वि श्व की विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देश में शिक्षा एक बड़ी चुनौती है तो अवसर भी। आजादी से लेकर आज तक चुनौतियों को अवसर में बदलने के लिए कारगर और ईमानदार प्रयास नहीं किए गए। अब तक हमने पूर्व प्रबंधन में निवेश ही नहीं किया। शिक्षण संस्थानों की इमारतों पर खासा ध्यान दिया और पढ़ाई-लिखाई के मामले में जाग नहीं पाए। आज तक जरूरतों और रोजगारोन्मुखी शिक्षा के हिसाब से पहल नहीं की जा सकी। शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता के साथ-साथ कौशल प्रशिक्षण की जरूरत है। अब तक शिक्षा के विशिष्टिकरण पर भी ध्यान नहीं दिया गया। जिस अनुपात में युवा आबादी है, उस अनुपात में सरकारों की शिक्षा के क्षेत्र में बहुआयामी सोच नहीं दिखी।
अलबत्ता, निजी संस्थान खूब खुलें लेकिन ये जन प्रबंधन का काम नहीं कर पाए। देश में अब भी यही गलत सोच है कि तकनीकी शिक्षा उपलब्ध करा देने भर की जिम्मेदारी है लेकिन इसका फायदा आज भी केवल दो भूखंडों को ही मिल सका। यह फायदा सिलिकॉन वैली या बंगलूरू तक सिमट कर रह गया। ऐसे में आजादी के इतने वर्ष बाद भी हम शिक्षा में आमूल-चूल बदलाव और काम करने की जरूरत महसूस करते हैं। निजी क्षेत्र के उद्योग-धंधों और रोजगारोन्मुखी शिक्षा के अलावा अभिजात्य और आम वर्ग की जरूरतों के हिसाब से शिक्षा व्यवस्था नहीं बन सकी है। ऐसे में उम्मीद कर सकते हैं कि सवा सौ करोड़ की बड़ी आबादी वाले युवा देश का जिक्र करने वाली सरकार शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की दिशा में कदम उठाएगी।
"आपकी बात" में आज शिक्षाविद्
'मनीषा प्रियम'
'मनीषा प्रियम'
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