निजी स्कूलों पर अंकुश

फीस और अन्य शुल्कों को लेकर निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने की प्रदेश सरकार ने स्वागतयोग्य पहल की है। सरकार ने इसके विधेयक का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। विधेयक में प्रावधान है कि निजी स्कूल अब हर साल एडमीशन फीस नहीं ले पाएंगे। प्रस्तावित विधेयक यूपी बोर्ड, सीबीएसई, आइसीएसई सहित प्रदेश में संचालित सभी बोर्ड के स्कूलों, अल्पसंख्यक संस्थानों पर भी लागू होगा। सरकार ने 22 दिसंबर तक आम लोगों से सुझाव व आपत्तियां मांगी हैं।


20 हजार रुपये सालाना से अधिक फीस लेने वाले स्कूल-कॉलेज इस विधेयक के दायरे में होंगे। शुक्रवार को उत्तर प्रदेश वित्त पोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क का विनियमन) विधेयक, 2017 का मसौदा माध्यमिक शिक्षा विभाग की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है। मसौदे के मुताबिक फीस को तीन हिस्सों में बांटा गया है। इसमें संभव शुल्क, ऐच्छिक शुल्क व विकास शुल्क हैं। स्कूल डेवलपमेंट फीस कुल फीस का केवल 15 प्रतिशत ही ले सकेंगे।


निश्चित रूप से सरकार का यह कदम अभिभावकों के लिए बहुत ही राहतकारी है। लगातार महंगी होती निजी शिक्षा ने अभिभावकों की कमर तोड़ दी है। स्कूल संचालकों की मनमानी के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई न हो पाने के कारण स्थिति बद से बदतर हो चली है। ट्यूशन फीस, एडमीशन फीस और डेवलपमेंट फीस के अलावा स्कूल ऐसे तमाम खर्चे अभिभावकों पर डाल रहे हैं जिन्हें वहन कर पाना मुश्किल हो चला है। वैसे यह अभिभावकों पर पड़ने वाले कुल भार का एक पहलू है।


निजी प्रकाशकों की पुस्तकों के बेतहाशा मूल्य, महंगी ड्रेस को लेकर भी अभिभावकों की शिकायत रहती है कि मोटा कमीशन स्कूल संचालकों को मिलता है, बदले में जेब तो अभिभावकों को ही ढीली करनी पड़ती है। फीस को नियंत्रित करने के अलावा इन बिंदुओं पर भी सरकार को विचार करना चाहिए। क्योंकि एक तरफ से कमाई कम होने पर स्कूल संचालक दूसरी तरफ से कमाई का साधन खोज लेंगे। ऐसे में फीस पर अंकुश का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। उचित तो यही होगा कि अभिभावकों पर पड़ने वाले बोझ का हर पहलू से विचार हो, ताकि शिक्षा तक सबकी पहुंच सुलभ हो सके।

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