स्कूली शिक्षा के लिए अब भी अहम है महात्मा गांधी की सीखें 


नीला आसमान और ताजगी भरी हवा काफी आनंददायक लग रही थी, मगर स्कूल के बाहर खुले नाले से बहती गंदगी ध्यान भटकाने के लिए काफी थी। यह उत्तर भारत के एक छोटे से शहर में सर्दियों का एक और दिन था। सभी कमरे ठंडे हो चले थे, जैसे वे जनवरी में होते हैं। कुछ चीजें मेरे बचपन से अब तक नहीं बदली हैं। 


30 जनवरी को महात्मा गांधी को याद करने का तरीका भी कमोबेश वैसा ही है। उस दिन भी कक्षा छह से आठ तक के बच्चे खेल के मैदान में गुनगुनी धूप में इधर-उधर दौड़ रहे थे। दो मिनट के अनिवार्य मौन के बाद, महात्मा गांधी के जीवन से सीखी गई बातों पर भाषण देने के लिए छह बच्चों को सामने खड़ा किया गया। वे सभी भाषण देने में सबसे अधिक कुशल थे। 

पहले भाषण का सार था- हमें सच बोलना चाहिए और कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। अन्य पांच भाषण भी प्रासंगिक थे- हमें अहिंसक होना चाहिए, कड़ी मेहनत ही सफलता की कुंजी है, सफाई भक्ति के समान है, सभी भारतीय हमारे भाई-बहन हैं, चाहे वे किसी भी जाति, धर्म या क्षेत्र के हों, और हमें अपने देश से प्यार करना चाहिए और इसके लिए अपना जीवन समर्पित करना चाहिए। 


समारोह के बाद धूप की सहूलियत में ही नियमित कक्षाएं शुरू की गईं। मैं लगभग 30 छात्रों और एक शिक्षक के साथ कक्षा आठ के समूह में शामिल हो गया। छात्र मुझसे बातचीत करना चाह रहे थे। चूंकि समारोह में हमारा परिचय पहले ही हो चुका था, इसलिए शुरुआती पहचान की जरूरत नहीं पड़ी। वे जानना चाहते थे कि मैं उनके स्कूल में क्यों आया हूं? क्या बेंगलुरु के स्कूल भी उनके स्कूल जैसे हैं? और, क्या मैं किसी तरह से स्कूल की मदद करूंगा? फिर यह बातचीत महात्मा गांधी और समारोह में दिए गए भाषणों पर पहुंच गई। वे सब बातें, जो कही और सुनी गईं, क्या अपने जीवन में वे उन पर अमल करते हैं? इसके जवाब बिना किसी लाग-लपेट के दिए गए।



हम झूठ बोलते हैं। कभी-कभी कई बार। हम लड़ते हैं। हम खेलना चाहते हैं, मेहनत नहीं करना चाहते। नाला बताता है कि कितने सफाई पसंद हैं हम। कई घर बेशक साफ रहते हैं, लेकिन ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि वे अपना कचरा बाहर फेंक देते हैं। रही बात देश से प्रेम करने की, तो हमें इसका अर्थ ही नहीं पता। वैसे भी, हम अपना जीवन राष्ट्र को समर्पित करने के बजाय एक पुलिसकर्मी, अभिनेता और कलेक्टर आदि बनना पसंद करते हैं। 
फिर महात्मा गांधी को याद करने का भला क्या अर्थ है? 


उन्होंने कहा, यह बहुत उपयोगी है। वह हमें बताते हैं कि क्या सही है और क्या गलत? वह यह भी बताते हैं कि कोई सही तरीके से कैसे जी सकता है, क्योंकि उन्होंने खुद ऐसा जीवन जिया। हम आमतौर पर उस प्रभावशाली उम्र में अनुकरणीय लोगों के गहरे प्रभाव को कम आंकते हैं। मगर जीवन की शुरुआत करने वाले युवाओं के लिए ऐसी कहानियां मायने रखती हैं। शैक्षिक विचारों की सुधार-प्रक्रिया में हमें इसी बुनियाद पर निर्माण करना चाहिए। हमारी वयस्क दुनिया में महात्मा गांधी और उनके विचारों की बेशक आलोचना की जाए, लेकिन उनका मूल्य कक्षा में बढ़ता है। और भी बहुत कुछ है, जो हमारी शिक्षा व्यवस्था गांधी से सीख सकती है। 



पहली बात,  शिक्षा व्यक्तियों में क्षमताओं व मूल्यों का विकास करती है। इन्हें उस समाज की दृष्टि से जोड़ा जाना चाहिए, जिसे हम बनाने में जुटे हैं। महात्मा के शिक्षा संबंधी विचार भारत के बारे में उनकी दृष्टि से पैदा हुए थे। हमें भी वही करना चाहिए, जो हमारे लिए अपने देश का विजन होना चाहिए और जो है- हमारा संविधान। दूसरी बात, पढ़ाई के तौर-तरीकों और दृष्टिकोण में बदलाव। जीवन और स्कूल का हमारा अनुभव इनके अनुरूप होना चाहिए। 


महात्मा की ‘नई तालीम’ ने यही प्रयास किया था। तीसरी बात, व्यावहारिक अभ्यास हमें सिद्धांत की ओर ले जाता है, न कि सिद्धांत से हम अभ्यास की ओर जाएं। हर किसी को अपने जीवन में कुछ न कुछ करने में सक्षम होना चाहिए। यह आश्चर्य की बात है कि हमारे संस्थान और सिस्टम इन बुनियादी सिद्धांतों से दूर हैं। इनमें से अधिकांश को महात्मा की सीख अपनानी चाहिए।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)




✍️ अनुराग बेहर  
सीईओ, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन

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