सुदूर जीवन इतना कष्टमय होगा- परिकल्पना करना अतुलनीय एवं कष्टकारी है। साधन विहीन मानव जीवन का पहलू है- संघर्ष। इस संघर्ष की गाथा मे वर्ष २००५ के बाद जाने कितनी बलिवेदियां भेट हो गईं और प्रदेश के ०९ लाख साथी मौन होकर देखते रहे। इन ०९ लाख लोगो की अपनी मजबूरियां रही होंगी लेकिन जो लोग अपने होने का दंभ पूर्व से भर रहे थे, उनका क्या कहना? थे तो अपने ही लोग। इन्ही लोगो की स्वार्थ परायणयता ने लोगो की पीठ और पेट पर लात मारी। यद्यपि इस समाज मे ऐसे महान लोग है जिन्हें आज भी इस युवा वर्ग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने मे कोई परेशानी नहीं है, ऐसे लोगो को हमारा नमन.................शत शत वंदन। इस संघर्ष की अपनी अजीब विडम्बना है। जिसे अपने साथ होना था वह अनंत........ से मूक है और युवा जिनसे अपने साथ होने संकल्पना न कर सकता था, वह सब साथ हैं। जहाँ एक ओर हमारे हुजूरे आलाओं का पुचकारना वहीं दूसरी ओर और स्वार्थ परायण साथियों द्वारा बार बार बुढ़ापे की लाठी का आवाह्न कर बुलाना हमारे युवा साथियों को सोचने को मजबूर है करता है कि हमारा सच्चा और हमदर्द साथी कौन है?  

 

प्रदेश के हुजूरे आलाओं और स्वार्थ परायण साथियों का क्या? इन लोगो का तो भविष्य और वर्तमान दोनों सुरक्षित है। कोई मरे या जिए हमारे ठेंगे से। जब इनको आपस मे कोई जरुरत होती है तो तटस्थ रहकर एक दुसरे की जरुरत पूर्ण करने मे सहयोग करते हैं। हुजूरे आला तो हुजूरे आला हैं- मेजों को थपथपाकर- ए.सी., मकान, टेलीफोन, नाश्ता, बच्चों के लिए ए क्लास के विदेशी स्कूलों मे दाखिला, मोटी तनख्वाह, भत्ते आखिर सब कुछ पा लेते है और तो और सबसे बड़ी बात है की ०५ साल की अल्प समाजसेवा के नाम बुढ़ापे की लाठी का हक पा लेते हैं। वहीं दूसरी ओर स्वार्थ परायण साथियों के पास पहले से ही बुढ़ापे की लाठी है। वह तो केवल हुजूरे आला के सामने अपना मान सम्मान इसलिए बचाकर रखना चाहते है क्योंकि वह तो दोनों के बीच की कड़ी है। यही कड़ी उनको सुख सुविधा, यश, सम्मान, धन, गाड़ी घोडा, नौकर चाकर आदि आदि सब कुछ प्रदान करती है। 

 

देश/प्रदेश के आलाओ का भी अजीब हाल है। उनकी सोच एवं दशा दिशा का हाल भी वही है जो हमारे स्वार्थ परायण साथियों का है। आज भी प्रदेश के हुजूरे आला बुढ़ापे की लाठी देने का आलम्बन, दंभ भरकर- नवयुवा को पुचकार रही है और छाती पीट पीट कर रही है की आपकी समस्या हमारी समस्या है? आप लोगो के साथ हम और हमारा पूरा समाज बगैर.............पैर और बगैर.............मुँह के खड़े है। हमारे देश की वह महान पुण्य आत्माएँ भी रो रही होगी जिन्होंने समाजिक समरसता के लिए संविधान का निर्माण किया होगा । उन्होंने कभी सोचा भी न होगा की समानता के अधिकार का यह लोग ऐसा हश्र करेंगे अर्थात एक ओर जहाँ हुजूरे आला मेज थपथपाकर वहीं दूसरी ओर स्वार्थ परायण व्यक्ति अपने हुनर से सुख सुविधाओं का उपभोग करेगा। बाकी बचे लोग- जो देश और समाज कि प्रगति मे अपना ६० वर्षों से अमूल्य योगदान देंगे उनका क्या होगा ? उन्हे क्या लेना देना । मरे तो अपनी किस्मत से जिये तो अपनी किस्मत से । युवाओं का यह संघर्ष केवल उनका ही नहीं, अपितु आने वाली पीढियों के लिए भी है- जब परिस्थितियाँ सामान्य न हों तब एक साथ होकर सबको साथ हो जाना चाहिए यही आज युवा कर रहा है। युवा एकला चलो की नीति पर भी विश्वास नहीं करता इसीलिए इस संघर्ष मे वह उनका भी तहेदिल से स्वागत भी करता है जो अनानयास अपने होते हुए भी रास्ता भटक गए हैं। उन्हें विश्वास है कि सब कुछ भूलकर पुनः एक मंच पर सभी होंगे। युवा और युग परिवर्तन केवल दो शब्द मात्र नहीं है। युग को परिवर्तित करने की क्षमता युवा रखता है। इसलिए इन हुजूरे आलाओं को उनकी इस समस्या पर गंभ्रीरतापूर्वक ध्यान देना चाहिये और हल निकालना चाहिये। यदि हुजूरे आला इस मुद्दे को इसी तरह टालते रहे तो परिणाम- हिंसा, उग्रता मे भी बदल सकता है। शिक्षक युग निर्माता और युग वि‍‌धवंसक दोनों होता है। जब भी विश्व मे कोई भी क्रांति हुई है उसके केंद्र में विचारक और शिक्षक ही रहे हैं। परिणाम तो आप जानते ही होंगे ...... तभी इस सुविधा भोगी वर्ग को ०९ लाख युवाओं का दर्द समझना चाहिए कि जवानी मे बुढ़ापे के लिए युवा सोचने पर क्यों मजबूर है? उसकी यही मजबुरियाँ उनसे कहती हैं- जागो जगाओ, पुरानी पेन्शन बचाओ और अपना और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित बनाओ। युवा यह भी जानता है कि हमारे देश की परम्परा  अहिंसावादी रही है- देश की यह नीति विश्व नीति को नया आयाम देती है। इस संघर्ष के परिणाम में वह जानता है कि उसकी भूमिका शिक्षक होने के नाते क्या होनी चाहिये इसलिए वह इस संघर्ष मे मौन है, शांत है। 

 अंत मे- 

चलना नहीं पद चिन्हों पर तुम,

एक नया पथ आज बनाओ।

बनना न अनुगामी किसी का,

औरों को अनुगामी बनाओ।


लेखक
राकेश कुमार 
प्रा०वि० परौसा 
क्षेत्र कदौरा जिला जालौन



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