क्या युवाओं को पेपर लीक न होने की गारंटी नहीं दी जा सकती? 


पिछले दिनों चार पालियों में हुई यूपी पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा का पेपर लीक होने के चलते निरस्त कर दिया गया। फिलहाल उत्तर प्रदेश सरकार इसकी जांच करा रही है। उसने छात्रों को छह माह के अंदर दोबारा परीक्षा कराने का भरोसा दिया है। 


सरकारी नौकरी पाना लाखों युवाओं का सपना है, जिसे साकार करने के लिए छात्र खूब पढ़ाई करते हैं, लेकिन जब पेपर लीक हो जाता है तो उनके वर्षों के परिश्रम पर पानी फिर जाता है। माता-पिता द्वारा उन पर खर्च किया गया पैसा भी व्यर्थ चला जाता है। जो भी उम्मीदवार दूर-दराज से परीक्षा देने आते हैं, उनके आने-जाने और रहने का पूरा खर्चा बर्बाद हो जाता है। हालांकि सरकारें इसे लेकर गंभीरता दिखाती हैं। फिर भी पेपर लीक रोकने के उनके प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। बात यहां नीयत और नीति, दोनों की है, जिसका जवाब युवा वर्षों से तलाश रहे हैं। हर बार जब तक जांच होती है, तब तक पेपर लीक की दूसरी घटना घटित हो जाती है।


राज्यों में भले ही सरकारें अलग-अलग पार्टियों की हों, मगर उनमें पेपर लीक का सिस्टम एक जैसा ही है। पिछले सात वर्षों में ही देश के अलग अलग राज्यों में 70 से अधिक भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक हुए हैं। जैसे कि उत्तर प्रदेश में यूपी पावर कारपोरेशन लिमिटेड, बीएड प्रवेश परीक्षा, यूपीटेट एवं सहायता प्राप्त स्कूल शिक्षक/प्रधानाचार्य को भर्ती के लिए हुई परीक्षाओं के पेपर लीक हुए। राजस्थान में एलडीसी, कांस्टेबल, पटवारी, लाइब्रेरियन, जूनियर इंजीनियर, सब इंस्पेक्टर एवं रीट भर्ती के पेपर लीक हुए हैं।


 गुजरात में टेट, मुख्य सेविका, गैर सचिवालय क्लर्क, हेडक्लर्क, सब आडिटर, वनरक्षक एवं पंचायत सर्विस सलेक्शन बोर्ड के जूनियर क्लर्क की भर्ती के पेपर लीक हुए हैं। ऐसे ही बंगाल में डीएलएड पाठ्यक्रम की वार्षिक परीक्षा, बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित बीपीएससी परीक्षा, हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग की जेओए आइटी की भर्ती परीक्षा, मध्य प्रदेश प्राथमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा, तमिलनाडु में दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षा, अरुणाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सहायक अभियंता भर्ती परीक्षा तथा उत्तराखंड अधीनस्थ चयन आयोग की स्नातक स्तर के पदों के लिए परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक होने के मामले सामने आए हैं। पंजाब और हरियाणा में तो यह एक तरह से रिवाज जैसा बन गया है। इनसे लगभग करीब डेढ़ करोड़ से ज्यादा युवाओं के करियर प्रभावित हुए हैं। क्या उन्हें पेपर न लीक होने देने की 'गारंटी' नहीं दी जा सकती?


पेपर लीक न रोक पाना संबंधित परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं और सरकारों को एक बड़ी नाकामी है। यह केवल परीक्षा व्यवस्था में खामी का मामला नहीं, बल्कि लाखों युवाओं के सपनों को चकनाचूर करने वाला एक अत्यंत जघन्य अपराध है। भारत एक युवा देश है। युवाओं के सपने भी बड़े हैं। वे परिश्रमी एवं प्रतिभाशाली हैं और तमाम कठिनाइयों एवं अभावों से संघर्ष कर इन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। 


अव्वल तो देश में भर्ती परीक्षाएं नियमित अंतराल पर होती नहीं और जब होती भी हैं तो पेपर लीक की भेंट चढ़ जाती हैं। पेपर लीक के दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ कुछ राज्य सरकारों ने सख्त कानून भी बनाए हैं, लेकिन इन कानूनों के बावजूद पेपर लीक बदस्तूर जारी है। स्कूली बोर्ड परीक्षाओं के पेपर लीक होने की समस्या भी आम है।


हाल में केंद्र सरकार ने भी सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 बनाया है। इसमें किसी परीक्षा में कदाचार में मदद पहुंचाने वालों को तीन से दस साल की जेल और भारी जुर्माने तक के प्रविधान हैं। यह कानून केंद्र सरकार और उसकी टेस्टिंग एजेंसियों द्वारा आयोजित की जाने वाली ज्यादातर केंद्रीय परीक्षाओं पर लागू होगा। फिर भी सिर्फ कड़ी सजा के प्रविधान भर से इस समस्या का कोई प्रभावी हल नहीं निकलने वाला है।


 देश में ऐसी संस्थाएं बनाई जानी चाहिए, जो संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की तरह निश्चित समय पर प्रतियोगी और भर्ती परीक्षाएं कराएं और उनके परिणाम भी तय समय में घोषित करें। इसके साथ ही भर्ती आयोगों में राजनीतिक संबंधों संपर्कों वाली नियुक्तियां पूरी तरह बंद होनी चाहिए। 


परीक्षा आयोग का अपना प्रिंटिंग प्रेस होना चाहिए। एक घंटे पूर्व प्रश्नपत्र की साफ्ट कापी को कोड लाक के माध्यम से सीधे RE-ED परीक्षा केंद्रों पर भेजा जाना चाहिए। परीक्षा केंद्रों में मौजूद अभ्यर्थियों को प्रश्नपत्र वहीं प्रिंट करके वितरित किया जाना चाहिए। इस विधि से प्रश्नपत्रों को छापना थोड़ा महंगा जरूर होगा, लेकिन परीक्षाएं सुरक्षित और लीकप्रूफ होंगी। इसी तरह प्रश्नपत्रों के कई सेट बनाए जाने चाहिए। 


यह आवश्यक है कि पेपर लीक के मामलों को एक महीने के भीतर निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई सुनिश्चित की जाए। किसी कोचिंग संस्थान की संलिप्तता मिलने पर सिर्फ संबंधित आरोपितों पर हो कार्रवाई न हो, बल्कि उस कोचिंग संस्थान को भी बंद किया जाना चाहिए। पेपर तैयार होने से लेकर परीक्षा केंद्रों तक उनके वितरण तक की प्रक्रिया में सैकड़ों लोग शामिल रहते हैं। ऐसे में कोई एक कमजोर कड़ी भी दबाव या प्रलोभन में पेपर लीक जैसा गुनाह कर बैठती है। इसलिए ऊपर से नीचे तक सभी की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। 


चूंकि हर युवा को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती, इसीलिए आज भारत में स्टार्टअप और स्वरोजगार का चलन तेजी से बढ़ रहा है और बहुत से युवा प्राइवेट नौकरियों को तवज्जो दे रहे हैं। फिर भी जो छात्र सरकारी नौकरियों की तैयारी में जीवन खपा देते हैं, उनके साथ पेपर लीक का मजाक बंद होना चाहिए। सरकारों को इसकी गारंटी देनी चाहिए।


✍️ डा. ब्रजेश कुमार तिवारी
(लेखक जेएनयू के अटल स्कूल आफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर है)

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