OPS : कर्मचारियों को बुढ़ापे में बाजार के हवाले कैसे छोड़ा जा सकता है? 


तो क्या सरकारों को अपने कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद बुढ़ापे के समय बाजार के भरोसे छोड़ देना चाहिए? बिल्कुल नहीं। जब विधायिका में अच्छा वेतन ले रहे लोगों के लिए निश्चित पेंशन का प्रविधान है तो फिर कर्मचारियों को बाजार के हवाले कैसे किया जा सकता है?


पुरानी पेंशन प्रणाली (Old Pension) यानी ओपीएस को लेकर बहस के बीच हिमाचल की एक रैली में कहा गया है कि कांग्रेस सत्ता में आई तो पुरानी पेंशन बहाल करेगी। कांग्रेस ने ऐसा ही वादा गुजरात में किया है। मालूम हो कि केंद्र सरकार ने 2004 में वित्तीय बोझ को ध्यान में रखते हुए ओपीएस को खत्म कर दिया था। इसके स्थान पर राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली यानी एनपीएस लागू की गई। बंगाल को छोड़कर सभी राज्यों ने इसे अपना लिया।


देश में एनपीएस को लागू हुए 18 साल हो चुके हैं। हाल में गले तक कर्ज में डूबे छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान ने ओपीएस लागू करने का एलान किया है। पंजाब देश का चौथा राज्य है, जो ओपीएस को बहाल करने पर विचार कर रहा है। इसमें रिटायरमेंट पर अंतिम वेतन का आधा पेंशन मिलता था, परंतु एनपीएस (NPS) में किसी कर्मचारी को कितनी पेंशन मिलेगी, यह बात शेयर बाजार और बीमा कंपनियों पर निर्भर करती है।


 इसमें कर्मचारी पेंशन के लिए अपने वेतन का 10 प्रतिशत और सरकार 14 प्रतिशत का योगदान करती है। कर्मचारी सेवानिवृत्ति के पश्चात इसमें जमा कुल रकम का 60 प्रतिशत एकमुश्त निकाल सकता है और शेष 40 प्रतिशत धनराशि से बीमा कंपनी का एन्युटी प्लान खरीदना होता है, जिस पर मिलने वाले ब्याज की राशि हर महीने पेंशन के रूप में उस कर्मचारी को दी जाती है।
एनपीएस में महंगाई भत्ता और वेतन आयोग का फायदा भी नहीं मिलता। परिणामस्वरूप दो लाख रुपये प्रति माह वेतन पाने वाले लोगों का पांच से 10 हजार रुपये तक पेंशन बन रही है। इस वजह से कर्मचारियों में इसके प्रति असंतोष रहा है और वे पुरानी पेंशन प्रणाली की बहाली की मांग कर रहे हैं।


पेंशन कर्मचारियों का हक है। इसे रेवड़ी संस्कृति यानी ‘फ्रीबीज’ मानना अनुचित है। ध्यान रहे कि इन्हीं कर्मचारियों के टैक्स के एक बड़े भाग से देश में कई लोक-लुभावन योजनाएं चलाई जा रही हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारों को इन कर्मचारियों की भावनाओं और चुनौतियों को समझना चाहिए। एक कर्मचारी का ज्यादातर समय कार्यालय के कार्यों में व्यतीत हो जाता है। ऐसा व्यक्ति नौकरी के लिए परिवार एवं समाज से दूर होता है। एकल हो चुके समाज में उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद सबसे ज्यादा आर्थिक आवश्यकता होती है। यही समय पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने का भी होता है।


हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि ओपीएस को फिर से शुरू करना वित्तीय स्तर पर एक आपदा जैसा है। सेंटर फार मानीटरिंग इंडियन इकोनमी के अनुसार केंद्र सरकार अपनी आय का लगभग सात प्रतिशत और राज्य सरकारें लगभग 15 प्रतिशत पेंशन भुगतान करने के लिए उपयोग कर रही हैं। गरीब राज्यों की श्रेणी में आने वाले छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान में सालाना पेंशन देनदारी तीन लाख करोड़ रुपये अनुमानित है। पंजाब का पेंशन बिल सालाना 11,000 करोड़ रुपये का है।


राज्यों के कर राजस्व के प्रतिशत के रूप में अगर पेंशन देनदारी को देखा जाए तो यह काफी ऊंचा है। झारखंड में यह 217 प्रतिशत, राजस्थान में 190 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 207 प्रतिशत है। आरबीआइ के अनुसार भारत में राज्यों की राजकोषीय स्थिति चिंताजनक स्थिति में है। साफ है देश में पुनः पुरानी पेंशन प्रणाली तभी लागू हो सकती है जब सरकारें बहुत सारा कर्ज लें। निश्चित रूप से बढ़ा कर्ज देश को घाटे के बजट की ओर ले जाएगा। यह बढ़ा हुआ कर्ज कहीं न कहीं सरकारें फिर इन्हीं कर्मचारियों एवं भावी पीढ़ी से वसूल करेंगी। केंद्र सरकार ही हर साल अपने कुल खर्च का बड़ा हिस्सा ब्याज के भुगतान पर खर्च करती है, जो वर्तमान में लगभग 20 प्रतिशत है।



तो क्या सरकारों को अपने कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद बुढ़ापे के समय बाजार के भरोसे छोड़ देना चाहिए? बिल्कुल नहीं। जब विधायिका में अच्छा वेतन ले रहे लोगों के लिए निश्चित पेंशन का प्रविधान है तो फिर कर्मचारियों को बाजार के हवाले कैसे किया जा सकता है? 


एक अध्ययन के मुताबिक वर्तमान में 70 प्रतिशत कंपनियां शेयर बाजार और बांड मार्केट में उतार-चढ़ाव के कारण संशय में रहती हैं। आखिर आम आदमी इन पर कैसे भरोसा करे? वास्तव में हमारे नीति-निर्माताओं को चाहिए कि वे देश की वित्तीय स्थिति एवं अपने कर्मचारियों के योगदान तथा उनके अनिश्चित भविष्य को देखते हुए एक नई पेंशन नीति बनाएं।


कुछ देशों में पेंशन अंशदान की दर काफी अधिक है। जैसे कि इटली में यह कर्मचारियों के वेतन का 33 प्रतिशत, स्पेन में 30 प्रतिशत और चेक गणराज्य में 29 प्रतिशत है। हमारे यहां भी सरकारों को अपना एवं कर्मचारियों का पेंशन अंशदान तत्काल 50 प्रतिशत तक बढ़ा देना चाहिए। याद रहे पेंशन की रकम आपके जमा फंड के आकार पर निर्भर करती है। 


हर कर्मचारी का गारंटीड रिटायरमेंट अकाउंट (जीआरए) खोला जाना चाहिए। उनके कुल पेंशन अंशदान का सिर्फ 25 प्रतिशत हिस्सा ही शेयर बाजार में लगाना चाहिए। शेष 75 प्रतिशत हिस्से को सरकारी बांड में लगाया जाना चाहिए, जिससे उनके फंड का आकार सदैव बढ़ता रहे।


पेंशन अंशदान की पूरी रकम को टैक्स फ्री बनाना चाहिए। अभी यह सीमा डेढ़ लाख रुपये तक है। साथ ही एनपीएस में पेंशन की पूरी राशि को भी टैक्स फ्री बनाना चाहिए। अभी यह टैक्सेबल है। इस योजना को निजी क्षेत्र में भी कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए। भारत में केवल 22 प्रतिशत कर्मचारी ही अपने सेवानिवृत्त जीवन के लिए बचत के बारे में सोचते हैं। यह बहुत ही चिंताजनक है। याद रहे जन्म एवं मृत्यु के समान रिटायरमेंट और बुढ़ापा भी एक सत्य है।



✍️ डा. ब्रजेश कुमार तिवारी
(लेखक जेएनयू के अटल स्कूल आफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर हैं)

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