सिकुड़ते स्कूल, सिकुड़ता समाज और शिक्षा का खोता क्षितिज


आज के दौर में विशालकाय विद्यालयों का विस्तार हो रहा है, उनके संसाधन बढ़ रहे हैं, परंतु इसी विस्तार के साथ-साथ अनेक विद्यालय संकुचित होते जा रहे हैं। विडंबना यह है कि जैसे-जैसे इन विद्यालयों की भौतिक दीवारें ऊंची होती जा रही हैं, वे प्रकृति और समाज से उतने ही दूर होते जा रहे हैं। परिणामस्वरूप, इन विद्यालयों की सामाजिक दुनिया भी सिकुड़ती जा रही है।


यह सिकुड़न केवल भौतिक दीवारों तक ही सीमित नहीं है, इसका प्रभाव बच्चों की शिक्षा और समग्र विकास पर भी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। इन विद्यालयों में जाने वाले बच्चों की शिक्षा का दायरा सिमट रहा है। भाईचारे और सहानुभूति की भावना कम हो रही है। वे विविधतापूर्ण समाज और प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। बौद्धिक रूप से ही नहीं, बल्कि अपने अंतरतम अस्तित्व में भी वे अनुभवों से वंचित हो रहे हैं। संभवतः, मानवता के रूप में साझा अस्तित्व की भावना भी कमजोर हो रही है।


यह सच है कि देश के 26 करोड़ बच्चों में से अधिकांश इन विशालकाय विद्यालयों में नहीं जाते हैं। जिन विद्यालयों में वे जाते हैं, उनमें से अधिकांश में तत्काल सुधार और बदलाव की आवश्यकता है।


क्योंकि इन विशालकाय विद्यालयों की सिकुड़न का प्रभाव समाज के हर वर्ग पर पड़ेगा। जिस तरह से हमारे समाज का विज्ञान संचालित हो रहा है, जीवन के तमाम क्षेत्रों में इन विद्यालयों से निकलने वाले बच्चे नेतृत्व की भूमिका निभा सकते हैं। ऐसे में, जरा सोचिए कि अगर उनकी मानसिक और भावनात्मक सोच संकुचित रही, तो हमारा देश कहां जाएगा?


यह चिंता का विषय है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन तक सीमित होता जा रहा है। चरित्र निर्माण, सामाजिक सरोकार, मानवीय मूल्यों का विकास, ये सभी पीछे छूटते जा रहे हैं।


इस शिक्षण प्रणाली में बदलाव लाना होगा। हमें ऐसे विद्यालयों का निर्माण करना होगा जो बच्चों को केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित न रखें, बल्कि उन्हें जीवन के विविध पहलुओं से परिचित कराएं। उन्हें प्रकृति से जोड़ें, सामाजिक सरोकारों के प्रति जागरूक करें, और मानवीय मूल्यों का विकास करें।


यह बदलाव केवल सरकार या शिक्षाविदों का ही दायित्व नहीं है। यह समाज के हर नागरिक का दायित्व है। हमें मिलकर प्रयास करने होंगे ताकि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन तक सीमित न रहे, बल्कि यह समग्र व्यक्तित्व निर्माण का साधन बने।


✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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