मीना
की दुनिया-रेडियो प्रसारण
एपिसोड-78
दिनांक-15/02/2016
कहानी का शीर्षक- “ गुल्लक
भरो”
आज रीतू और श्रवण बहुत खुश हैं, पिताजी उनकी गुल्लक जो फुड़वाने वाले हैं। दोनों को उनके घर आने का इन्तज़ार है। रीतू बड़बड़ाते हुए - ”पिताजी ने कहा था कि आज जल्दी आएँगे लेकिन वो भी न ... “ इतने में मीना आ धमकी। ”अच्छा हुआ मीना जो तुम आ गई। ज़रा बताओ तो, हम दोनों में से किसकी गुल्लक भारी है?“ रीतू ने कहा।
मीना हँसते हुए बोली,
”अरे! यह तो वही ‘हाथी और गाय’ वाली गुल्लक हैं न, जिसे कुछ समय पहले चाचाजी तुम दोनों के लिए लाए थे!“
”हाँ-हाँ, ये वही गुल्लक हैं! तुमने ठीक पहचाना,“ रीतू और श्रवण एक साथ बोले।
”याद है ना मीना,
तुम्हीं ने तो बताया था कि तुम्हारा भाई राजू और तुम गुल्लक में पैसे कैसे जोड़ते हो? बाहर जाकर खाने-पीने की चीज़ों पर पैसे नहीं खर्चते और केवल घर में माँ के हाथों से बनी चीज़ें ही खाते हो,“ रीतू मीना को देखते हुए बोली, ”तुमने क्या कहा था? ‘सेहत की सेहत और बचत की बचत’।“
”देखो मीना!
अब तो मैं पिचकारी ज़रूर लूँगा,“
श्रवण ने कहा।
”और मेरा रोशनी वाला लट्टू आएगा!“ रीतू बोली।
जनाब मिट्ठू मियां अपनी आदत से मजबूर चहके, ”लट्टू आएगा ... घूमता जाएगा ...“
”अरे मीना!
अब जल्दी बताओ मेरी गुल्लक ज़्यादा भारी है न?“ श्रवण ने पूछा।
”देखो भई,
अगर बाहर से देखंे,
तो हाथी से भारी भला कौन हो सकता है? गाय तो उसके सामने हल्की है, लेकिन हमें मज़ा तो तब आएगा, जब खूब सारे पैसे आपस में खन-खन करेंगे ... “ हँसते हुए मीना ने कहा। मिट्ठू मियां मस्ती में गाते हुए - ”पिताजी आ रहे हैं, थैला ला रहे हैं ... “
”अरे वाह!
पिताजी आ गए!“
श्रवण और रीतू बोले,
”आपको याद है न कि आज गुल्लक फोड़नी है पिताजी?“
”नमस्ते चाचाजी,“
मीना बोली।
”नमस्ते बिटिया!
घर में सब ठीक हैं न?“
पिताजी बोले।
”जी चाचाजी,“
मीना ने कहा।
”अच्छा बच्चों!
तुम खेलो,
पहले मैं बाबा को दवाई देकर आता हूँ,“ पिताजी ने कहा। जल्दी ही पिताजी दवाई देकर वापस आ गए, ”कहाँ है तुम्हारी गुल्लक? लाओ?“
रीतू बोली,
”पहले मेरी हाथी वाली!“
पिताजी ने बारी-बारी से दोनों बच्चों की गुल्लक फोड़ी और गुल्लक फूटते ही सिक्के खन-खन करते हुए इधर-उधर बिखर गए।
”बच्चों!
अब तुम इन्हें गिनो,
और मुझे बताओ,“ पिताजी ने कहा। रीतू और श्रवण सिक्के गिनने लगे, एक, दो, तीन ... रीतू झट से बोली, ”एक वाले पाँच, दो वाले तीन और पाँच वाले दो! तो हो गए पूरे बीस।“
”... और मेरे पास एक वाले आठ, दो वाले चार और पाँच वाला एक! तो, हो गए पूरे इक्कीस रुपये,“ श्रवण पहले से ही मन-ही-मन खुश था कि जैसे ही गुल्लक फूटेगी वह बाज़ार जाएँगे।
”क्या अब बाज़ार चलंे?“
श्रवण ने पूछा।
”हाँ, चलते हैं बच्चों,“ पिताजी बोले। लेकिन तभी अन्दर से दादाजी ने आवाज़ दी, ”बेटा पहले मुझे खेत तक ले चलो, उसके बाद बच्चों को बाज़ार ले जाना।“
”बच्चों,
थोड़ी देर रुको मैं बाबा को शौच करा कर अभी आता हूँ,“ पिताजी बोले।
मीना हैरान हो उठी क्योंकि उसे पता ही नहीं था कि रीतू के घर में शौचालय नहीं है। वह बोल उठी - ”रीतू गाँव में तो सभी के घर में शौचालय है, तुम्हारे पिताजी ने अभी तक शौचालय क्यों नहीं बनवाया?“ रीतू ने कहा कि उसके पिताजी ऐसा चाहते हैं पर इसमें पैसा और समय दोनों बहुत लगेंगे। ”नहीं रीतू, सरपंच चाचाजी ने मेरे बाबा को बताया था कि शौचालय बनवाने में 2 हज़ार रुपये और दो-तीन दिन लगते हैं। देखो घर में शौचालय न होने से तुम्हारे दादाजी को कितनी पेरशानी हो रही है,“ मीना ने बताया। मन-ही-मन कुछ सोचते हुए रीतू ने कहा, ”तुम ठीक कहती हो मीना!“
जल्दी ही पिताजी दादाजी को लेकर आ गए।
”जाओ बच्चों अब बाज़ार जाओ,“ दादाजी ने कहा।
”मीना तुम भी हमारे साथ बाज़ार चलो,“ रीतू के पिताजी बोले।
”ठीक है चाचाजी,
मैं माँ को बता कर आती हूँ, फिर चलती हूँ,“ मीना खुश होकर बोली।
रास्ते में बच्चे तरह-तरह की चीज़ें देखते हुए चल रहे थे, उन्हें पता भी नहीं चला कि कब वह बाज़ार वाले मोड़ पर पहुँच गए। अचानक पिताजी ने कहा, ”बच्चों अपने-अपने पैसे लो और तुम्हें जो भी खरीदना है खरीद लो। मैं चला चाय पीने और थोड़ी गप-शप करने। देखो वहाँ सरपंचजी भी बैठे हैं।“
अभी वे लोग चाय पी ही रहे थे कि बच्चे दौडे़-दौड़े वापस पिताजी के पास आ गए।
”नमस्ते सरपंचजी,“
बच्चे एक साथ बोल पड़े।
”नमस्ते बच्चों, कैसे हो तुम सब?“ उन्होंने जवाब में कहा।
”अरे!
मीना तुम भी बाज़ार घूमने आई हो?“
सरपंच जी बोले।
”जी सरपंचजी!“
मीना बोली। इतने में पिताजी ने श्रवण और रीतू को हाथ में कुछ पीछे छुपाते हुए देखा।
”ये पीछे क्या छिपा रहे हो?
ज़रा मैं भी तो देखूँ,“ वह बोले। ”पिताजी हम आपके लिए एक उपहार लाए हैं,“ बच्चों ने कहा। ”क्या! मेरे लिए?“ पिताजी ने हैरानी से पूछा।
”जी हाँ पिताजी,
आपके लिए!“
रीतू ने कहा।
”गुल्लक!!!
इसका मैं क्या करूँगा?“
पिताजी ने कहा।
”बचत करेंगे और घर में शौचालय बनवाएँगे। देखिए हमने पहले ही इसमें अपने बचे हुए रुपये डाल दिए हैं,“ श्रवण ने कहा। ”लेकिन ... “ पिताजी कुछ कहने ही वाले थे कि रीतू बोल पड़ी, ”नहीं पिताजी! बोलो न मीना। तुम्हीं तो कह रही थी न कि सरपंचजी ने बताया है कि केवल 2 हज़ार रुपये और दो-तीन दिन ही लगते हैं शौचालय बनवाने में।“ अब बारी सरपंचजी के बोलने की थी, ”यह बात तो सोलह आने ठीक कही है, मीना बिटिया ने। मैं तुम्हें कल सरकार द्वारा चलाए जा रहे ‘सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान’ के बारे में बता दूँगा।“
रीतू और श्रवण के पिताजी गर्व से मुस्कुरा उठे। ”आज तो मेरे बच्चों और मीना ने कमाल ही कर दिया।
अब हम -घर में शौचालय बनवाएँगे, वातावरण को भी स्वच्छ बनाएँगे।“
मीना एक बालिका शिक्षा और जागरूकता के लिए समर्पित एक काल्पनिक कार्टून कैरेक्टर है। यूनिसेफ पोषित इस कार्यक्रम का अधिकसे अधिक फैलाव हो इस नजरिए से इन कहानियों का पूरे देश में रेडियो और टीवी प्रसारण किया जा रहा है।
प्राइमरी का मास्टर एडमिन टीम भी इस अभियान में साथ है और इसके पीछे इनको लिपिबद्ध करने में लगा हुआ है। आशा है आप सभी को यह प्रयास पसंद आयेगा। फ़ेसबुक पर भी आप
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