बेसिक शिक्षा में गुरू जी को क्लर्क मत बनाइए, बना सकें तो परिषदीय स्कूलों में शिक्षा का माहौल बनाइए

 
उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग में गुरु जी को क्लर्क बनाने का अभियान चल रहा है। इसे रोका जाना चाहिए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को इसमें दखल देना चाहिए। गुरु की गरिमा बचाने के लिए उन्हें आगे आना चाहिए। नहीं रोका गया तो प्रदेश की बेसिक शिक्षा को पतन की और जाने से नही रोका जा सकेगा। गुरूजी का पद समाज में सम्मान का पद है।


गुरु जी शिक्षा की महत्वपूर्ण कड़ी हैं। वह बच्चों को शिक्षा देने के साथ आदर्श, नैतिकता, मानवता के गुण विकसित करते हैं। इसीलिए गुरू को गोविंद से बड़ा दर्जा दिया गया है। 

दोहा है. 
गुरू गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाएं, 
बलिहारी गुरू आपने गोविंद दियो बताए। 


गुरू सम्मान और गुरू परंपरा का पतन महाभारत काल से होना शुरू हुआ जब गुरू राज दरबारी होने लगे। बाद में मुस्लिम काल और ब्रिटिश काल में उनकी जीविका की जिम्मेदारी सरकार ने संभाल ली। जो उन्हें अधोनत करती चली गई। इसके बावजूद समाज में आज भी गुरू जी का बड़ा सम्मान है, आदर है। आज की पीढ़ी भी अपने गुरु को चरण स्पर्श करते देखी जा सकती है। 


हालाकि समाज के पतन का असर सब क्षेत्र में आया है। इससे गुरु जी बचे रहें, यह कहना गलत होगा, फिर भी यहां अभी बहुत घरभर है। पिछले कुछ साल से देखा जा रहा है कि निरीक्षण पर आने वाले विभागीय और प्रशासनिक अधिकारी बच्चों के सामने शिक्षकों का अपमान करते नहीं चूकते। छात्रों के सामने उनसे उल्टे सीधे प्रश्न पूछते हैं। न बताने पर छात्रों के सामने उन्हें अपमानित करते हैं। सोचिए अपने सामने डांट और अपमानित हुए शिक्षक को उनके छात्र कैसे सम्मान देंगे?


शिक्षको से अलग बुलाकर भी तो पूछताछ हो सकती है। वेसे भी निरीक्षण में आए अधिकारियों को समझना चाहिए कि अब शिक्षक योग्यता के बल पर रखे जा रहे हैं। मैरिट पर उनका चयन हो रहा है। उनका सम्मान बनाये रखने की सबकी जिम्मेदारी है। बेसिक शिक्षा को सुधारने की बात चलती है। बच्चों को स्कूल लाने के लिए मिड डे मील, छात्रवृति और ड्रेस आदि देकर उन्हें स्कूल लाने की बात की जा रही है। इनसे बच्चे स्कूल नही आएंगे। आएंगे तो सिर्फ परिषदीय स्कूलों में शिक्षा का माहौल बनाने से बदलाव आएगा और  माहौल बनाने पर कोई ध्यान नहीं दे रहा। 


शिक्षक को कामचोर, बेइमान नाकारा बताने और अपमानित करने का काम हो रहा है। यदि शिक्षा को बेसिक शिक्षा को सुधारना होगा, तो गुरू का सम्मान बहाल करना पड़ेगा। आज स्थिति यह है कि परिषदीय शिक्षक से पढ़ाई कम कराई जारही है, उससे पढ़ाई से ईतर ज्यादा कार्य लिए जा रहे हैं। जनगणना में शिक्षकों की डयूटी लगाई जाती है। पल्स पोलियो अभियान को कामयाब बनाने घरों से बच्चे बूथ तक बुलाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी जाती है। वोटर लिस्ट बनाने, उनके संशोधन और प्रदर्शन और चुनाव में शिक्षकों की डयूटी लगाई जाती है। 


एक शिक्षक ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पिछले डेढ़ साल से डीबीटी के काम में उलझे हुए हैं। इसमें प्रत्येक छात्र की सूचनांए संकलित करनी होती हैं । इसके लिए छात्र के अभिभावकों के आधार नंबर तथा अकाउंट नंबर से आधार और मोबाइल का लिंक होना जरूरी है। गांव के लोग त्रुटिपूर्ण आधार बनवाए हुए हैं इनके करेक्शन के लिए अभिभावकों को बैंक या ब्लॉक कार्यालय भेजना शिक्षक के काम में शामिल हो गया है। 


अभिभावक प्रायः अपनी दिहाड़ी छोड़कर नहीं जाते। अभिभावकों के आधार कार्ड ठीक कराने के लिए शिक्षकों पर दबाव बनाया जाता है। अक्सर शिक्षक अपनी जेब से किराया खर्च करके उन्हें आधार कार्ड ठीक कराने भेजते हैं। ऐप ठीक से काम नहीं करता और शिक्षक परेशान होते रहते हैं। इसके अलावा कोरोना काल में जब स्कूल बंद थे तो उन दिनों के कन्वर्जन कॉस्ट का भुगतान करने के लिए एक एक बच्चे के बैंक खाते आईएफएससी कोड आदि की डिटेल बनाकर बैंक में भेजनी पड़ती है। उन दिनों के मिड डे मील के खाद्यान का कैलकुलेशन करना पड़ता था कि कौन बच्चा कितने दिन विद्यालय में रहा। उतने ही किलोग्राम चावल और गेहूं की क्वांटिटी तैयार करके राशन डीलर को देनी होती है। सरकार द्वारा दिए गए एक राशन वितरण प्रपत्र पर 10.12 तरह की डिटेल्स प्रत्येक बच्चे की भरकर उन्हें देनी होती है। इसे दिखाकर वह राशन प्राप्त करते हैं। 


विद्यालय की पुताई कराना, पाठ्य पुस्तकें बीआरसी से या न्याय पंचायत केंद्र से उठाकर लाना उनकी डयूटी में शामिल हो गया है। रोजाना तरह तरह की सूचनाएं विभाग द्वारा मांगी जाती हैं, वह तैयार करके भेजनी होती हैं। सड़क सुरक्षा सप्ताह हो या संचारी रोग पखवाड़ा, जल संरक्षण हो या भूमि संरक्षण टीवी के मरीज को गोली लेना हो या कितने अभिभावकों ने कोविड-19 की वैक्सीन लगवाई, यह डाटा पता करना सब शिक्षक के जिम्मे है। बच्चों को लंबे समय से आयरन और अल्बेंडाजोल की गोली खिलाई जारही हैं। फिर भी गोली खिलाने के लिए एक दिन का प्रशिक्षण उन्हें बदस्तूर हर साल दिया जाता है। 


अभी प्रतापगढ़ के डीएम ने आदेश किया है कि गांव के टीबी मरीजों को उपचार होने तक परीषदीय शिक्षक उन्हें गोद लेंगे। डीएम का आदेश है। अब टीचर क्या क्या करे? होना यह चाहिए कि गैर शिक्षेतर कार्य के लिए संविदा पर व्यक्ति रखें जाए उनसे कार्य लिया जाए। इससे बहुत से बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिलेगा, उधर शिक्षक सब चीजों से मुक्त होकर बच्चों को पढ़ाने के कार्य में लगेंगे। इससे इन विद्यालयों में शिक्षा का माहौल बन सकेगा। 


उत्तर प्रदेश के स्कूल शिक्षा महानिदेशक विजय किरन आनंद का एक आदेश सोशल मीडिया पर चल रहा है। इसमें इन्होंने जिला बेसिक शिक्षाधिकारियों से कहा है कि मानिटरिंग से पता चलता है कि परिषदीय स्कूल के शिक्षक अवकाश नही ले रहे। इससे लगता है कि आप उनकी उपस्थिति की सही से जांच नही कर रहे। यह स्वीकार्य नही है। आपको निर्देशित किया जाता है कि आप क्षेत्र के विद्यालयों का नियमित निरीक्षण करें स्कूल से गैर हाजिर शिक्षकों की अनुपस्थिति लगाए। 


अब इन महानिदेशक महोदय को कौन समझाए कि शिक्षक को साल में केवल 14 आकस्मिक अवकाश मिलते हैं। उन्हें वह आड़े सयम के लिए संभाल कर रखता है। मजबूरी में ही ये अवकाश लिए जाते हैं। छोटी मोटी बीमारी में भी वह डयूटी पर जाते हैं। गैरहाजरी लगने के डर से भयंकर बारिश भी उन्हें नहीं रोकती जब तक बेसिक शिक्षा में उच्च पद पर बैठे अधिकारी सही स्थिति नही समझेंगे, हालात में सुधार होने वाला नही हैं। गुरू को क्लर्क बनाने से काम नही चलेगा। अधिकारियों को उसका सम्मान कराना सीखना होगा।


✍️ अशोक मधुप 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

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