नई शिक्षा नीति (NEP) के तीन वर्ष : क्या कुछ हुआ और क्या होना बाक़ी? 


नई शिक्षा नीति के लागू होने के तीन वर्ष पूरे होने पर इसका आकलन किया जाना आवश्यक है कि शिक्षा व्यवस्था में अभी तक जो सुधार किए गए हैं, वे प्रभावी सिद्ध हो रहे हैं या नहीं? 


यह भी देखा जाना चाहिए कि जो सुधार किए गए हैं, उनसे अपेक्षित परिणाम प्राप्त हो रहे हैं या नहीं? 


इसी तरह इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि देश भर के शिक्षा संस्थान नई शिक्षा नीति के प्रविधानों को गंभीरता के साथ लागू कर रहे हैं या नहीं ? 



यह समीक्षा इसलिए की जानी चाहिए, क्योंकि इससे ही नई शिक्षा नीति के उद्देश्यों को समय रहते हासिल करने में सफलता मिलेगी। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि नई शिक्षा नीति बनने में अच्छा-खासा समय लग गया। 


सरकार का यह दावा सही हो सकता है कि नई शिक्षा नीति से जुड़ी 80 प्रतिशत अनुशंसाओं पर आगे बढ़ा गया है, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या इन अनुशंसाओं पर सही तरह अमल भी हो पा रहा है? 


इससे इन्कार नहीं कि कुछ बड़े और नामी शिक्षा संस्थानों ने नई शिक्षा नीति के प्रविधानों को लागू करने में तत्परता दिखाई है, लेकिन अनेक शिक्षा संस्थान अभी भी इस मामले में सुस्त और पीछे नजर आ रहे हैं। 


कुछ राज्य सरकारें भी नई शिक्षा नीति पर अमल के मामले में उतनी सजग नहीं, जितना उन्हें होना चाहिए। यह ठीक नहीं कि कुछ शिक्षा संस्थान और यहां तक कि विश्वविद्यालय भी अभी पुराने ढर्रे पर ही चलते दिख रहे हैं। वे ऐसी डिग्रियां बांटने में लगे हुए हैं, जिनकी उपयोगिता प्रश्नों के घेरे में है।


चूंकि तकनीक के इस दौर में दुनिया तेजी से बदल रही है इसलिए शिक्षा व्यवस्था में सुधार की प्रक्रिया को भी तेज किया जाना चाहिए। नई शिक्षा नीति का एक बड़ा उद्देश्य छात्रों के व्यक्तित्व को संवारना और उन्हें भविष्य की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाना है। छात्रों को उस कौशल से लैस किया जाना चाहिए, जिनके बिना आज के इस तकनीकी युग में काम चलने वाला नहीं है। 


वास्तव में कौशल विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए। आवश्यकता केवल इसकी ही नहीं हैं कि पठन-पाठन की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जाए, बल्कि इसकी भी है कि शिक्षकों को इस तरह प्रशिक्षित किया जाए, जिससे वे उन अपेक्षाओं पर खरे उतर सकें, जो नई शिक्षा नीति के माध्यम से की गई हैं। छात्रों की मानसिकता के साथ शिक्षकों के चिंतन में भी बदलाव आना समय की मांग है। 


यह भी समझा जाना चाहिए कि प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा व्यवस्था तमाम समस्याओं से दो-चार है। आखिर देश भर के स्कूल और विश्वविद्यालय थोड़े-बहुत बदलाव के साथ एकसमान पाठ्यक्रम अपनाएं, इसके लिए ठोस उपाय क्यों नहीं किए जा रहे हैं? निःसंदेह पाठ्यक्रम में बदलाव को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए, क्योंकि कायदे से तो अब तक यह काम हो जाना चाहिए था।



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