एक महीने से शिक्षक समुदाय होली के अवकाश की मांग कर रहा है, लेकिन अब तक निर्णय का कोई ठोस संकेत नहीं मिला। कई जिलों में छुट्टी घोषित हो चुकी है, जबकि कई जगहों पर अब भी चुप्पी साधी गई है। आखिर शिक्षकों की मानसिक शांति और पारिवारिक उल्लास से बड़ा क्या कोई प्रशासनिक कारण हो सकता है? जब उच्च शिक्षण संस्थानों में पहले ही अवकाश तय हो चुका है, तो बेसिक शिक्षकों के अधिकारों पर यह प्रश्नचिह्न क्यों?
असमंजस और निराशा उत्पन्न करती हुई अस्पष्टता करेगी शिक्षकों के मानसिक संतोष को प्रभावित
होली का पर्व भारतीय समाज में उल्लास, रंग और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। यह त्योहार न केवल समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करता है, बल्कि व्यक्तिगत और सामूहिक मानसिक स्वास्थ्य को भी सुदृढ़ करता है। विशेषकर शिक्षकों के लिए, जो समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इस त्योहार का विशेष महत्व है। हालांकि, वर्तमान परिस्थितियों में होली अवकाश की अवधि को लेकर उत्पन्न असमंजस और प्रशासनिक निर्णयों की अस्पष्टता ने शिक्षकों के मानसिक संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
शिक्षण एक मानसिक और शारीरिक श्रमसाध्य कार्य है, जिसमें निरंतर ध्यान, समर्पण और ऊर्जा की आवश्यकता होती है। त्योहारों के अवसर पर अवकाश न केवल शिक्षकों को विश्राम का अवसर प्रदान करता है, बल्कि उन्हें अपने परिवार और समाज के साथ समय बिताने का भी मौका देता है, जिससे उनकी मानसिक संतोष और कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। होली जैसे प्रमुख त्योहार पर पर्याप्त अवकाश की अनुपलब्धता शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, जिससे उनकी पेशेवर दक्षता प्रभावित हो सकती है।
वर्तमान में, उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद ने 13 और 14 मार्च को होली के सार्वजनिक अवकाश के रूप में घोषित किया है, जबकि 15 मार्च को निर्बंधित अवकाश के रूप में रखा गया है। शिक्षक संगठनों ने 15 मार्च को भी सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की मांग की है, ताकि वे होली के त्योहार को पूर्णता से मना सकें। हालांकि, परिषद ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया है, जिससे शिक्षकों में निराशा व्याप्त है।
उत्तर प्रदेश में कई शिक्षक अपने गृह जनपद से दूर नियुक्त हैं, जिससे उन्हें त्योहार के अवसर पर अपने परिवार के साथ समय बिताने में कठिनाई होती है। होली के अवसर पर 13 मार्च को होलिका दहन के बाद, रंग खेलने का मुख्य आयोजन 14 और 15 मार्च को होता है। ऐसी स्थिति में, 15 मार्च को अवकाश न होने से शिक्षकों को अपने परिवार के साथ त्योहार मनाने में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे उनकी मानसिक संतोष में कमी आ सकती है।
यह भी देखा गया है कि कई विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में 12 से 15 मार्च तक अवकाश घोषित किया गया है, जबकि प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में केवल 13 और 14 मार्च को ही अवकाश है। यह असमानता न केवल शिक्षकों के बीच, बल्कि छात्रों के बीच भी भेदभाव उत्पन्न करती है, जिससे उनकी मानसिक संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
कई जिलों में जिलाधिकारियों द्वारा स्थानीय अवकाश घोषित किया गया है, जबकि अन्य स्थानों पर इस संबंध में कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है। यह अस्पष्टता शिक्षकों में असमंजस और निराशा उत्पन्न करती है, जिससे उनकी मानसिक संतोष प्रभावित होती है। स्पष्ट और समान प्रशासनिक निर्णयों की कमी के कारण शिक्षकों को अपने अवकाश की योजना बनाने में कठिनाई होती है, जिससे उनकी कार्यक्षमता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
शिक्षकों की मानसिक संतोष के लिए सुझाव
1. समान अवकाश नीति: पूरे प्रदेश में शिक्षकों के लिए समान अवकाश नीति लागू की जानी चाहिए, जिससे सभी को त्योहार मनाने का समान अवसर मिल सके।
2. अवकाश की पूर्व घोषणा: अवकाश की तिथियों की पूर्व घोषणा से शिक्षकों को अपनी योजनाएं बनाने में सुविधा होगी, जिससे उनकी मानसिक संतोष में वृद्धि होगी।
3. शिक्षक संगठनों से संवाद: प्रशासन को शिक्षक संगठनों के साथ नियमित संवाद स्थापित करना चाहिए, ताकि उनकी समस्याओं और आवश्यकताओं को समझा जा सके और उचित समाधान निकाला जा सके।
शिक्षकों की मानसिक संतोष न केवल उनकी व्यक्तिगत भलाई के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह छात्रों की शिक्षा गुणवत्ता और समग्र शैक्षणिक वातावरण को भी प्रभावित करती है। होली जैसे प्रमुख त्योहार पर पर्याप्त अवकाश की उपलब्धता शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य और कार्यक्षमता के लिए आवश्यक है। अतः प्रशासन को इस दिशा में संवेदनशीलता और तत्परता से कार्य करना चाहिए, ताकि शिक्षकों की मानसिक संतोष सुनिश्चित हो सके और वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन प्रभावी ढंग से कर सकें।
✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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