जानिए !  बच्चों के आंकलन / मूल्यांकन के परिणामों पर शिक्षकों को दंडित करना कितना जायज कितना शिक्षाशास्त्रीय? 


बच्चों के आंकलन / मूल्यांकन के परिणामों पर शिक्षकों को दंडित करना एक तरह से बच्चों की शिक्षा संप्राप्ति में बाधा बनने जैसा है।

आजकल शिक्षा व्यवस्था में एक नई प्रथा चल पड़ी है। बच्चों के आंकलन या मूल्यांकन पर कमजोर परिणाम आने पर शिक्षकों को नोटिस देना, वेतन रोकना, निलंबन की घुड़की देना। 


यह ठीक वैसा ही है जैसे एक मरीज का भरसक इलाज करने पर भी ठीक न होने पर डॉक्टर को दण्ड देना। ऐसा हुआ तो डर है कि डॉक्टर की तरह शिक्षक भी अपनी नौकरी बचाने के लिए कहीं स्टीरॉयड जैसा इंस्टैट उपाय देना न शुरू कर दे? हालांकि ऐसा कुछ भी यदि हुआ तो यह बच्चों की स्वाभाविक सीखने की प्रक्रिया में बाधा ही होगा।



शिक्षकों को दंडित करने के पीछे सरकार का मानना है कि इससे शिक्षकों में दबाव बढ़ेगा और वे दबाव में बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए और मेहनत करेंगे।  लेकिन यह सोच पूरी तरह से गलत है। शिक्षकों को दंडित करने से वे न केवल तनावग्रस्त हो जाते हैं, बल्कि उनकी कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है। इससे बच्चों की शिक्षा का स्तर और गिर जाता है। सबसे बड़ा डर तो यह है कि कहीं शिक्षक परिणाम सुधारने के लिए ऐसे प्रयास करते न दिखें जिससे बच्चे के वास्तविक मूल्यांकन ही प्रभावित हो जाए? 


शिक्षकों को दंडित करने से बच्चों की सीखने की प्रक्रिया में भी बाधा उत्पन्न होती है। जब शिक्षक दंडित होते हैं तो बच्चे उनसे भयभीत हो जाते हैं। इससे बच्चों में सीखने की रुचि कम हो जाती है। बच्चे सोचने लगते हैं कि अगर वे कुछ गलत करेंगे तो उन्हें भी दंडित किया जाएगा। इससे बच्चे रटने जैसी शिक्षा और सीख लेने लगते हैं।


शिक्षकों को दंडित करने से शिक्षा व्यवस्था में भ्रष्टाचार भी बढ़ता है। शिक्षक अपने बचाव के लिए कैसे भी हो, बच्चों को मूल्यांकन या आंकलन में सफल दिखाने लगते हैं या विभागीय भ्रष्टाचार के शिकार हो जाते हैं। कुलमिलाकर इससे शिक्षा का उद्देश्य ही भ्रष्ट हो जाता है।


शिक्षकों को दंडित करने के बजाय सरकार को शिक्षा व्यवस्था में सुधार पर ध्यान देना चाहिए। सरकार को शिक्षकों को बेहतर सुविधाएं और प्रशिक्षण देना चाहिए। सरकार को बच्चों के मूल्यांकन के तरीके में भी बदलाव लाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के मूल्यांकन में उनके परिवेश को भी जोड़ना चाहिए। हम सब जिम्मेदार हित धारकों को बच्चों की सीखने की प्रक्रिया को सरल और सुगम बनाना चाहिए।


शिक्षकों को दंड देने जैसे बचकानी और गैर शिक्षाशास्त्रीय तरीकों से एक तरह से बच्चों की शिक्षा को ही दंडित किया जा रहा है। यह कतई अवैज्ञानिक और अतार्किक तरीका है। शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए शिक्षकों को दंड देने के बजाय कई स्तरों पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।


✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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