नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर साथ आएं केंद्र और राज्य


"चूकि शिक्षा समवर्ती सूची में है तो एनईपी के लक्ष्य हासिलबकरने के लिए केंद्र राज्यों को मिलकर काम करना होगा"


कुछ दिन पहले ही पेश की गई नई शिक्षा नीति का महत्वाकांक्षी लक्ष्य प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक एकरूपता का करना और वर्ष 2030 तक शत प्रतिशत नामांकन हासिल करना है। 34 वर्ष बाद आई इस नीति का प्रारूप जाने-माने वैज्ञानिक और इसरो के पूर्व प्रमुख डॉ. के. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में तैयार किया गया है। आजादी के बाद भारत को अब तक तीन शिक्षा नीति मिली हैं। पहली शिक्षा नीति 1968 में बनी जिसमें पूरा पर मुख्य रूप से 14 साल तक के सभी बच्चों के लिए शिक्षा को अनिवार्य बनाने पर था। 



अगली शिक्षा नीति 1986 में लागू की गई। इस दूसरी शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच क्षमता को घटाना था। इस नीति ने विभिन्न सामाजिक समूहों में शिक्षा के मोर्चे पर समानता कायम करने पर जोर दिया, लेकिन उसने प्रतिस्पर्धी वैश्विक परिदृश्य पर उतना ध्यान नहीं दिया, जबकि 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण और वैश्वीकरण की बयार शुरू होने के बाद यह पहलू बहुत महत्वपूर्ण हो गया था। अब 2020 की नई शिक्षा नीति में भारतीय अर्थव्यवस्था की बढ़ती हुई आवश्यकताओं को देखते हुए स्थानीय और वैश्विक मानव संसाधन  1986 की शिक्षा नीति के मुकाबले में नई नीति में क्या बदलाव आए हैं? 


रणनीतिक रूप से देखें तो दोनों नीतियों में अंतर मुख्य रूप से तीन प्रमुख पैमानों पर दिखता है। पहला समाज का विजन, दूसरा सामाजिक उद्देश्य और तीसरा शिक्षा का उद्देश्य। दोनों नीतियों का विकास सामाजिक ढांचे को ध्यान में रखकर ही किया गया। इस प्रकार देखें तो 1986 और 2020 की शिक्षा नीतियों का भारतीय समाज के बारे में अलग विचार और दृष्टिकोण है। 1980 के दशक में दुनिया की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं मुख्यतः स्थानीय थीं और कुछ संक्रमण के दौर से गुजर रही थीं। इसी को ध्यान में रखते हुए 1936 की नीति का जोर सभी के लिए समान अवसर और मानकीकरण पर था।


 दूसरे शब्दों में कहें तो नियामक एजेंसियों का पूरा ध्यान इस पहलू पर केंद्रित था कि वे विभिन्न संगठनों और संस्थानों में एक न्यूनतम शिक्षा मानक को सुनिश्चित करें। इसकी तुलना में 2020 में अधिकांश स्थानों में परिपक्वता के साथ समालोचनात्मक जड़ता भी घर कर गई है तो नई शिक्षा नीति अपनी पसंद विशेष के क्षेत्र में व्यक्तिगत क्षमताओं को धार देकर उस क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करने की ओर उन्मुख करती है। इसके लिए शिक्षा में लचीले विकल्प दिए गए हैं तो संस्थानों को अधिक आंतरिक स्वायत्तता प्रदान कर उन पर नियमों का बोझ कम किया गया है। नई शिक्षा नीति में विषय चयन, स्कूलों में सॉफ्टवेयर प्रशिक्षण, क्रेडिट ट्रांसफर के अलावा मल्टीपल एंट्री और एक्जिट सिस्टम जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ ही समूचे शिक्षा क्षेत्र के लिए एकमात्र नियामक बनाने से यह स्पष्ट रूप से जाहिर भी होता है।
दोनों शिक्षा नीतियों में दूसरे छात्र का संबंध सामाजिक उद्देश्य से जुड़ा है। 


1956 की नीति की दिशा विभिन्न सामाजिक समूहों के लिए मानव शैक्षणिक अवसर उपलब्ध कराने की ओर थी। व्यापक रूप से उसका मुख्य उद्देश्य वंचित वर्गों के समावेशन पर केंद्रित था। वहीं 2020 की शिक्षा नीति सामाजिक समावेशन के साथ-साथ वंचित वर्गों की खासी हिस्सेदारी वाले क्षेत्रों में विशेष शिक्षा क्षेत्रों के गठन की उम्मीद जगाती है। इसके अतिरिक्त नई शिक्षा नीति शैक्षिक ज्ञान और प्रशिक्षण से मिलने वाले आर्थिक उपार्जन पर भी ध्यान केंद्रित करती है। नई शिक्षा नीति कौशल आधारित समझ और रोजगारपरकता को लेकर बहुत गंभीर है। माध्यमिक शिक्षा और उसके बाद विभिन्न स्तरों पर तकनीकी कौशल उपलब्ध कराने पर जोर देने से यह एकदम स्पष्ट होता है। 


इसका कारण शायद यह भी है कि आज अर्थव्यवस्थाएं वैश्वीकरण के जटिल समीकरणों के साये में संचालित हो रही हैं। तीसरा अंतर शिक्षा के उद्देश्यों की समझ से जुड़ा है। इससे पहली नीति में विश्व और मानव जीवन की समझ पर मुख्य रूप से ध्यान केंद्रित किया गया। 1986 की नीति के अनुसार शिक्षा का लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय सहयोग, शांतिपूर्ण सह अस्तित्व, समाजवाद का विकास, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की समझ के साथ मानव संसाधन का समग्र विकास करना है। वहीं नई नीति नागरिकों के ज्ञान, कौशल एवं वैयक्तिक विकास के साथ राष्ट्रीय विकास पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है। 


इसके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य ही मानव की समस्त संभावनाओं को भुनाना और समरूप समाज के विकास के साथ ही राष्ट्रीय विकास को प्रोत्साहन देना है। नई नीति में पाठ्यक्रम की रूपरेखा समालोचनात्मक सोच, विमर्श और विश्लेषणात्मक समझ की दिशा में है जिसका लक्ष्य भारतीय प्रतिभाओं और मानव संसाधन को और बेहतर बनाना है। 


कुल मिलाकर 1986 की नीति ने शिक्षित एवं प्रशिक्षित मानव संसाधनों का ऐसा वर्ग तैयार किया जिन्होंने वैल्यू चेन में योगदान दिया, लेकिन 2020 की नीति ऐसे मानव संसाधन के निर्माण का स्वप्न रखती है जो खुद वैल्यू चेन के नए आयाम का सृजन करें, फिर भी रणनीतिक पहलुओं को छोड़ दिया जाए तो 1986 और 2020 की शिक्षा नीतियों में कई बातें एकसमान भी हैं। नई शिक्षा नीति के लागू होने से भारतीय शिक्षा तंत्र अंतरराष्ट्रीय मानकों के करीब पहुंचेगा। 


देश भर के छात्रों के बीच हुए एक ऑनलाइन सर्वे में करीब 96.4 प्रतिशत छात्रों को नई नीति के परिणामों से उत्साहजनक उम्मीद बंधी है। हालांकि यह बात नहीं भूली जानी चाहिए कि शिक्षा भारतीय संविधान में सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में है। ऐसे में इस नीति के अपेक्षित फायदे को हासिल करने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को कंधे से कंधा मिलाकर काम करना होगा। 


✍️ आलेख : धीरज शर्मा
(लेखक आईआईएम, रोहतक के निदेशक हैं।)

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