पढ़ाई पर महामारी का पड़ा जो असर!  असर 2022 के आंकड़े हमें क्या बताते हैं?


अगर देश के हर बच्चे की नींव पढ़ने-लिखने और गणित के अभ्यास में पक्की हो जाए, तो देश का भविष्य बदल जाएगा। मगर इस मंजिल तक पहुंचने के लिए जोरदार कोशिश करनी होगी।


हाल में प्रकाशित असर-2022 (ऐन्यूअल स्टेटस फॉर एजुकेशन रिपोर्ट) के आंकड़ों में कुछ ऐसे सवालों के जवाब मिले हैं, जिनकी तलाश पिछले दो साल से हो रही थी। विशेषकर कोरोना संक्रमण काल की परेशानियों और दुश्वारियों ने शिक्षा से जुड़ी कई‍ ओं को जन्म दिया था उस वक्त करीब दो साल विद्यालय बंद रहे। ऐसा पहले कभी हुआ नहीं था। सब डर रहे थे कि क्या पारिवारिक मुश्किलों के कारण बच्चों को स्कूल छोड़ना पड़ेगा? छात्रों की पढ़ाई पर किस किस्म का गहरा घाव होगा? बच्चों के भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा? घर-घर मैं इस तरह की बातों पर बहस जारी थी।

असर सर्वे में इन तमाम सवालों की पड़ताल की गई। वह सर्वेक्षण देश के हर ग्रामीण जिले में किया जाता है। सर्वे के दौरान हर जिले के 30 गांव के 20 घरों को रैंडमली, यानी आकस्मिक ढंग से चुना जाता है, और चुने हुए घरों में से तीन से 16 साल के बच्चों का सर्वे होता है। इसमें पांच से 16 साल के बच्चों के बुनियादी कौशल (पढ़ना और साधारण गणित) की जांच की जाती है। एक-एक बच्चे के साथ बैठकर उनके पढ़ने की क्षमता को समझा जाता है और गणित को उनकी कुशलता को नोट किया जाता है।


 2022 में 616 ग्रामीण जिलों में 19,060 गांवों तक पहुंचकर लगभग सात लाख बच्चों से मुलाकात की गई। हर जिले की स्थानीय संस्था अपने जिले का सर्वेक्षण करती है। 2022 में 591 ऐसी संस्थाओं के 27,536 सदस्यों ने 'असर' में भाग लिया। पिछली बार यह देशव्यापी असर सर्वे 2018 में किया गया था।


सवाल यह है कि असर 2022 के आंकड़े हमें क्या बताते हैं? अगर हम 2018 के आंकड़ों से तुलना करें, तो शायद हमें महामारी के कारण आंकड़ों पर पड़ा दो वर्षों का प्रभाव दिख जाएगा। 2018 और 2022 के बीच में दो साल स्कूल नियमित रूप से खुले थे। (मार्च 2020 तक), फिर लगभग दो साल महामारी के कारण वे बंद रहे। अप्रैल 2022 के बाद देश के सभी प्राथमिक विद्यालय खुल गए। असर 2022 के आंकड़े इस पूरी कहानी का संक्षिप्त सारांश दिखाते हैं।


इन आंकड़ों को दो तरीके से देखा जा सकता है- एक तरफ नामांकन व उपस्थिति, और दूसरी तरफ, बच्चों की बुनियादी शिक्षा का स्तर इस बाबत रिपोर्ट के पांच प्रमुख निष्कर्षो को साझा करना आवश्यक है। पहला, कोरोना काल से पहले पूरे हिन्दुस्तान के ग्रामीण भाग में छह से 14 साल के लगभग 97.2 प्रतिशत बच्चे विद्यालय में नामांकित थे। 2022 से वह आंकड़ा न केवल अब तक 98.4 प्रतिशत तक पहुंच चुका है, बल्कि छह से 10, 11 से 14 और 15 से 16 साल तक की लड़कियों का स्कूल में नामांकन भी बढ़ा है। एक आशंका, जो सबके मन में थी कि कोरोना-काल के बाद लड़कियां, विशेषकर बड़ी लड़कियां स्कूल छोड़ देंगी, तो इसका कोई आभास हमें इस रिपोर्ट में नहीं होता है।


दूसरा, हर राज्य में वर्ष 2018 और 2022 के बीच सरकारी विद्यालयों में नामांकन बढ़ा है। कई राज्यों में यह वृद्धि 10 प्रतिशत से अधिक हुई है, जैसे उत्तर प्रदेश में, जहां 2022 में सरकारी विद्यालय में 50.4 प्रतिशत बच्चे दाखिल थे, साल 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 63.6 प्रतिशत हो गया, जो देश में सबसे अधिक बढ़ोतरी है। सरकारी स्कूल में नामांकन बढ़ने के इस रुझान को कैसे समझा जाए? 


क्या यह परिवार की खस्ता हालत के कारण हुआ या महामारी काल में ग्रामीण भारत में कई निजी विद्यालयों का बंद होना इसका कारण है, या सरकारी स्कूल से जुड़े रहने के फायदे साफ-साफ दिखने लगे हैं? मूल वजह को सही-सही बता पाना तो अभी कठिन है, लेकिन आने वाले वर्षों में इन आंकड़ों पर नजर रखी जाए, तो कुछ नई जानकारियां सामने आ सकती हैं। 


तीसरा, असर-2022 बताती है कि तीसरी कक्षा में 20.5 फीसदी, चौथी कक्षा में 31.5 फीसदी और पांचवीं कक्षा में 42.8 फीसदी बच्चे सरल कहानी धाराप्रवाह पढ़ सकते हैं। अगर हम बुनियादी क्षमताओं का आकलन करें, तो छोटे बच्चों के ऊपर ज्यादा प्रभाव पड़ा है। 2022 में जो बच्चे तीसरी में थे, उन्हें तो पहली या दूसरी कक्षा में पढ़ने का मौका ही नहीं मिला। 2022 की पांचवीं कक्षा के बच्चे तीसरी कक्षा तक ही स्कूल में पढ़े थे, फिर आगे की पढ़ाई नहीं हो पाई। तब तक जिन्होंने अच्छी तरह से पढ़ना सीख लिया था, वे ा तो आगे बढ़ पाए, मगर जिनकी पढ़ने की क्षमता उस समय कमजोर थी, वे कोरोना काल में कुछ लड़खड़ा गए। चौथी और पांचवीं कक्षाओं के इन छात्रों के बुनियादी कौशल को इसी वक्त और तेजी से मजबूत करने में मदद मिलनी चाहिए।


चौथा, बड़े बच्चों की कहानी कुछ अलग है। 2018 से 2022 के बीच उनके बुनियादी कौशल में थोड़ी गिरावट आई है, लेकिन पिछले 10 साल में इस स्थिति में बहुत सुधार या प्रगति नहीं दिखाई देती है। जो बच्चे पीछे छूट जाते हैं, वे पीछे ही रह जाते हैं। आठवीं कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते कुछ बच्चे (69.5 प्रतिशत भाषा में और 44.6 प्रतिशत गणित में) सरल पाठ नहीं पढ़ पाते और साधारण गणितीय क्रियाएं नहीं कर पाते हैं। जाहिर है, इस गहरी समस्या का समाधान हमें तत्काल करना चाहिए।


निस्संदेह, नई शिक्षा नीति आई है। साथ ही, सरकार अलग-अलग तरीके से नए-नए प्रयास कर रही है, ताकि छोटे बच्चे 'निपुण' बन जाएं। तीसरी कक्षा तक आते-आते अगर देश के हरेक बच्चे की नींव पढ़ने, लिखने और गणित अभ्यास में पक्की हो जाए, तो देश का भविष्य बदल जाएगा। मगर इस मंजिल तक पहुंचने के लिए बहुत ही जोरदार कोशिश करनी होगी।


विद्यालय में, मोहल्ले में और घर पर आज तीसरी कक्षा में 30 प्रतिशत से कम बच्चे इस 'निपुण' के लक्ष्य तक पहुंचते हैं। अगले तीन से पांच साल में हमें इस आंकड़े को 100 प्रतिशत तक ले जाना होगा। साथ ही, बड़े बच्चों की नींव को भी मजबूत करने का काम लगातार जारी रखना होगा। आठवीं कक्षा समाप्त होने तक बच्चे न सिर्फ बुनियादी कौशल हासिल करें, बल्कि उनको इस लायक बनाना होगा कि वे आगे की जिंदगी का मुकाबला डटकर कर सकें। तभी हम कह सकेंगे कि 'असर' का असर हुआ है।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)


✍️ लेखिका : रुक्मिणी बनर्जी
सीईओ, प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन

Post a Comment

 
Top