ढेर सारी सिफारिशों वाली सुब्रहण्यम कमेटी की रिपोर्ट यह बताने में असफल रही है कि शिक्षा के लिए जरूरी वित्तीय साधन कैसे जुटाए जाएँगे ? 


नई शिक्षा नीति के प्रारूप को तैयार करने के लिए गठित टीएसआर सुब्रमण्यम कमेटी की रिपोर्ट पर मीडिया में हल्की-सी चर्चा जरूर हुई है, किंतु अभी तक इस पर राष्ट्रीय बहस नहीं हो पाई है। नई शिक्षा नीति 24 वर्षो के बाद फिर तय की जा रही है, इस पर गहराई से विचार जरूरी है।सुब्रमण्यम कमेटी ने स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा व शिक्षा से जुड़ी नियामक संस्थाओं के भविष्य पर 90 बुनियादी सुझाव दिए हैं। देश के 765 विश्वविद्यालयों और 40 हजार कॉलेजों में पढ़ रहे 3़.3 करोड़ विद्यार्थियों और आठ लाख प्राध्यापकों को यह जानना जरूरी है कि आखिर उच्च शिक्षा में अपेक्षित व्यापक सुधारों के लिए इस कमेटी की सिफारिशें कितनी तार्किक और व्यावहारिक हैं? क्या ये देश की उच्च शिक्षा में व्याप्त उद्देश्यहीनता, निराशा, अराजकता, भ्रष्टाचार और कर्तव्यहीनता पर लगाम लगाकर उसे अगले दो-तीन दशकों की जरूरतों के अनुरूप नई दिशा दे पाएंगी? क्या उच्च शिक्षा से जुड़ी हमारी नौकरशाही और शिक्षक समाज सुझाए गए व्यापक परिवर्तनों के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं?केंद्र और राज्य सरकार, दोनों को शिक्षा पर कानून बनाने व उसके नियमन का अधिकार है, क्योंकि 1976 के एक संविधान संशोधन में शिक्षा को समवर्ती सूची में डाल दिया गया था। कमेटी की राय है कि यद्यपि एक दर्जन से अधिक नियामक संस्थाओं, जैसे यूजीसी, एआईसीटीई, एनसीटीई, एमसीआई आदि के कामकाज के लिए अलग कानून हैं, किंतु राष्ट्रीय स्तर पर कोई एक कानून नहीं है, जो उच्च शिक्षा के प्रबंधन व नियमन की दिशा बताता हो। नई शिक्षा नीति के प्रारूप में कहा गया है कि उच्च शिक्षा के प्रबंधन, संवर्धन और प्रोत्साहन को कानूनी ढांचा देने के लिए नेशनल हायर एजुकेशन प्रमोशन ऐंड मैनेजमेंट ऐक्ट बनाया जाएगा। जब तक इससे संबंधित विधेयक पारित नहीं होता, मौजूदा कानून जारी रहेंगे। प्रस्तावित कानून के तहत केंद्रीय स्तर पर भारतीय उच्च शिक्षा नियमन अभिकरण और राज्य स्तर पर उच्च शिक्षा परिषदों के गठन का सुझाव दिया गया है। नए कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों की मान्यता का काम राज्य उच्च शिक्षा परिषदों द्वारा राष्ट्रीय परिषद के निर्धारित मानकों के अनुसार किया जाएगा।समाज के वंचित तबकों के युवाओं को उच्च शिक्षा कैसे मिले, इस पर भी कमेटी ने विचार किया है। अभी तक यूजीसी हर साल पीएचडी करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 35,000 फेलोशिप देती रही है, जिससे करीब 82,000 शोधकर्ता लाभान्वित होते हैं। यूजीसी इस पर अभी प्रतिवर्ष 1,050 करोड़ रुपये खर्च करती है। सुब्रमण्यम कमेटी ने आर्थिक रूप से विपन्न वर्गो के 10 लाख युवाओं को छात्रवृत्ति देने के लिए राष्ट्रीय उच्च शिक्षा कोष स्थापित करने का सुझाव दिया है। इस छात्रवृत्ति द्वारा वंचित व गरीब तबकों के युवाओं की फीस, किताबों व रहन-सहन के खर्च को पूरा करने के लिए जरूरी वित्तीय सहायता दी जाएगी। राष्ट्रीय उच्च शिक्षा छात्रवृत्ति कोष को सरकार, कॉरपोरेट सेक्टर, अलुमनाई और धनी व्यक्ति वित्तीय अनुदान प्रदान करेंगे।हमारी उच्च शिक्षा की एक समस्या यह है कि ज्यादातर विद्यार्थी राज्यों के सरकारी विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं। देश में ऐसे 329 विश्वविद्यालय हैं, जहां पर पांच से 10 लाख विद्यार्थी प्रवेश लेते हैं और संबद्ध कॉलेजों की संख्या 500 से 1,000 तक होती है। सुब्रमण्यम कमेटी ने कहा है कि संबद्ध कॉलेजों की संख्या 100 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। जिन विश्वविद्यालयों में 100 से ज्यादा संबद्ध कॉलेज हों, उन्हें नए विश्वविद्यालय बनाकर बांट देना चाहिए। कुलपतियों की नियुक्ति पर कमेटी ने कहा है कि केंद्र व राज्य सरकारों को कुलपतियों की मेरिट आधारित नियुक्ति के लिए संयुक्त रूप से एक नया मॉडल बनाना चाहिए। कमेटी ने विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की गंभीर कमी, शिक्षकों की नियुक्ति में तदर्थतावाद, देरी, भ्रष्टाचार व भाई-भतीजावाद पर भी तीखी टिप्पणी की है। राज्य स्तर पर कॉलेज शिक्षकों की भर्ती में होने वाली शर्मनाक ‘खुली नीलामी’ पर रोक लगाने के लिए कमेटी ने लोक सेवा आयोग या अन्य किसी स्वायत्त संस्था को शिक्षकों की भर्ती का काम सौंपने का सुझाव दिया है। कमेटी ने कहा है कि स्नातक स्तर पर पढ़ाने के लिए पीएचडी की कोई अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए, बल्कि इन शिक्षकों को सूचना प्रौद्योगिकी और संप्रेषण कला में प्रशिक्षित करना चाहिए।कमेटी ने तदर्थ व अतिथि प्राध्यापकों पर अत्यधिक निर्भरता की तीखी आलोचना की है। उसका कहना है कि हर राज्य को समय रहते प्राध्यापकों की भर्ती का कार्य शुरू करके हर कॉलेज में प्राध्यापकों की पर्याप्त संख्या सुनिश्चित करनी चाहिए। कई राज्यों में राजकीय कॉलेजों के प्राध्यापकों का ट्रांसफर होता रहता है, जो नितांत गलत है। 

शिक्षकों की कमी से निपटने हेतु कमेटी की एक रचनात्मक सिफारिश है कि 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करने वाले अति मेधावी विद्यार्थियों को पांच वर्षीय एकीकृत कोर्स में भर्ती करके उन्हें अच्छे शिक्षक के रूप में तैयार करना चाहिए। सरकार को ऐसे विद्यार्थियों को पांच वर्षो तक पूर्ण वित्तीय मदद देनी होगी।सुब्रमण्यम कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता की जांच-पड़ताल और नियामक संस्थाओं के कामकाज पर भी अपनी राय दी है।

 पिछली राष्ट्रीय शिक्षा नीति में नेशनल एसेसमेंट ऐंड एक्रेडिटेशन कौंसिल, यानी नैक और नेशनल बोर्ड ऑफ एक्रेडिटेशन, यानी एनबीए की स्थापना की गई थी, जिन्हें विश्वविद्यालयों व कॉलेजों की गुणवत्ता परखने का काम सौंपा गया था। देश के 40 हजार उच्च शिक्षा संस्थानों में से नैक अभी तक 6,446 कॉलेजों का ही एक्रेडिटेशन कर पाया है, जिसमें 253 विश्वविद्यालय शामिल हैं। चालू वर्ष में ऐसी 25 हजार संस्थाएं हैं, जिनका एक्रेडिटेशन किया जाना है। कमेटी का सुझाव है कि एक्रेडिटेशन अब हरेक संस्थान के लिए अनिवार्य होगा और हर संस्था का पांच वर्षो में एक बार एक्रेडिटेशन किया जाएगा। दूसरा सुझाव नैक और एनबीए का विलय करके नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड (एनएबी) की स्थापना करने का है। तीसरा सुझाव एनएबी के अंतर्गत एक्रेडिटेशन की अनेक नई गैर सरकारी एजेंसियों को लाइसेंस देने का है। ये गैर सरकारी लाइसेंसधारी एजेंसियां पांच वर्ष में एक बार हर संस्थान की गुणवत्ता की व्यापक जांच-पड़ताल करेंगी। हर उच्च शिक्षण संस्थान को एक से सात रैंक में रखा जाएगा, जिसमें सातवीं रैंक सर्वोच्च क्वालिटी मानी जाएगी। पहली-दूसरी रैंक हासिल करने वाले संस्थानों को तीन वर्षो के अंदर तीसरी रैंक प्राप्त करनी होगी, वरना उनकी मान्यता रद्द कर दी जाएगी। सातवीं रैंक पाने वाले संस्थानों को सभी प्रकार के सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त करते हुए पूर्ण स्वायत्तता दे दी जाएगी।सुब्रमण्यम कमेटी ने इंडियन एजुकेशन सर्विस शुरू करने का महत्वपूर्ण सुझाव भी दिया है। कमेटी ने विश्वविद्यालय परिसरों में बढ़ रहे छात्र आंदोलनों, हिंसा और राजनीतिक हस्तक्षेप पर भी चिंता जताई है। लेकिन कमेटी यह बताने में असफल रही है कि उच्च शिक्षा में व्यापक सुधारों और उसकी कायापलट के लिए जरूरी वित्तीय संसाधन कैसे जुटाए जाएंगे? सिर्फ यह कहना काफी नहीं कि राष्ट्रीय आय का छह प्रतिशत शिक्षा पर और उसमें से 1.5 प्रतिशत उच्च शिक्षा पर खर्च करने से सारी समस्याएं हल हो जाएंगी। देश के कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों में पढ़ा रहे शिक्षाविदों को अब इन मुद्दों पर अपनी बेबाक राय देने के लिए आगे आना होगा।

लेखक
हरिवंश चतुर्वेदी
डायरेक्टर, बिमटेक
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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