शिक्षण- अधिगम में केस स्टडी

कक्षा शिक्षण में प्रत्येक छात्र अपनी क्षमताओं के अनुसार सीखता है जबकि कक्षा का आकार बड़ा होता है। केस स्टडी उन विषयों के लिए अधिक उपयोगी होती है जिनकी पाठ्यवस्तु का स्वरूप सुनिश्चित होता है तथा भली प्रकार उन्हें परिभाषित किया जा सकता है। इस विधि के द्वारा विद्यार्थियों को जीवन में आने वाली विभिन्न परिस्थितियों से सामना करने के लिए तैयार किया जाता है इसमें छात्र के सम्मुख जीवन या विषय वस्तु से संबंधित घटना प्रस्तुत की जाती है और उससे विभिन्न प्रश्न पूछे जाते है। छात्र के द्वारा दिये गये प्रश्नों के उत्तर के आधार पर अन्य विद्यार्थी उस छात्र से वाद-विवाद भी करते है। केस स्टडी विधि स्वयं करके समस्या को हल करने की सर्वोत्तम विधि है।

शिक्षक जहां व्याख्यान विधि द्वारा शिक्षण कार्य कर विद्यार्थी को ज्ञानार्जन कराता है वहीं केस स्टडी विधि के द्वारा छात्र को सीखने के अवसर प्राप्त होते है जो अधिगम प्रक्रिया में सहायक होते है। सक्रिय अधिगम प्रक्रिया में विद्यार्थी केवल व्याख्यान को सुनता ही नहीं है बल्कि वह तार्किक चिन्तन के साथ-साथ समस्या समाधान को खोजने व लिखने और समुदाय से बातचीत करने का कौशल विकसित करता है।


ब्रेन स्टॉरमिंग (Brainstorming)
केस स्टडी से छात्रों की ब्रेन स्टॉरमिंग करने में बहुत सहायता मिलती है। इसमें छात्रों को समस्या दे दी जाती है और उनसे कहा जाता है कि वे समस्या पर वाद-विवाद करें और जो विचार उनके मस्तिष्क में आये उनको प्रस्तुत करने का प्रयास करें। यह आवश्यक नहीं है कि उनके सभी विचार सार्थक ही हो। छात्रों के समूह को इस प्रकार समूह को प्रोत्साहित किया जाता है कि समूह समस्या का विश्लेषण, संश्लेषण और मूल्यांकन करें।

Brainstorming helps you develop creative solutions to a problem, and is particularly useful when you need to break out of stale thinking patterns.




केस स्टडी एवं NCF ~ एन0सी0एफ0 2005

गुणवत्तापरक शिक्षा और शैक्षिक उद्देश्यों को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के प्रथम अध्याय ‘‘परिप्रेक्ष्य’’ में बच्चों को क्या पढ़ा जाये और कैसे पढ़ाया जाये’’ की कसौटी पर विस्तार रूप से विचार करते हुए पाठ्यचर्चा के निम्न पांच निर्देशक सिद्धान्तों को प्रस्ताव रखा गया है-

1. ज्ञान को स्कूल के बाहरी जीवन से जोड़ना।
2. पढ़ाई रटन्त प्रणाली से मुक्त हो यह सुनिश्चित करना।
3. पाठ्यचर्या का इस प्रकार संवर्द्धन कि वह बच्चों को चहुमुखी विकास के अवसर मुहैया
करवाये बजाय इसके कि पाठ्यपुस्तक केन्द्रित बनकर रह जाये।
4. परीक्षा को अपेक्षाकृत अधिक लचीला बनाना और कक्षा की गतिविधियों से जोड़ना।
5. एक ऐसी पहचान का विकास, जिसमें प्रजातांन्त्रिक राज्य व्यवस्था के अन्तर्गत राष्ट्रीय चिन्ताएं समाहित हो।


एन0सी0एफ 2005 के पांच मुख्य मार्गदर्शी सिद्धान्त केस स्टडी में समाहित है। इससे छात्रों को सीखने के अवसर प्राप्त होते है, छात्र करके सीखते है। अतः रटन्त प्रणाली से मुक्त होते है। शिक्षक एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। इससे छात्रों में सृजनात्मकता, चिन्तन, अभिव्यक्ति क्षमता एवं तर्कशक्ति का विकास होता है। छात्रों को ऐसे विषय चिन्तन हेतु दिये जा सकते है, जिससे राष्ट्रीय चिन्तन हो सके ताकि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो।

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