tag:blogger.com,1999:blog-19095711911811765972024-03-19T14:18:42.543+05:30Primary Ka Master ● Com - प्राइमरी का मास्टर ● कॉम एक छतरी के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' की समस्त ऑनलाइन सेवाएँ
प्रवीण त्रिवेदीhttp://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comBlogger785125tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-85681730321101766382024-02-29T05:57:00.002+05:302024-02-29T05:59:18.905+05:30क्या युवाओं को पेपर लीक न होने की गारंटी नहीं दी जा सकती?<div><b>क्या युवाओं को पेपर लीक न होने की गारंटी नहीं दी जा सकती?</b> </div><div><br></div><div><br></div><div>पिछले दिनों चार पालियों में हुई यूपी पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा का पेपर लीक होने के चलते निरस्त कर दिया गया। फिलहाल उत्तर प्रदेश सरकार इसकी जांच करा रही है। उसने छात्रों को छह माह के अंदर दोबारा परीक्षा कराने का भरोसा दिया है। </div><div><br></div><div><br></div><div>सरकारी नौकरी पाना लाखों युवाओं का सपना है, जिसे साकार करने के लिए छात्र खूब पढ़ाई करते हैं, लेकिन जब पेपर लीक हो जाता है तो उनके वर्षों के परिश्रम पर पानी फिर जाता है। माता-पिता द्वारा उन पर खर्च किया गया पैसा भी व्यर्थ चला जाता है। जो भी उम्मीदवार दूर-दराज से परीक्षा देने आते हैं, उनके आने-जाने और रहने का पूरा खर्चा बर्बाद हो जाता है। हालांकि सरकारें इसे लेकर गंभीरता दिखाती हैं। फिर भी पेपर लीक रोकने के उनके प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। बात यहां नीयत और नीति, दोनों की है, जिसका जवाब युवा वर्षों से तलाश रहे हैं। हर बार जब तक जांच होती है, तब तक पेपर लीक की दूसरी घटना घटित हो जाती है।</div><div><br></div><div><br></div><div>राज्यों में भले ही सरकारें अलग-अलग पार्टियों की हों, मगर उनमें पेपर लीक का सिस्टम एक जैसा ही है। पिछले सात वर्षों में ही देश के अलग अलग राज्यों में 70 से अधिक भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक हुए हैं। जैसे कि उत्तर प्रदेश में यूपी पावर कारपोरेशन लिमिटेड, बीएड प्रवेश परीक्षा, यूपीटेट एवं सहायता प्राप्त स्कूल शिक्षक/प्रधानाचार्य को भर्ती के लिए हुई परीक्षाओं के पेपर लीक हुए। राजस्थान में एलडीसी, कांस्टेबल, पटवारी, लाइब्रेरियन, जूनियर इंजीनियर, सब इंस्पेक्टर एवं रीट भर्ती के पेपर लीक हुए हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div> गुजरात में टेट, मुख्य सेविका, गैर सचिवालय क्लर्क, हेडक्लर्क, सब आडिटर, वनरक्षक एवं पंचायत सर्विस सलेक्शन बोर्ड के जूनियर क्लर्क की भर्ती के पेपर लीक हुए हैं। ऐसे ही बंगाल में डीएलएड पाठ्यक्रम की वार्षिक परीक्षा, बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित बीपीएससी परीक्षा, हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग की जेओए आइटी की भर्ती परीक्षा, मध्य प्रदेश प्राथमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा, तमिलनाडु में दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षा, अरुणाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सहायक अभियंता भर्ती परीक्षा तथा उत्तराखंड अधीनस्थ चयन आयोग की स्नातक स्तर के पदों के लिए परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक होने के मामले सामने आए हैं। पंजाब और हरियाणा में तो यह एक तरह से रिवाज जैसा बन गया है। इनसे लगभग करीब डेढ़ करोड़ से ज्यादा युवाओं के करियर प्रभावित हुए हैं। क्या उन्हें पेपर न लीक होने देने की 'गारंटी' नहीं दी जा सकती?</div><div><br></div><div><br></div><div>पेपर लीक न रोक पाना संबंधित परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं और सरकारों को एक बड़ी नाकामी है। यह केवल परीक्षा व्यवस्था में खामी का मामला नहीं, बल्कि लाखों युवाओं के सपनों को चकनाचूर करने वाला एक अत्यंत जघन्य अपराध है। भारत एक युवा देश है। युवाओं के सपने भी बड़े हैं। वे परिश्रमी एवं प्रतिभाशाली हैं और तमाम कठिनाइयों एवं अभावों से संघर्ष कर इन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। </div><div><br></div><div><br></div><div>अव्वल तो देश में भर्ती परीक्षाएं नियमित अंतराल पर होती नहीं और जब होती भी हैं तो पेपर लीक की भेंट चढ़ जाती हैं। पेपर लीक के दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ कुछ राज्य सरकारों ने सख्त कानून भी बनाए हैं, लेकिन इन कानूनों के बावजूद पेपर लीक बदस्तूर जारी है। स्कूली बोर्ड परीक्षाओं के पेपर लीक होने की समस्या भी आम है।</div><div><br></div><div><br></div><div>हाल में केंद्र सरकार ने भी सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 बनाया है। इसमें किसी परीक्षा में कदाचार में मदद पहुंचाने वालों को तीन से दस साल की जेल और भारी जुर्माने तक के प्रविधान हैं। यह कानून केंद्र सरकार और उसकी टेस्टिंग एजेंसियों द्वारा आयोजित की जाने वाली ज्यादातर केंद्रीय परीक्षाओं पर लागू होगा। फिर भी सिर्फ कड़ी सजा के प्रविधान भर से इस समस्या का कोई प्रभावी हल नहीं निकलने वाला है।</div><div><br></div><div><br></div><div> देश में ऐसी संस्थाएं बनाई जानी चाहिए, जो संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की तरह निश्चित समय पर प्रतियोगी और भर्ती परीक्षाएं कराएं और उनके परिणाम भी तय समय में घोषित करें। इसके साथ ही भर्ती आयोगों में राजनीतिक संबंधों संपर्कों वाली नियुक्तियां पूरी तरह बंद होनी चाहिए। </div><div><br></div><div><br></div><div>परीक्षा आयोग का अपना प्रिंटिंग प्रेस होना चाहिए। एक घंटे पूर्व प्रश्नपत्र की साफ्ट कापी को कोड लाक के माध्यम से सीधे RE-ED परीक्षा केंद्रों पर भेजा जाना चाहिए। परीक्षा केंद्रों में मौजूद अभ्यर्थियों को प्रश्नपत्र वहीं प्रिंट करके वितरित किया जाना चाहिए। इस विधि से प्रश्नपत्रों को छापना थोड़ा महंगा जरूर होगा, लेकिन परीक्षाएं सुरक्षित और लीकप्रूफ होंगी। इसी तरह प्रश्नपत्रों के कई सेट बनाए जाने चाहिए। </div><div><br></div><div><br></div><div>यह आवश्यक है कि पेपर लीक के मामलों को एक महीने के भीतर निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई सुनिश्चित की जाए। किसी कोचिंग संस्थान की संलिप्तता मिलने पर सिर्फ संबंधित आरोपितों पर हो कार्रवाई न हो, बल्कि उस कोचिंग संस्थान को भी बंद किया जाना चाहिए। पेपर तैयार होने से लेकर परीक्षा केंद्रों तक उनके वितरण तक की प्रक्रिया में सैकड़ों लोग शामिल रहते हैं। ऐसे में कोई एक कमजोर कड़ी भी दबाव या प्रलोभन में पेपर लीक जैसा गुनाह कर बैठती है। इसलिए ऊपर से नीचे तक सभी की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। </div><div><br></div><div><br></div><div>चूंकि हर युवा को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती, इसीलिए आज भारत में स्टार्टअप और स्वरोजगार का चलन तेजी से बढ़ रहा है और बहुत से युवा प्राइवेट नौकरियों को तवज्जो दे रहे हैं। फिर भी जो छात्र सरकारी नौकरियों की तैयारी में जीवन खपा देते हैं, उनके साथ पेपर लीक का मजाक बंद होना चाहिए। सरकारों को इसकी गारंटी देनी चाहिए।</div><div><br></div><div><b><div>
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEizo9U2HRdvBXkd-nk2ylBZ-kwqWEw6vLoxchNAzUCNox0gU6Uo_LuMahni_HqD5snX7rLeeis00Zow2OfvNbDuFLiYBsOgTAD8peCj4g-aaz5watKxdhg9ER3IAqPjTryStAOIy6c2i2jN0S6wOQSqgWNkk3_mxDLhwD7bxW1pS-yN3j5DQx3Zykak-2g">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEizo9U2HRdvBXkd-nk2ylBZ-kwqWEw6vLoxchNAzUCNox0gU6Uo_LuMahni_HqD5snX7rLeeis00Zow2OfvNbDuFLiYBsOgTAD8peCj4g-aaz5watKxdhg9ER3IAqPjTryStAOIy6c2i2jN0S6wOQSqgWNkk3_mxDLhwD7bxW1pS-yN3j5DQx3Zykak-2g" width="400">
</a>
</div><br></b></div><div><b><br></b></div><div><b>✍️ डा. ब्रजेश कुमार तिवारी</b></div><div>(लेखक जेएनयू के अटल स्कूल आफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर है)</div><div><br></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-59287720188512393422024-02-11T11:19:00.003+05:302024-02-11T11:23:12.629+05:30क्या बंधनमुक्त विचारों का दीपस्तंभ होने के बजाय, बंधनों में जकड़ा हुआ पुतला बन गए हैं शिक्षक? क्या केवल पाठ्यक्रम का रोबोट बनकर रह गए हैं शिक्षक?<div><b>क्या बंधनमुक्त विचारों का दीपस्तंभ होने के बजाय, बंधनों में जकड़ा हुआ पुतला बन गए हैं शिक्षक? क्या केवल पाठ्यक्रम का रोबोट बनकर रह गए हैं शिक्षक?</b></div><div><br></div><div><br></div>यह सच है कि शिक्षकों का जीवन, जो एक बंधनमुक्त विचारों का दीपस्तंभ होना चाहिए, आज कई बंधनों में जकड़ा हुआ लगता है। सरकारी नियंत्रण, पाठ्यक्रम का दबाव, और सामाजिक दबाव, शिक्षकों की स्वतंत्र सोच को कुचल रहे हैं।<div><br></div><div><br></div><div>यह भी सच है कि शिक्षकों पर कई तरह के दबाव होते हैं। पाठ्यक्रम को पूरा करने का दबाव, परीक्षाओं में अच्छे परिणाम लाने का दबाव, और अभिभावकों की अपेक्षाओं को पूरा करने का दबाव। इन दबावों के कारण शिक्षक कई बार पाठ्यक्रम से बंधे रह जाते हैं और अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग नहीं कर पाते हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div>लेकिन यह कहना गलत होगा कि शिक्षक केवल पाठ्यक्रम का रोबोट बनकर रह गए हैं। ऐसे कई शिक्षक हैं जो इन दबावों के बावजूद भी अपनी स्वतंत्र सोच का प्रयोग करते हैं और छात्रों को रटने के बजाय समझने पर ध्यान देते हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div>यह भी सच है कि शिक्षकों के पास पहले की तुलना में कम स्वतंत्रता है। पहले शिक्षक अपनी रचनात्मकता और कल्पना का प्रयोग करके छात्रों को पढ़ाते थे। लेकिन आजकल पाठ्यक्रम और परीक्षाओं पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है।</div><div><br></div><div><br></div><div>लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि शिक्षकों के पास कोई स्वतंत्र विचार नहीं है। शिक्षक अभी भी अपनी रचनात्मकता का प्रयोग करके छात्रों को पढ़ा सकते हैं। वे छात्रों को रटने के बजाय समझने पर ध्यान दे सकते हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div>यह शिक्षकों पर निर्भर करता है कि वे इन दबावों का सामना कैसे करते हैं। यदि वे इन दबावों के आगे झुक जाते हैं तो वे केवल पाठ्यक्रम का रोबोट बनकर रह जाएंगे। लेकिन यदि वे इन दबावों का सामना करते हैं और अपनी स्वतंत्र सोच का प्रयोग करते हैं तो वे छात्रों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं।</div><div><br></div><div><div>
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHR742ydhO_qLaAOn5MoCJupFtykFngZcIcovLfHBXVEi7b0CBcwSCE9fY7lFevAjXrcTPLwv65l1qS-OG2rd-KQnNgwxQpvc89pZWC1U6lwRh0kx9jf4hTMN4Od0L5URNr06n0qFdhJoGkXLSIKKQOG5Tp6t3GKss0VQu7tyKrfLorVNjFqgXkKEyGlw">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHR742ydhO_qLaAOn5MoCJupFtykFngZcIcovLfHBXVEi7b0CBcwSCE9fY7lFevAjXrcTPLwv65l1qS-OG2rd-KQnNgwxQpvc89pZWC1U6lwRh0kx9jf4hTMN4Od0L5URNr06n0qFdhJoGkXLSIKKQOG5Tp6t3GKss0VQu7tyKrfLorVNjFqgXkKEyGlw" width="400">
</a>
</div><br></div><div><b><br></b></div><div><b>यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं जो शिक्षकों को अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग करने और छात्रों को रटने के बजाय समझने पर ध्यान देने में मदद कर सकते हैं:</b></div><div><br></div><div><b>पाठ्यक्रम से बाहर भी सोचें: </b>शिक्षकों को केवल पाठ्यक्रम तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। उन्हें अपने विषय से संबंधित अन्य जानकारी भी छात्रों को बतानी चाहिए।</div><div><br></div><div><b>छात्रों को प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करें:</b> शिक्षकों को छात्रों को प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे छात्रों की सोचने की क्षमता विकसित होगी।</div><div><br></div><div><b>रचनात्मक शिक्षण विधियों का प्रयोग करें: </b>शिक्षकों को रचनात्मक शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए। इससे छात्रों की रुचि बढ़ेगी और वे बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।</div><div><br></div><div><b>अन्य शिक्षकों के साथ सहयोग करें: </b>शिक्षकों को अन्य शिक्षकों के साथ सहयोग करना चाहिए। इससे वे एक दूसरे से सीख सकते हैं और अपने शिक्षण को बेहतर बना सकते हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div><i>यह शिक्षकों के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय है। लेकिन यदि वे इन चुनौतियों का सामना करते हैं और अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग करते हैं तो वे छात्रों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं और उन्हें बेहतर इंसान बनाने में मदद कर सकते हैं।</i></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><div><div><div><b>✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी</b></div><div>शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित</div><div>फतेहपुर</div></div><div><b><br></b></div><div><b><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" width="400"></a></div><br></b></div><div><b>परिचय</b></div><div><b><br></b></div><div><i>बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "<b><a href="https://www.praveentrivedi.in/">प्रवीण त्रिवेदी</a></b>" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>शिक्षा विशेष रूप से "<b>प्राथमिक शिक्षा</b>" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "<a href="http://blog.primarykamaster.com/">प्राइमरी का मास्टर</a>" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।</i></div></div><div><br></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-60970049060914937192024-02-06T20:08:00.001+05:302024-02-06T20:08:25.482+05:30शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की चुनौती, अब भी स्थापित होती नहीं दिख रही सरकारी स्कूलों की साख<b>शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की चुनौती, अब भी स्थापित होती नहीं दिख रही सरकारी स्कूलों की साख</b><div class="figure"><div class="summary_art"><p><br></p></div></div><div class="Body-Content" id="bodysummery"><p>पिछले दिनों एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन (असर) की रिपोर्ट की चर्चा देश भर में हुई। यह रिपोर्ट प्रथम नामक एनजीओ द्वारा 2005 के बाद लगभग प्रतिवर्ष देश के समक्ष आती रही है। इसके अनुसार ऊंची कक्षाओं में पहुंच चुके अधिकांश बच्चे भी कक्षा दो या तीन की गणित, भाषा या अन्य विषयों में अपेक्षित स्तर प्राप्त नहीं कर पाए हैं।</p><p><br></p><p>स्पष्ट है कि कोई विद्यार्थी यदि कक्षा सात में पहुंच कर कक्षा तीन का गुणा-भाग नहीं सीख पाया है तो वह भले ही प्रति वर्ष सफल होता रहे, लेकिन कभी भी आत्मविश्वास युक्त एक ऐसा युवा नहीं बन पाएगा, जो अपेक्षित स्तर के कौशल तथा ज्ञान से युक्त होकर अपने कार्यस्थल पर गुणवत्तापूर्ण उत्तरदायित्व का निर्वहन कर सके। ग्रामीण क्षेत्रों में यह स्थिति पिछले अनेक दशकों से अत्यंत चिंताजनक रही है।</p><p><br></p><p>इस वर्ष की असर की रिपोर्ट कहती है कि 14 से 18 वर्ष के लगभग 90 प्रतिशत बच्चे स्मार्टफोन का उपयोग करना जानते हैं। 43.7 प्रतिशत लड़कों के पास अपने स्मार्टफोन हैं, जबकि केवल 19.8 प्रतिशत लड़कियां ही इतनी भाग्यशाली हैं। यह भी अत्यंत निराशाजनक है कि 14 से 18 वर्ष के 21 प्रतिशत ग्रामीण बच्चे इस जिज्ञासा का कोई उत्तर नहीं दे सके कि वे आगे चलकर क्या बनना चाहते हैं और क्या करना चाहते हैं? सबसे अधिक 13 प्रतिशत ने पुलिस और 11.4 प्रतिशत ने अध्यापक बनने की इच्छा व्यक्त की।</p><p><br></p><p>अपने अनुभव के आधार पर मेरा निष्कर्ष पर यह है कि ग्रामीण क्षेत्र मे 14 से ऊपर के आयु वर्ग के युवाओं में निराशा धीरे-धीरे बढ़ने लगती है। जैसे-जैसे वे अपने आस-पास हो रही नियुक्तियों की प्रक्रिया को देखते हैं तो उन्हें लगने लगता है कि जो घोर प्रतिस्पर्धा उनके समक्ष आने वाली है, उसके लिए आवश्यक संसाधन और स्रोत जुटा पाना असंभव होगा। ऐसी स्थिति में यह वर्ग बड़ी अपेक्षाएं नहीं करता। उसे सबसे अधिक संभाव्य अध्यापक बनना प्रतीत होता है। इसमें आस-पास के इलाके में पद-स्थापना की संभवना अधिक होती है।</p><p><br></p><p>नई शिक्षा नीति यह स्पष्ट करती है कि आगे के वर्षों में अध्यापकों की नियुक्तियां केवल नियमित आधार पर ही की जाएंगी। अस्थायी नियुक्तियों का चलन बंद किया जाएगा, क्योंकि इसमें गुणवत्ता नकारात्मक ढंग से प्रभावित होती है। राज्य सरकारें इस संस्तुति को कितनी प्राथमिकता देंगी, यह गंभीरता से देखना होगा।</p><p><br></p><p>आज भारत उस दौर में पहुंच चुका है, जहां माता-पिता अपने लड़के-लड़कियों को समान रूप से शिक्षित करना चाहते हैं। उन्हें अब अच्छी गुणवत्ता और कौशल प्रदान करने वाली शिक्षा स्कूलों में चाहिए, पर अनेक प्रकार के सुधारों के बाद भी 1960 के पश्चात लगातार गिर रही सरकारी स्कूलों की साख अभी भी सुधार की दिशा में अग्रसर नहीं है। यह कड़वा सत्य है। इसे स्वीकार करने पर ही इन स्कूलों की साख और स्वीकार्यता बढ़ाने के प्रयास ईमानदारी से प्रारंभ हो सकेंगे। यदि लोगों के पास विकल्प के रूप में पूरी तरह से तैयार सरकारी स्कूल उपलब्ध हों तो वे वहीं अपने बच्चे भेजेंगे।</p><p><br></p><p>भारत सरकार ने अभी पीएम श्री स्कूल योजना के अंतर्गत 14,500 स्कूल खोलने की प्रक्रिया प्रारंभ की है। पहले से भी देश में केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, मिलिट्री स्कूल, कस्तूरबा गांधी विद्यालय जैसे स्कूल स्थापित किए गए हैं, लेकिन इनकी संख्या सीमित होने के कारण ये सभी की पहुंच से दूर ही रह जाते हैं। पीएम श्री स्कूलों से अच्छे स्कूलों का देश भर में फैलाव बढ़ेगा। इसका असर अन्य स्कूलों पर भी पड़ेगा।</p><p><br></p><p>राज्य सरकारें यदि स्कूलों के प्रति अपनी प्राथमिकता ऊंची करें और आवश्यक भौतिक तथा मानवीय संसाधन उपलब्ध कराने में कोताही न करें तो वे स्वयं भी पीएम श्री जैसे स्कूलों का अनुसरण करने की दिशा में आगे बढ़ सकती हैं। उन्हीं देशों का भविष्य सुनहरा है, जहां ज्ञान-बुद्धि-विवेक की प्राथमिकता स्वीकार्य होगी और जो राष्ट्र नई पीढ़ी को इसके लिए तैयार करने में कोई कोताही नहीं करेंगे। भारत में अभी भी 50-60 प्रतिशत से अधिक स्कूल ऐसे हैं, जहां कई प्रकार की कमियां लंबे समय तक बनी रहती हैं। इनमें कुछ सुधार तो हुए हैं, लेकिन उन सुधारों की निरंतरता प्रायः शिथिल हो जाती है।</p><p><br></p><p>स्कूलों का समय से खुलना और प्रतिदिन वहां पर हर अध्यापक द्वारा अपना उत्तरदायित्व निष्ठापूर्वक निभाया जाना आज भी भारत में व्यवस्थित नहीं हो पाया है। इसमें तो आर्थिक संसाधनों की आवश्यकता नहीं है, लेकिन नैतिकता, अनुशासन तथा ईमानदार अधिकारियों की सख्त आवश्यकता है। ऐसा तब संभव होगा जब देश के शिक्षक दैनंदिन कार्य संस्कृति में नैतिकता, समय पर उत्तरदायित्व निर्वाह और समाज के प्रति कर्तव्य-समर्पण को उजागर करते रहें।</p><p><br></p><p>प्रसिद्ध चिंतक और दार्शनिक गुन्नार मिर्डल ने बहुत पहले कहा था कि विकासशील देशों के लिए शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान गुणवत्तापूर्ण सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के मुख्य स्रोत हैं। भारत को इस दिशा में बहुत बड़े प्रयास करने की आवश्यकता है।</p><p><br></p><p>राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने इस संबंध में चिंता व्यक्त की है और अपेक्षा की है कि आगे चलकर अध्यापक प्रशिक्षित करने की प्रक्रिया में बड़े सुधार किए जाएंगे। इसे युद्ध-स्तर पर करना होगा, क्योंकि एक अपूर्ण अध्यापक हजारों बच्चों के जीवन में नकारात्मक प्रवृत्तियां सम्मिलित कर सकता है। शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों को नैतिक मूल्यों, नैतिकता-आधारित प्रबंधन और समर्पित कार्य संस्कृति के अनुकरणीय स्थल के रूप में अपने को विकसित करना होगा। यह करना ही होगा, कोई अन्य विकल्प है ही नहीं।</p><p><br></p><p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEi-5uqbAwk4RXqAxJpWiOdY5JYYnqJkoH52fdt6dXy-6IMbTR1N8QkEj8wlc5R2VsS92pE_8wp4R2PKf0CC93WVX6vgMD_5F4DTKWuaTJSW9zOrP_EZQjDtawq_xHndiSh9bskzmjqTR3lLdxnB5R9VCuQljZzG_eEfvkXAy99SZD05K9dd0-t92jhoBKk" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEi-5uqbAwk4RXqAxJpWiOdY5JYYnqJkoH52fdt6dXy-6IMbTR1N8QkEj8wlc5R2VsS92pE_8wp4R2PKf0CC93WVX6vgMD_5F4DTKWuaTJSW9zOrP_EZQjDtawq_xHndiSh9bskzmjqTR3lLdxnB5R9VCuQljZzG_eEfvkXAy99SZD05K9dd0-t92jhoBKk" width="400">
</a>
</div><br></p><p>✍️ <b>जगमोहन सिंह राजपूत</b></p><p><i style="font-weight: bold;">(लेखक शिक्षा, सामाजिक सद्भाव और पंथक समरसता के क्षेत्र में कार्यरत हैं)</i></p></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-11266878750518884912024-01-27T07:18:00.002+05:302024-01-27T07:20:13.575+05:30किसी विद्यार्थी की मुस्कान न छीन पाए कोई परीक्षा<div><span><b>किसी विद्यार्थी की मुस्कान न छीन पाए कोई परीक्षा</b></span></div><div></div><div><br></div><div><div><div><div><p><i>अक्सर विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों के चेहरे पर एक मुस्कान खिली रहती है, पर परीक्षा करीब आते ही यह मुस्कान कम होने लगती है। परीक्षा अपने साथ अक्सर लाती है तनाव, डर, अपेक्षाएं और चिंता। यह तनाव आखिर है क्या? इसका छात्र पर क्या प्रभाव पड़ता है? </i></p><p><br>तनाव को किसी कठिन परिस्थिति के कारण होने वाले मानसिक असंतुलन के रूप में देखा जा सकता है। तनाव एक स्वाभाविक मानवीय प्रतिक्रिया है, जो हमें अपने जीवन में चुनौतियों और खतरों से निपटने के लिए प्रेरित करती है। हर व्यक्ति अपने जीवन में कुछ हद तक तनाव का अनुभव करता ही है, पर परीक्षा के समय छात्रों में होने वाला तनाव हमारे दिन-प्रतिदिन के तनाव की तुलना में बहुत गंभीर है। </p><p><br>एनसीईआरटी ने जनवरी से मार्च, 2022 के बीच 3,79,842 विद्यार्थियों को लेकर एक सर्वेक्षण किया था। इसमें यह पाया गया कि हमारे विद्यालयों में कक्षा 9-12 के लगभग 80 प्रतिशत विद्यार्थी, परीक्षा और उसमें अपने प्रदर्शन को लेकर तनाव महसूस करते हैं। उन बच्चों में से अधिकांश ने यह भी बताया कि तनाव से जुड़े इन विचारों को वे अपने साथियों या अपने परिवार के सदस्यों के साथ साझा करने में असहज महसूस करते हैं। 33 प्रतिशत से अधिक विद्यार्थियों ने बताया कि वे नियमित रूप से अपने सहपाठियों के दबाव का सामना करते हैं।</p><p><br>जैसे-जैसे विद्यार्थी उच्चतर कक्षाओं की ओर बढ़ते हैं, उनकी व्यक्तिगत तथा विद्यालयी जीवन से संतुष्टि कम हो जाती है। रिश्तों के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता, साथियों का दबाव, बोर्ड परीक्षा का डर तथा खुद की पहचान खोने का डर जैसी चुनौतियां बढ़ती जाती हैं। </p><p><br></p><p>परीक्षा से जुड़ी परेशानियों के अनेक कारण हो सकते हैं। इसमें जीवन-शैली से जुड़े मुद्दे भी शामिल हैं, जैसे- नींद पूरी न हो पाना, कुपोषण, शारीरिक गतिविधियों की कमी आदि। इसमें कुछ मनोवैज्ञानिक कारण भी शामिल हो सकते हैं, जैसे- परीक्षा में असफल होने का डर, अच्छे अंकों के लिए परिवार का दबाव, साथियों का दबाव, नकारात्मक सोच और आत्म-आलोचना, मसलन- मैं इस काबिल नहीं हूं, मैं यह कर नहीं सकता आदि। <br><br></p><p>हम ऐसा क्या कर सकते हैं, जिससे उन्हें इस स्थिति से न गुजरना पड़े? इस महत्वपूर्ण समस्या और इसके समाधान की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया है- ‘परीक्षा पर चर्चा’ कार्यक्रम ने। इस कार्यक्रम की संकल्पना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा छह वर्ष पूर्व की गई थी। इस कार्यक्रम में वह विद्यार्थियों, उनके अभिभावकों और शिक्षकों से परीक्षा व जीवन से जुड़े मुद्दों पर बात करते हैं। इस कार्यक्रम का आयोजन शिक्षा मंत्रालय द्वारा किया जाता है। </p><p><br></p><p>इस वर्ष ‘परीक्षा पर चर्चा’ कार्यक्रम का सातवां संस्करण आयोजित किया जा रहा है। इस साल 2.26 करोड़ नामांकन प्राप्त हुए हैं। प्रधानमंत्री नई दिल्ली के प्रगति मैदान में 29 जनवरी को इन प्रतिभागियों के साथ परीक्षा पर चर्चा करेंगे। <br><br></p><p>इसमें कक्षा 6 से 12 के विद्यार्थियों, शिक्षकों और अभिभावकों को शामिल होने का अवसर मिलता है। इसमें भाग लेने के लिए पहले प्रश्नोत्तरी/निबंध/ स्लोगन प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता रहा है। इस वर्ष पंजीकरण की प्रक्रिया में नयापन लाते हुए एक अनूठी प्रश्नोत्तरी की शुरुआत की गई है, जिसमें चंद्रयान, खेलों में भारत की उपलब्धियां आदि जैसे नए विषयों को शामिल किया गया है।</p><p><br></p><p> प्रधानमंत्री से विद्यार्थी कौन-से प्रश्न पूछेंगे और चर्चा कर सकेंगे, इसके लिए भी एक पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई गई है। कक्षा छठी से बारहवीं तक के विद्यार्थियों से प्रश्न आमंत्रित किए गए। विद्यार्थियों को यह स्वतंत्रता थी कि वे परीक्षा के तनाव से निपटने या सामान्य रूप से जीवन के बारे में अपनी पसंद के ऐसे प्रश्न भेज सकते थे, जिन्हें वे प्रधानमंत्री से पूछना चाहेंगे। <br><br></p><p>इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री विद्यार्थियों के शिक्षक, मार्गदर्शक और अभिभावक की भूमिका में होते हैं। विगत वर्षों में इस कार्यक्रम के सफल आयोजन ने हमारे विद्यार्थियों के मस्तिष्क से तनाव कम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सुखद है, इसके माध्यम से विद्यार्थियों को परीक्षा को एक उत्सव के रूप में मनाने का अवसर मिल पा रहा है और वे आनंदपूर्वक परीक्षा देने के महत्व को समझने लगे हैं।<br></p><p><br></p><p></p><div>
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgXyvRZfeRxH85YFjme9CO_IicHLH9dKfWtPUcte5j6Kfsc0Pv0rVJG3VvDwLNHpeFv7SW9M7rJUP5WlCSQk6CnGoRjzI5_OhYPnp1U2WVUeZrBR-XCTzqmEh7t3FyVU1uoDMEHQ-d6BgBiU0qkhekKDSiKAClSTwnAhsB5EFMxvAX2arrjDWpOaiwVilU">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgXyvRZfeRxH85YFjme9CO_IicHLH9dKfWtPUcte5j6Kfsc0Pv0rVJG3VvDwLNHpeFv7SW9M7rJUP5WlCSQk6CnGoRjzI5_OhYPnp1U2WVUeZrBR-XCTzqmEh7t3FyVU1uoDMEHQ-d6BgBiU0qkhekKDSiKAClSTwnAhsB5EFMxvAX2arrjDWpOaiwVilU" width="400">
</a>
</div><br><p></p><p><b>✍️ हिमांशु गुप्त</b></p><p><b>सचिव, सीबीएसई</b> </p><p>(ये लेखक के अपने विचार हैं) </p></div></div></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-46804108174277856532024-01-17T20:01:00.001+05:302024-01-17T22:12:32.956+05:30शिक्षक व्यवस्था के लिए या बच्चों के लिए?<div><b>शिक्षक व्यवस्था के लिए या बच्चों के लिए?</b><br></div><div><br></div><div><br></div><div>शीतलहर के दौरान स्कूल बंद करने का निर्णय एक स्वाभाविक निर्णय है। ठंड के कारण बच्चों के स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। इसलिए बच्चों की सुरक्षा के लिए यह निर्णय लिया जाता है। लेकिन हाल के दिनों में एक नया चलन चला है कि शीतलहर के दौरान बच्चों के लिए स्कूल बंद रहेंगे, लेकिन शिक्षक प्रशासनिक कार्य के लिए स्कूल में उपस्थित रहेंगे।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>इस निर्णय पर शिक्षाशास्त्रीय दृष्टि से विचार करने पर कई सवाल उठते हैं। </b></div><div><br></div><div><b>पहला सवाल</b> यह है कि क्या शिक्षक व्यवस्था के लिए होते हैं या बच्चों के लिए? अगर शिक्षक व्यवस्था के लिए होते हैं, तो फिर बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन्हें भी स्कूल बंद रहना चाहिए। लेकिन अगर शिक्षक बच्चों के लिए होते हैं, तो फिर उन्हें भी बच्चों के साथ घर रहना चाहिए।</div><div><br></div><div><b>दूसरा सवाल</b> यह है कि क्या शिक्षकों को प्रशासनिक कार्यों के लिए स्कूल में उपस्थित रहने की आवश्यकता है? अगर हां, तो फिर इन कार्यों को ऑनलाइन या अन्य माध्यमों से भी किया जा सकता है। इसके लिए शिक्षकों को स्कूल में उपस्थित रहने की आवश्यकता नहीं है।</div><div><br></div><div><b>तीसरा सवाल</b> यह है कि क्या शीतलहर के दौरान प्रशासनिक कार्य करना आवश्यक है? अगर हां, तो फिर यह कार्य शिक्षकों के अलावा अन्य कर्मचारियों द्वारा भी किया जा सकता है। इसके लिए शिक्षकों को स्कूल में उपस्थित रहने की आवश्यकता नहीं है।</div><div><br></div><div><div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjiaQ4UM04DAD4P33Xiu08NNU5qBGHhjn_RSbhMNsnuDE4-U81OQuOfHw-Np95XeB6ETebD1qcX153vaw35nvgDGYTIMbcSPNCkciOgAM03aEZkTETr5J62s4HwE51-USB6HZfLZH8RpxTlb4nCX3feToKP1rRKeEzGNt0wAWshcDOQ-mrX5AgR5EIV-Hi8" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjiaQ4UM04DAD4P33Xiu08NNU5qBGHhjn_RSbhMNsnuDE4-U81OQuOfHw-Np95XeB6ETebD1qcX153vaw35nvgDGYTIMbcSPNCkciOgAM03aEZkTETr5J62s4HwE51-USB6HZfLZH8RpxTlb4nCX3feToKP1rRKeEzGNt0wAWshcDOQ-mrX5AgR5EIV-Hi8" width="400"></a></div><br></div><div><br></div><div>इन सवालों पर विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि शीतलहर के दौरान शिक्षकों को स्कूल में उपस्थित रहने का निर्णय एक अतार्किक निर्णय है। यह निर्णय बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए नहीं लिया गया है। बल्कि यह निर्णय व्यवस्था के प्रति शिक्षकों की निष्ठा को परखने के लिए लिया गया है।</div><div><br></div><div><br></div><div>यह निर्णय शिक्षा की मूल भावना के खिलाफ है। शिक्षा का मूल उद्देश्य बच्चों का सर्वांगीण विकास करना है। लेकिन इस निर्णय से बच्चों के विकास में बाधा आती है। बच्चों को स्कूल से दूर रहना पड़ता है। इससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है।</div><div><br></div><div><br></div><div>इस निर्णय से शिक्षकों का भी शोषण होता है। शिक्षकों को अपने परिवार और बच्चों से दूर रहकर स्कूल में उपस्थित रहना पड़ता है। इससे उन्हें मानसिक और शारीरिक परेशानी होती है। इसलिए यह जरूरी है कि शीतलहर के दौरान शिक्षकों को भी बच्चों के साथ स्कूल बंद रखने का निर्णय लिया जाए। यह निर्णय बच्चों की सुरक्षा और शिक्षकों के सम्मान के लिए आवश्यक है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>शिक्षक व्यवस्था के लिए होते हैं या बच्चों के लिए, इस सवाल का जवाब देना नीति निर्धारकों पर निर्भर करता है। लेकिन अगर नीति निर्धारकों की सोच यह है कि शिक्षक व्यवस्था के लिए होते हैं, तो फिर उन्हें यह भी तय करना चाहिए कि बच्चों के लिए क्या व्यवस्था की जाए?</b></div><div><br></div><div><br></div><div>नीति निर्धारकों को यह समझना चाहिए कि शिक्षक व्यवस्था के लिए नहीं बल्कि बच्चों के लिए होते हैं। बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा के लिए शिक्षकों की उपस्थिति आवश्यक है। इसलिए शीतलहर के दौरान शिक्षकों को भी बच्चों के साथ स्कूल बंद रखना चाहिए।<br></div><div><br></div><div><br></div><div><b>✍️ देवेंद्र दत्त त्रिवेदी</b></div><div>(सेवानिवृत बेसिक शिक्षक, फतेहपुर)</div><div><br></div><div><div class="separator"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgOQCEBYSHi_gNiF8UOoqPqdCMD2sxGU816cBI26kP3pidksCikk1fE2EWTOq0Fs2IL7PV6FR8p3uUUDvPHRvDbzWgFAfeKnT0fmQwR_rMz2vImSmTg_yRxjR1c4lYxSC7j9uZKQE9YEyeSMnnJbiOKo48aDS4ZMEX-L419asa0Fn2J9YtECSJHvqn0auoG" width="400"></div></div><div><br></div><div>बेसिक शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए फ़तेहपुर से सेवानिवृत्त "देवेंद्र दत्त त्रिवेदी" शिक्षा और समाज से जुड़े लगभग हर मामलों पर अपनी बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते हैं।</div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-43841352768276068272024-01-01T18:21:00.002+05:302024-01-01T18:22:49.773+05:30नए साल 2024 में उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा विभाग से विद्यार्थियों और शिक्षकों को आशाएं<div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><i>नए साल 2024 में उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा विभाग से विद्यार्थियों और शिक्षकों को निम्नलिखित आशाएं हैं:</i></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><i><br></i></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><b>विद्यार्थियों की आशाएं</b></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><b>उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा:</b> विद्यार्थियों को उम्मीद है कि उन्हें उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा मिलेगी, जिसमें पाठ्यक्रम, शिक्षण पद्धति, और संसाधन सभी शामिल हैं।</font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><br></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><b>समान अवसर:</b> विद्यार्थियों को उम्मीद है कि उन्हें समान अवसर मिलेगा, चाहे वे किसी भी जाति, धर्म, या आर्थिक स्थिति से हों।</font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><b>प्रभावी शिक्षण:</b> विद्यार्थियों को उम्मीद है कि उन्हें प्रभावी शिक्षण मिलेगा, जो उन्हें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा।</span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><b>आत्मविश्वास और दक्षता: </b>विद्यार्थियों को उम्मीद है कि उन्हें आत्मविश्वास और दक्षता मिलेगी, जो उन्हें अपने जीवन में सफल होने में मदद करेगा।</span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEg8dZb1F1N-c-fs587rCuCuN6-jYaqbFzvNHuB4zuMUcnKxVjBy3JV2QmQYffamm-YXXdr8OpLqO5sTwgV5bMStB45t1L6xtf3Fb6zPset7w4ORzKGPE0XSqc0pr9FdDUeG6zvi5Qq_dKgR-NXdGYDvsNdhBy6GY9baFHUQET3I68meVD1UAWLYapO6yAI" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEg8dZb1F1N-c-fs587rCuCuN6-jYaqbFzvNHuB4zuMUcnKxVjBy3JV2QmQYffamm-YXXdr8OpLqO5sTwgV5bMStB45t1L6xtf3Fb6zPset7w4ORzKGPE0XSqc0pr9FdDUeG6zvi5Qq_dKgR-NXdGYDvsNdhBy6GY9baFHUQET3I68meVD1UAWLYapO6yAI" width="400">
</a>
</div><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><b>शिक्षकों की आशाएं</b></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><b>उचित वेतन और भत्ते:</b> शिक्षकों को उम्मीद है कि उन्हें उचित वेतन और भत्ते मिलेंगे, जो उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने में मदद करेगा।</span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><b>उन्नति के अवसर:</b> शिक्षकों को उम्मीद है कि उन्हें उन्नति के अवसर मिलेंगे, ताकि वे अपने करियर में आगे बढ़ सकें।</font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><b>अच्छा काम करने का माहौल: </b>शिक्षकों को उम्मीद है कि उन्हें एक अच्छा काम करने का माहौल मिलेगा, जिसमें उन्हें अपने छात्रों को बेहतर तरीके से पढ़ाने में मदद मिलेगी।</span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><b>सम्मान और मान्यता: </b>शिक्षकों को उम्मीद है कि उन्हें समाज में सम्मान और मान्यता मिलेगी।</span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><b>इन आशाओं को पूरा करने के लिए, सरकार को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए</b></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><b>बेसिक शिक्षा पर अधिक खर्च करना:</b> सरकार को बेसिक शिक्षा पर अधिक खर्च करना चाहिए, ताकि स्कूलों को बेहतर सुविधाएं और संसाधन मिल सकें।</font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><b>शिक्षकों के लिए बेहतर प्रशिक्षण और विकास कार्यक्रम प्रदान करना: </b>सरकार को शिक्षकों के लिए बेहतर प्रशिक्षण और विकास कार्यक्रम प्रदान करना चाहिए, ताकि वे प्रभावी शिक्षण प्रदान कर सकें।</span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><b>बेसिक शिक्षा में सुधार के लिए एक ठोस नीति और कार्य योजना बनाना:</b> सरकार को बेसिक शिक्षा में सुधार के लिए एक ठोस नीति और कार्य योजना बनानी चाहिए, और इस पर लगातार काम करना चाहिए।</span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><br></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><i>इन कदमों के माध्यम से, सरकार उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा को और अधिक गुणवत्तापूर्ण और समावेशी बना सकती है, और विद्यार्थियों और शिक्षकों की आशाओं को पूरा कर सकती है।</i></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><i><br></i></span></font></div><div style="text-align: center;"><font color="#000000" face="Arial"><span style="font-size: 13.3333px; letter-spacing: normal; background-color: rgb(239, 239, 239);"><i><br></i></span></font></div><div style="text-align: center;"><div><div><div><b>✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी</b></div><div>शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित</div><div>फतेहपुर</div></div><div><b><br></b></div><div><b><div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" width="400"></a></div><br></b></div><div><b>परिचय</b></div><div><b><br></b></div><div><i>बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "<b><a href="https://www.praveentrivedi.in/">प्रवीण त्रिवेदी</a></b>" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>शिक्षा विशेष रूप से "<b>प्राथमिक शिक्षा</b>" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "<a href="http://blog.primarykamaster.com/">प्राइमरी का मास्टर</a>" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।</i></div></div><div><br></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-21790905354088228792023-12-17T10:46:00.000+05:302023-12-17T10:46:04.276+05:30शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए पाठ्यक्रम और मूल्यांकन के मानकों पर विचार<div><b>शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए पाठ्यक्रम और मूल्यांकन के मानकों पर विचार</b></div><div><br></div><div><br></div><div>शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए एक जैसा पाठ्यक्रम और मूल्यांकन के मानक होने चाहिए या नहीं, यह एक महत्वपूर्ण शिक्षाशास्त्रीय प्रश्न है। इस प्रश्न का कोई सरल उत्तर नहीं है, क्योंकि दोनों दृष्टिकोणों के अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div>शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच कई महत्वपूर्ण अंतर हैं जो पाठ्यक्रम और मूल्यांकन को प्रभावित कर सकते हैं। शहरी क्षेत्रों में आमतौर पर बेहतर संसाधन उपलब्ध होते हैं, जैसे कि अच्छी तरह से सुसज्जित स्कूल, योग्य शिक्षक और विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रम। ग्रामीण क्षेत्रों में, संसाधन अक्सर सीमित होते हैं, जिससे बच्चों के लिए शिक्षा प्राप्त करना अधिक कठिन हो सकता है।</div><div><br></div><div><br></div><div>शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की सीखने की जरूरतें भी अलग-अलग हो सकती हैं। शहरी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चे अक्सर विभिन्न संस्कृतियों और पृष्ठभूमि से आते हैं, जिससे उन्हें अधिक खुले विचारों और विविधता के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले बच्चे अक्सर प्रकृति और पर्यावरण के बारे में अधिक सीखने के लिए उत्सुक होते हैं।</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgjAWTQjoD1kB9P42pSFKGDLd2VdovYtPmBNoy7camSMXJnCxCz92a-PFVoyx85ZuWr5zxo1zvUSvHSZoiSbWj5WLHii8nbO8bW0_Y82eQbebEIwNarUGPqXWXYV7waqrCxVwqxlHQQn1Ui5Hg5aHqkdKYLfLA4UCCLvDZcuv7m7ta2YmS_AOLKEBfvMLU" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgjAWTQjoD1kB9P42pSFKGDLd2VdovYtPmBNoy7camSMXJnCxCz92a-PFVoyx85ZuWr5zxo1zvUSvHSZoiSbWj5WLHii8nbO8bW0_Y82eQbebEIwNarUGPqXWXYV7waqrCxVwqxlHQQn1Ui5Hg5aHqkdKYLfLA4UCCLvDZcuv7m7ta2YmS_AOLKEBfvMLU" width="400">
</a>
</div><br></div><div><br></div><div>इन अंतरों को देखते हुए, कुछ लोग तर्क देते हैं कि शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए अलग-अलग पाठ्यक्रम और मूल्यांकन मानक होने चाहिए। वे तर्क देते हैं कि ऐसा करने से बच्चों की विशिष्ट जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी और उन्हें सफल होने के लिए बेहतर अवसर प्रदान किए जाएंगे।</div><div><br></div><div><br></div><div>दूसरी ओर, कुछ लोग तर्क देते हैं कि शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए एक समान पाठ्यक्रम और मूल्यांकन मानक होना चाहिए। वे तर्क देते हैं कि ऐसा करने से बच्चों के बीच समानता को बढ़ावा मिलेगा और उन्हें एक समान आधार पर प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति मिलेगी।</div><div><br></div><div><b><br></b></div><div><b>शिक्षाशास्त्रीय दृष्टिकोण से, इस प्रश्न का कोई आसान उत्तर नहीं है। हालांकि, कुछ बातों पर विचार करना महत्वपूर्ण है।</b></div><div><br></div><div><b><br></b></div><div><b>पहला</b>, यह महत्वपूर्ण है कि पाठ्यक्रम और मूल्यांकन मानक सभी बच्चों के लिए एक समान गुणवत्ता के हों। चाहे वे शहरी हों या ग्रामीण, सभी बच्चों को एक अच्छी शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।</div><div><br></div><div><b>दूसरा</b>, यह महत्वपूर्ण है कि पाठ्यक्रम और मूल्यांकन मानक बच्चों की विशिष्ट जरूरतों को पूरा करें। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की अलग-अलग सीखने की जरूरतें हो सकती हैं, और पाठ्यक्रम और मूल्यांकन मानकों को इन जरूरतों को पूरा करने के लिए अनुकूलित किया जाना चाहिए।</div><div><br></div><div><b>तीसरा</b>, यह महत्वपूर्ण है कि पाठ्यक्रम और मूल्यांकन मानक बच्चों के बीच समानता को बढ़ावा दें। सभी बच्चों को समान अवसर प्राप्त करने का अधिकार है, और पाठ्यक्रम और मूल्यांकन मानकों को इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया जाना चाहिए।</div><div><br></div><div><br></div><div>इन कारकों पर विचार करने के बाद, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए एक जैसा पाठ्यक्रम और मूल्यांकन मानक होना चाहिए, लेकिन यह मानक बच्चों की विशिष्ट जरूरतों को पूरा करने के लिए अनुकूलित किया जाना चाहिए। ऐसा करने से सभी बच्चों के लिए एक अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के अवसरों को बढ़ावा मिलेगा।</div><div><br></div><div><b><br></b></div><div><b>यहां कुछ विशिष्ट सुझाव दिए गए हैं कि शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए एक जैसा पाठ्यक्रम और मूल्यांकन मानक कैसे विकसित किया जा सकता है:</b></div><div><br></div><div>🔵 पाठ्यक्रम को सभी बच्चों की सीखने की जरूरतों को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया जाना चाहिए। इसमें शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की विशिष्ट जरूरतों को ध्यान में रखना शामिल होना चाहिए।</div><div><br></div><div>🔵 मूल्यांकन मानकों को बच्चों के सीखने के बारे में एक व्यापक और सटीक तस्वीर प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया जाना चाहिए। इसमें विभिन्न प्रकार के मूल्यांकन उपायों का उपयोग करना शामिल होना चाहिए, जो बच्चों की विभिन्न सीखने की शैलियों को पूरा करते हैं।</div><div><br></div><div>🔵 पाठ्यक्रम और मूल्यांकन मानकों को नियमित रूप से समीक्षा और अद्यतन किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे सभी बच्चों की जरूरतों को पूरा करते हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div><i>इन सुझावों का पालन करके, हम शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के सभी बच्चों के लिए एक समान गुणवत्ता की शिक्षा सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं।</i></div><div><br></div><div><br></div><div><div><div><div><b>✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी</b></div><div>शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित</div><div>फतेहपुर</div></div><div><b><br></b></div><div><b><div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" width="400"></a></div><br></b></div><div><b>परिचय</b></div><div><b><br></b></div><div><i>बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "<b><a href="https://www.praveentrivedi.in/">प्रवीण त्रिवेदी</a></b>" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>शिक्षा विशेष रूप से "<b>प्राथमिक शिक्षा</b>" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "<a href="http://blog.primarykamaster.com/">प्राइमरी का मास्टर</a>" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।</i></div></div><div><br></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-87452536953332848822023-12-16T21:51:00.002+05:302023-12-16T21:53:27.658+05:30जानिए ! बच्चों के आंकलन / मूल्यांकन के परिणामों पर शिक्षकों को दंडित करना कितना जायज कितना शिक्षाशास्त्रीय? <div><b>जानिए ! बच्चों के आंकलन / मूल्यांकन के परिणामों पर शिक्षकों को दंडित करना कितना जायज कितना शिक्षाशास्त्रीय? </b></div><div><br></div><div><br></div>बच्चों के आंकलन / मूल्यांकन के परिणामों पर शिक्षकों को दंडित करना एक तरह से बच्चों की शिक्षा संप्राप्ति में बाधा बनने जैसा है।<div><br></div><div><i>आजकल शिक्षा व्यवस्था में एक नई प्रथा चल पड़ी है। बच्चों के आंकलन या मूल्यांकन पर कमजोर परिणाम आने पर शिक्षकों को नोटिस देना, वेतन रोकना, निलंबन की घुड़की देना। </i></div><div><br></div><div><br></div><div>यह ठीक वैसा ही है जैसे एक मरीज का भरसक इलाज करने पर भी ठीक न होने पर डॉक्टर को दण्ड देना। ऐसा हुआ तो डर है कि डॉक्टर की तरह शिक्षक भी अपनी नौकरी बचाने के लिए कहीं स्टीरॉयड जैसा इंस्टैट उपाय देना न शुरू कर दे? हालांकि ऐसा कुछ भी यदि हुआ तो यह बच्चों की स्वाभाविक सीखने की प्रक्रिया में बाधा ही होगा।</div><div><br></div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEifl6dmZE-_ee5CH7P178tSbXNB_C3AQ5M6e6zL8LdWLzUQCQ4dB405WXT17CmWGMLSuua3Eh2NJASeBnvZdnRTSM6z3ruk6bQQwzS03pAURAoxRNvCxyrgzS5NOI-SVx2HleEJWWY2kaErfWgN5nRaPRdKpQWJ6f-VWcuHrkxHCeG36BtFQ5bsWFFsA3M" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEifl6dmZE-_ee5CH7P178tSbXNB_C3AQ5M6e6zL8LdWLzUQCQ4dB405WXT17CmWGMLSuua3Eh2NJASeBnvZdnRTSM6z3ruk6bQQwzS03pAURAoxRNvCxyrgzS5NOI-SVx2HleEJWWY2kaErfWgN5nRaPRdKpQWJ6f-VWcuHrkxHCeG36BtFQ5bsWFFsA3M" width="400">
</a>
</div><br></div><div><br></div><div>शिक्षकों को दंडित करने के पीछे सरकार का मानना है कि इससे शिक्षकों में दबाव बढ़ेगा और वे दबाव में बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए और मेहनत करेंगे। लेकिन यह सोच पूरी तरह से गलत है। शिक्षकों को दंडित करने से वे न केवल तनावग्रस्त हो जाते हैं, बल्कि उनकी कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है। इससे बच्चों की शिक्षा का स्तर और गिर जाता है। सबसे बड़ा डर तो यह है कि कहीं शिक्षक परिणाम सुधारने के लिए ऐसे प्रयास करते न दिखें जिससे बच्चे के वास्तविक मूल्यांकन ही प्रभावित हो जाए? </div><div><br></div><div><br></div><div>शिक्षकों को दंडित करने से बच्चों की सीखने की प्रक्रिया में भी बाधा उत्पन्न होती है। जब शिक्षक दंडित होते हैं तो बच्चे उनसे भयभीत हो जाते हैं। इससे बच्चों में सीखने की रुचि कम हो जाती है। बच्चे सोचने लगते हैं कि अगर वे कुछ गलत करेंगे तो उन्हें भी दंडित किया जाएगा। इससे बच्चे रटने जैसी शिक्षा और सीख लेने लगते हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div>शिक्षकों को दंडित करने से शिक्षा व्यवस्था में भ्रष्टाचार भी बढ़ता है। शिक्षक अपने बचाव के लिए कैसे भी हो, बच्चों को मूल्यांकन या आंकलन में सफल दिखाने लगते हैं या विभागीय भ्रष्टाचार के शिकार हो जाते हैं। कुलमिलाकर इससे शिक्षा का उद्देश्य ही भ्रष्ट हो जाता है।</div><div><br></div><div><br></div><div>शिक्षकों को दंडित करने के बजाय सरकार को शिक्षा व्यवस्था में सुधार पर ध्यान देना चाहिए। सरकार को शिक्षकों को बेहतर सुविधाएं और प्रशिक्षण देना चाहिए। सरकार को बच्चों के मूल्यांकन के तरीके में भी बदलाव लाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के मूल्यांकन में उनके परिवेश को भी जोड़ना चाहिए। हम सब जिम्मेदार हित धारकों को बच्चों की सीखने की प्रक्रिया को सरल और सुगम बनाना चाहिए।</div><div><br></div><div><br></div><div>शिक्षकों को दंड देने जैसे बचकानी और गैर शिक्षाशास्त्रीय तरीकों से एक तरह से बच्चों की शिक्षा को ही दंडित किया जा रहा है। यह कतई अवैज्ञानिक और अतार्किक तरीका है। शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए शिक्षकों को दंड देने के बजाय कई स्तरों पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।</div><div><br></div><div><br></div><div><div><div><b>✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी</b></div><div>शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित</div><div>फतेहपुर</div></div><div><b><br></b></div><div><b><div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" width="400"></a></div><br></b></div><div><b>परिचय</b></div><div><b><br></b></div><div><i>बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "<b><a href="https://www.praveentrivedi.in/">प्रवीण त्रिवेदी</a></b>" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>शिक्षा विशेष रूप से "<b>प्राथमिक शिक्षा</b>" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "<a href="http://blog.primarykamaster.com/">प्राइमरी का मास्टर</a>" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।</i></div></div><div><br></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-35142848875001732912023-12-16T09:06:00.002+05:302023-12-16T09:08:01.774+05:30शिक्षा में आंकड़ों का खेल बच्चों की शैक्षिक प्रगति के लिए बन रही एक गंभीर समस्या<div><b>शिक्षा में आंकड़ों का खेल बच्चों की शैक्षिक प्रगति के लिए बन रही एक गंभीर समस्या</b></div><div><br></div><div><br></div><div>शिक्षा में आंकड़ों के खेल में शिक्षक को जानबूझकर उलझाया जाता है। यह एक गंभीर समस्या है, जिसका शिक्षा व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।</div><div><br></div><div><br></div><div>आंकड़े एक शक्तिशाली उपकरण हैं, जिन्हें सही तरीके से इस्तेमाल करने पर बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। लेकिन अगर आंकड़ों का इस्तेमाल गलत तरीके से किया जाए, तो वे बहुत नुकसान भी पहुंचा सकते हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div>शिक्षा में आंकड़ों का इस्तेमाल अक्सर शिक्षकों पर दबाव बनाने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी स्कूल में परीक्षा परिणाम खराब होते हैं, तो शिक्षकों को जवाबदेह ठहराया जाता है, और उन पर परिणाम सुधारने के लिए दबाव डाला जाता है।</div><div><br></div><div><br></div><div>ऐसे में शिक्षकों को लगता है कि उन्हें परीक्षा परिणामों में सुधार करने के लिए कुछ भी करना पड़ेगा, चाहे वह सही हो या गलत। वे अक्सर ऐसे तरीके अपनाने लगते हैं, जो छात्रों के वास्तविक सीखने को नुकसान पहुंचाते हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div>उदाहरण के लिए, वे छात्रों को परीक्षा के लिए तैयार करने के लिए सिर्फ वही सामग्री पढ़ाएंगे, जो परीक्षा में पूछी जाएगी। वे छात्रों को रटने के लिए प्रेरित करेंगे। ऐसे में छात्र वास्तविक ज्ञान हासिल नहीं कर पाते हैं, और उनकी शैक्षिक प्रगति बाधित होती है।</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEiJjdtHC7kfPnXSSfAReAWN8tbA-9xgPqkkducGM1jEMc3HqqAT4xI0jXsRxFOBKsdr4_GFvBuF7dtgnc3i9uG0HOQhcqeAG6-LKVrShp4oArgdsKcX9UHtJosZKrXmbcBACFfitYX1zUazFh1Gm-kDGi3wNb_64kHu0k4Ul_oIgC0ygJTGW4onOFyGp4M" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEiJjdtHC7kfPnXSSfAReAWN8tbA-9xgPqkkducGM1jEMc3HqqAT4xI0jXsRxFOBKsdr4_GFvBuF7dtgnc3i9uG0HOQhcqeAG6-LKVrShp4oArgdsKcX9UHtJosZKrXmbcBACFfitYX1zUazFh1Gm-kDGi3wNb_64kHu0k4Ul_oIgC0ygJTGW4onOFyGp4M" width="400">
</a>
</div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><b>शिक्षा में आंकड़ों के खेल को रोकने के लिए, हमें निम्नलिखित कदम उठाने की जरूरत है:</b></div><div><br></div><div>🔴 शिक्षकों को आंकड़ों के सही इस्तेमाल के बारे में शिक्षित करना चाहिए। उन्हें यह समझाना चाहिए कि आंकड़ों का इस्तेमाल कैसे किया जाए कि वे छात्रों के वास्तविक सीखने को नुकसान न पहुंचाएं।</div><div><br></div><div>🔴 शिक्षकों पर परीक्षा परिणामों के आधार पर दबाव नहीं डालना चाहिए। उन्हें यह महसूस कराना चाहिए कि वे छात्रों को शिक्षित करने के लिए स्वतंत्र हैं, और उन्हें ऐसा करने के लिए पर्याप्त समय और संसाधन दिए जाएंगे।</div><div><br></div><div>🔴 शिक्षा व्यवस्था में मूल्यांकन के तरीकों को बदलने की जरूरत है। हमें ऐसे मूल्यांकन तरीकों को अपनाना चाहिए, जो छात्रों के वास्तविक सीखने को मापें।</div><div><br></div><div><br></div><div>अगर हम इन कदमों को उठाएंगे, तो हम शिक्षा में आंकड़ों के खेल को रोक सकते हैं, और छात्रों को बेहतर शिक्षा प्रदान कर सकते हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div><i>शिक्षकों को शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए। उन्हें आंकड़ों के खेल में फंसकर छात्रों के भविष्य को खतरे में नहीं डालना चाहिए। ज्यादातर शिक्षक मानते हैं कि शिक्षा में भी अब आंकड़ों का खेल हो रहा है। शिक्षकों को स्वयं से जागरूक होकर इस खेल से दूर रहना चाहिए।</i></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><div><div><b>✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी</b></div><div>शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित</div><div>फतेहपुर</div></div><div><b><br></b></div><div><b><div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" width="400"></a></div><br></b></div><div><b>परिचय</b></div><div><b><br></b></div><div><i>बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "<b><a href="https://www.praveentrivedi.in/">प्रवीण त्रिवेदी</a></b>" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>शिक्षा विशेष रूप से "<b>प्राथमिक शिक्षा</b>" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "<a href="http://blog.primarykamaster.com/">प्राइमरी का मास्टर</a>" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।</i></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-81551872718337211512023-11-27T07:01:00.000+05:302023-11-27T07:01:55.298+05:30बोर्ड परीक्षाओं में बड़े बदलाव का आ गया सही समय<div>बोर्ड परीक्षाओं में बड़े बदलाव का आ गया सही समय</div><div><br></div><div><i>परीक्षार्थियों पर बोर्ड परीक्षा का बोझ कई रूपों में कम किया जा रहा है। अब परीक्षाओं को कहीं अधिक 'आसान' बनाया जाएगा।</i></div><div><br></div><div><br></div><div>बोर्ड परीक्षाएं भारतीय शिक्षा की प्रमुख समस्याओं में एक हैं। 'स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा', बानी एनसीएफ-एसई, 2023 में इस पर पर्याप्त ध्यान दिया गया है और तात्कालिक मुद्दों से बचने के बजाय उनको डटकर स्वीकार किया गया है। इनमें सबसे बड़ा मुद्दा है, बोर्ड परीक्षा के कारण परीक्षार्थियों और उनके परिवारों में होने वाला तनाव। </div><div><br></div><div><br></div><div>इसकी कई वजहें हैं, जैसे- परीक्षा के अंकों को सामाजिक रूप से 'मूल्यवान' समझा जाता है और यह माना जाता है कि जीवन में ये बदलाव लाने की क्षमता रखते हैं: बोर्ड परीक्षा के नतीजों का उपयोग कॉलेज में दाखिला लेने या कभी-कभी नौकरियों के लिए भी किया जाता है: परीक्षा में एक दिन का खराब प्रदर्शन गंभीर रूप से नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है: इन अंकों से कोचिंग संचालक व्यावसायिक हित साधते हैं और पैसे कमाने के लिए फर्जी प्रतिस्पर्दी दवाव बनाते हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div> दूसरा मुद्दा, अधिकांश बोर्ड परीक्षाएं अपने प्रारंभिक उद्देश्य पूरा नहीं कर र पातों और इससे भी भी बुरी बात यह है कि ये स्कूलों में शैक्षणिक प्रयासों की दिशा बदल देती हैं। दरअसल, इन परीक्षाओं का मकसद 10वीं और 12वीं कक्षा के अंत में बच्चों की क्षमताओं का आकलन करना है। इसके बजाय, कई स्कूल तमाम तरह के तथ्यों को याद कराना बेहतर समझते हैं। यह तरीका छात्रों की सीखने की समझ प्रभावित करता है। </div><div><br></div><div><br></div><div>तीसरा मुद्दा है, ज्यादातर परीक्षाओं का आदर्श चरित्र न होना, जिनमें मूल्यांकनकर्ताओं में कई भिन्नताएं होती इससे स्वाभाविक तौर पर हमारी कई बोर्ड परीक्षाओं हैं। की विश्वसनीयता कठघरे में आ जाती है। एनसीएफ-एसई इन तमाम मुद्दों के समाधान के लिए बोर्ड परीक्षाओं में महत्वपूर्ण बदलाव करती है। ये परिवर्तन एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और सीखने के मानकों, सामग्री, पाठ्य-पुस्तकों, शैक्षणिक तरीकों जैसे पाठ्यक्रम के समग्र दृष्टिकोण को महत्व देते हैं। इसके तहत परीक्षार्थियों पर बोर्ड परीक्षा का बोझ कई रूपों में कम किया जाएगा। मसलन, परीक्षाओं को 'आसान' और 'हल्का' बनाया जाएगा। यहां यह मत समझिए कि परीक्षा की कठोरता कम की जाएगी, बल्कि उसमें तथ्यों पर जोर देने के बजाय योग्यता को जांचा जाएगा। इससे विषय-सामग्री का भार हल्का हो जाएगा। </div><div><br></div><div><br></div><div>इसी तरह, सभी बोर्ड परीक्षाएं साल में कम से कम दो बार आयोजित की जाएंगी, जिनमें छात्रों को दूसरी बार परीक्षा देने और सुधार करने का विकल्प मिलेगा। इसमें केवल सर्वोत्तम अंक ही मार्कशीट में लिखे जाएंगे। इसके बाद हम' ऑन डिमांड' परीक्षाओं की ओर भी बढ़ेंगे, यानी परीक्षार्थी जब भी तैयार हो जाए, तब परीक्षा होगी। यह कदम उनमें तनाव कम करने में मददगार साथित होगा।</div><div><br></div><div><br></div><div>जैसा कि इस रूपरेखा में कहा गया है, बोर्ड परीक्षाएं माध्यमिक चरण के लिए योग्यताओं का आकलन करेंगी। इसे सुनिश्चित करने के लिए परीक्षाओं के तमाम पहलुओं पर काम किया जाएगा, जिनमें प्रश्न-पत्र तैयार करने और कॉपी जांचने वालों का सख्ती से चयन और उनका उचित प्रशिक्षण भी शामिल है। बेशक, उच्च शिक्षा में प्रवेश के तरीके इस रूपरेखा के दायरे में नाहीं हैं, लेकिन यह इस मसले को भी सामने लाता है। </div><div><br></div><div><br></div><div>सच यही है कि भारत में उच्च गुणवत्ता वाले उच्च शिक्षण संस्थानों की कमी है, जिसके कारण उस स्तर पर प्रवेश की प्रक्रिया में सबसे उपयुक्त के चयन के लिए अनगिनत दावेदारों की दावेदारी खारिज कर दी जाती है। चूंकि बोर्ड परीक्षाओं में सीखने को क्षमता का आकलन किए जाने के कारण सभी छात्र बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, ऐसे में, बेहतर उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले के क्रम में बहुतों को निराश होना पड़ सकता है। इस संकट का समाधान निस्संदेह स्कूली शिक्षा में नहीं है, मगर राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में इन चुनौतियों से पार पाने की क्षमता है। उसके कुछ प्रावधान तो लागू भी कर दिए गए हैं, जैसे- 'कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट' की शुरुआत।</div><div><br></div><div><br></div><div>हालांकि, यहां मैंने सिर्फ बोर्ड परीक्षाओं की चर्चा की है, लेकिन एनसीएफ में सभी कक्षाओं की परीक्षाओं के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश दिए गए हैं। हमें वास्तविक रूप से सीखने और उनका मूल्यांकन करने के लिए इन परीक्षाओं में बदलाव और सुधार करना ही चाहिए।</div><div><br></div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgkPbnT-ZE_zIcBw19vQ-Ww6NOpajxpUjQf9uTF2T4ed0BK5xFiG5wN9l54zt-eF9qsUbon34FKbtg1kl1GC0L66OJ7hsHxNrAV0FFyF5efTThOrzeQ5OeEnA-e21VTr-iX0zn40dLUAJAoUJ2hoxO_UYOaGqvjW1nC3xrLMo4NEMLHCXtxSAW_H1ZlLbs" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgkPbnT-ZE_zIcBw19vQ-Ww6NOpajxpUjQf9uTF2T4ed0BK5xFiG5wN9l54zt-eF9qsUbon34FKbtg1kl1GC0L66OJ7hsHxNrAV0FFyF5efTThOrzeQ5OeEnA-e21VTr-iX0zn40dLUAJAoUJ2hoxO_UYOaGqvjW1nC3xrLMo4NEMLHCXtxSAW_H1ZlLbs" width="400">
</a>
</div><br></div><div><br></div><div> (ये लेखक के अपने विचार है)</div><div><br></div><div><b>✍️ अनुराग बेहर</b></div><div>सीईओ, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन</div><div><br></div><div><br></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-70507280845649115232023-11-26T07:34:00.001+05:302023-11-26T07:34:09.681+05:30भारतीय विश्वविद्यालयों के विस्तार का समय, वैश्विक और स्थानीय दोनों ही तरह के सरोकारों से जुड़े उच्च शिक्षा<b>भारतीय विश्वविद्यालयों के विस्तार का समय, वैश्विक और स्थानीय दोनों ही तरह के सरोकारों से जुड़े उच्च शिक्षा</b><p class="PrimeArticleDetail_summary__7jMpR slideUp"><br></p><p class="PrimeArticleDetail_summary__7jMpR slideUp">उच्च शिक्षा को वैश्विक और स्थानीय दोनों ही तरह के सरोकारों से जोड़ना चाहिए और विशिष्ट ज्ञान क्षेत्रों में उत्कृष्टता की ओर अग्रसर भारतीय ज्ञान केंद्रों का विस्तार करना चाहिए। भारत के कई विद्या केंद्र ज्ञान के सृजन संवर्धन और संरक्षण में जुटे हैं और वे उन योग्यताओं एवं क्षमताओं के निर्माण का भी दायित्व बखूबी निभा रहे हैं जो समाज के संचालन के लिए अपरिहार्य होती हैं।</p><div class="undefined slideUp"><div class="PrimeArticleDetail_date__ERmgr"><br></div></div><div class="stickySidebar"><div class="ArticleBody slideUp"><div class="articlecontent"><p>विश्व के प्रमुख विश्वविद्यालय और शैक्षणिक संस्थान भारत में अपने परिसर खोलने जा रहे हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी ने इसकी अनुमति प्रदान कर दी है। यूजीसी के इस कदम के पीछे एक उद्देश्य विदेशी मुद्रा की बचत भी है। साथ ही यह उम्मीद भी कि इससे प्रतिभा पलायन रोकने में बड़ी मदद मिलेगी। हर साल साढ़े सात लाख से अधिक भारतीय छात्र अरबों डालर खर्च करके विदेश पढ़ने जाते हैं।</p><div id="paywall" class="piano-container piano-container--active primepaywall"></div><div class="close-content"><p><br></p><p>आरबीआइ के अनुसार 2022 में लगभग 13 लाख छात्र विदेश में पढ़ रहे थे। वित्त वर्ष 2021-2022 में भारतीय छात्रों की विदेश में पढ़ाई पर 25 अरब डालर की विदेशी मुद्रा खर्च हुई। फिलहाल आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, मेलबर्न विश्वविद्यालय, क्वींसलैंड विश्वविद्यालय, टेक्सास विश्वविद्यालय और सेंट पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय जैसे कई संस्थानों ने भारत में अपने परिसर खोलने में रुचि दिखाई है।</p><p><br></p><p>सवाल है कि क्या विदेशी विश्वविद्यालयों के परिसर भारत में खुल जाने से ऐसे मेधावी विद्यार्थियों को लाभ होगा, जो आर्थिक तंगी के कारण विदेशी विश्वविद्यालयों का रुख नहीं कर सकते? भारत में विदेशी संस्थानों के परिसर खुल जाने से विदेश में रहने का भारी खर्चा निश्चित रूप से घटेगा, मगर क्या भारत में उनके परिसर छात्रों को ट्यूशन फीस में कोई बड़ी छूट देंगे? फिलहाल ऐसे कोई संकेत नहीं हैं।</p><p><br></p><p>विदेशी विश्वविद्यालयों के परिसर स्थापित करने के पीछे यदि सरकार की मंशा भारत को वैश्विक शिक्षा के एक केंद्र के रूप में विकसित करने की है तो उसके लिए ऐसा करना आवश्यक नहीं। भारत में तो प्राचीन काल से ही उच्च शिक्षा के वैश्विक केंद्र थे। अंग्रेजी राज में जरूर भारत में उच्च शिक्षा का प्रसार स्वदेशी को अनदेखा करके हुआ था। इसी कारण 1968 में डा. दौलत सिंह कोठारी को प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति की प्रस्तावना में लिखना पड़ा था कि दुर्भाग्य से भारत की शिक्षा व्यवस्था भारत केंद्रित न होकर यूरोप केंद्रित है। </p><p><br></p><p>उस यूरोप केंद्रित शिक्षा से राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 ने एक बड़ी हद तक मुक्ति दिलाई। इस नीति का बल जीवन निर्माण पर है। उसमें जीवन के निर्माण के लिए ज्ञान की उसी गरिमा को स्थापित करने की आकुलता दिखती है। स्वामी विवेकानंद ने यथार्थ ही कहा था कि जिससे हम अपना जीवन निर्माण कर सकें, मनुष्य बन सकें और विचारों से सामंजस्य कर सकें, वही वास्तविक शिक्षा है।</p><p><br></p><p>दिल्ली के तीन केंद्रीय विश्वविद्यालयों से लेकर विश्वभारती विश्वविद्यालय और शांतिनिकेतन तक ऐसे अनेक विद्या केंद्र हैं, जो उच्च शिक्षा में गुणवत्ता को लेकर उठने वाले प्रश्नों को समझने का यत्न करते हैं। वे गुणवत्ता के नाम पर विदेशी मानकों का अंधानुकरण नहीं करते। जहां तक विदेशी विश्वविद्यालयों के भारत में परिसर खोलने से उच्च शिक्षा में गुणवत्ता और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बढ़ने, शोध एवं नवाचार को प्रोत्साहन की बात कही जा रही है तो हाल में घोषित क्वाक्वेरेली साइमंड्स की एशिया यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2024 की सूची देखने से ही स्पष्ट है कि भारत के विद्या केंद्र गुणवत्ता में कितने आगे हैं।</p><p><br></p><p>पिछले साल की तरह दिल्ली विश्वविद्यालय, आइआइएससी बेंगलुरु और पांच भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों-बांबे, दिल्ली, मद्रास, खड़गपुर और कानपुर ने एशिया के शीर्ष 100 संस्थानों में स्थान हासिल किया है। रैंकिंग विश्वविद्यालयों की संख्या में भारत ने चीन को पछाड़ दिया है। रैंकिंग के अनुसार भारत अब 148 विशिष्ट विश्वविद्यालयों के साथ सबसे अधिक प्रतिनिधित्व वाली उच्च शिक्षा प्रणाली है।</p><p><br></p><p>ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि भारत सरकार ने विदेशी विश्वविद्यालयों के परिसर देश में खोलने का जो आवेग दिखाया है, वही आवेग उसे दिल्ली विश्वविद्यालय और शांतिनिकेतन जैसे विद्या केंद्रों के परिसर देश के विभिन्न राज्यों में स्थापित करने के लिए क्यों नहीं दिखाना चाहिए? दिल्ली में प्रवेश के इच्छुक छात्रों की भीड़ हर साल बढ़ती जा रही है। जाहिर है इसकी वजह यहां शिक्षा की गुणवत्ता है। यहां पर्याप्त ज्ञानी, अनुभवी एवं गुणी शिक्षक हैं और सुविधाओं और संसाधनों की भी उपलब्धता है। ऐसे में यदि देश के विभिन्न इलाकों में दिल्ली विश्वविद्यालय के परिसर खुलेंगे तो जाहिर है कि वहां और आसपास के प्रवेशार्थी विद्यार्थियों की भीड़ को वहीं रोककर उनका बहुत उपकार किया जा सकेगा।</p><p><br></p><p>दिल्ली की तरह पूरे भारत में अनेक ऐसे विश्वविद्यालय हैं जो उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीय मंच के रूप में विकसित हो रहे हैं। तभी तो भारत की शिक्षा व्यवस्था को बार-बार अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति मिलती रही है। यूनेस्को द्वारा इस वर्ष शांतिनिकेतन को विश्व विरासत स्थल घोषित करना गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की शिक्षा व्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति ही है। यहां 1921 में शुरू हुए विश्व भारती विश्वविद्यालय में रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय धर्म, दर्शन, ज्ञान, साहित्य, संगीत और कला के साथ ही एशिया एवं यूरोप की भाषाओं और साहित्य के अध्ययन और अनुसंधान की यथोचित व्यवस्था की थी। रवींद्रनाथ टैगोर की आकांक्षा थी कि भारतीय संस्कृति में जिस सर्वधर्म का मिलन हुआ है, उसकी प्रत्येक धारा का विशद अध्ययन और अनुसंधान विश्व भारती में हो। संतोष का विषय है कि शांतिनिकेतन में वैसा ही हुआ।</p><p><br></p><p>उच्च शिक्षा को वैश्विक और स्थानीय दोनों ही तरह के सरोकारों से जोड़ना चाहिए और विशिष्ट ज्ञान क्षेत्रों में उत्कृष्टता की ओर अग्रसर भारतीय ज्ञान केंद्रों का विस्तार करना चाहिए। भारत के कई विद्या केंद्र ज्ञान के सृजन, संवर्धन और संरक्षण में जुटे हैं और वे उन योग्यताओं एवं क्षमताओं के निर्माण का भी दायित्व बखूबी निभा रहे हैं, जो समाज के संचालन के लिए अपरिहार्य होती हैं। अतः गुणवत्तापरक शिक्षा के लिए विख्यात भारतीय विद्या केंद्रों के विस्तार के लिए संसाधनों की व्यवस्था को प्राथमिकता देनी चाहिए। बजट में शिक्षा का हिस्सा यह ध्यान में रखते हुए बढ़ाना चाहिए कि देश के विभिन्न राज्यों में विख्यात भारतीय विश्वविद्यालयों के परिसर खोलने से ज्ञान के नए क्षितिज उदित होंगे।</p><p><br></p><p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhqQdxXvAAAzUaJSnjjcMS6gn6-_f9hKtUeA-bc_8vfuWXCyRhlloRV0lXxArZJAyqFYBqzvioDRFBEdjniwLyrJ5qS1hFBMocZjQT3MLWsgBmzXdY_Gu2PrlDky0dgCJTRYfSslA-nLgy7Ir9oLW4tS_kwN10htxrIN7B9L8yxuQYqBji1y5dR5p-aHqo" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhqQdxXvAAAzUaJSnjjcMS6gn6-_f9hKtUeA-bc_8vfuWXCyRhlloRV0lXxArZJAyqFYBqzvioDRFBEdjniwLyrJ5qS1hFBMocZjQT3MLWsgBmzXdY_Gu2PrlDky0dgCJTRYfSslA-nLgy7Ir9oLW4tS_kwN10htxrIN7B9L8yxuQYqBji1y5dR5p-aHqo" width="400">
</a>
</div><br></p><p><strong>✍️ कृपाशंकर चौबे</strong><br></p><p><strong>(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में प्रोफेसर हैं)</strong></p></div></div></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-70321820671359517672023-11-14T08:10:00.001+05:302023-11-14T08:11:47.970+05:30दीपावली पर्व के जरिए बच्चों को दी जा सकने वाली 10 प्रमुख सीखें<div><div><br></div><div><b>दीपावली पर्व के जरिए बच्चों को दी जा सकने वाली 10 प्रमुख सीखें </b></div><div><br></div><div><br></div><div><i>दीपावली हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्योहार है। इसे प्रकाश का त्योहार भी कहा जाता है। इस त्योहार के जरिए बच्चों को कई महत्वपूर्ण सीख दी जाती हैं, जो उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं।</i></div><div><br></div><div><br></div><div><b>1. बुराई पर अच्छाई की जीत</b></div><div><br></div><div>दीपावली के त्योहार में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस त्योहार के जरिए बच्चों को बताया जाता है कि बुराई हमेशा हारती है और अच्छाई हमेशा जीतती है। यह सीख बच्चों को जीवन में साहस और दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>2. शुद्धता और पवित्रता</b></div><div><br></div><div>दीपावली के त्योहार में घरों को साफ-सुथरा करके सजाया जाता है। इस त्योहार के जरिए बच्चों को बताया जाता है कि शुद्धता और पवित्रता जीवन के लिए बहुत जरूरी है। यह सीख बच्चों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करती है और उन्हें नैतिक मूल्यों के प्रति प्रेरित करती है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>3. एकता और भाईचारा</b></div><div><br></div><div>दीपावली के त्योहार में लोग एक-दूसरे के घर जाकर मिठाई और उपहार बांटते हैं। इस त्योहार के जरिए बच्चों को बताया जाता है कि एकता और भाईचारा जीवन के लिए बहुत जरूरी है। यह सीख बच्चों को दूसरों के प्रति सम्मान और प्रेम की भावना विकसित करने में मदद करती है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>4. दान और परोपकार</b></div><div><br></div><div>दीपावली के त्योहार में लोग गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते हैं। इस त्योहार के जरिए बच्चों को बताया जाता है कि दान और परोपकार करना बहुत जरूरी है। यह सीख बच्चों को दूसरों की मदद करने और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करती है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>5. खुशियां और उल्लास</b></div><div><br></div><div>दीपावली के त्योहार में लोग खुशियां और उल्लास मनाते हैं। इस त्योहार के जरिए बच्चों को बताया जाता है कि खुश रहना और दूसरों को खुश करना बहुत जरूरी है। यह सीख बच्चों को जीवन में सकारात्मक सोच और दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करती है।</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgBlK0P-bWgSorsYhKIsg555jVYMQrbykY0Nt1gTM8Z7vwpfF_4INIepmuRSs9cChuwTYEnTxXgiYCMHv8_VFtIMR21DHktqhe57tZ--CoiIIQWJzrH0MyAWm5Gg1fzJoaj-7VFn5CX9F1N8mArkl-pG2i7HWvlnXk3M0UYfLydsJ5II0Kb-PjJMr2bDLw" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgBlK0P-bWgSorsYhKIsg555jVYMQrbykY0Nt1gTM8Z7vwpfF_4INIepmuRSs9cChuwTYEnTxXgiYCMHv8_VFtIMR21DHktqhe57tZ--CoiIIQWJzrH0MyAWm5Gg1fzJoaj-7VFn5CX9F1N8mArkl-pG2i7HWvlnXk3M0UYfLydsJ5II0Kb-PjJMr2bDLw" width="400">
</a>
</div><br></div><div><br></div><div><b>6. संस्कार और संस्कृति</b></div><div><br></div><div>दीपावली के त्योहार के जरिए बच्चों को हिन्दू धर्म के संस्कार और संस्कृति से अवगत कराया जाता है। यह सीख बच्चों को अपने धर्म और संस्कृति के प्रति सम्मान और प्रेम की भावना विकसित करने में मदद करती है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>7. पर्यावरण संरक्षण</b></div><div><br></div><div>दीपावली के त्योहार में मिट्टी के दीये और अन्य पर्यावरण-अनुकूल सामग्रियों का उपयोग किया जाता है। इस त्योहार के जरिए बच्चों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाता है। यह सीख बच्चों को प्रकृति के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना विकसित करने में मदद करती है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>8. आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता</b></div><div><br></div><div>दीपावली के त्योहार के अवसर पर बच्चे कई प्रकार के कार्यों को स्वयं करना सीखते हैं। यह सीख बच्चों को आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता विकसित करने में मदद करती है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>9. कला और सृजनशीलता</b></div><div><br></div><div>दीपावली के त्योहार के अवसर पर बच्चे कई प्रकार की कलाकृतियां बनाते हैं। यह सीख बच्चों की कला और सृजनशीलता को विकसित करने में मदद करती है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>10. सामाजिक जिम्मेदारी</b></div><div><br></div><div>दीपावली के त्योहार के जरिए बच्चों को सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति जागरूक किया जाता है। यह सीख बच्चों को समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करती है।</div><div><br></div><div><br></div><div><i>इन 10 प्रमुख सीखों के जरिए दीपावली का त्योहार बच्चों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद कर सकता है।</i></div><div><b><br></b></div><div><b><br></b></div><div><b><br></b></div><div><b>✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी</b></div><div>शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित</div><div>फतेहपुर</div></div><div><b><br></b></div><div><b><div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" width="400"></a></div><br></b></div><div><b>परिचय</b></div><div><b><br></b></div><div><i>बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "<b><a href="https://www.praveentrivedi.in/">प्रवीण त्रिवेदी</a></b>" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>शिक्षा विशेष रूप से "<b>प्राथमिक शिक्षा</b>" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "<a href="http://blog.primarykamaster.com/">प्राइमरी का मास्टर</a>" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।</i></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-145413127220836872023-11-13T07:03:00.000+05:302023-11-13T07:03:33.949+05:30सब बच्चों को मिले व्यावसायिक शिक्षा<b>सब बच्चों को मिले व्यावसायिक शिक्षा</b><div><br></div><div><br></div><div><b><i>स्कूल के पाठ्यक्रमों में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल करने पर जोर दिया जा रहा है, क्योंकि ज्यादातर बच्चों के लिए स्कूल पूरा करने के बाद लाभकारी काम मायने रखता है।<br></i></b></div><div><br></div><div><br></div><div><div><br></div><div><br></div><div>भारत के स्कूली पाठ्यक्रमों में व्यावसायिक शिक्षा (वीई) को शामिल करने की वकालत 'स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा, 2023 (एनसीएफ) करता है। क्यों? क्योंकि, ज्यादातर बच्चों के लिए स्कूल पूरा करने के बाद लाभकारी काम मायने रखता है। इतना ही नहीं, जिन जरूरतमंदों को स्कूल के तुरंत बाद काम करने की जरूरत नहीं है, वे भी ऐसी शिक्षा से हासिल ज्ञान से बेहतर भविष्य की बुनियाद तैयार कर सकेंगे।</div><div><br></div><div><br></div><div> इस राह में एनसीएफ को तीन चुनौतियां से निपटना होगा। पहली, व्यावहारिक रूप से यह कैसे संभव हो सकेगा ? दूसरी, मुख्यधारा की शिक्षा में सफल नहीं हो सकने वाले बच्चों के लिए व्यावसायिक शिक्षा को लेकर सामाजिक दृष्टिकोण किस तरह बनाया जाएगा ? और तीसरी, व्यावसायिक शिक्षा के प्रति भारतीय शिक्षा में मौजूद 'दार्शनिक पूर्वाग्रह' से कैसे निपटा जाएगा? एनसीएफ द्वारा इनसे पार पाने की बात कही गई है, पर यहां 'दार्शनिक पूर्वाग्रह' को समझना कहीं अधिक जरूरी है, क्योंकि इस पर बहुत कम चर्चा होती है।</div><div><br></div><div><br></div><div>दरअसल, स्कूली शिक्षा में बौद्धिकता की वकालत करने वाले नीति-नियंता यही मानते रहे हैं कि स्कूलों का लक्ष्य अच्छे इंसानों का विकास करना होना चाहिए, साथ ही उसे एक न्यायपूर्ण और मानवीय स्वभाव वाले समाज व एक जीवंत लोकतंत्र विकसित करना चाहिए। इस मत में निहित अंतर्विरोधों के बावजूद शिक्षा के आर्थिक लक्ष्य को, यानी छात्रों को व्यवसाय के लिए तैयार करना, प्राथमिकता से हटा दिया गया है। धारणा यह रही है कि अन्य सभी शिक्षाएं वैसे भी छात्रों को नौकरियों के लिए ही तैयार करती हैं; कि व्यावसायिक शिक्षा के माध्यम से बाजार शिक्षा पर नियंत्रण कर लेता है; कि कई परोक्ष, तो कुछ प्रत्यक्ष रूप से व्यावसायिक शिक्षा के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होते।</div><div><br></div><div><br></div><div>तो, सवाल यह है कि एनसीएफ आखिर कैसे व्यावसायिक शिक्षा को आगे बढ़ाएगा? असल में, सभी छात्र स्कूली शिक्षा की शुरुआत से ही व्यावसायिक शिक्षा लेने लगेंगे। बुनियादी और प्रारंभिक चरणों में (कक्षा 5 तक) खेल व अन्य गतिविधियों के माध्यम से उम्र के अनुकूल ऐसी क्षमताएं पैदा की जाएंगी, जो काम के आधार होंगे। जैसे- किसी उपकरण पर सुरक्षित नियंत्रण बनाना या किसी काम को पूरा करने के लिए एकाग्र होना आदि। मध्य चरणों में, यानी कक्षा छह से आठ तक, सभी छात्रों को व्यवसायों की एक विस्तृत श्रृंखला से परिचय कराया जाएगा और प्रोजेक्ट के माध्यम से कई प्रकार के कामों की नींव तैयार की जाएगी। </div><div><br></div><div><br></div><div>कक्षा नौ और दस में, सभी छात्र-छात्राओं को कुछ खास व्यवसाय सीखने होंगे। उल्लेखनीय है कि कक्षा छह से लेकर दस तक व्यावसायिक शिक्षा का महत्व गणित या विज्ञान की तरह ही होगा। इसे समय- सारणी में शामिल किया जाएगा और बच्चों का उचित मूल्यांकन भी होगा। दसवीं की बोर्ड परीक्षा में भी इसे शामिल किया जाएगा। 11वीं और 12वीं कक्षा में छात्र किसी एक या दो व्यवसायों में विशेषज्ञता ले भी सकता है और नहीं भी। </div></div><div><br></div><div><br></div><div>प्रभावी व्यावसायिक शिक्षा के लिए जरूरी है कि भाषा, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, गणित जैसे अन्य विषयों में भी असरकारी शिक्षा मिले। व्यावसायिक क्षमताओं को उन तमाम कौशल, ज्ञान और मूल्यों के साथ जोड़ना होगा, जो स्कूली शिक्षा विकसित करते हैं। जैसे- क्रिटिकल थिंकिंग, संचार और सीखने- सिखाने की क्षमताएं। ये सभी व्यवसाय की दुनिया में समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div>एनसीएफ दो जरूरतों को संतुलित करता है। बेशक, यह इसे निर्धारित नहीं कर सकता कि किस स्कूल में कौन से खास व्यवसाय की शिक्षा मिलनी चाहिए, क्योंकि व्यवसाय के तमाम रूप हैं, लेकिन इसे सभी छात्र-छात्राओं के लिए समान ढांचा मुहैया कराना होगा, जिसके लिए व्यवसायों का वर्गीकरण किया जा सकता है। इसमें ऐसे व्यवसाय एक साथ रखने होंगे, जिनमें बुनियादी रूप से समान तत्व हों और समान क्षमता व ज्ञान की आवश्यकता होती हो। इसमें तीन श्रेणियां हैं- पौधों, जीव व जंतु जैसे सजीवों से जुड़ा काम, सामग्री व मशीनों के साथ काम और मानव सेवा प्रदान करने का काम छात्र-छात्राओं की आकांक्षाओं, स्थानीय प्रासंगिकता और अवसरों की हकीकत (नए और उभरत व्यवसाय) को ध्यान में रखकर उनके लिए उचित व्यवसाय का चयन किया जाना चाहिए।</div><div><br></div><div><br></div><div>व्यावसायिक शिक्षा को लेकर एनसीएफ कुछ महत्वपूर्ण विचारों को भी स्वीकार करता है। व्यवसायों के लिए न सिर्फ उचित क्षमताओं की जरूरत होती है, बल्कि मूल्यों और ज्ञान की भी दरकार होती है, जो तमाम व्यावसायिक शिक्षा विकसित करते हैं। इसे कौशल प्रशिक्षण के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। वास्तव में, क्षमताएं व्यापक, गहरी और जटिल मानवीय योग्यताओं को समेटे होती हैं, जिनमें कई कौशल शामिल हो सकते हैं। मसलन, फसलों की उचित सिंचाई एक ऐसी क्षमता है, जिसके लिए ढलानों को समझने, खाई बनाने और यह जानने का कौशल होना चाहिए कि कितना व कब पानी देना है।</div><div><br></div><div><br></div><div>जाहिर है, सभी छात्र-छात्राओं को प्राथमिक क्षेत्र से लेकर तमाम सेवाओं तक व्यवसायों की पूरी श्रृंखला से अवगत कराया जाना होगा, ताकि भविष्य के व्यवसाय- विकल्पों के लिए आधार तैयार होने के साथ-साथ सभी प्रकार के कार्यों के लिए सम्मान की भावना पैदा हो। व्यावसायिक शिक्षा के छात्र-छात्राओं को यह सिखाना होगा कि अपने हाथों से कैसे काम करें और इसे पर्याप्त महत्व देना सीखें।</div><div><br></div><div><br></div><div>हमारे लाखों बच्चे पहले से ही अपने घरों व समाज में किसी न किसी काम में लगे हुए हैं। जीवन के ऐसे अनुभव अमूल्य होते हैं और इनको एक संसाधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है। मौजूदा सामाजिक विषमताओं का समाधान निकालना होगा। स्कूलों को विशिष्ट समुदायों या लैंगिक आधार पर व्यवसाय की पहचान करने से बचना होगा। शिक्षा को असमानता नहीं, समानता लाने का माध्यम बनना चाहिए।</div><div><br></div><div><br></div><div>हमारे स्कूलों को वास्तविकता पहचानकर, स्कूल व आसपास उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके ही व्यावसायिक शिक्षा लागू करनी होगी। इसमें अन्य विषयों के शिक्षकों को प्रशिक्षित करना भी शामिल है। अच्छी स्कूली शिक्षा से अच्छे इंसान और अच्छे समाज का विकास होता है। आर्थिक खुशहाली इसी का एक अभिन्न अंग है। एनसीएफ इसी वास्तविकता को स्कूलों में उचित स्थान देता है।</div><div><br></div><div><br></div><div><i>(ये लेखक के अपने विचार हैं)</i></div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjJ8aOIxeIhJWShObGpiXbfX9QbFvy20OQNTNABOGXTR2he7gTKX2i6pPyz1KbHOpBwlSKk_ApDVeduCCjhP3-VBcNg91m6DYXosxTx1RcxIeKXozLhQyXfUvI9tHrmFzJjHmUO1bpIQDhxRe84s6hV0PNOtDIXhFClOl62-N0YhFgdtCBv7ZQhDz_o_jM" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjJ8aOIxeIhJWShObGpiXbfX9QbFvy20OQNTNABOGXTR2he7gTKX2i6pPyz1KbHOpBwlSKk_ApDVeduCCjhP3-VBcNg91m6DYXosxTx1RcxIeKXozLhQyXfUvI9tHrmFzJjHmUO1bpIQDhxRe84s6hV0PNOtDIXhFClOl62-N0YhFgdtCBv7ZQhDz_o_jM" width="400">
</a>
</div><b><br></b></div><div><b>✍️ लेखक : अनुराग बेहर</b></div><div><b>सीईओ, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन</b></div><div><br></div><div><br></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-72065494253773278762023-11-10T07:14:00.002+05:302023-11-10T07:15:36.506+05:30नई बनाम पुरानी पेंशन विवाद को जल्दी सुलझाना चाहिए<div class="brd-crum"><span class="brd-crum-last"><b>नई बनाम पुरानी पेंशन विवाद को जल्दी सुलझाना चाहिए</b></span></div><div id="vdo-ad"></div><div><br></div><div><br></div>नई बनाम पुरानी पेंशन विवाद को जल्दी सुलझाना चाहिए राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) का बचाव बनाम पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की मांग को लेकर सियासी तलवार खींची हुई है, जिसका श्रेय हालिया विधानसभा चुनावों को जाता है। <div><br><div><div class="stry-cnt" data-nid="8958871"><div id="first-story-body"><div class="storyclass-8958871"><div class="stry-bdy"><p>ओपीएस के वादे के लिए जिसे जिम्मेदार माना जा रहा है, वह है 2022 में हिमाचल प्रदेश चुनावों में कांग्रेस को मिली जीत। नई सरकार ने कार्यभार संभालने के तुरंत बाद अपना यह वादा पूरा किया। मगर कांग्रेस को मिली उस जीत का एकमात्र श्रेय ओपीएस को देना सही नहीं है। </p><p><br></p><p>गौर करने की बात है, नई पेंशन योजना की शुरुआत 1 जनवरी, 2004 को हुई थी, तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार सत्ता में थी। क्या नई पेंशन योजना के कारण ही उस आम चुनाव में राजग को हार मिली थी? मैं ऐसा नहीं मानता, क्योंकि चुनावी नतीजे भावनात्मक मुद्दों से कहीं अधिक प्रभावित होते हैं। अभी पुरानी पेंशन को ‘जन-समर्थक’ और नई पेंशन को ‘जन-विरोधी’ बताकर जनता का मूड बदलने का प्रयास हो रहा है।</p><p><br></p><p> पुरानी पेंशन की वापसी होती है, तो यह राजकोष पर भारी पड़ेगा। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं कि नई पेंशन को लेकर जो मसले सामने आए हैं, उनसे निपटने के लिए योजना में बदलाव न किए जाएं, या राजनीतिक हल के रूप में पुरानी और नई पेंशन की मिली-जुली व्यवस्था लागू न की जाए।<br><br></p><p>हालांकि, आंध्र प्रदेश सरकार ने पुरानी पेंशन योजना का मूल्यांकन किया है, जिससे पता चलता है कि केवल सात वर्षों में राज्य का सारा राजस्व वेतन और पेंशन में खत्म हो जाएगा। यह गणना कमोबेश सभी राज्यों पर लागू होती है। 1990-91 में पेंशन पर अपनी हिस्सेदारी के रूप में राज्यों को अपने राजस्व का 7.9 प्रतिशत हिस्सा खर्च करना पड़ता था, जो 2020-21 में बढ़कर 27.4 प्रतिशत हो गया। जबकि, पुरानी और नई, दोनों पेंशन योजनाएं देश के कुल श्रम-बल की बमुश्किल 3.2 प्रतिशत आबादी को लाभ पहुंचाती हैं, मगर सामूहिकता में सरकारी राजस्व पर 18 फीसदी का बोझ डालती हैं।</p><p><br></p><p> वैसे, विकसित देशों में सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान कमोबेश सभी पर समान लागू है और उस पर सरकारों को बहुत कम राजस्व खर्च करना पड़ता है। अमेरिका में 65 वर्ष से अधिक उम्र का हर व्यक्ति बुनियादी पेंशन पाता है, मगर सरकारी सामाजिक सुरक्षा कोष में सभी कामकाजी लोगों से योगदान लिया जाता है। आकार के हिसाब से, सामाजिक सुरक्षा पर 15 फीसदी सरकारी राजस्व खर्च होता है, पर करीब 94 फीसदी कार्य-बल को इसका लाभ मिलता है। ब्रिटेन में करीब सभी को पेंशन का लाभ मिलता है, जबकि सरकारी राजस्व पर महज 12.6 प्रतिशत का बोझ पड़ता है। क्या ऐसा ही भारत में भी हो सकता है? <br></p><p><br></p><p>फिलहाल देश में मतदाताओं का एक विशाल बहुमत पुरानी पेंशन बनाम नई पेंशन से प्रभावित नहीं है, पर वह पेंशन संबंधी उग्र प्रचार अभियानों से प्रभावित हो सकता है। एक मिसाल हिमाचल प्रदेश है। हिमाचल प्रदेश की जनसांख्यिकी कुछ अलग है, जिसमें लगभग हर घर में कम से कम एक सदस्य सरकार या सशस्त्र बलों के लिए काम करता है। जाहिर है, यह समूह पुरानी पेंशन योजना की राजनीति को तरजीह देता है। फिर भी, चुनाव में जीत की एकमात्र वजह के रूप में इसकी भूमिका संदिग्ध है। कोई शक नहीं, पुरानी पेंशन चाहने वाले लाभार्थियों का छोटा, मगर मुखर और बहुत संगठित समूह बहुत सक्रिय है। </p><p><br>एक और पहलू है कि ऋण भुगतान अनुपात के आधार पर देखें, तो भारत प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अलग है। इसके जीडीपी में ऋण से जीडीपी अनुपात बहुत अधिक है, समग्र ऋण को देखें, तो इस पर सामाजिक सुरक्षा के कारण वस्तुत: कोई बोझ नहीं है। यह कहना सही नहीं है कि हम लोगों को सड़क पर ले आएंगे। चूंकि देश में अधिक युवा पैदा होंगे, तो प्रति-व्यक्ति कर का बोझ भी कम होगा। आने वाले समय में भारतीयों की औसत उम्र तेजी से बढ़ेगी। अभी देश को सभी बुजुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा के व्यापक न्यूनतम कवच के साथ एक पूर्ण वित्त पोषित पेंशन प्रणाली की जरूरत है। ऐसा करने के लिए पहले पुरानी पेंशन के विवाद से जल्दी उबरना पड़ेगा। </p><p>(ये लेखक के अपने विचार हैं) </p><p><br></p><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEghYbFpG-Z3Qe2qQK2lvDhqL5tXiOaekUcb_uQN4oh47dFoMMrQsYGpyIYiVxpQHFUY2Cy5ecwCWjvs1eRlk2JDoyqqnHqsdzqg5-4r7rNXb-bi3SFOrgB3scGF8lNyyvjVELaz2vfFOsPWx6IadlSvqQzAjtPHu1wzDTGEI-pdt954sEpzwPPW8uukqZw" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEghYbFpG-Z3Qe2qQK2lvDhqL5tXiOaekUcb_uQN4oh47dFoMMrQsYGpyIYiVxpQHFUY2Cy5ecwCWjvs1eRlk2JDoyqqnHqsdzqg5-4r7rNXb-bi3SFOrgB3scGF8lNyyvjVELaz2vfFOsPWx6IadlSvqQzAjtPHu1wzDTGEI-pdt954sEpzwPPW8uukqZw" width="400">
</a>
</div><br><p></p><p><b>✍️ अजीत रानाडे, अर्थशास्त्री</b> </p></div></div></div></div></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-31553478222843743002023-11-09T04:28:00.000+05:302023-11-09T04:28:53.858+05:30शिक्षक की आवाज सुनी जानी जरूरी है<div><b>शिक्षक की आवाज सुनी जानी जरूरी है</b></div><div><br></div><div><br></div><div>आज जबकी देश को आजाद हुए 70 वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं, यह समय बहुत ज्यादा नहीं तो काम भी नहीं है भारतीय समाज में विविधताओं का समावेश है, जिसे समझने के लिए एक अंतर्दृष्टि की आवश्यकता है, इसके लिए शैक्षिक परिदृश्य का अवलोकन करना जरूरी होता है। </div><div><br></div><div>बौद्धिक वैदिक काल से ही हमारी सभ्यता का शैक्षिक स्तर समृद्ध रहा है, शिक्षा के संदर्भ में उसके स्तंभों में से एक महत्वपूर्ण शिक्षक के गुण और उसके व्यवहार ,शिक्षण विधि उसके प्रभाव तथा कार्यों की विस्तृत व्याख्या की गई है। यह औपचारिक शिक्षा प्रणाली का कल था ,बाद में उपनिवेशवादी शिक्षा के दौर में गुणात्मक से यह परिणात्मक हो गया। अग्रिम समय में समय-समय पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति, आयोग का गठन मे शिक्षा और शिक्षक प्रणाली में बदलाव के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा पर जोर दिया गया । </div><div><br></div><div>इस क्रम में 2002 में निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकार अनुच्छेद 21 ए में सम्मिलित करके इसे व्यापक रूप में अंतिम स्तर तक पहुंचाने का प्रयत्न किया गया। आज भी देश में लगभग 30% जनसंख्या अनपढ है यह एक बहुत बड़ा शैक्षिक असंतुलन का आंकड़ा है, इस जरूरी आंकड़े के अध्ययन के फल स्वरुप और बदलते समय समाज कार्य प्रणाली के मद्देनजर NEP 2020 में शिक्षा के संदर्भ में आमूल चूल परिवर्तन की अवधारणा समाहित की गई है । </div><div><br></div><div>इस समय में साक्षर बनाने की अपेक्षा सामाजिक और मानवीय भावनात्मक कौशलों के विकास की संकल्पना की गई है जिसे 2030 तक स्कूली शिक्षा का सर्वव्यापीकरण पूर्ण हो सके ,जिस प्रकार शिक्षा एक अंतहीन प्रक्रिया है इस प्रकार शिक्षण भी एक अंतहीन प्रक्रिया है,जिसे एक शिक्षक पूरी उम्र तक सीखता रहता है । </div><div><br></div><div><br></div><div><i>एक शिक्षक की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण तब हो जाती है जब आज की पीढ़ी जितनी कुशल व अधतन है ,उससे कहीं अधिक स्थिर और विश्वास रहित है इन्हें ही तराश कर देश के कर्णधारों के रूप में शिक्षक देश को आगे बढ़ाने के लिए तैयार करता है, करेगा, करता रहेगा । यह एक बहुत ही सामान्य सी दिखने वाले किंतु बहुत ही महीन और कुशल कारीगरी की कला का परिणाम होता है, अतः शिक्षण/ शिक्षा एक कला है। क्षोभ इस बात का है कि आज शिक्षक को पेशेवर और शिक्षा को व्यवसाय के रूप में बदल दिया गया है,जिसे मशीनीकरण की तरफ धकेला जा रहा। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए सर्वांगीण गुनण संयुक्त शिक्षक की आवश्यकता होती है जिसके लिए शिक्षक की मानसिक स्थिति का सुदृढ़ होना अत्यंत जरूरी होता है। </i></div><div><br></div><div><br></div><div>एक शिक्षक सदैव विशेष होकर भी किसी विशेष समय सामग्री स्थान के भी अपने समस्त अनुभव विज्ञान को समाज को देने के लिए तरत्पर रहता है, एक शिक्षक उपनिवेशात्मक शिक्षा प्रणाली के दुष्प्रभावों से व्यथित हैं जिस प्रकार से शिक्षा का व्यवसाय किया जा रहा है उससे शिक्षक की प्रतिष्ठा नगण्य में हो गई है, यह किसी भी कल के लिए बहुत बड़ा कुठाराघात जैसा है, जब एक शिक्षक कम से कम संसाधनों में भी बेहतर करता है और उसे कुछ विशेष सुविधा न देकर सामाजिक जीवन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां के लिए दिए जाने वाले वित्तीय संदर्भ तथा अन्य आवश्यक संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा हो तब यह कष्टदायक होने के साथ-साथ ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चलाने जैसा कार्य हो सकता है। </div><div><br></div><div><br></div><div><i>शिक्षा सदैव मानसिक स्थिति और मन का वरण करती है यदि एक शिक्षक को अत्यंत आवश्यक जरूरत के लिए भी वंचित रखा जाएगा तो शिक्षा और शिक्षण कभी नहीं हो सकता है, और ऐसा करके कोई भी सरकार दिखावा मात्र ही करती है। जिस तरह से शिक्षा के संदर्भ में आज शिक्षकों को मशीन मांग कर शिक्षणेत्तर कार्यों को कराया जा रहा है तथा काम के समय तथा कार्यों का भार संतुलित नहीं है अधिकारी व सरकारी मनमानी आदेश आदेश लादकर शिक्षकों को उनके स्वयं के संसाधनों के प्रयोग के लिए विवश कर रहे हैं,किसी भी प्रकार की सुरक्षा चाहे वह जीवन स्वास्थ्य या सम्मान हो उससे पल्ला झाड़ कर ठेंगा दिखा रहे हैं तब भी अपनी जिम्मेदारी निभाते हुआ एक शिक्षक रोशनी की मसाज लिए खड़ा है । यह जानते हुए भी की जो आने वाली पीढियां में रोशनी भरने का काम कर रहा है उसके बुढ़ापे में सरकारों ने अंधेरा भर दिया है। </i></div><div><br></div><div><br></div><div>आज उसे इससे भी बड़ा डर है कि कहीं सबसे महत्वपूर्ण समय में उसे 50 साल में जब सबसे ज्यादा जिम्मेदारियां का बोझ होता है जबरन उसे बाहर करके उसके पेशे से वंचित न कर दिया जाए नौकरशाही और लाल फीता शाही जैसे आदेशों में पढ़कर जान पड़ता है कि अधिकारी/ उच्च अधिकारी शिक्षकों से किस तरह से अपनी भाषा शैली की अव्यवहारिकता से पेश आ रहे हैं, आज शिक्षक उद्वेलित एवं अंर्तदद्ध से भरा है वह स्वयं अस्थिर हो रहा है क्योंकि उसके कार्य सम्मान की अस्मिता पर अधिकारियों/ सरकारों द्वारा लगातार प्रश्न चिन्ह लगाया जा रहा है । </div><div><br></div><div>यह मेरे अनुभव में आ रहा है कि आज भारतीय समाज में शिक्षक एक असंतोषपूर्ण दौर में है यह उसके पद प्रतिष्ठा व सम्मान पर कुठाराघात का ही परिणाम है, सरकारों को चाहिए की नीतियों में शिक्षकों को शामिल करें, उनके विचारों को सम्मिलित करें उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हर कदम को उठाए जिससे वह समाज की आवश्यकता अपेक्षाओं को पूर्ण करने में सक्षम बन सके, यह तभी संभव है जब सरकारी/अधिकारी व समाज अपने शिक्षकों पर विश्वास करेंगे। </div><div><br></div><div><i>विश्वास विहीन शिक्षा /शिक्षक और शिक्षण किसी भी देश /समाज और कर्णधार का निर्माण नहीं कर सकते हैं । एक शिक्षक किसी भी देश का प्रतिबिंब होता है। </i></div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhAvPMXintFLxgYi7P8epLUBgPyWDNfrkNaMuJ16tQ80TpESijV3HjEX9sW4WYulWq2JLlRWEfhxCxReZAbXDqTgnNaAJgI2BorfDYYnIBb3htJ0jQ_2Wbq8vC7OEg_5eCnq9cB-qjCJbgJwk13QrcMun1QIfiXRXdyJweRY_vuMxpy8yk9MPj7h-GfcEc" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhAvPMXintFLxgYi7P8epLUBgPyWDNfrkNaMuJ16tQ80TpESijV3HjEX9sW4WYulWq2JLlRWEfhxCxReZAbXDqTgnNaAJgI2BorfDYYnIBb3htJ0jQ_2Wbq8vC7OEg_5eCnq9cB-qjCJbgJwk13QrcMun1QIfiXRXdyJweRY_vuMxpy8yk9MPj7h-GfcEc" width="400">
</a>
</div><br></div><div><b>✍️ लेखक : भूपेन्द्र कुमार त्रिपाठी "प्रयागराज से नवीन"</b></div><div><br></div><div><div><i>लेखक वर्तमान मे अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। शिक्षा के साथ विभिन्न क्षेत्र में जैसे, प्राथमिक स्वास्थ्य, विकलांगता व कारपोरेट सेक्टर मे कार्य करने का वृहद अनुभव रहा है। लेखन कार्य हेतु जब जहाँ संवेदना का प्रस्फुरण होता है, लेखनी से साध लेते हैं, जो विगत कई वर्षो से जारी है।</i></div><div><br></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-51542156127740807702023-11-08T04:22:00.001+05:302023-11-08T04:23:54.142+05:30आखिर! कैसी हो बच्चों के लिए भाषा? <div><br></div><div><b>आखिर! कैसी हो बच्चों के लिए भाषा? </b></div><div><br></div><div><br></div><div>लेखक अमृतलाल नागर ने बच्चों के लिए लिखी जाने वाली भाषा पर एक महत्वपूर्ण नोट लिखा है। उनका मानना है कि बच्चों के लिए लिखने वाले लेखकों को बच्चों के मनोविज्ञान को समझना चाहिए। उन्हें बच्चों के साथ दोस्त की तरह बात करनी चाहिए, न कि गुरु या अभिभावक की तरह।</div><div><br></div><div><b><br></b></div><div><b>नागर के अनुसार, बच्चों के लिए लिखी जाने वाली भाषा में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:</b></div><div><br></div><div>⚫ भाषा सरल और सहज होनी चाहिए। बच्चों को ऐसी भाषा समझ नहीं आती है जो बहुत जटिल या अलंकृत हो।</div><div><br></div><div>⚫ भाषा बच्चों की जिज्ञासा को बढ़ावा देनी चाहिए। बच्चों को ऐसी भाषा पसंद आती है जो उन्हें नई चीजें सीखने के लिए प्रेरित करे।</div><div><br></div><div>⚫ भाषा बच्चों के अनुभवों से जुड़ी होनी चाहिए। बच्चों को ऐसी भाषा पसंद आती है जो उनके जीवन से जुड़ी हो।</div><div><br></div><div><br></div><div>नागर ने यह भी कहा कि बच्चों के लिए लिखने वाले लेखकों को बच्चों की दुनिया को समझने की कोशिश करनी चाहिए। उन्हें बच्चों के साथ बात करनी चाहिए, उनकी गतिविधियों में शामिल होना चाहिए, और उनकी भावनाओं को समझना चाहिए।</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgweAN9VE0bmq4xIHzjSrDcY211gFAVjdE5QZT90lN1hHFPO5kT6CfpqSMFdYUN6r5xGULkxxOLCuzu1KwvRQAlFFk1D2ZCFvPgYVDEo0wt6GQNEufJvkSwrsktm9b0cye2HreibcMYL6QBazq-dMG7MXrpjm9mb34NnDWu4jK88p6ZtEeA2s5tCoheAQY" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgweAN9VE0bmq4xIHzjSrDcY211gFAVjdE5QZT90lN1hHFPO5kT6CfpqSMFdYUN6r5xGULkxxOLCuzu1KwvRQAlFFk1D2ZCFvPgYVDEo0wt6GQNEufJvkSwrsktm9b0cye2HreibcMYL6QBazq-dMG7MXrpjm9mb34NnDWu4jK88p6ZtEeA2s5tCoheAQY" width="400">
</a>
</div><br></div><div><br></div><div><b><br></b></div><div><b>नागर के विचारों को ध्यान में रखते हुए, बच्चों के लिए भाषा लिखने के कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:</b></div><div><br></div><div>🟣 बच्चों की भाषा का उपयोग करें। बच्चों की अपनी एक अलग भाषा होती है। इस भाषा को समझने की कोशिश करें और अपने लेखन में इसका उपयोग करें।</div><div><br></div><div>🟣 बच्चों के लिए रोचक विषयों का चयन करें। बच्चों को ऐसे विषयों में रुचि होती है जो उन्हें रोमांचित या उत्साहित करते हैं। ऐसे विषयों का चयन करें जो बच्चों को आकर्षित करें।</div><div><br></div><div>🟣 बच्चों के लिए समझने योग्य शब्दों का उपयोग करें। बच्चों के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग करें जो वे समझ सकें। जटिल शब्दों और वाक्यों से बचें।</div><div><br></div><div>🟣 बच्चों के लिए आकर्षक तरीके से लिखें। बच्चों को ऐसे लेखन में रुचि होती है जो आकर्षक और रोचक हो। अपने लेखन में चित्र, चार्ट, और अन्य दृश्य तत्वों का उपयोग करें।</div><div><br></div><div><br></div><div><i>बच्चों के लिए भाषा लिखना एक चुनौतीपूर्ण काम है, लेकिन यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण काम भी है। बच्चों को अच्छी भाषा के संपर्क में आने से उनके मानसिक विकास में मदद मिलती है। बच्चों के लिए अच्छी भाषा लिखने वाले लेखक बच्चों के जीवन में सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।</i></div><div><br></div><div><br></div><div><div><div><b>✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी</b></div><div>शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित</div><div>फतेहपुर</div></div><div><b><br></b></div><div><b><div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" width="400"></a></div><br></b></div><div><b>परिचय</b></div><div><b><br></b></div><div><i>बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "<b><a href="https://www.praveentrivedi.in/">प्रवीण त्रिवेदी</a></b>" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>शिक्षा विशेष रूप से "<b>प्राथमिक शिक्षा</b>" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "<a href="http://blog.primarykamaster.com/">प्राइमरी का मास्टर</a>" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।</i></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-66787640137176496112023-10-29T16:19:00.002+05:302023-10-29T16:20:45.496+05:30AI शिक्षा के लिए चुनौती या अवसर?<strong>AI शिक्षा के लिए चुनौती या अवसर?</strong><div><strong><br></strong></div><div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style="font-weight: bold;"><i>आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के हल्ले के बीच यह चिन्तन जरूरी है कि क्या टेक्नोलॉजी वाकई समानता लाती है? क्या एआई के आने से वाकई शिक्षा क्षेत्र की सब समस्याएं छू मंतर हो जाएंगी?</i></div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style="font-weight: bold;">आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का शिक्षा क्षेत्र में एक बड़ा हल्ला है। एआई को शिक्षा को अधिक व्यक्तिगत, प्रभावी और सुलभ बनाने की क्षमता के लिए प्रशंसा की जाती है। हालांकि, एआई के आने से शिक्षा क्षेत्र की सभी समस्याएं छू मंतर हो जाएंगी, यह कहना सच नहीं है। एआई के कुछ लाभ और हानि हैं, जिन्हें ध्यान से समझने की आवश्यकता है।</div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style=""><b>एआई के शिक्षा क्षेत्र में कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:</b></div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style="font-weight: bold;"><b>व्यक्तिगत शिक्षा: </b>एआई का उपयोग छात्रों को उनकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं और सीखने की शैली के अनुसार शिक्षा प्रदान करने के लिए किया जा सकता है। इससे छात्रों को अधिक प्रभावी ढंग से सीखने में मदद मिल सकती है।</div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style=""><b>प्रभावशीलता:</b> एआई का उपयोग छात्रों को अधिक कुशलता से शिक्षा प्रदान करने के लिए किया जा सकता है। इससे शिक्षकों के समय और संसाधनों को बचाने में मदद मिल सकती है।</div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style=""><b>सुलभता: </b>एआई का उपयोग शिक्षा को अधिक सुलभ बनाने के लिए किया जा सकता है। इससे ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों के छात्रों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।</div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style="font-weight: bold;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEivk5gqSNRtaPmc-VP10LYqJsGhHVyMpG1q9cK5nuX7-1clH37zhWQZEx2DtUjLz2oTW3ts9ataSd1wxVgxCzMVJYAp7dlgeVa46b9vAGBZe0Nqs1PBbyIlO5LUvOfx-yZ8VdV44TNAZ6G4khjdXXonXylaf7ot9kvkdW6PcyGhmLJdhTBg26f3nFtsrEQ" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEivk5gqSNRtaPmc-VP10LYqJsGhHVyMpG1q9cK5nuX7-1clH37zhWQZEx2DtUjLz2oTW3ts9ataSd1wxVgxCzMVJYAp7dlgeVa46b9vAGBZe0Nqs1PBbyIlO5LUvOfx-yZ8VdV44TNAZ6G4khjdXXonXylaf7ot9kvkdW6PcyGhmLJdhTBg26f3nFtsrEQ" width="400">
</a>
</div><br></div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style=""><b>एआई के शिक्षा क्षेत्र में कुछ हानि निम्नलिखित हैं:</b></div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style="font-weight: bold;"><b>रोजगार का नुकसान: </b>एआई का उपयोग कुछ कार्यों को स्वचालित करने के लिए किया जा सकता है, जिससे मानव शिक्षकों के लिए रोजगार के अवसर कम हो सकते हैं।</div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style=""><b>भेदभाव: </b>एआई का उपयोग पूर्वाग्रह को प्रतिबिंबित करने वाली शिक्षा प्रदान करने के लिए किया जा सकता है। इससे छात्रों के बीच असमानता बढ़ सकती है।</div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style=""><b>सुरक्षा: </b>एआई सिस्टम में सुरक्षा कमजोरियों के कारण डेटा चोरी या हैकिंग का खतरा बढ़ सकता है।</div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style="font-weight: bold;"><b>"एआई शिक्षा को कैसे बदल देगा" (द हिंदू, 2023)</b> इस आलेख में एआई के शिक्षा क्षेत्र में संभावित प्रभावों पर चर्चा की गई है। आलेख में कहा गया है कि एआई का उपयोग छात्रों को अधिक व्यक्तिगत, प्रभावी और सुलभ शिक्षा प्रदान करने के लिए किया जा सकता है। हालांकि, आलेख यह भी चेतावनी देता है कि एआई का उपयोग पूर्वाग्रह को प्रतिबिंबित करने वाली शिक्षा प्रदान करने के लिए भी किया जा सकता है।</div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style=""><b>"एआई शिक्षा में समानता ला सकता है, लेकिन केवल तभी अगर इसे सही तरीके से लागू किया जाए" (द टाइम्स ऑफ इंडिया, 2023)</b> इस आलेख में एआई के शिक्षा क्षेत्र में समानता लाने की क्षमता पर चर्चा की गई है। आलेख में कहा गया है कि एआई का उपयोग ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों के छात्रों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने के लिए किया जा सकता है। हालांकि, आलेख यह भी चेतावनी देता है कि एआई का उपयोग पहले से मौजूद असमानताओं को बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है।</div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style=""><i style="font-weight: bold;">AI शिक्षा के लिए एक शक्तिशाली उपकरण है, लेकिन यह चुनौतियों को भी प्रस्तुत करता है। AI का जिम्मेदारी से उपयोग करके, हम शिक्षा को बेहतर बनाने और सभी छात्रों को सफल होने के अवसर प्रदान करने में मदद कर सकते हैं।</i></div><div style=""><br></div><div style="font-weight: bold;"><i>एआई शिक्षा क्षेत्र में एक शक्तिशाली उपकरण है। इसका उपयोग छात्रों को अधिक प्रभावी ढंग से सीखने में मदद करने के लिए किया जा सकता है। हालांकि, एआई के संभावित खतरों से भी अवगत होना महत्वपूर्ण है। एआई का उपयोग जिम्मेदारी से किया जाना चाहिए ताकि यह समानता ला सके और शिक्षा को अधिक सुलभ और प्रभावी बना सके।</i></div><div style="font-weight: bold;"><br></div></div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style="font-weight: bold;"><br></div><div style=""><div style="font-weight: bold;"><div><div><div><div><div><b>✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी</b></div><div>शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित</div><div>फतेहपुर</div></div><div><b><br></b></div><div><b><div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" width="400"></a></div><br></b></div><div><b>परिचय</b></div><div><b><br></b></div><div><i>बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "<b><a href="https://www.praveentrivedi.in/">प्रवीण त्रिवेदी</a></b>" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>शिक्षा विशेष रूप से "<b>प्राथमिक शिक्षा</b>" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "<a href="http://blog.primarykamaster.com/">प्राइमरी का मास्टर</a>" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।</i></div></div></div></div></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-6104877460644265922023-10-29T09:14:00.002+05:302023-10-29T09:15:28.862+05:30जानिए! सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण की आदर्श दैनिक समयावधि के बारे में<div><div><b>जानिए! सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण की आदर्श दैनिक समय अवधि के बारे में</b><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div>शिक्षक प्रशिक्षण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो शिक्षकों को उनके पेशे में सफल होने के लिए आवश्यक ज्ञान, कौशल और दृष्टिकोण प्रदान करती है। सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण, विशेष रूप से, उन शिक्षकों के लिए महत्वपूर्ण है जो अपने करियर में आगे बढ़ना चाहते हैं या अपने मौजूदा अभ्यास में सुधार करना चाहते हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div>सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण की आदर्श समय अवधि एक जटिल प्रश्न है जिसका कोई एक सही उत्तर नहीं है। हालांकि, कुछ कारक हैं जो इस प्रश्न का उत्तर देने में मदद कर सकते हैं, जिसमें प्रशिक्षण के लक्ष्य, प्रशिक्षण का प्रकार और प्रशिक्षण की प्रभावशीलता शामिल हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>प्रशिक्षण के लक्ष्य</b></div><div><br></div><div>सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण के लक्ष्य प्रशिक्षण की समय अवधि को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि प्रशिक्षण का लक्ष्य शिक्षकों को नए कौशल सिखाना है, तो अधिक समय की आवश्यकता हो सकती है। यदि प्रशिक्षण का लक्ष्य शिक्षकों को मौजूदा कौशल में सुधार करना है, तो कम समय की आवश्यकता हो सकती है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>प्रशिक्षण का प्रकार</b></div><div><br></div><div>सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण के प्रकार भी समय अवधि को प्रभावित कर सकते हैं। व्यावहारिक प्रशिक्षण, जैसे कि स्टूडियो अभ्यास या परामर्श, अक्सर अधिक समय लेने वाले होते हैं। वैकल्पिक रूप से, ऑनलाइन या दूरस्थ प्रशिक्षण अक्सर कम समय लेने वाले होते हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>प्रशिक्षण की प्रभावशीलता</b></div><div><br></div><div>अंत में, सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण की प्रभावशीलता भी समय अवधि को प्रभावित कर सकती है। अधिक समय लेने वाला प्रशिक्षण अक्सर अधिक प्रभावी होता है, क्योंकि यह शिक्षकों को नई अवधारणाओं और कौशलों को आत्मसात करने के लिए अधिक समय देता है। हालांकि, अधिक समय लेने वाला प्रशिक्षण अधिक महंगा और अधिक जटिल भी हो सकता है।</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEiQaBgsCfOhmfbJ7jmrTiRQyr_N1VYA78RdNONuBulV-B3EwYnMcSd5oVqSq_0gLHs_LwqkJorAQwey1X30RlREVrSeps5TqSWHs5-cGgV_2c6G3u05xvqPsruLyF86bszr3Sx9fhT5sbPB8vD9EPSaImoFVHX2xgafpv807EQrkvDitnDDg9tHP-3ZRfk" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEiQaBgsCfOhmfbJ7jmrTiRQyr_N1VYA78RdNONuBulV-B3EwYnMcSd5oVqSq_0gLHs_LwqkJorAQwey1X30RlREVrSeps5TqSWHs5-cGgV_2c6G3u05xvqPsruLyF86bszr3Sx9fhT5sbPB8vD9EPSaImoFVHX2xgafpv807EQrkvDitnDDg9tHP-3ZRfk" width="400">
</a>
</div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><b>6 घंटे से अधिक के प्रशिक्षण समय अवधि का विरोध</b></div><div><br></div><div>⚫ 6 घंटे से अधिक के प्रशिक्षण समय अवधि का विरोध करने के कई कारण हैं। सबसे <b>पहले</b>, ये प्रशिक्षण समयावधि अक्सर शिक्षकों के लिए अधिक तनावपूर्ण और थकाऊ होती हैं। इससे सीखने में बाधा आ सकती है और शिक्षकों के स्वास्थ्य और कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।</div><div><br></div><div><b>⚫ दूसरे</b>, 6 घंटे से अधिक के प्रशिक्षण समयावधि अक्सर शिक्षकों के लिए व्यवहार्य नहीं होते हैं। शिक्षकों के पास अक्सर अपने कक्षा शिक्षण, पाठ्यक्रम विकास और अन्य व्यावसायिक जिम्मेदारियों के लिए समय की कमी होती है।</div><div><br></div><div><b>⚫ तीसरे</b>, 6 घंटे से अधिक के प्रशिक्षण समयावधि अक्सर अनावश्यक होते हैं। अधिकांश सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को 6 घंटे से कम समय में प्रभावी ढंग से पूरा किया जा सकता है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>आदर्श सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण समयावधि</b></div><div><br></div><div>एक आदर्श सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण समयावधि 6 घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए। यह समय सीमा शिक्षकों के लिए व्यवहार्य और प्रभावी दोनों है। यह शिक्षकों को नई अवधारणाओं और कौशलों को आत्मसात करने के लिए पर्याप्त समय देता है, लेकिन यह उन्हें थकाऊ या तनावपूर्ण भी नहीं बनाता है।</div><div><br></div><div>अधिकतम 6 घंटे की समय अवधि के भीतर, सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को विभिन्न तरीकों से डिजाइन किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कार्यक्रमों में व्याख्यान, कार्यशालाएं, अभ्यास और प्रतिबिंब शामिल हो सकते हैं। कार्यक्रमों को ऑनलाइन या व्यक्तिगत रूप से भी प्रदान किया जा सकता है।</div><div><br></div><div>यह महत्वपूर्ण है कि सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम शिक्षकों की आवश्यकताओं और लक्ष्यों को पूरा करें। कार्यक्रमों को विविध और आकर्षक होना चाहिए ताकि शिक्षकों को सीखने के लिए प्रेरित किया जा सके।</div></div><div><br></div><div><br></div><div><div><div><b>✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी</b></div><div>शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित</div><div>फतेहपुर</div></div><div><b><br></b></div><div><b><div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" width="400"></a></div><br></b></div><div><b>परिचय</b></div><div><b><br></b></div><div><i>बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "<b><a href="https://www.praveentrivedi.in/">प्रवीण त्रिवेदी</a></b>" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>शिक्षा विशेष रूप से "<b>प्राथमिक शिक्षा</b>" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "<a href="http://blog.primarykamaster.com/">प्राइमरी का मास्टर</a>" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।</i></div></div><div><br></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-43965435121396983602023-10-27T07:25:00.002+05:302023-10-29T09:15:14.171+05:30क्या शिक्षा में प्रौद्योगिकी असमानता को बढ़ावा दे रही? <div><b>क्या शिक्षा में प्रौद्योगिकी असमानता को बढ़ावा दे रही? </b></div><div><br></div><div><br></div><div>शिक्षा में प्रौद्योगिकी का उपयोग एक ऐसा साधन है जिसका उपयोग समाज में असमानता को कम करने या बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। इतिहास में, प्रौद्योगिकी ने अक्सर असमानता को बढ़ाने में मदद की है, क्योंकि यह उन लोगों के लिए अधिक अवसर पैदा करती है जो पहले से ही अच्छी स्थिति में हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div>उदाहरण के लिए, कलम, कागज और लेखन सामग्री लंबे समय तक महंगे थे और शिक्षा की ही तरह कुछ ही लोगों के लिए उपलब्ध थे। जब छपाई के आविष्कार से किताबें सस्ती और अधिक उपलब्ध हो गईं, तो ऐसा नहीं हुआ कि असमानताएँ ख़त्म हो गईं। वास्तव में, छपाई ने पुस्तकों को एक भौतिक संपत्ति बना दिया, जिससे उन लोगों के लिए वे अधिक दुर्गम हो गईं जो गरीब थे या जिनके पास पहुंच नहीं थी।</div><div><br></div><div><br></div><div>रेडियो और टेलीविजन के साथ भी ऐसा ही हुआ। इन माध्यमों ने शिक्षा को एक व्यापक दर्शकों तक पहुंचाया, लेकिन वे अक्सर उन लोगों के लिए अधिक आकर्षक थे जो पहले से ही अच्छी स्थिति में थे। उदाहरण के लिए, रेडियो और टेलीविजन कार्यक्रम अक्सर उन लोगों के हितों के अनुरूप थे जो शहरों में रहते थे और जिनके पास शिक्षा और आर्थिक संसाधनों तक पहुंच थी।</div><div><br></div><div><br></div><div>कंप्यूटर और इंटरनेट ने शिक्षा में प्रौद्योगिकी के उपयोग में एक नई क्रांति ला दी है। इन प्रौद्योगिकियों ने शिक्षा को अधिक सुलभ और व्यक्तिगत बनाया है, लेकिन वे असमानता को बढ़ाने में भी मदद कर रही हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div>उदाहरण के लिए, एडटेक कंपनियां अक्सर उन लोगों के लिए अधिक महंगी होती हैं जो गरीब हैं। इसके अलावा, एडटेक कंपनियां अक्सर उन लोगों के लिए अधिक प्रभावी होती हैं जो पहले से ही अच्छी स्थिति में हैं। उदाहरण के लिए, एडटेक प्लेटफॉर्म अक्सर उन बच्चों के लिए अधिक उपयोगी होते हैं जिनके पास मजबूत कंप्यूटर और इंटरनेट कनेक्शन होता है और जिनके माता-पिता उन्हें पढ़ाई में मदद करने के लिए समय और संसाधन प्रदान कर सकते हैं।</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEiD_SfB9xC8DQOCq7m4-v2ZhnMvzDNPR_yK25oFWZ75m8SLgeRIZjvemOaCj7IzBzS8Xdi6AulcMSmqRZuCLAr3ggBLHqNMn4WsjpFWqFEIZyrJNMeOY6YAt7cNU2tREUtbT8sH_-_XAm6NhBc1iuDJs27Fa_gbtvL5TDPGiFAHV-IiEW71liWCFIwXXFQ" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEiD_SfB9xC8DQOCq7m4-v2ZhnMvzDNPR_yK25oFWZ75m8SLgeRIZjvemOaCj7IzBzS8Xdi6AulcMSmqRZuCLAr3ggBLHqNMn4WsjpFWqFEIZyrJNMeOY6YAt7cNU2tREUtbT8sH_-_XAm6NhBc1iuDJs27Fa_gbtvL5TDPGiFAHV-IiEW71liWCFIwXXFQ" width="400">
</a>
</div><br></div><div><br></div><div><b>शिक्षा में प्रौद्योगिकी और असमानता पर तंज कसते हुए, हम कह सकते हैं कि:</b></div><div><br></div><div>🔴 प्रौद्योगिकी एक ऐसी शक्ति है जिसका उपयोग अच्छाई या बुराई के लिए किया जा सकता है। शिक्षा में, प्रौद्योगिकी का उपयोग असमानता को कम करने या बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।</div><div><br></div><div>🔴 समृद्ध और वंचित वर्गों के बीच की खाई को पाटने के लिए केवल प्रौद्योगिकी का उपयोग पर्याप्त नहीं है। इसके लिए, एक मजबूत इरादा और संकल्प की आवश्यकता होती है।<br></div><div><br></div><div>🔴 तकनीकी अरबपतियों के बच्चों के लिए, एआई और अन्य प्रौद्योगिकियां एक साधन हैं जो उन्हें अपनी स्थिति को मजबूत करने में मदद कर सकती हैं। गरीब बच्चों के लिए, ये प्रौद्योगिकियां अक्सर एक बोझ होती हैं जो उनकी शिक्षा में बाधा डालती हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div><i>शिक्षण में प्रौद्योगिकी का उपयोग एक तरह से ऐसा है जैसे कि हम गरीब बच्चों को एक रेस में पीछे से शुरू करवा रहे हों, और फिर उन्हें यह कहकर संतुष्ट हो रहे हों कि हमने उन्हें दौड़ में भाग लेने का मौका दिया है।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>प्रौद्योगिकी का उपयोग समानता को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए डिज़ाइन और कार्यान्वयन में बहुत सावधानी की आवश्यकता है।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>शिक्षा में प्रौद्योगिकी एक शक्तिशाली उपकरण है जिसका उपयोग दुनिया को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रौद्योगिकी का उपयोग असमानता को बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है। शिक्षा में प्रौद्योगिकी के उपयोग को अधिक समावेशी और न्यायसंगत बनाने के लिए, हमें एक मजबूत इरादा और संकल्प की आवश्यकता है।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>(आलेख विचार इनपुट : सुबीर शुक्ल) </i></div><div><i><br></i></div><div><i><br></i></div><div><div><div><b>✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी</b></div><div>शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित</div><div>फतेहपुर</div></div><div><b><br></b></div><div><b><div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" width="400"></a></div><br></b></div><div><b>परिचय</b></div><div><b><br></b></div><div><i>बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "<b><a href="https://www.praveentrivedi.in/">प्रवीण त्रिवेदी</a></b>" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>शिक्षा विशेष रूप से "<b>प्राथमिक शिक्षा</b>" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "<a href="http://blog.primarykamaster.com/">प्राइमरी का मास्टर</a>" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।</i></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-58399962637904465222023-10-27T07:14:00.000+05:302023-10-27T07:14:14.215+05:30स्कूलों में ‘भारत’ नाम को तरजीह<b>स्कूलों में ‘भारत’ नाम को तरजीह</b><div><br></div><div><br></div><div><i>एनसीईआरटी की कुछ किताबों में भारत को अंधकारमय, विज्ञान और प्रगति से अनभिज्ञ भी बताया गया है। समय के अनुरूप बदलाव किए जाएं, पर बहुत सोच-समझकर।</i></div><div><br></div><div><br></div><div>इन दिनों कोई पहली बार ‘भारत’ और ‘इंडिया’ में विभेद नहीं किया जा रहा। जिस वक्त देश को आजादी मिली थी, तभी यह महसूस किया गया था कि समाज में एक वर्ग ऐसा है, जो कहीं अधिक पढ़ा-लिखा और साधन-संपन्न है। इस वर्ग को संभ्रांत माना गया और ‘इंडिया’ शब्द इसके लिए प्रयोग किया जाने लगा। बेशक तब कुल जनसंख्या में इस वर्ग की हिस्सेदारी महज सात फीसदी थी, जो अब बढ़कर 30 फीसदी तक हो गई है, लेकिन माना यही गया था कि जो अंग्रेजी पढ़ता है, शहरों में रहता है, वह इंडिया है। </div><div><br></div><div><br></div><div>शेष आबादी, यानी जो गांवों में बसती है, आधुनिक और अंग्रेजी परंपरा से दूर है, तुलनात्मक रूप से पिछड़ी है, कम शिक्षित है और शहरीकरण के लाभों से दूर है, वह ‘भारत’ है। इंडिया और भारत का यह अंतर संरचनात्मक था, जिसमें एक विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग था, तो दूसरा वंचित।</div><div><br></div><div><br></div><div>इस अंतर को समाजशास्त्र की किताबों में ही नहीं, साहित्य में भी खूब परिभाषित किया जाता रहा है। विकास को समझाने के क्रम में ‘इंडिया’ और ‘भारत’ के उदाहरण दिए जाते रहे हैं। मगर इन दिनों जो विभेद किया जा रहा है, उसके राजनीतिक निहितार्थ ज्यादा निकाले जा रहे हैं। </div><div><br></div><div><br></div><div>लोगों का लगता है कि यह पूरा मसला तब शुरू हुआ, जब देश के विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का नाम ‘भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन’ रखा और जब संक्षिप्त में इसे ‘इंडिया’ कहने लगे। इसके बाद से ही इंडिया बनाम भारत पर राजनीति जोर-शोर से होने लगी है, जिसमें पक्ष और विपक्ष, सभी शामिल हो गए हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div>यह तर्क दिया जा रहा है कि ‘इंडिया’ नाम से गुलामी का एहसास होता है। इसे ब्रिटिश औपनिवेशिक परंपरा का वाहक बताया जा रहा है, और कहा जा रहा है कि हमें अपनी संस्कृति से जुडे़ नाम ही अपनाने चाहिए, यानी ‘भारत’ हमारे लिए ज्यादा मुफीद है। जाहिर है, यहां ‘भारत’ का अर्थ पिछड़ेपन के संदर्भ में नहीं है। </div><div><br></div><div><br></div><div>सांस्कृतिक अस्मिता से जोड़ते हुए इसे राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। जबकि, भारत अथवा भारतमाता के क्या निहितार्थ हैं, इसे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया में स्पष्ट किया है। उनके मुताबिक, पहाड़, जंगल, नदियां निश्चित तौर पर सभी के लिए प्रिय हैं, लेकिन जो मायने रखता है, वह है भारत के लोग। तो, भारतमाता मूलत भारत के लोग ही हैं, जिनकी तरक्की और खुशहाली मायने रखती है। </div><div><br></div><div><br></div><div>लिहाजा, जब तक आम लोगों को विकास के पायदान पर ऊपर नहीं उठाया जाएगा, तब तक नामकरण की कोई भी कवायद सार्थक नहीं मानी जाएगी। एनसीईआरटी के पास आया नाम बदलने का प्रस्ताव भी कुछ-कुछ ऐसा ही है। अगर एनसीईआरटी आइजक समिति के इस प्रस्ताव को मान भी लेती है, तब भी इससे आम भारतवासी के उत्थान में शायद ही कोई मदद मिल सकेगी।</div><div><br></div><div><br></div><div>किताबों में आवश्यक परिवर्तन को लेकर इस समिति का गठन किया गया था। समिति के प्रमुख सी आई आइजक का कहना है कि एनसीईआरटी की किताबों में भारत को अंधकारमय, विज्ञान और प्रगति से अनभिज्ञ बताया गया है, जिसमें बदलाव किया जाना चाहिए। मगर सरकारी या स्वायत्त संस्थाओं की मजबूरी यह भी है कि उनको खुद को शासन के अधीन ढालना पड़ता है। </div><div><br></div><div><br></div><div>बेशक, एनसीईआरटी को भारत नाम ज्यादा जंच रहा हो, पर बहुत से शिक्षाविदों को इंडिया को एकदम से भारत कर देने का विचार बहुत व्यावहारिक नहीं जान पड़ता है। बदलाव ऐसे करना चाहिए कि बच्चों के पठन-पाठन में फायदा हो।</div><div><br></div><div><br></div><div>वक्त का तकाजा यही है कि बच्चे आधुनिक शिक्षा से लैस किए जाएं। निस्संदेह, उनको एक हद तक पुरानी बातें बताई जा सकती हैं, क्योंकि उनसे भी हमें कई तरह की शिक्षा मिलती है, लेकिन आज के दौर में वे बहुत ज्यादा प्रासंगिक नहीं रह गई हैं। हमें वैज्ञानिक शिक्षा की जरूरत है। सूचना प्रौद्योगिकी में नए-नए नवाचार की दरकार है। </div><div><br></div><div><br></div><div>कंप्यूटरीकृत दुनिया को हमें साकार बनाना है। बजाय इसके पुरातन शिक्षा की वकालत की जा रही है। भले ही वेद-पुराण भी ज्ञान के भंडार हैं, लेकिन अपनी कथित जड़ों की ओर लौटने का अब वक्त नहीं रहा। अगर हम पीछे की ओर लौटेंगे, तो जाति-धर्म, पूजा-पाठ, कर्मकांडों की भी वकालत की जाएगी। इनमें मौजूद ज्ञान को अपनाने का भी विशेष आग्रह किया जाएगा। जबकि, दुनिया के तमाम विकसित देश इन सबसे ऊपर उठ चुके हैं। वे आधुनिक शिक्षा के प्रसार को लेकर नई-नई नीतियां बना रहे हैं। हमें भी ऐसा ही करना चाहिए।</div><div><br></div><div><br></div><div>बदलाव के पक्षधरों को तैयार रहना चाहिए, सवाल पूछा जाएगा कि इंडिया को भारत करने से आखिर क्या फायदा होगा? इससे भारत की दशा-दिशा कितनी बदल जाएगी? क्या इससे हमारी पितृ-सत्तात्मक मानसिकता में परिवर्तन आएगा? क्या इससे यहां की गरीबी-भुखमरी कम हो जाएगी? इतना ही नहीं, कल यदि इसी तरह गुरुकुल की पैरोकारी की जाने लगे, तो हमारी क्या नीति रहेगी? मैं यहां नकारात्मक नहीं हो रहा। यह वास्तव में एक वैज्ञानिक भाव है। </div><div><br></div><div><br></div><div>जरूरी है कि हम अपनी ऊर्जा सही जगह खर्च करें। काम तो वही कारगर माना जाएगा, जो लोगों के जीवन-स्तर को बेहतर बनाएगा। आज गरीबी-भुखमरी-बेकारी आदि पर बात ज्यादा होनी चाहिए। जिस शहर में मैं रहता हूं, वहां एक कच्ची बस्ती है जवाहर नगर। वहां कई शौचालय बनाए गए, लेकिन आज वे शायद ही इस्तेमाल के लायक हैं। नतीजतन, वहां से गुजरना मुश्किल हो जाता है। अगर विमर्श ही करना है, तो इन बस्तियों में रहने वाले लोगों की बेहतरी पर चर्चा करनी चाहिए। नाम बदलने के साथ हमें मूलभूत सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में भी बढ़ना होगा।</div><div><br></div><div><br></div><div>ऐसा नहीं है कि अन्य देशों के नाम नहीं बदले गए हैं। हमारे पड़ोस में ही वर्मा का नाम बदलकर म्यांमार कर दिया गया। सीलोन भी श्रीलंका बन गया। मगर इन सबका भावनात्मक पहलू भी है। राजनीतिक होने के बावजूद भावनात्मक ढंग से नाम बदला गया। यह राजनीति का विषय नहीं है, इससे बचना चाहिए। होना तो यह चाहिए कि हमें पुरातन भारत को, जिसका उल्लेख समाजशास्त्री करते हैं, आधुनिक व पूरी तरह से विकसित बनाना चाहिए। नाम बदलने की सार्थकता भी तभी है।</div><div><br></div><div><br></div><div><i>(ये लेखक के अपने विचार हैं)</i></div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgwXkodASPUg1K1-fY_y9YazK4hHzaTxMRZ9hedslorA6u85jh_PXrlmiFqgkerlYB2OK6CVOlpO-pBQpVz91x8MGASTDjFxiRPplpDGXk52ICjVmQ0yjPPMLqpf6I44881ZeqDHqF13ppBCa-wagLm5PiGgGMkq45qb0_wfD1nUragcH3iepd0CcAMG6w" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgwXkodASPUg1K1-fY_y9YazK4hHzaTxMRZ9hedslorA6u85jh_PXrlmiFqgkerlYB2OK6CVOlpO-pBQpVz91x8MGASTDjFxiRPplpDGXk52ICjVmQ0yjPPMLqpf6I44881ZeqDHqF13ppBCa-wagLm5PiGgGMkq45qb0_wfD1nUragcH3iepd0CcAMG6w" width="400">
</a>
</div><br></div><div><br></div><div><b>✍️ लेखक : के एल शर्मा</b></div><div>(शिक्षाविद और राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति)</div><div><br></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-63184174437444526282023-10-25T06:21:00.001+05:302023-10-25T06:25:26.572+05:30भारत में सरकारी स्कूलों की घटती स्वीकार्यता, आखिर क्यों कम होती जा रही साख?<b>भारत में सरकारी स्कूलों की घटती स्वीकार्यता, आखिर क्यों कम होती जा रही साख?</b><p class="PrimeArticleDetail_summary__7jMpR slideUp"><br></p><p class="PrimeArticleDetail_summary__7jMpR slideUp">जापान ने अपने हर स्कूल को ऐसे ही बनाया क्योंकि उसने ऐसे स्कूलों को भविष्य निर्माण की कुंजी माना और वह सफल भी रहा। हम जापान की प्रगति के बारे में जानकर अभिभूत तो होते हैं लेकिन उसके तौर-तरीके अपनाने की आवश्यकता नहीं समझते।</p><div class="undefined slideUp"><div class="PrimeArticleDetail_date__ERmgr"><br></div></div><div class="stickySidebar"><div class="ArticleBody slideUp"><div class="articlecontent"><p>छत्तीसगढ़ में स्वामी आत्मानंद शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय स्थापित किए जा रहे हैं। अंग्रेजी माध्यम के इन विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति संविदा के आधार पर होनी है। नियुक्ति के बाद उन्हें एकमुश्त वेतन मिलेगा और भविष्य में किसी प्रकार के स्थायित्व या मानदेय परिवर्तन का लाभ नहीं मिलेगा। आखिर जिसे अपने भविष्य के प्रति आशावान होने से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा, वह बच्चों में प्रेरणा और आशा का संचार कैसे करेगा?</p><div id="paywall" class="piano-container piano-container--active primepaywall"></div><div class="close-content"><p><br></p><p>वास्तव में हर स्तर पर नियमित और प्रशिक्षित अध्यापक नियुक्त करना राष्ट्र का उत्तरदायित्व है। इसमें की गई कोई भी कोताही राष्ट्र के भविष्य के प्रति अन्याय है। जापान के पुनः उठ कर खड़े हो जाने में जो नीतियां मददगार बनी थीं, उनका अध्ययन यदि भारत ने समय रहते कर लिया होता तो आज हमारी ज्ञान पूंजी विश्व में प्रथम स्थान पर स्वतः पहुंच गई होती, जिस विनाश और अपमान को जापान ने सहा था, वैसा शायद ही किसी अन्य देश ने सहा हो। उस स्तर से उठकर स्वयं को पुनः प्रतिष्ठित कर लेने के पीछे उसकी नीतियों और नेतृत्व का हाथ था। यह भी तभी हो पाया जब वहां के नागरिकों ने इन दोनों पहलुओं को स्वीकार किया और क्रियान्वयन में जी-जान लगा दी।</p><p><br></p><p><i>जापान के इस अद्भुत पुनरुथान के लिए यदि सबसे अधिक श्रेय किसी वर्ग को जाता है तो वह है अध्यापक। शिक्षकों ने ऐसी पीढ़ियां तैयार कर दीं, जिन्होंने अपना सर्वस्व ईमानदारी, कर्मठता और लगनशीलता से देश को सर्वोपरि मानकर उसे समर्पित कर दिया। जापान के नीति-निर्धारकों ने पहले ही तय कर लिया था कि देश को अपने पैरों पर खड़े होने के लिए दीर्घकालीन योजनाएं बनानी होंगी। एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण करना होगा, जो भविष्य निर्माण में अपने श्रम और समय के महत्व को समझे।</i></p><p><br></p><p>प्रत्येक नागरिक अपने कार्य-निष्पादन, चरित्र और राष्ट्र भक्ति का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करे। इसके लिए उन्होंने प्राइमरी स्कूलों को लक्षित किया, क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर दृष्टिकोण परिवर्तन करने का सबसे सफल मार्ग वही हो सकता है, जो इन स्कूलों में दिन-प्रतिदिन के आचार, विचार एवं व्यवहार में देखा जा सके और जो बच्चों के लिए अनुकरणीय बन सके।<br></p><p><br></p><p>यदि स्कूल जाने वाले छात्र प्रतिदिन यह देखते हैं कि सभी अध्यापक समय से आते हैं, उनका स्नेह उन्हें लगातार मिलता है, अध्यापक ज्ञान एवं कौशल प्रदान करने के नए-नए तरीके अपनाते हैं, हर बच्चे की सभी जरूरतों का ध्यान रखते हैं, सेवा भाव तथा दूसरों की सहायता करने की ओर उन्हें सदा प्रेरित करते रहते हैं तो ये सभी गुण और कौशल स्वतः ही उनके जीवन-व्यवहार में सदा के लिए स्थायी जगह बना लेंगे।</p><p><br></p><p><i>कल्पना कीजिए उस सरकारी स्कूल की, जिसमें निर्धारित संख्या में अध्यापक उपलब्ध हों, कोई कभी भी देर से कक्षा में न आता हो, सभी आपसी सहयोग का भाव रखते हों, हर समय बच्चे की हरसंभव सहायता करने के लिए तत्पर रहते हों और जिनको किसी बड़े अधिकारी का अनावश्यक भय न हो। जापान ने अपने हर स्कूल को ऐसे ही बनाया, क्योंकि उसने ऐसे स्कूलों को भविष्य निर्माण की कुंजी माना और वह सफल भी रहा। हम जापान की प्रगति के बारे में जानकर अभिभूत तो होते हैं, लेकिन उसके तौर-तरीके अपनाने की आवश्यकता नहीं समझते। शायद यही कारण है कि हमारे देश में न जाने कितने विद्यालय ऐसे हैं, जो शिक्षकों की कमी का सामना कर रहे हैं। कुछ विद्यालय तो एक-दो शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं।</i></p><p><br></p><p>निःसंदेह आजादी के बाद से भारत ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार में आशातीत उपलब्धियां हासिल की हैं। साक्षरता दर को 18 से 80 प्रतिशत ले आना महत्वपूर्ण है। इसलिए और भी कि इस बीच जनसंख्या सौ करोड़ से ज्यादा हो गई, लेकिन भारत के सरकारी स्कूलों की साख लगातार घटती रही। उनकी स्वीकार्यता केवल उस वर्ग में रह गई, जिसके पास निजी स्कूलों में जाने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं। स्कूली शिक्षा को प्राथमिकता देकर ही उच्च शिक्षा तथा शोध एवं नवाचार की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है, लेकिन इसकी ओर आवश्यक ध्यान नहीं दिया गया।</p><p><br></p><p>भारत की विविधताओं से परिचित हर व्यक्ति स्वीकार करेगा कि समेकित और समावेशी विकास केवल निजी स्कूलों में महंगी शिक्षा व्यवस्था और निजी अस्पतालों में वैश्विक स्तर की स्वास्थ्य सेवाओं के आधार पर संभव नहीं है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में अनेक आशाजनक संभावनाएं उभरी हैं, लेकिन व्यावहारिक रूप में स्थितियां कब सुधारेंगी, यह तो समय ही बताएगा। सामान्य रूप से जो अति आवश्यक सुधार स्कूली शिक्षा में राष्ट्रीय स्तर पर अब तक हो जाने चाहिए थे, उनकी गति अभी भी क्रियान्वयन में विभिन्न स्तरों पर शिथिलता की ओर ही इशारा करती है।</p><p><br></p><p><i>वर्ष 1986 में आई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में केंद्र सरकार ने हर ‘एकल अध्यापक स्कूल’ के लिए अपने बजट से दूसरे अध्यापक की नियुक्ति का प्रविधान किया था। उसके तहत नियुक्तियां हुईं भी, मगर आज भी अनेक सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जहां केवल एक अध्यापक है। आखिर 1986 से 2023 की लंबी यात्रा में हम केवल यही प्रगति कर पाए? विश्व में अपनी साख बना रहा भारत यह कैसे न्यायोचित ठहरा सकेगा कि वह आज अपने प्राइमरी छात्रों को पर्याप्त अध्यापक नहीं दे पा रहा है?</i></p><p><br></p><p> अधिकांश राज्यों में अभी भी छात्र-अध्यापक अनुपात के आंकड़े अत्यंत निराशाजनक हैं, क्योंकि 2009 में देश की संसद द्वारा पारित शिक्षा का अधिकार अधिनियम लगभग भुला दिया गया है। यदि ऐसा न होता तो छात्र-अध्यापक अनुपात 30:1 को लागू कर दिया गया होता। तब शायद यह ‘एकल अध्यापक स्कूल’ जैसी अस्वीकार्य स्थिति पैदा नहीं हुई होती और सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधरी होती।</p><div><br></div><div><div class="separator"><a href="https://lh3.googleusercontent.com/-orq1suu8V_U/YTQmtRC5J-I/AAAAAAAAksk/c32FcYWY3vI3tDBbqQ50_m4fHrr78NW9QCLcBGAsYHQ/s1600/1630807729859130-0.png" imageanchor="1"><img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-orq1suu8V_U/YTQmtRC5J-I/AAAAAAAAksk/c32FcYWY3vI3tDBbqQ50_m4fHrr78NW9QCLcBGAsYHQ/s1600/1630807729859130-0.png" width="400"></a></div></div><p><strong>✍️ लेखक : जगमोहन सिंह राजपूत</strong></p><p><strong>(एनसीईआरटी के निदेशक रहे लेखक शिक्षा, सामाजिक समरसता और सद्भाव के क्षेत्र में कार्यरत हैं)</strong></p></div></div></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-50798297079906097782023-10-25T05:41:00.002+05:302023-10-25T05:42:39.682+05:30आखिर क्यों जरूरी है, बच्चों के संपूर्ण व्यक्ति के विकास पर ध्यान देने की? जानिए विस्तार से<div><b>आखिर क्यों जरूरी है, बच्चों के संपूर्ण व्यक्ति के विकास पर ध्यान देने की? जानिए विस्तार से </b></div><div><br></div><div><br></div><div>आमतौर पर, लोगों को उनकी उपलब्धियों से अधिक, व्यक्ति के तौर पर उनकी खूबियों को याद किया जाता है। उदाहरण के लिए, हम महात्मा गांधी को उनके सत्याग्रह के लिए याद करते हैं, लेकिन हम उन्हें उनके दयालुता, करुणा और प्रेम जैसे व्यक्तिगत गुणों के लिए भी याद करते हैं। इसी तरह, हम अल्बर्ट आइंस्टीन को उनके भौतिकी के सिद्धांतों के लिए याद करते हैं, लेकिन हम उन्हें उनके जिज्ञासु स्वभाव, रचनात्मकता और नेतृत्व के गुणों के लिए भी याद करते हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div>इससे पता चलता है कि व्यक्तिगत गुण और मूल्य ही वह हैं जो हमारे बाद भी बना रहते हैं। ये गुण और मूल्य हमें एक बेहतर इंसान बनने में मदद करते हैं और हमें अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने में सक्षम बनाते हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div>इसलिए, स्कूलों को केवल उपलब्धि हासिल करने वाले व्यक्ति के बजाय संपूर्ण व्यक्ति के विकास पर ध्यान देने की ज़रूर है। ऐसा करने से, स्कूल बच्चों को यह सीखने में मदद कर सकते हैं कि वे कैसे एक बेहतर इंसान बन सकते हैं और अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEiBv2pwMFw_6zozRwX1dr5yikl6w58aPSH8gpJRaGynKb8nAUm_SVBfukw5gKWll9xZZ_6gNqkw5EtKBZXkpA3M8I6VoLKn5mN19ujwRuojDWksxZNYaPNT0suaqad4ZMmYX_GA9390kZhiqSHFyDVnw7R-2qzAIhz5TNk90fpYF__vDBPJlspW6Kz7n8c" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEiBv2pwMFw_6zozRwX1dr5yikl6w58aPSH8gpJRaGynKb8nAUm_SVBfukw5gKWll9xZZ_6gNqkw5EtKBZXkpA3M8I6VoLKn5mN19ujwRuojDWksxZNYaPNT0suaqad4ZMmYX_GA9390kZhiqSHFyDVnw7R-2qzAIhz5TNk90fpYF__vDBPJlspW6Kz7n8c" width="400">
</a>
</div><br></div><div><br></div><div><b>विद्यालयों को संपूर्ण व्यक्ति के विकास पर ध्यान देने के लाभ</b></div><div><b><br></b></div><div><b>विद्यालयों को संपूर्ण व्यक्ति के विकास पर ध्यान देने से निम्नलिखित लाभ होते हैं:</b></div><div><br></div><div><br></div><div><b>बच्चों को आत्म-साक्षात्कार और व्यक्तित्व विकास में मदद मिलती है। </b>स्कूल बच्चों को अपने व्यक्तिगत मूल्यों, विश्वासों और लक्ष्यों को समझने में मदद कर सकते हैं। इससे उन्हें अपने जीवन में सार्थक और संतोषजनक तरीके से जीने में मदद मिलती है।</div><div><br></div><div><b>बच्चों को सामाजिक और भावनात्मक कौशल विकसित करने में मदद मिलती है। </b>स्कूल बच्चों को दूसरों के साथ प्रभावी ढंग से संवाद करने, टीम में काम करने और अपने भावनाओं को प्रबंधित करने में मदद कर सकते हैं। ये कौशल उन्हें अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने और दूसरों के साथ सार्थक संबंध बनाने में मदद करते हैं।</div><div><br></div><div><b>बच्चों को जिम्मेदार और नैतिक नागरिक बनने में मदद मिलती है।</b> स्कूल बच्चों को नैतिकता और जिम्मेदारी के महत्व के बारे में सिखा सकते हैं। इससे उन्हें एक बेहतर समाज का निर्माण करने में मदद मिलती है।</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><b>विद्यालयों को संपूर्ण व्यक्ति के विकास के लिए क्या कर सकते हैं?</b></div><div><b><br></b></div><div><b>विद्यालय संपूर्ण व्यक्ति के विकास को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं:</b></div><div><br></div><div><br></div><div>🔴एक व्यापक पाठ्यक्रम प्रदान करें जो विभिन्न विषयों को शामिल करे। यह बच्चों को अपने कौशल और क्षमताओं को विकसित करने में मदद करेगा।</div><div><br></div><div>🔴 विविध गतिविधियों और कार्यक्रमों की पेशकश करें जो बच्चों को विभिन्न तरीकों से सीखने और बढ़ने का मौका दें। यह बच्चों को अपने व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को विकसित करने में मदद करेगा।</div><div><br></div><div>🔴 एक सकारात्मक और समर्थक वातावरण बनाएं। इससे बच्चों को सुरक्षित महसूस करने और अपने आप को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।</div><div><br></div><div>🔴 बच्चों के माता-पिता और अभिभावकों के साथ सहयोग करें। यह बच्चों के विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण बनाने में मदद करेगा।</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><i>विद्यालयों को संपूर्ण व्यक्ति के विकास पर ध्यान देने की ज़रूरी है। ऐसा करने से, स्कूल बच्चों को यह सीखने में मदद कर सकते हैं कि वे कैसे एक बेहतर इंसान बन सकते हैं और अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>केवल स्कूल ही संपूर्ण व्यक्ति के विकास में योगदान नहीं दे सकते हैं। परिवार, समुदाय और समाज भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि, स्कूलों के पास बच्चों के जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव डालने की क्षमता है।</i></div><div><i><br></i></div><div><i><br></i></div><div><div><div><b>✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी</b></div><div>शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित</div><div>फतेहपुर</div></div><div><b><br></b></div><div><b><div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" width="400"></a></div><br></b></div><div><b>परिचय</b></div><div><b><br></b></div><div><i>बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "<b><a href="https://www.praveentrivedi.in/">प्रवीण त्रिवेदी</a></b>" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>शिक्षा विशेष रूप से "<b>प्राथमिक शिक्षा</b>" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "<a href="http://blog.primarykamaster.com/">प्राइमरी का मास्टर</a>" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।</i></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-56130889031195023202023-10-24T07:57:00.001+05:302023-10-24T07:58:50.088+05:30दशहरा त्यौहार के जरिए Top 10 सीखने योग्य गुणों के बारे में जानिए<div><b>दशहरा त्यौहार के जरिए Top 10 सीखने योग्य गुणों के बारे में जानिए</b></div><div><br></div><div><br></div><div>दशहरा अर्थात विजदशमी पर्व, बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। यह पर्व बच्चों को कई महत्वपूर्ण गुणों को सीखने का अवसर प्रदान करता है। दशहरा के माध्यम से बच्चे निम्नलिखित 10 गुण सीख सकते हैं:</div><div><br></div><div><br></div><div><b><br></b></div><div><b>1️⃣ धर्म और आस्था:</b> दशहरा भगवान राम की विजय का पर्व है। यह पर्व बच्चों को धर्म और आस्था के महत्व को सिखाता है। बच्चे इस पर्व के माध्यम से सीखते हैं कि बुराई पर अच्छाई की जीत हमेशा होती है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>2️⃣ वीरता और साहस:</b> दशहरा परमवीर भगवान राम की वीरता और साहस की कहानी है। यह पर्व बच्चों को वीरता और साहस के महत्व को सिखाता है। बच्चे इस पर्व के माध्यम से सीखते हैं कि बुराई से लड़ने के लिए वीरता और साहस की आवश्यकता होती है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>3️⃣ सत्य और न्याय:</b> दशहरा भगवान राम की सत्य और न्याय के लिए लड़ाई की कहानी है। यह पर्व बच्चों को सत्य और न्याय के महत्व को सिखाता है। बच्चे इस पर्व के माध्यम से सीखते हैं कि सत्य और न्याय हमेशा जीतते हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>4️⃣ अहिंसा: </b>दशहरा भगवान राम की अहिंसा के लिए लड़ाई की कहानी है। यह पर्व बच्चों को अहिंसा के महत्व को सिखाता है। बच्चे इस पर्व के माध्यम से सीखते हैं कि अहिंसा से ही बुराई का अंत हो सकता है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>5️⃣ संस्कृति और परंपरा: </b>दशहरा भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह पर्व बच्चों को भारतीय संस्कृति और परंपरा के बारे में सिखाता है। बच्चे इस पर्व के माध्यम से भारतीय संस्कृति और परंपराओं के प्रति सम्मान और गौरव की भावना विकसित करते हैं।</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEj6XLVolrdyiKJjeiIfxzZVe6lk2k3_vR8Wj4KBwUCq75-UTPBPxUiHPU6YhcwKol1ci_nGApqSZCE-Ub23nBrJlCrZbULAbecxH18JpmAhlXyV5peCxz_cuvwzGOQCXe43r6m42PWAGBicKvMrTsF-e2QI-Ad9P1qIbECVNewZ8QqLkn4jKztQXV5rDaA" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEj6XLVolrdyiKJjeiIfxzZVe6lk2k3_vR8Wj4KBwUCq75-UTPBPxUiHPU6YhcwKol1ci_nGApqSZCE-Ub23nBrJlCrZbULAbecxH18JpmAhlXyV5peCxz_cuvwzGOQCXe43r6m42PWAGBicKvMrTsF-e2QI-Ad9P1qIbECVNewZ8QqLkn4jKztQXV5rDaA" width="400">
</a>
</div><br></div><div><br></div><div><b>6️⃣ सामाजिक एकता: </b>दशहरा एक सामूहिक उत्सव है। यह पर्व बच्चों को सामाजिक एकता और भाईचारे के महत्व को सिखाता है। बच्चे इस पर्व के माध्यम से दूसरों के साथ मिलकर काम करने और एक दूसरे के प्रति सम्मान रखने का महत्व सीखते हैं।<br></div><div><br></div><div><br></div><div><b>7️⃣ सकारात्मक सोच: </b>दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। यह पर्व बच्चों को सकारात्मक सोच के महत्व को सिखाता है। बच्चे इस पर्व के माध्यम से सीखते हैं कि बुराई पर अच्छाई की हमेशा जीत होती है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>8️⃣ आत्मविश्वास: </b>दशहरा भगवान राम की जीत की कहानी है। यह पर्व बच्चों को आत्मविश्वास के महत्व को सिखाता है। बच्चे इस पर्व के माध्यम से सीखते हैं कि आत्मविश्वास के साथ किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>9️⃣ सकारात्मक दृष्टिकोण: </b>दशहरा एक खुशी का त्यौहार है। यह पर्व बच्चों को सकारात्मक दृष्टिकोण के महत्व को सिखाता है। बच्चे इस पर्व के माध्यम से सीखते हैं कि खुश रहने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण होना जरूरी है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>🔟 आनंद: </b>दशहरा एक आनंद का त्यौहार है। यह पर्व बच्चों को आनंद के महत्व को सिखाता है। बच्चे इस पर्व के माध्यम से सीखते हैं कि जीवन में आनंद लेना जरूरी है।</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><i>कुलमिलाकर दशहरा एक ऐसा त्यौहार है जो बच्चों को कई महत्वपूर्ण गुणों को सीखने का अवसर प्रदान करता है। माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को दशहरा के माध्यम से इन गुणों को सीखने में मदद करें।</i></div><div><i><br></i></div><div><i><br></i></div><div><i><br></i></div><div><div><div><b>✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी</b></div><div>शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित</div><div>फतेहपुर</div></div><div><b><br></b></div><div><b><div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" width="400"></a></div><br></b></div><div><b>परिचय</b></div><div><b><br></b></div><div><i>बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "<b><a href="https://www.praveentrivedi.in/">प्रवीण त्रिवेदी</a></b>" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>शिक्षा विशेष रूप से "<b>प्राथमिक शिक्षा</b>" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "<a href="http://blog.primarykamaster.com/">प्राइमरी का मास्टर</a>" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।</i></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-26143571679773221232023-10-18T18:48:00.002+05:302023-10-18T18:52:02.113+05:30मिशन शक्ति अंतर्गत कराई जा सकने योग्य गतिविधियों से जुड़े 10 विषय / क्षेत्र<b>मिशन शक्ति अंतर्गत कराई जा सकने योग्य गतिविधियों से जुड़े 10 विषय / क्षेत्र</b><div><br></div><div><br></div><div><i>मिशन शक्ति एक अभियान है जिसका उद्देश्य महिलाओं और बालिकाओं के सशक्तिकरण और उनका सम्मान सुनिश्चित करना है। इस अभियान के तहत बच्चों, विशेषकर बालिकाओं को लेकर निम्नलिखित 10 विषयों या क्षेत्रों से जुड़ी गतिविधियाँ कराई जा सकती हैं।</i></div><div><br></div><div><i>मिशन शक्ति सरकार द्वारा महिलाओं और बालिकाओं के सशक्तिकरण के लिए शुरू की गई एक पहल है। इस पहल के तहत बच्चों, विशेषकर बालिकाओं के लिए कई गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं। इन गतिविधियों का उद्देश्य बालिकाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और अन्य अवसरों तक पहुँच प्रदान करना है।</i><br></div><div><br></div><div><br></div><div><b>🔴 शिक्षा और स्वास्थ्य</b></div><div>मिशन शक्ति के तहत बालिकाओं को निःशुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसके लिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से बालिकाओं के लिए स्कूलों, कॉलेजों और कौशल विकास केंद्रों की स्थापना की जा रही है। इसके अलावा, बालिकाओं के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए स्वास्थ्य शिविरों और जागरूकता अभियानों का आयोजन किया जा रहा है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>🔴 रोजगार और उद्यमिता</b></div><div>बालिकाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए उन्हें रोजगार और उद्यमिता के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। इसके लिए महिला स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा दिया जा रहा है और बालिकाओं को विभिन्न कौशलों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>🔴 लैंगिक समानता</b></div><div>मिशन शक्ति के तहत लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों और अभियानों का आयोजन किया जा रहा है। इन कार्यक्रमों और अभियानों का उद्देश्य बालिकाओं और महिलाओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और उन्हें समान अवसर प्रदान करना है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>🔴 बालिकाओं के प्रति हिंसा का उन्मूलन</b></div><div>बालिकाओं के प्रति हिंसा को रोकने के लिए सख्त कानूनों और नियमों का निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा, बालिकाओं के प्रति हिंसा के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जा रहा है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>🔴 बालिकाओं के बीच खेल और संस्कृति को बढ़ावा देना</b></div><div>बालिकाओं को खेल और संस्कृति में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए विभिन्न खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhwZ8-SFIJyknO4m53D0_C8KwTOtQksWGIIEc2mNRh0vWUubRykpU6pNEwUxzBYREVBQCQe82wFEeOiJbxB074KRaNlS9zLbuk8dQ36aoO4VaeT8zqa6BR1nfwVtKKyXM2G5EEMQUlhFavOY83hYEewNc4qv20obqZKP51Xg2ysHF-lno-IH2JEO6SU2HA" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhwZ8-SFIJyknO4m53D0_C8KwTOtQksWGIIEc2mNRh0vWUubRykpU6pNEwUxzBYREVBQCQe82wFEeOiJbxB074KRaNlS9zLbuk8dQ36aoO4VaeT8zqa6BR1nfwVtKKyXM2G5EEMQUlhFavOY83hYEewNc4qv20obqZKP51Xg2ysHF-lno-IH2JEO6SU2HA" width="400">
</a>
</div><br></div><div><br></div><div><b>🔴 बालिकाओं के लिए प्रेरणादायी कहानियाँ और उदाहरण</b></div><div>बालिकाओं को प्रेरित करने के लिए उनके सामने प्रेरणादायी कहानियाँ और उदाहरण प्रस्तुत किए जा रहे हैं। इसके लिए बालिकाओं के बारे में पुस्तकों, लेखों और फिल्मों का प्रकाशन और प्रसार किया जा रहा है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>🔴 बालिकाओं की आवाज़ को बढ़ावा देना</b></div><div>बालिकाओं की आवाज़ को बढ़ावा देने के लिए उन्हें विभिन्न मंचों पर भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए बालिकाओं के लिए संवाद और अभिव्यक्ति के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>🔴 बालिकाओं के लिए सुरक्षित वातावरण</b></div><div>बालिकाओं के लिए एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करने के लिए उनके आसपास के माहौल को बदला जा रहा है। इसके लिए बालिकाओं के प्रति हिंसा के खिलाफ सामाजिक जागरूकता फैलाई जा रही है और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए कानून और नियमों को सख्त किया जा रहा है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>🔴 बालिकाओं के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग</b></div><div>बालिकाओं को प्रौद्योगिकी के उपयोग से अवगत कराने और उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों और अभियानों का आयोजन किया जा रहा है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>🔴 बालिकाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग</b></div><div>बालिकाओं के सशक्तिकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए विभिन्न देशों के बीच समझौतों और समझौतों पर हस्ताक्षर किए जा रहे हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>इन गतिविधियों के माध्यम से मिशन शक्ति का उद्देश्य बालिकाओं को एक बेहतर भविष्य प्रदान करना है।<br></b></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><div><div><b>✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी</b></div><div>शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित</div><div>फतेहपुर</div></div><div><b><br></b></div><div><b><div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" width="400"></a></div><br></b></div><div><b>परिचय</b></div><div><b><br></b></div><div><i>बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "<b><a href="https://www.praveentrivedi.in/">प्रवीण त्रिवेदी</a></b>" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>शिक्षा विशेष रूप से "<b>प्राथमिक शिक्षा</b>" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "<a href="http://blog.primarykamaster.com/">प्राइमरी का मास्टर</a>" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।</i></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1909571191181176597.post-76309794045730725772023-10-15T07:16:00.000+05:302023-10-15T07:16:41.125+05:30बच्चे की देखभाल करना केवल महिलाओं का काम है क्या? पुरुषों के लिए समानता की मांग के लिए पितृत्व अवकाश है जरूरी<div><br></div><div><b>बच्चे की देखभाल करना केवल महिलाओं का काम है क्या? पुरुषों के लिए समानता की मांग के लिए पितृत्व अवकाश है जरूरी</b></div><div><br></div><div><br></div><div>पितृत्व अवकाश एक ऐसी छुट्टी है जो पुरुषों को बच्चे के जन्म के बाद कुछ समय के लिए अपने काम से दूर रहने की अनुमति देती है। यह अवकाश पुरुषों को अपने बच्चे के साथ शुरुआती रिश्ते बनाने, अपनी पत्नी या साथी का समर्थन करने और घरेलू कामों में मदद करने का मौका देता है।</div><div><br></div><div><br></div><div>भारत में, पितृत्व अवकाश की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। हालाँकि, कुछ राज्यों और निजी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के लिए पितृत्व अवकाश योजनाएँ शुरू की हैं। इन योजनाओं में आमतौर पर 15 से 60 दिनों तक की छुट्टी शामिल होती है।</div><div><br></div><div><br></div><div>पितृत्व अवकाश की मांग एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा है। यह पुरुषों के लिए समानता की मांग है और यह परिवारों के लिए भी फायदेमंद है।</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgyiDj3UHFZPRF-JGOK7quV6XuFTv5KM3BUs_F33omlIAyN5QvMbG3uF69XTzOK26-iEodss9wOQZbxvoDqoniC6JlECZcFzRLmsmf1jpJnEGozS92DA6DpvgWF_glUYwrBiay-ZakQrLmBFXoze2UdpQFZlyfY6sFsE8f1a90KN9mON5PvTg6geSDbzkQ" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgyiDj3UHFZPRF-JGOK7quV6XuFTv5KM3BUs_F33omlIAyN5QvMbG3uF69XTzOK26-iEodss9wOQZbxvoDqoniC6JlECZcFzRLmsmf1jpJnEGozS92DA6DpvgWF_glUYwrBiay-ZakQrLmBFXoze2UdpQFZlyfY6sFsE8f1a90KN9mON5PvTg6geSDbzkQ" width="400">
</a>
</div><br></div><div><br></div><div><b>पितृत्व अवकाश की आवश्यकता क्यों </b></div><div><br></div><div>पितृत्व अवकाश की आवश्यकता कई कारणों से है। सबसे <b>पहले</b>, यह पुरुषों को अपने बच्चे के साथ शुरुआती रिश्ते बनाने का मौका देता है। बच्चे के जन्म के बाद के पहले कुछ सप्ताह और महीने बच्चे के विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। इस समय के दौरान, पिता अपने बच्चे से जुड़ सकते हैं और उसे प्यार और समर्थन प्रदान कर सकते हैं।</div><div><br></div><div><b>दूसरे</b>, पितृत्व अवकाश पुरुषों को अपनी पत्नी या साथी का समर्थन करने का मौका देता है। प्रसव और मातृत्व अवकाश के दौरान, महिलाओं को शारीरिक और भावनात्मक रूप से बहुत तनाव होता है। पितृत्व अवकाश पुरुषों को अपनी पत्नी या साथी को घरेलू कामों में मदद करने, बच्चे की देखभाल करने और उसे भावनात्मक रूप से समर्थन देने का मौका देता है।</div><div><br></div><div><b>तीसरे</b>, पितृत्व अवकाश परिवारों के लिए फायदेमंद है। यह पुरुषों और महिलाओं के बीच काम और परिवार के बीच संतुलन को बेहतर बनाने में मदद करता है। यह परिवारों को अधिक स्थिर और मजबूत बनाने में भी मदद करता है।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>पितृत्व अवकाश न देना लिंगभेद का एक उदाहरण है। महिलाओं को मातृत्व अवकाश का अधिकार है, लेकिन पुरुषों को ऐसा कोई अधिकार नहीं है। यह धारणा को बढ़ावा देता है कि बच्चे की देखभाल करना केवल महिलाओं का काम है।</b></div><div><b><br></b></div><div><br></div><div>पितृत्व अवकाश की मांग पुरुषों के लिए समानता की मांग है। यह पुरुषों को अपने परिवारों में समान भूमिका निभाने का मौका देता है।</div><div><br></div><div><br></div><div>पितृत्व अवकाश एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा है। यह पुरुषों के लिए समानता की मांग है और यह परिवारों के लिए भी फायदेमंद है। भारत में पितृत्व अवकाश की कानूनी आवश्यकता होनी चाहिए। यह पुरुषों को अपने परिवारों में समान भूमिका निभाने का मौका देगा और एक अधिक समान समाज बनाने में मदद करेगा।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>पितृत्व अवकाश की वकालत के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं:</b></div><div><br></div><div>🟣 पितृत्व अवकाश के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाएं।</div><div><br></div><div>🟣 पितृत्व अवकाश की कानूनी आवश्यकता के लिए सरकार और निजी कंपनियों पर दबाव डालें।</div><div><br></div><div>🟣 पितृत्व अवकाश लेने वाले पुरुषों के लिए समर्थन समूह और संसाधन बनाएं।</div><div><br></div><div><br></div><div><i>पितृत्व अवकाश एक महत्वपूर्ण सामाजिक बदलाव है। यह पुरुषों और महिलाओं के बीच काम और परिवार के बीच संतुलन को बेहतर बनाने और एक अधिक समान समाज बनाने में मदद करेगा।</i></div><div><i><br></i></div><div><i><br></i></div><div><i><br></i></div><div><div><div><b>✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी</b></div><div>शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित</div><div>फतेहपुर</div></div><div><b><br></b></div><div><b><div class="separator"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" imageanchor="1"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHdMBCQUYHH2O85l6eMKpb4lb2QqLpyrbMa66jU39ncePzXS9b68WDOzgzUwxeTUstQrPbJz8c7lNKV_f51LMnVW69bT7ea0voCYRZfJLUHeaKHzHXTEH23FLNGPH-X-gSfGAopSVF337aH4e2HuwkOPJqYqWwX2eIfVgwhNdFBc8tCfADcwsa2GbsFRY" width="400"></a></div><br></b></div><div><b>परिचय</b></div><div><b><br></b></div><div><i>बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "<b><a href="https://www.praveentrivedi.in/">प्रवीण त्रिवेदी</a></b>" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।</i></div><div><i><br></i></div><div><i>शिक्षा विशेष रूप से "<b>प्राथमिक शिक्षा</b>" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "<a href="http://blog.primarykamaster.com/">प्राइमरी का मास्टर</a>" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।</i></div></div>प्राइमरी का मास्टर 2 http://www.blogger.com/profile/07671352464734715786noreply@blogger.com0