ड्रग्स से भी ज्यादा शिक्षा में एआई का इस्तेमाल
शिक्षण संस्थानों का मूल उद्देश्य सोचने की क्षमता विकसित करना है। मगर एआई के कारण वहां इसके विपरीत होने लगा है। यह धोखा है।
सोचने की क्षमता वह विलक्षण गुण है, जो हमें अन्य प्राणियों से अलग कर इंसान बनाती है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, यानी एआई उस सोचने की क्षमता को ही खत्म कर रहा है। एआई नौकरियां खत्म कर रहा है। इससे झूठ-सच, नकली-असली को अलग करना मुश्किल हो रहा है। यह अपराधियों को उकसाकर हिंसा भड़का सकता है या इससे भी बदतर स्थिति पैदा कर सकता है। इसकी बदौलत कई घटनाएं घट भी चुकी हैं। आशंका है कि ये सभी मिलकर अराजकता का ऐसा मंजर उपस्थित कर देंगे, जो इंसानियत के लिए बहुत बड़ा खतरा होगा। कुल मिलाकर, सबसे खतरनाक बात यही निकलकर आती है कि एआई हमारी इंसानियत को खोखला कर रहा है।
कई मामलों में एआई से फायदे भी हैं। लेकिन मैं 'चीजों को समग्रता में देखने' वाली दलीलों को मानने को तैयार नहीं हूं। एआई की बाढ़ को रोकना होगा और परमाणु क्षमता की तरह इस जिन्न को बोतल में बंद करना होगा। अगर आप इस पर पक्का यकीन करना चाहते हैं, तो किसी शैक्षणिक संस्थान में कुछ समय बिताएं। जितना अधिक कुलीन संस्थान होगा, जितनी अधिक एआई से जुड़ी चीजों तक वहां पहुंच होगी, उतनी ही तेजी से आपका नजरिया बदल जाएगा।
नजीर के तौर पर, काफी गहन शोध द्वारा अलग-अलग तरह के मादक पदार्थों के फायदेमंद असर को खोजा जाता है, इसे साबित किया जाता है और समझा जाता है। इतने सारे परीक्षणों के बावजूद, इन पदार्थों का इस्तेमाल सिर्फ विशेषज्ञ की देख-रेख में ही किया जाता है। बात साफ है कि जो चीजें इंसानियत को बदल देती हैं, उसे बहुत सावधानी से इस्तेमाल करना चाहिए। हमें अपने बच्चों को इससे दूर रखना होता है, सिवाय उपचार की जरूरत के। यहां तक कि वयस्कों को भी ऐसी चीजों का इस्तेमाल बहुत सावधानी से करना होता है। क्यों? क्योंकि ये पदार्थ हमें और हमारी इंसानियत को बदल देते हैं।
कुछ ऐसे पदार्थ भी हैं, जिन्हें अक्सर सिर्फ 'ड्रग्स' कहा जाता है। उनका इस्तेमाल न केवल सख्त मना है, बल्कि इसे आपराधिक श्रेणी में रखा जाता है। ये पदार्थ और ड्रग्स ऐसे टूल्स हैं, जो हमें बदलते हैं, ठीक वैसे ही जैसे एआई। बस फर्क इतना है कि ये पदार्थ व ड्रग्स हमारे पाचन-तंत्र, श्वसन-तंत्र या रक्त वाहिनियों के जरिये तंत्रिका पथ के संपर्क में आते हैं, जबकि एआई देखने- सुनने व सामाजिक तंत्र के जरिये वहां तक जाता है। बल्कि, एआई कहीं अधिक गहराई से बदलता है। गौर कीजिए, सोशल मीडिया और उससे जुड़ी टेक्नोलॉजी कैसे ध्यान को नियंत्रित कर रही है, मानसिक स्वास्थ्य के संकट पैदा कर रही है, समाज को बांट रही है और भी बहुत कुछ कर रही है।
एआई ऐसा ही टूल है, जो इंसानों को बदल रहा है। कई लोग इसकी विध्वंसक ताकत से हैरान हैं। एक बात तो साफ है कि आप जितना ज्यादा एआई का इस्तेमाल करेंगे, उतना ही खुद के बारे में कम सोचेंगे। इसका नतीजा होता है कि सोचने की क्षमता कम हो जाती है।
आप देखें, इन दिनों शैक्षणिक संस्थानों में क्या कुछ हो रहा है? शिक्षण संस्थानों का मूल उद्देश्य इंसान के सोचने की क्षमता को विकसित करना है। लेकिन वहां इसका उल्टा हो रहा है। शिक्षक और छात्र सोचने की जिम्मेदारी एआई को सौंप रहे हैं। एआई शिक्षकों के लिए पाठ्यक्रम, शिक्षण योजना, पाठ्य-पुस्तकें, असाइनमेंट और परीक्षा के प्रश्न-पत्र तक सेट कर रहा है और छात्र जवाब के लिए एआई का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह तो एक धोखा है। शिक्षा खत्म करना एआई से इंसानियत को पहला खतरा है। इसलिए अब कई संस्थान और शिक्षक एआई के खिलाफ दृढ़ हो गए हैं।
निस्संदेह, मौजूदा डिजिटल दुनिया में एआई को रोकना नामुमकिन है। इसलिए वे शिक्षण के पुराने तरीकों पर वापस जा रहे हैं, यानी कक्षा में आमने-सामने बैठकर पढ़ाई। इंसानी गतिविधियों में एआई से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए बहुत ज्यादा कोशिशों की जरूरत है। जहां तक शिक्षा का सवाल है, इस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो इसका मतलब होगा कि हम युवाओं को ड्रग्स दे रहे हैं। वह ड्रग कोकीन से ज्यादा खतरनाक है।
लेखक
अनुराग बेहर
सीईओ, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
Post a Comment