मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण
एपिसोड- 47
आज की कहानी का शीर्षक- “शर्त ”
मीना तो अपनी सहेली रानो के घर गयी हुई है। चलो कोई बात नहीं, जब तक मीना नहीं आ जाती हम राजू के पास ही चलते हैं। मगर ये राजू है कहाँ? ..............हाँ.......... वो रहा, मिट्ठू के साथ।
राजू: सच्ची, इस दूरबीन में देखने से तो दूर की चीजे बिल्कुल पास दिखती हैं।
मिट्ठू: बिलकुल पास.......बिल्कुल पास।
राजू: वो देख मिट्ठू ... वो ...अरे ये तो दीपू है। ये तो अपने दोस्तों के साथ मेरी तरफ ही आ रहा है।और दीपू के पास तो हवाई जहाज है।
दीपू: क्यों राजू ? अकेले अकेले क्या कर रहा है।
राजू: मैं अपनी दूरबीन से खेल रहा हूँ, दीपू।
दीपू: अ....मैं देख लूँ।
राजू: ये ले, तू भी देख।
दीपू: अरे वाह! वो, वहां,.....वो रहा मेरा घर। अरे बिना दूरबीन के तो मेरा घर नज़र ही नहीं आ रहा। फिर से लगा कर देखता हूँ। अरे वाह!....दूर की चीज़े कितनी पास दिख रहीं हैं।
मज़ा आ गया।
राजू: अरे दीपू
दीपू: अरे वाह! तेरी आँखें कैसी मोटी मोटी भूत जैसी लग रही हैं।
राजू: दीपू अब मेरी दूरबीन मुझे दे दे। मुझे खेलना है।
दीपू: हाँ .... हाँ, ये ले। ह्म्म्म राजू, ये मेरा हवाई जहाज़ देखा.........ले ले चला कर तो देख।
राजू: अरे वाह दीपू, ये हवाई जहाज़ के साथ खेलने में तो बहुत मज़ा आ रहा है।
दीपू: तू चाहे तो ये जहाज़ तेरा हो सकता है। हाँ राजू
राजू: लेकिन कैसे?
दीपू: एक शर्त लगते हैँ
राजू: कैसी शर्त?
दीपू: बड़ी आसान शर्त है। अगर तू जीता तो मेरा जहाज़ तेरा।और अगर तू हारा तो फिर तेरी ये दूरबीन मेरी। बोल लगाएगा शर्त।
राजू: लेकिन शर्त है क्या?
दीपू: एक रुपये का सिक्का देखा है। मैं इस सिक्के को हवा में उछालूँगा, अगर चित आया तो मैं जीता और अगर पट आया तो तू हारा। मंज़ूर है।
राजू: चिट दीपू जीता, पट तो मैं हारा। .......... मंजूर है।
दीपू: तो फिर ये ले। ये मैंने उछाला सिक्का, हो ये या हहा.... चित आया। मतलब मैं जीत गया।..........जहाज़ भी मेरा और ये दूरबीन भी मेरी। चल ला इधर दूरबीन।
राजू: दीपू, ये दूरबीन मुझे मेरी बहन मीना ने मेरे जन्मदिन पर दी थी। मैं नहीं दूंगा।
दीपू: देगा कैसे नहीं? शर्त हारा है। दूरबीन तो देनी ही पड़ेगी। ला, इधर ला......चलो दोस्तों खेलते हैं।
राजू: मेरी दूरबीन , मेरी दूरबीन,........
मीना: राजू............राजू, अरे राजू, तू यहाँ ऐसे। रो क्यों रहे हो? क्या हुआ?
राजू: मेरी दूरबीन, .......... मीना.......... मेरी दूरबीन
मीना: क्या हुआ दूरबीन को ? बोलो राजू
राजू: मैं दूरबीन शर्त में हार गया मीना, दीपू से।
मीना: क्या? शर्त लगाना तो बहूत ही बुरी बात है, राजू । ह्म्म्म.......अच्छा ये बताओ, शर्त थी क्या?
राजू: दीपू ने मुझसे कहा, वो सिक्के को हवा में उछलेगा, अगर चित आया तो वो जीतेगा, अगर पट आया तो मैं हारूँगा। सिक्का जमीन पर गिरा और चित आया.......... और मैं अपनी दूरबीन हार गया।
मीना: राजू, दीपू ने तुम्हे बेवकूफ बनाया है।
राजू: कैसे?
मीना: ये देखो, सिक्का जमीन पर गिरा, चित आया और तुम हार गए,
राजू: उआअन्नन्न
मीना: और अगर पट आता तो भी तुम हारते।
राजू: अरे हाँ , मीना
मीना: राजू मेरे भाई, शर्त लगाना ही गलत है। तुम रोओ मत, हम दीपू के पास चलते हैं। मैं उससे बात करूंगी। है कहाँ दीपू ?
राजू: वो वो वहाँ खेल रहा है, अपने दोस्तों क साथ, मेरी दूरबीन से।
मीना: ........ दीपू ...
दीपू: क्या है?
मीना: तुमने राजू की दूरबीन ले ली है
दीपू: ली नहीं। जीत ली है शर्त में
मीना: वो शर्त नहीं, एक धोखा था
दीपू: कोई धोखा वोखा नहीं था, मैं तो उस शर्त पे पता नहीं कितने बच्चों को हरा चुका हूँ। वो तो नहीं रोते तेरी तरह। चल, मुझे अपने दोस्तों क साथ खेलने दे।
अरे मीना, तू गयी नहीं अभी तक
मीना: मैं ये दूरबीन लिए बिना यहाँ से जाऊँगी भी नहीं
दीपू: ये दूरबीन, हाँ भई, ये दूरबीन मिल तो सकती है तुझे। लेकिन, मेरे साथ एक खेल खेलना होगा तुझे।
मीना: कैसा खेल?
दीपू: ये दोनों पेड़ देख रही है। दोनों बिलकुल एक जैसे हैं।
मीना: तो?
दीपू: हम दोनों, एक एक पेड़ पर चढ़ेंगे।जो पेहले ऊपर तक पहुंचा, वो जीता। बोल ........ मंज़ूर है?
मीना: मंजूर है।
दीपू: पूरी बात तो सुन ले। अगर तू जीती तो दूरबीन तेरी। और आगर मैं जीता तो ............. तो ....हाँ तो ये मिठ्ठू मेरा।
मीना: मिठ्ठू! नहीं, नहीं ........ मुझे नहीं खेलना। चलो राजू ........ चलो मिठ्ठू!
दीपू: हे हे हे डर गई, डर गई, मीना भी डर गई......... ।
मीना: चलो मिठ्ठू,
राजू: मीना, मुझे पता है कि तुम दीपू से जीतोगी।
मिठ्ठू: तुम दीपू से जीतोगी, पेड़ पर पहले पहुँचोगी।
मीना: हम्म्म्म्म ठीक है राजू। मिठ्ठू अगर तुम्हे भी लगता है ........ तो, ठीक है| ....... दीपू.....
दीपू: क्या है?
मीना: मुझे शर्त मंज़ूर है। लेकिन पेहले पूरी बात सुन लो, दीपू । अगर तुम हारे तो तुम इन सब बच्चों को इनकी चीज़े लोटा दोगे जो तुमने उनको बेवकूफ बना कर ली हैं। बोलो, मंज़ूर है।
दीपू: फ़फ़फ़ मंज़ूर है।
मीना: फिर ठीक है। आज तीन बजे हम यहीं मिलेंगे। चलो मिट्ठू , चलो राजू
अरे ये मीना और राजू तो घर की तरफ चले गए। मगर , ये मिठ्ठू वहाँ क्या कर रहा है। लगता है दीपू और उसके दोस्तों की बातें सुन रहा है। आओ हम भी सुनें।
दीपू: आज तो मीना का मिठ्ठू भी मेरा। हाहाहा........
दोस्त: लेकिन तू इस खेल में, मीना को धोखा कैसे देगा ?
दीपू: अरे यार! एक छोटे से खेल में क्या धोखा देना.............. कभी कोई लड़की क्या किसी लड़के को खेल कूद में हरा सकती है। हा ह हा
लो भाई, तीन बज गये। चलो जल्दी चलें। मीना और दीपू के बीच में मुकाबला शुरू हो गया होगा।
मीना और दीपू, दोनों तेजी से पेड़ पर चढ़ते हुए। दोनों ही पेड़ बहुत ऊँचे हैं। देखते हैं की इन दोनों में से पहले कौन सबसे ऊपर चढ़ पाता है।मीना बहुत तेज़ी से ऊपर बढ़ती हुई, और वो दीपू से भी आगे बढ़ गई।
अरे ये क्या? मीना का एक हाथ छूट गया। और वो पेड़ की डाल से लटक गयी है।
मीना...... शाबास! हिम्मत मत हारना मीना।
मीना ने खुद को संभाल तो लिया है। मगर लगता है की उसकी टांग पर चोट लग गयी है।
लगता है दीपू ही जीतेगा।
और ........ ये क्या! मीना तो पहले से और भी तेज़ चढ़ने लगी। और ये ...... ये मीना जीत गयी।
मिट्ठू: मीना, मीना। जीत गयी मीना
राजू: ये रही हमारी दूरबीन। ये लो बिट्टू तुम्हारी टोपी, सोनू तुम्हारी गुड़िया और ये जहाज़
मीना: नहीं राजू, ये जहाज़, दीपू का है, ऊसे वापस देदो। ये लो दीपू, अपना जहाज़। और एक बात... आज के बाद कभी भी लड़कियों को लड़कों से किसी भी काम में कम नहीं समझना।
दीपू: ...... समझ गया।
राजू: तुमने तो कमाल कर दिया मीना।
मीना: राजू, आज की इस जीत में मेरी बहनजी की सीख बहुत काम आई। उन्होंने ही हमे सिखाया था कि लड़कियों क लिये भी खेल कूद उतना ही जरूरी है जितना कि लड़कों क लिऐ। मुझे उनकी बातें हमेशा याद रहती हैं।
आज का गाना-
हम में भी है लड़कों जैसा दम ,
नही समझना लड़कियों को कम |
जो भी चाहें वो कर जायें हम,
नही समझना लड़कियों को कम |
ओ..हो....हो.......हो............हो.........
स्कूल में हम हैं पढ़ते-लिखते,
खेलते सुबह ओ शाम |
खेल कूदके स्वस्थ है रहना,
जीतना अपना काम |
धम....धम......धम धम .......
जीत पे अपनी ढोल बाजे,
धम धम धम धम |
नही समझना लड़कियों को कम |
नही समझना लड़कियों को कम |
ओ..हो....हो.......हो............हो.........
हम में भी................................,
जो भी चाहें...............................|
खेल हमें अच्छा लगता है,
कोई न हमको रोके |-२
लड़की-लड़की बोल के,
हमको कभी न कोई टोके |
काम है क्या जो न कर पाएं हम,
हम में भी है लड़कों जैसा दम|
नही समझना ....................|
आज का खेल-
‘नाम अनेक अक्षर एक’
अक्षर- ‘श’
- व्यक्ति-शाहरूख खान (अभिनेता)
- जानवर-शुतुरमुर्ग
- वस्तु- शहद
- जगह -शिमला (हिमाचल प्रदेश)
आज की कहानी का सन्देश- लड़कियां लड़कों से कम नहीं होती|
मीना एक बालिका शिक्षा और जागरूकता के लिए समर्पित एक काल्पनिक कार्टून कैरेक्टर है। यूनिसेफ पोषित इस कार्यक्रम का अधिकसे अधिक फैलाव हो इस नजरिए से इन कहानियों का पूरे देश में रेडियो और टीवी प्रसारण किया जा रहा है।
प्राइमरी का मास्टर एडमिन टीम भी इस अभियान में साथ है और इसके पीछे इनको लिपिबद्ध करने में लगा हुआ है। आशा है आप सभी को यह प्रयास पसंद आयेगा। फ़ेसबुक पर भी आप
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