विद्यालयों में छात्राओं के मानसिक और शारीरिक विकास को सही दिशा देने के लिए एक अनुकूल वातावरण जरूरी है। जब किशोरावस्था की जटिलताएँ सामने आती हैं, तब उन्हें न केवल सही जानकारी बल्कि संबल और मार्गदर्शन की भी आवश्यकता होती है। हर स्कूल में एक महिला शिक्षिका की अनिवार्यता न केवल छात्राओं के आत्मविश्वास को बढ़ाएगी, बल्कि उनके शैक्षिक अनुभव को भी सहज बनाएगी। यह बदलाव संभव है, बस नीतिगत इच्छाशक्ति और सही योजना की जरूरत है।  

 
स्कूलों में संवेदनशीलता और समझ के लिए जानिए!  क्यों जरूरी है स्कूलों में महिला शिक्षिकाओं की मौजूदगी 


विद्यालयों में शिक्षा केवल पाठ्यक्रम पूरा करने तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह बच्चों के मानसिक, सामाजिक और नैतिक विकास का भी माध्यम होती है। खासकर किशोरावस्था में, जब बच्चों के शरीर और मन में बदलाव आते हैं, तब उन्हें न केवल सही जानकारी की जरूरत होती है, बल्कि एक ऐसा वातावरण भी चाहिए जहाँ वे अपनी जिज्ञासाओं और समस्याओं को खुलकर रख सकें। यही कारण है कि हर विद्यालय में कम से कम एक महिला शिक्षिका की अनिवार्यता होनी चाहिए, ताकि खासकर छात्राओं को मानसिक और शारीरिक संबल मिल सके। वर्तमान में कई स्कूलों में केवल पुरुष शिक्षक ही कार्यरत हैं, जिससे छात्राओं को कई बार आवश्यक मार्गदर्शन और समर्थन नहीं मिल पाता।  


हाल के कुछ विवादों ने यह दिखाया है कि किशोरावस्था शिक्षा को लेकर समाज में आज भी गहरी संकीर्णता है। एक शिक्षक को केवल इसलिए विरोध और हिंसा का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्होंने पाठ्यक्रम में शामिल किशोरावस्था और शारीरिक बदलावों पर चर्चा की थी। यह दर्शाता है कि ऐसे संवेदनशील विषयों पर खुलकर बात करने की अभी भी कितनी जरूरत है। यदि इन स्कूलों में महिला शिक्षिकाएँ होतीं, तो छात्राएँ बिना झिझक अपने सवाल पूछ सकती थीं और शायद समाज भी इसे सहजता से स्वीकारता। महिला शिक्षिकाएँ छात्राओं के लिए एक भरोसेमंद मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकती हैं, जिससे वे अपनी दुविधाओं को खुलकर साझा कर सकें और जरूरी जानकारी प्राप्त कर सकें।  

बात केवल संकोच और मानसिक संबल तक सीमित नहीं है। कई बार स्कूलों में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, जहाँ छात्राओं को महिला शिक्षिका की सख्त जरूरत होती है, चाहे वह स्वास्थ्य संबंधी समस्या हो या किसी अन्य सामाजिक या व्यक्तिगत कारण से उत्पन्न असहजता। एक महिला शिक्षिका की मौजूदगी न केवल छात्राओं के लिए आवश्यक समर्थन प्रदान कर सकती है, बल्कि पूरे विद्यालय के वातावरण को अधिक सुरक्षित और संवेदनशील बना सकती है।  


यह तर्क दिया जा सकता है कि महिला शिक्षिकाओं की उपलब्धता एक समस्या हो सकती है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। शिक्षा विभाग में महिला शिक्षिकाओं की संख्या पर्याप्त है, केवल उनकी उचित नियुक्ति नहीं हो रही है। यदि सरकार और प्रशासनिक संस्थाएँ ठोस इच्छाशक्ति दिखाएँ, तो हर विद्यालय में कम से कम एक महिला शिक्षिका की नियुक्ति करना मुश्किल नहीं है। जरूरत बस नीतिगत बदलाव और सही योजना की है, जिससे महिला शिक्षकों को संतुलित रूप से तैनात किया जा सके।  

यदि हम सच में शिक्षा को समानता और सुरक्षा का माध्यम बनाना चाहते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक विद्यालय में छात्राओं के लिए एक अनुकूल वातावरण हो। यह केवल छात्राओं के हित की बात नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज के मानसिक विकास का प्रश्न है। हर विद्यालय में एक महिला शिक्षिका की अनिवार्यता शिक्षा में संतुलन लाने के साथ-साथ कई सामाजिक समस्याओं को भी रोकने में मदद कर सकती है। इसके लिए केवल जिम्मेदारों को मन बनाने की जरूरत है, क्योंकि संसाधन हमारे पास पहले से ही मौजूद हैं।


 ✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है। 

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