बदहाल शिक्षा की देन हैं कोचिंग सेंटर
कोचिंग का विशाल धंधा शिक्षा की घोर दुर्व्यवस्था की स्थिति को ही बयान करता है। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से निहायत बुरे हालात में चलने वाले ये कोचिंग के व्यापार केंद्र देश में शिक्षा की दुर्गति की हकीकत बयान करते हैं। आज की जनसंख्या में युवावर्ग के अनुपात में हो रही वृद्धि के साथ शिक्षा पर दबाव लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में शिक्षा नीति से क्रांति लाने के दावे के बावजूद दूर-दूर तक कोई राहत नजर नहीं आ रही है।
पिछले दिनों दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर में एक दर्दनाक हादसा हुआ। आइएएस की तैयारी कराने वाले एक नामचीन कोचिंग संस्थान के बेसमेंट में अचानक भरे पानी में डूबकर तीन छात्रों की मौत हो गई। यह दुर्घटना आपराधिक लापरवाही का परिणाम लगती है, क्योंकि यह हादसा गैर कानूनी ढंग से चलने वाले कोचिंग सेंटर की निजी व्यवस्था के तहत हुआ।
देखा जाता है कि देश में जब भी कोई गंभीर घटना होती है और जनता की आवाज उठती है तो जांच कमेटी बैठेगी, सख्त कार्रवाई होगी, कानून अपना काम करेगा और दोषी को बख्शा नहीं जाएगा जैसी घोषणाएं करते हुए सरकार थोड़ी देर के लिए जगती है। जैसे कि इस दर्दनाक हादसे में भी देखा जा रहा है, लेकिन कुछ दिनों बाद प्रायः घटनाओं को और उनके आशय को अपनी मौत मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। समय बीतने के साथ लोग भी भूल जाते हैं और जिंदगी में आगे बढ़ जाते हैं। इस बीच राजनीति और राजनेता भी बदल जाते हैं। फिर हम अक्सर वहीं खड़े रहते हैं, जहां पहले खड़े थे। उम्मीद है यह घटना इस यथास्थितिवाद को तोड़ेगी।
इसमें दोराय नहीं कि भारत के पास अतीत की बड़ी थाती है। हम सभी नागरिक भारतीय होने पर गर्व भी करते हैं। यह महान देश निकट भविष्य में विश्वगुरु बनने की उत्कट इच्छा पाले हुए है। इसके साथ ही भारत को विकसित देश बनाने का दावा भी किया जा रहा है। इसे बनाने के लिए सभी कटिबद्ध दिखते हैं। इस दृष्टि से युवा वर्ग की भूमिका और दायित्व खास हो जाता है।
आज देश में सामाजिक और भौतिक विविधताएं तो हैं ही आर्थिक विषमता भी बहुत ज्यादा है। ऐसे में हर युवा ऊंची से ऊंची उड़ान भरने के लिए स्वाभाविक रूप से आतुर हो रहा है। इस हलचल भरे माहौल में युवा वर्ग अपने भविष्य को संवारने के लिए घर-बार छोड़ कर कोचिंग करने के लिए बड़े शहरों की ओर रुख करते हैं।
अभिभावक गण रुपया-पैसा जुटा कर अपने बच्चों को कोचिंग के साथ परीक्षा की तैयारी में आर्थिक मदद करते हैं। आशाओं और आकांक्षाओं की उठापटक के बीच ये युवा कठिन परिस्थितियों में अथक परिश्रम करते हैं। अपने सपनों को साकार करने के लिए धैर्यपूर्वक और लगन के साथ कोशिश करते हैं।
अब औपचारिक डिग्री की गुणवत्ता पिटने के फलस्वरूप हर काम के लिए, यहां तक कि अगली कक्षा में प्रवेश या फेलोशिप के लिए भी कोई न कोई परीक्षा अनिवार्य हो गई है। खस्ताहाल हो रही औपचारिक शिक्षा अपर्याप्त होती है। ऐसे में यदि कोचिंग केंद्रों की झड़ी लग रही है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं, मगर इस लाभ वाले व्यापार के विस्तार के साथ इसके सुचारु संचालन के लिए जरूरी आधारभूत सुविधाओं का अभाव भी है। वस्तुतः व्यावसायिक कोचिंग का विशाल धंधा शिक्षा की घोर दुर्व्यवस्था को ही बयान करता है।
विद्यालय की पढ़ाई से विद्यालय की परीक्षा की तैयारी और कोचिंग की पढ़ाई से व्यावसायिक परीक्षा की तैयारी, यह आज हर अभिभावक और विद्यार्थी की मानसिकता बन गई है। इसके चलते आज मेधावी बच्चे भी विद्यालय को छोड़ कोचिंग में भर्ती हो रहे हैं। कोटा नगरी की व्यथा-कथा विश्व प्रसिद्ध हो चली है। सरकारी शिक्षा के प्रति सरकार, समाज और विद्यार्थी सबका अविश्वास बढ़ रहा है। इस टूटते भरोसे के बीच कोचिंग की वैकल्पिक शिक्षा व्यवस्था खूब फल-फूल रही है।
इसकी रोकथाम करने के बदले साझी प्रवेश परीक्षा पर जोर इसी अविश्वास की पुष्टि करती है और घोषित करती है कि विद्यालय की पढ़ाई जैसे हो रही थी, जारी रहेगी। यदि आगे पढ़ने-पढ़ाने की इच्छा है तो विद्यालयी परीक्षा के अतिरिक्त इस नई परीक्षा को अनिवार्य रूप से पास करना होगा। विद्यालय की पढ़ाई प्रवेश परीक्षाओं के लिए सिर्फ प्रवेश पत्र रह गई है। यह दुर्भाग्य है कि सरकार विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय की बिगड़ती हालत को सुधारने के लिए तत्पर नहीं हो रही है। वह हर चीज को तब तक झुलाती रहती है जब तक इंतहा न हो जाए।
शिक्षा पर बाजार की भयंकर जकड़न दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। सरकारी व्यवस्था अक्सर इस बात से बेखबर और उदासीन रहती है कि शिक्षा और कोचिंग संस्थानों में क्या और कैसे हो रहा है। शिक्षा के प्रति उदासीनता का रवैया और युवा वर्ग की जिंदगी के साथ इस तरह का खिलवाड़ आत्मघाती और अक्षम्य अपराध है। गैरकानूनी शिक्षा की दुकानों में और उनके आसपास विद्यार्थियों के रहने के लिए बने पीजी आवासों में भी आए दिन हादसे होते रहते हैं।
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से निहायत बुरे हालात में चलने वाले ये कोचिंग के व्यापार केंद्र देश में शिक्षा की दुर्गति की हकीकत बयान करते हैं। आज की जनसंख्या में युवावर्ग के अनुपात में हो रही वृद्धि के साथ शिक्षा पर दबाव लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में शिक्षा नीति से क्रांति लाने के दावे के बावजूद दूर-दूर तक कोई राहत नजर नहीं आ रही है। यह जरूर है कि सार्वजनिक क्षेत्र की तुलना में निजी क्षेत्र का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि सरकारी पहल नदारद या नाकाफी है।
न तो सरकार की ओर से शिक्षा में पर्याप्त निवेश हो रहा है, न व्यवस्था ही ठीक हो पा रही है। चूंकि शिक्षा देश के समाज के मानस-निर्माण, उत्पादकता तथा सृजनात्मकता के लिए महत्वपूर्ण है और देश के भविष्य को प्रभावित करती है, लिहाजा इस दिशा में तत्काल ध्यान देना आवश्यक है। दिल्ली में युवा जीवन की असमय मौत की यह दास्तान शिक्षा के क्षरण का ही एक लक्षण है, जो समूचे देश के लिए खेद का विषय है। समाज और सरकार सबको इस पर सोचना होगा और आवश्यक कदम उठाने होंगे।
✍️ गिरीश्वर मिश्र
(लेखक पूर्व कुलपति हैं)
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