आजादी के बाद जब भारत की संसद का गठन हुआ तो उसमें तमाम ऐसे स्वतंत्रता सेनानी, सांसद बन गए जिन्होने आजीवन आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए घर- बार, व्यवसाय, शिक्षा सब छोंड़ दी थी वो केवल पूर्ण स्वराज के लक्ष्य के लिए अपना दिन रात न्योछावर करते थे। तब राजनीति, समाज सेवा मानी जाती थी, सांसदों के लिए वेतन आदि की कोई सुविधा नहीं थी, अब चूंकि आजादी मिल चुकी थी तो आजादी की लड़ाई के लिए गठित संगठन और लोगों की आर्थिक मदद भी संगठनो के लिए समाप्त हो गई थी।
ऐसे में इन लोगों के सांसद बनने के बाद भी इनकी आजीविका का कोई साधन नहीं था तब तात्कालिक परिस्थितियों को देखते हुए सांसदों के लिए न्यूनतम वेतन और पेंशन की व्यवस्था की गई जिससे इनका खर्च निकल सके।
परन्तु अब ऐसे लोगों की पीढ़ी समाप्त हो चुकी है आज जो भी सांसद, विधायक चुनकर संसद में पहुँचते हैं उनमें से अधिकांश बड़ी बड़ी कम्पनियों के मालिक या अरबपति, करोड़ पति होते हैं यह बात उनके टैक्स रिटर्नों से साबित होती है ऐसा भी नहीं है कि वह सांसद / विधायक बनने के बाद सारी सम्पत्ति और व्यवसाय को दान कर के पूर्ण कालिक राजनेता बनकर समाज सेवा में दिन रात लगा देते हैं जिससे उनके समक्ष भी आजीविका चलाने का संकट पैदा हो जाता है। तो फिर क्या ववेतन भत्तों, पेंशन की पुरानी व्यवस्था का लाभ आज की बदली परिस्थितियों में बदस्तूर सभी सांसदों को मिलते रहना चाहिए??
यह कैसे जनसेवकों की कैसी सरकारें है जो अपने लिए तो सभी मुफ्त सुख सुविधाओं, टैक्स फ्री वेतन, पेंशन, भत्तों का इंतजाम करती है पर अपने सेवकों ( कर्मचारियों और शिक्षकों) को पेंशन के सर्वमान्य, सर्व स्वीकार सिस्टम से विहीन कर अनिश्चित भविष्य की चिंता में ढकेल देती है? वह भी तब जब इनके लिए सेवारत समय में और न ही सेवानिवृत्त बुढ़ापे में कैशलेस इलाज की सुविधा है न ही चिकित्सीय खर्च की प्रतिपूर्ति..?
अमरेश मिश्र , मंत्री,
उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ,
शाखा - बिधनू,
जनपद - कानपूर नगर
Kaam bdhte ja rhe h aur Adhikaar chhinte ja rhe h
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