मीना
की दुनिया-रेडियो प्रसारण
एपिसोड-64
दिनांक-27/01/2016
आज की
कहानी का शीर्षक- “घर आये बाराती”
‘धूम धड़क्के सचिन के छक्के,रह गये सारे हक्के-बक्के’ सूत्रधार की आवाज
गूँजती है’ ‘....मीना की टोली दौड़ रही है खेलने खेल क्रिकेट का|’
“धूम धड़क्के धूम धड़क्के, सचिन के चौके,
सचिन के छक्के,रह गए सारे हक्के-बक्के||
मीना- राजू.....राजू बॉल लाया हैं न .....रानू,सुमी जल्दी चलो| अभी मिली,पाशा,और
रीना को भी बुलाना है|
आगे चल कर गली का हाल
देखें.....ओफ्फो! कितनी बदबू है यहाँ? ये मनोज भईया के घर बड़ी सफाई चल रही है, भला
क्यों?
लालाजी जी-.......पर आप घर का सारा कचरा गली में क्यों फेंक देते हो,
गाँव में जगह-जगह कचरा पेटी लगी है....उसमें क्यों नही डालते?
मनोज- देखो भाई अपना तो एक ही उसूल है- ‘अपना आराम, बाक़ी की राम-राम|’ इतनी दूर कचरा फेंकने बताओ तो कौन जायेगा?
लो भाई मनोज ने दिया जबाब
और लालाजी ने ली अपनी राह| बदबूदार गन्दी गली में बच्चे पहुँचे तो बच्चे मायूस हो
गए| तभी सरपंच जी उधर से आते दिखाई देते हैं| सभी बच्चे उन्हें सारी बात बताते
हैं|
सरपंच जी- मैंने उनसे बात की थी लेकिन उन्होंने ये कहकर टाल दिया कि
गली साफ रखने की जिम्मेदारी उनकी नहीं है| खैर मैं कुछ सोचता हूँ|
यह कह कर सरपंच जी आगे बढ़ जाते हैं| मीना सलाह देती है कि हम खुद साफ
करेंगे|सुमी- मीना, चलो हम साथ वाली गली में खेलते हैं|
मीना- कोई फायदा नहीं, वहाँ पर भी मनोज अकाक ने कचरे का ढेर लगा के
रखा है|
बच्चे मनोज काका को कहते सुनते हैं, ‘जल्दी-जल्दी हाथ चला छोटू,घर शीशे
की तरह चमकाना चाहिए...आखिर बेटी का रिश्ता आ रहा है| बहुत बड़े लोग हैं| अरे!
फूलमती जल्दी करो, अरे, दूर कहाँ जाती हो बाहर डाल दो कचरा|
सुमी- घर इस तरह चमका रहे हैं और कचरा...सारा गली में फेंक रहे
हैं|मुझे तो बहुत तेज़ गुस्सा आ रहा है|
“गुस्से का कोई फायदा नहीं सुमी, हमें ही कुछ करना पड़ेगा|” मीना ने
कहा|
और सारे बच्चे मीना
की तरकीब सुनने लगे| वाह! चतुर मीना की तरकीब भी निराली थी| फूलों का हार ले लड़के
वालों का स्वागत करने पहुँचा गयी मीना की टोली|.....और ये क्या? ये तो लम्बा
रास्ता काट के वीरु चाचा की गली में ले जा रही है|
और ये बच्चों की
दूसरी टोली आंधी से दौड़ती हुयी मनोज के घर क्यों जा रही है?
राजू- (मनोज से).....वो मीना, उन्हें(मेहमानों को) गाँव के छोर पे मिल
गई थी,और उन्हें वीरु चाचा के घर की तरफ ले गयी है|
“क्या? क्यों?..”मनोज चाचा घबरा कर बोले, “अजी सुनती हो,गजब हो गया|”
“मैं अभी आया,तुम सारी तैयारी रखना|” ये कहते हुए मनोज चाचा दौड़ चले
वीरु चाचा की गली की ओर .....पर वीरु चाचा की गली के मोड़ पर पहुँच कर उनके कदम लड़खड़ा
गये क्योंकि विजय बाबू, उनके होने वाले समधी जी गली की गन्दगी पर गुस्सा कर रहे
थे, “छीं छीं...कितनी गन्दी गली है? ये कैसे लोग हैं जो अपने घर का सारा कचरा घर
के बाहर फेंक देते हैं? क्यों मीना, क्या तुम्हारे गाँव की सारी गलियाँ इतनी गन्दी
हैं?”
मीना- जी नहीं, बस कुछ एक ही घर ऐसे हैं जो पूरी तरह से सफाई का मतलब
नहीं समझते|
यश की अम्मा (विजय की पत्नी)- देखो यश के बाबू जी.... घर कितना सुन्दर
है?
विजय बाबू- सुन्दर घर का क्या फायदा, यश की अम्मा| अगर उस घर के लोगों
को गाँव की सफाई की समझ नहीं| देखो...मनोज बाबू यहीं मिल गए|
मनोज बाबू- .....पता नहीं ये कैसे लोग हैं? कचरे का ढेर बनाकर सड़क पर
फेंक देते हैं, बीमारियाँ फैलाएं सो अलग|
“अरे! मनोज बाबू....नमस्कार| कैसे हैं? अरे! ये तुम्हारे होने वाले
समधी हैं क्या?” वीरु चाचा ने आवाज लगायी|
विजय बाबू- आपके परिचित हैं ये?
“हा..हाँ...नहीं, वो एक ही गाँव में रहते हैं न तो थोड़ी बहुत पहचान हो
ही जाती है| आप चलिए, थोड़ी देर पंचायत घर में आराम करते हैं फिर घर चलेंगे|” मनोज
चाचा ने जबाब में कहा|
विजय बाबू- नहीं..नहीं, सीधा आपके घर ही चलिए समधी जी, शुभ काम में
देरी नहीं होनी चाहिए...आराम भी वहीँ कर लेंगे|
“हाँ...हाँ....चलिए न, मनोज काका का घर तो बहुत सुन्दर और साफ है|”
मीना ने जोड़ा|
मनोज गुस्से से चहकते हुए
मीना को घूर रहे थे|और मीना तो उचक-उचक कर बातें कर रही थी और आगे-आगे उन्हें लेकर
जल्दी-जल्दी मनोज चाचा की गली की ओर ले जा रही थी|..पर अपनी गली में पहुँचने से
पहले, वह सपकपा कर रुक क्यों गए?
विजय बाबू- क्या हुआ मनोज बाबू? आप रुक क्यों गये?
मनोज बाबू बात टाल जाते
हैं|
विजय बाबू – वाह! वाह! क्या शानदार गली है?
सच ये तो गजब हो गया, मनोज बाबू की गली इतनी
साफ कैसे हो गयी? और यहाँ इतने सुन्दर फूलों के गमले कैसे सज गये? पर बेचारे मनोज
बाबू अभी भी इस बदलाव से बेखबर थे| उनका सर शर्म से ऊपर ही नहीं उठ रहा था|
नीचे देखते-देखते उन्होंने
कहा, “ देखिये विजय जी, आप मेरा यकीन कीजिए आज के बाद में अपनी गली,मोहल्ला,सारा
गाँव इतना साफ रखूँगा....इतना साफ रखूँगा कि.....कि......”
यश की अम्मा बोल पड़ी, “ यश के बाबू जी, इस गली को देखो.....और वो
पिछली गली....जमीन आसमान का फर्क है|
विजय बाबू-ठीक कहती हो यश की अम्मा, यही फर्क होता है समझदार और नासमझ
घरों में .....पर मनोज बाबू आप सर झुकाये तबसे नीचे क्या देख रहे हैं?
आखिर में जब मनोज बाबू ने
सर उठाकर अपनी गली को देखा तो वे चकित रह गए| देखते-देखते ही मनोज बाबू की बेटी का
रिश्ता पक्का हो गया, और शाम होते-होते लड़के वालों का परिवार भी विदा हुआ| मनोज
बाबू शाम को जब बच्चों के साथ बैठे तो बच्चों ने मिठाई खाते-खाते इस घटना का राज
खोला|
मनोज बाबू – वाह! भई मीना, तुमने तो
कमाल कर दिया|.....मैं वायदा करता हूँ, मेरी गली मेरे घर से भी ज्यादा साफ रहेगी|
साथ ही वीरु चाचा से भी माफी माँगते हैं|
सरपंच जी बच्चों को इनाम में एक नया क्रिकेट
बैट देते हैं|
आज का गाना-
अन्दर सुन्दर बाहर सुन्दर,सुन्दर है जग मेरा|
मिलकर महकाएं हम इसको घर ये तेरा मेरा||-२
जुड़ी उँगलियाँ बन गई मुठ्ठी,डोर जुडी तो बन गई रस्सी|
बूँद-बूँद से सागर भरता, जीत होती जब खेलें मिलकर|
आओ मिलकर कदम बढ़ाओ, अपना इक हो रस्ता|
अन्दर सुन्दर बाहर सुन्दर,सुन्दर है जग मेरा|
धरती ये अपनी है सुन ले,गाँव गली मोहल्ला|
सेवा इसकी शोभा इसकी,है अपने ही जिम्मे|
ये है आज और कल भी अपना,सुन्दर है जग मेरा|
मिलकर महकाएं हम इसको घर ये तेरा मेरा|
अन्दर सुन्दर बाहर सुन्दर,सुन्दर है जग मेरा|
मिलकर महकाएं हम इसको घर ये तेरा मेरा||-२
आज का खेल- ‘कड़ियाँ जोड़, पहेली तोड़’
1)
कानपुर के नाना
की मुंह बोली बहन छबीली थी|
बूझो नाम उसका पिता की वो संतान अकेली थी||
2)
नाना के संग पढ़ती
थी वो नाना के संग खेली थी|
वीर शिवाजी की गाथाएं उसको याद जुबानी थी||
3)
चमक उठी सन्
सत्तावन में वो तलवार पुरानी थी|
दूर फिरंगी को करने की उसने मन में ठानी थी||
उत्तर संकेत:-
“बुंदेले हर बोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी|
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी||
आज की कहानी का सन्देश-
“साफ-सुथरा मेरा मन|
गाँव मेरा सुन्दर हो||
प्यार फैले सड़कों-गलियों पर |
कचरा डिब्बे के अन्दर हो|”
मीना एक बालिका शिक्षा और जागरूकता के लिए समर्पित एक काल्पनिक कार्टून कैरेक्टर है। यूनिसेफ पोषित इस कार्यक्रम का अधिकसे अधिक फैलाव हो इस नजरिए से इन कहानियों का पूरे देश में रेडियो और टीवी प्रसारण किया जा रहा है।
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