बच्चे कैसे समझते हैं कोई अवधारणा? आम धारणा है कि सीखना-सिखाना एक गंभीर प्रक्रिया है, अतः इसे पूरी गंभीरता से ही किया जाना चाहिए, लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि आनन्ददायी तथा रूचिपूर्ण गतिविधियाँ भी सीखने - सीखाने के लक्ष्य के प्रति पूरी गंभीरता से मददगार होती हैं।
गंभीरता लक्ष्य के प्रति होना आवश्यक है, ना कि वातावरण के प्रति। अक्सर बच्चे अपनी ग़लतियाँ खुद पकड़ लेते हैं, यह ज़रूरी नहीं है कि उन्हे हर बार ग़लतियों का एहसास ही कराया जाए। इस समझ के साथ कि ग़लती होने पर पहाड़ नहीं टूट पड़ेगा। सीखने की प्रक्रिया मे ग़लतियाँ तो होगी ही, लेकिन असल बात यही है कि सीखना बंद नहीं होना चाहिए।
सीखने - सिखाने की हमारी योजनाओं मे बच्चों के लिए ढेरों संदेश छुपे होते हैं। बच्चों पर इनके असर के बारे मे हम लोग लगभग जानते हैं पर कुछ संदेश ऐसे भी हैं, जो हमारे स्कूल के माहौल, अध्यापक के व्यवहार, बोल-चाल, चाल- ढाल, और हाव-भाव मे भी मौज़ूद तो होते हैं, पर अक्सर अध्यापक को उनका एहसास नहीं हो पता है।
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