क्या है शिक्षा की वास्तविक कला? 

"हरेक बच्चा एक जिज्ञासु, विश्लेषक, निर्दय विच्छेदक है। उसमें इन गुणों को उकसाइए और उसे अनायास वैज्ञानिक का सही तेवर और आवश्यक बुनियादी ज्ञान प्राप्त करने दीजिए।"


आधुनिक व्यवस्था के पक्ष में यह कहा जाता है कि बच्चों का ध्यान सरलता से थक जाता है और उन्हें एक ही विषय को लंबे समय तक पढ़ने के लिए नहीं कहना चाहिए। विषय बदलते रहने से उनके मस्तिष्क को आराम मिल जाता है। प्रश्न उठता है कि क्या आधुनिक युग के बच्चे पुराने लोगों से इतने भिन्न हैं, और यदि ऐसा है, तो लंबे समय तक ध्यान केंद्रित रखने के प्रति हतोत्साहित करके क्या हम ही ने उन्हें ऐसा नहीं बना दिया है? 


अंततोगत्वा रुचि ही तो ध्यान केंद्रित करने का आधार है। हम उनके पाठों को बेहद नीरस बना देते हैं और बच्चा जब उनसे भागता है, तो जबर्दस्ती उसे पढ़ाने बैठाते हैं और फिर उसकी अस्थिरता और ध्यान न देने की शिकायत करते हैं! कदम-ब-कदम उसे आगे बढ़ाते चलना, और जैसे-जैसे अगला कदम आए, उसमें उसकी रुचि उत्पन्न करना और उसे आत्मसात करने देना, जब तक कि अपने विषय में उसे दक्षता प्राप्त न हो जाए शिक्षा देने की यही वास्तविक कला है।


मातृभाषा ही शिक्षा का उचित माध्यम है, इसीलिए बच्चे की प्राथमिक शक्तियां इसी माध्यम में पूरी दक्षता पाने की ओर लगाना चाहिए। प्रायः प्रत्येक बच्चे में एक कल्पना होती है, शब्दों के प्रति एक सहज वृत्ति होती है, एक नाटकीय क्षमता, विचार व तरंग की एक संपत्ति होती है। नीरस हिज्जे और पुस्तकों के पठन-पाठन के बजाय उसका परिचय अपने साहित्य और उसके आस- पास व पीछे के जीवन के सबसे रोचक अंशों से कराना चाहिए और उन्हें इस ढंग से उसके सामने प्रस्तुत करना चाहिए, जिससे वे उन गुणों के प्रति आकर्षित और प्रभावित हों। 


इस अवधि में बाकी सारी शिक्षाएं मानसिक क्रियाओं और नैतिक चरित्र को पूर्णता प्रदान करने वाली होनी चाहिए। इसी समय इतिहास, विज्ञान, दर्शन और कला के अध्ययन की नींव भी डालनी चाहिए, पर जबर्दस्ती और औपचारिक ढंग से नहीं।

प्रत्येक बच्चा रोचक कथा का प्रेमी, वीर-पूजक और देशभक्त होता है। उसमें इन गुणों को उभारिए और उन्हें अपने राष्ट्र के इतिहास के जीवंत व मानवीय अंशों पर अनजाने में ही अधिकार प्राप्त करने दीजिए। हरेक बच्चा एक जिज्ञासु है, विश्लेषक है, निर्दय विच्छेदक है। उसमें उन गुणों को उकसाइए और उसे वैज्ञानिक का सही तेवर और आवश्यक बुनियादी ज्ञान प्राप्त करने दीजिए।


प्रत्येक बच्चे में अतोषणीय बौद्धिक जिज्ञासा और पराभौतिक ज्ञान की खोज के प्रति रुझान रहती है। संसार और स्वयं अपने को समझने के लिए इसका उपयोग करते हुए उसे धीरे-धीरे खींच लाइए। हर बच्चे में अनुकरण करने की देन और कल्पनाशक्ति का एक स्पर्श होता है। उसका उपयोग करके उसे कलाकार की क्षमता का आधार दीजिए।


✍️ श्री अरविंद

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