्रवेश दिया जाए। सरकार को इस प्रस्तावित कानून का सख्ती से पालन भी कराना होगा क्योंकि कोई भी कानून तब तक प्रभावी नहीं हो सकता, जब तक उसके उल्लंघन पर कड़े दंड का प्रावधान न हो। एक निगरानी कमेटी बने ताकि वह विधेयक में उल्लखित नियमों का उल्लंघन करने वाले स्कूलों पर कड़ी कार्रवाई कर सके। जब दोषी स्कूलों को दंड मिलेगा तभी अन्य डरेंगे।

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