“अगर शिक्षक ही तैयार नहीं, तो समाज किस दिशा में बढ़ेगा? जब शिक्षक निर्माण की प्रक्रिया बाज़ार के हवाले हो जाए, तब शिक्षा की आत्मा दम तोड़ने लगती है। नई शिक्षा नीति ने एक नई मशाल थामी है — अब ज़रूरत है उसे व्यवस्था की अंधेरी गलियों में ले जाने की। यह आलेख उसी मशाल की रोशनी में शिक्षक प्रशिक्षण की उस तस्वीर को टटोलता है, जिसे हमने दशकों से धुंधला छोड़ दिया है।”
शिक्षक प्रशिक्षण : नीति की नीयत और ज़मीनी ज़रूरत
नई शिक्षा नीति 2020 को लागू हुए कुछ वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन इसकी कुछ धाराएं आज भी गूंज की तरह हैं — सुनी जाती हैं, सराही जाती हैं, पर पूरी तरह ज़मीन पर नहीं उतर पाई हैं। इस नीति की सबसे सकारात्मक और दूरगामी संभावना शिक्षक प्रशिक्षण से जुड़ी है। क्योंकि किसी भी शिक्षा व्यवस्था की आत्मा शिक्षक होता है, और शिक्षक की आत्मा उसका प्रशिक्षण। अगर यह प्रशिक्षण सशक्त, गंभीर और मूल्यों से भरपूर हो, तो शिक्षा केवल नौकरी नहीं, बल्कि समाज परिवर्तन का औजार बन सकती है।
लेकिन दुर्भाग्य यह है कि शिक्षक प्रशिक्षण आज अपने उद्देश्य से बहुत दूर चला गया है। यह केवल एक औपचारिक प्रक्रिया बन गई है — जिसमें प्रशिक्षण का समय, स्थान और सामग्री तो होती है, पर प्रतिबद्धता, गहराई और संवेदनशीलता का अभाव साफ दिखाई देता है।
भारत में अधिकांश शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान केवल प्रमाणपत्र देने वाले प्रतिष्ठान बनकर रह गए हैं। जिन संस्थानों से शिक्षण कार्य की नींव तैयार होनी चाहिए, वहां व्यावसायिक सोच ने नैतिकता को पीछे धकेल दिया है। शिक्षक प्रशिक्षण की प्रक्रिया एक उद्यम बन गई है, जहां गुणवत्ता से अधिक मात्रा का महत्त्व है। बीएड, डीएलएड जैसे पाठ्यक्रमों में दाख़िला एक उद्यम की तरह होता है — जितने ज़्यादा छात्रों का प्रवेश, उतनी ज़्यादा आमदनी। ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक है कि क्या इस प्रक्रिया से होकर गुज़रा व्यक्ति एक सच्चा शिक्षक बन पाएगा?
नई शिक्षा नीति इस विकृति को पहचानती है और इसे सुधारने की बात करती है। नीति में स्पष्ट उल्लेख है कि शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता का मूल्यांकन होना चाहिए, और केवल वही संस्थान मान्यता प्राप्त करें जो निर्धारित शैक्षणिक व नैतिक मानकों पर खरे उतरें। इसके अतिरिक्त नीति यह भी कहती है कि शिक्षकों को 4 वर्षीय समेकित बी.एड कार्यक्रम से प्रशिक्षित किया जाए, जिससे वे विषय की गहराई के साथ-साथ शैक्षणिक दृष्टिकोण भी विकसित कर सकें। यह एक क्रांतिकारी सोच है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में व्यवधान वही पुरानी व्यवस्थागत शिथिलता है।
आज भी कई राज्यों में शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेजों की संख्या बहुत अधिक है, पर गुणवत्ता पर ध्यान देने वाला कोई तंत्र सक्रिय नहीं दिखता। निरीक्षण केवल खानापूर्ति बन गया है और प्रशिक्षण का स्तर बेहद निम्न। प्रशिक्षणार्थी शिक्षण तकनीकें सीखने के बजाय केवल पाठ्यक्रम पूरा करने और परीक्षा पास करने पर केंद्रित रहते हैं। इस कारण, शिक्षक बनने की प्रक्रिया में आत्ममंथन, प्रयोग, मूल्यबोध और बाल मनोविज्ञान जैसी चीजें अनुपस्थित हो जाती हैं।
इस स्थिति के निराकरण के लिए कुछ ठोस और निर्णायक कदम ज़रूरी हैं:
1. व्यापारिक मानसिकता पर रोक: निजी प्रशिक्षण संस्थानों की मान्यता पुनः जांची जाए और केवल उन्हीं को अनुमति मिले जो प्रशिक्षण को सेवा और समाज निर्माण का कार्य मानते हैं।
2. संगठित मूल्यांकन तंत्र: राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वतंत्र निकाय बने, जो प्रशिक्षकों, पाठ्यक्रमों और प्रशिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता का सतत मूल्यांकन करे।
3. प्रशिक्षण का व्यावहारिक रूपांतरण: कक्षा आधारित प्रशिक्षण को विद्यालय आधारित अनुभवों से जोड़ा जाए। प्रशिक्षु शिक्षक वास्तविक कक्षाओं में शिक्षण कार्य करें और उन्हें मेंटर शिक्षकों से फीडबैक मिले।
4. प्रशिक्षकों की गुणवत्ता: शिक्षक-प्रशिक्षकों की योग्यता, अनुभव और प्रेरणा को प्राथमिकता मिले। प्रशिक्षकों को भी नियमित रूप से अद्यतन किया जाए।
5. नई सोच और नवाचार: प्रशिक्षण के दौरान केवल पाठ्यक्रम की बात न हो, बल्कि शिक्षक की संवेदना, भाषा, दृष्टिकोण, और सामाजिक जिम्मेदारी पर भी कार्य हो।
अंततः, यदि हम चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियाँ नवाचारी, संवेदनशील और मूल्यनिष्ठ बनें, तो हमें शिक्षक तैयार करने की प्रक्रिया को अत्यंत गंभीरता से लेना होगा। शिक्षक प्रशिक्षण को केवल औपचारिकता नहीं, एक आध्यात्मिक और बौद्धिक यात्रा बनाना होगा। यही वह पहला पड़ाव है, जहां से नई शिक्षा नीति की सफलता या विफलता की दिशा तय होती है। नीति की नीयत साफ है, अब ज़रूरत है ज़मीनी ज़िद की।
✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
Post a Comment