शिक्षा और जागरूकता को लेकर समाज कब फेल होता है?


"ज्ञान ही शक्ति है, पर जब समाज इसे अपनाने में विफल होता है, तब उसकी जड़ें कमजोर होने लगती हैं।" शिक्षा और जागरूकता किसी भी समाज की रीढ़ होती हैं। ये ही वे शक्तियाँ हैं जो किसी राष्ट्र को उन्नति की ओर ले जाती हैं। लेकिन जब कोई समाज शिक्षा और जागरूकता के स्तर पर पिछड़ जाता है, तो वह अनेक संकटों का शिकार हो जाता है। शिक्षा की कमी केवल व्यक्तिगत विकास को बाधित नहीं करती, बल्कि समाज को भी अंधकार की ओर धकेल देती है। जागरूकता का अभाव उसे रूढ़ियों, अंधविश्वासों और अन्याय का शिकार बना देता है।  


शिक्षा की गिरती गुणवत्ता और उसकी सीमित पहुँच किसी भी समाज के पतन का प्रमुख कारण बन सकती है। शिक्षा केवल डिग्री प्राप्त करने का माध्यम नहीं है, बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य समझ विकसित करना है। जब शिक्षा प्रणाली केवल औपचारिक बनकर रह जाती है और उसमें नैतिकता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तार्किकता का अभाव होता है, तो समाज दिशाहीन हो जाता है। कई क्षेत्रों में शिक्षा की पहुँच सीमित होने के कारण समाज का एक बड़ा वर्ग शिक्षित नहीं हो पाता और सामाजिक असमानता बनी रहती है।  


एक समाज तब असफल होता है जब उसमें आलोचनात्मक सोच और प्रश्न करने की प्रवृत्ति समाप्त हो जाती है। जब शिक्षा व्यवस्था बच्चों को सवाल पूछने से हतोत्साहित करती है और उन्हें केवल रटे-रटाए उत्तर देने के लिए प्रेरित करती है, तब उनकी तार्किक और आलोचनात्मक सोच कुंठित हो जाती है। इस मानसिकता का प्रभाव आगे चलकर पूरे समाज पर पड़ता है, जहाँ लोग बिना जांच-पड़ताल के किसी भी अफवाह, विचारधारा या प्रोपेगैंडा को सच मान लेते हैं।  


जब समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण कमजोर हो जाता है, तब अंधविश्वासों और रूढ़ियों का विस्तार होने लगता है। शिक्षा का उद्देश्य केवल साक्षरता बढ़ाना नहीं, बल्कि विवेक और तार्किकता विकसित करना भी होना चाहिए। लेकिन जब शिक्षा और जागरूकता का सही मेल नहीं होता, तब समाज पिछड़ जाता है और कुरीतियाँ, धार्मिक कट्टरता तथा सामाजिक अन्याय उसे जकड़ लेते हैं।  


शिक्षा में असमानता भी समाज के फेल होने का एक बड़ा कारण है। जब आर्थिक रूप से कमजोर तबकों, पिछड़ी जातियों और वंचित समुदायों को अच्छी शिक्षा नहीं मिलती, तो वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हो पाते और शोषण का शिकार बनते रहते हैं। शिक्षा का अधिकार केवल कुछ विशेष वर्गों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक समान रूप से पहुँचाना आवश्यक है।  


जब शिक्षा और मीडिया का राजनीतिक और व्यावसायिक हितों के लिए दुरुपयोग किया जाता है, तब समाज की जागरूकता और अधिक प्रभावित होती है। जब मीडिया निष्पक्ष न रहकर किसी विशेष विचारधारा का प्रचार करने लगता है, तो आम जनता को सही जानकारी नहीं मिलती और वे भ्रम में जीने लगते हैं। इस स्थिति में समाज को वास्तविक मुद्दों की जानकारी नहीं होती और वह नीतिगत निर्णयों को समझने में असफल रहता है।  


एक शिक्षित समाज केवल ज्ञानवान ही नहीं, बल्कि नैतिक और संवेदनशील भी होना चाहिए। लेकिन जब शिक्षा केवल प्रतिस्पर्धा और आर्थिक सफलता तक सीमित रह जाती है और उसमें नैतिकता, सहानुभूति तथा सामाजिक उत्तरदायित्व की शिक्षा नहीं दी जाती, तब समाज में अपराध, भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता बढ़ने लगती है।  


समाज को इस विफलता से बचाने के लिए आवश्यक है कि शिक्षा प्रणाली में सुधार किया जाए। शिक्षा को केवल अंक प्राप्त करने का माध्यम न बनाकर, वास्तविक जीवन में उपयोगी बनाया जाए। बच्चों में आलोचनात्मक सोच, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और समस्या-समाधान की क्षमता विकसित की जानी चाहिए। गरीब और वंचित तबकों को समान शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिए, ताकि वे भी समाज की मुख्यधारा में आ सकें।  


"शिक्षा की जड़ें कड़वी होती हैं, लेकिन उसके फल मीठे होते हैं।" यदि कोई समाज शिक्षा और जागरूकता के क्षेत्र में असफल होता है, तो वह केवल विकास में पिछड़ता ही नहीं, बल्कि नैतिक और सामाजिक पतन का भी शिकार हो जाता है। शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरियाँ पाना नहीं, बल्कि एक जागरूक, तार्किक और संवेदनशील समाज का निर्माण करना भी होना चाहिए। यदि हम अपने समाज को सही दिशा में ले जाना चाहते हैं, तो हमें शिक्षा और जागरूकता को अपनी प्राथमिकता बनानी होगी। तभी हम एक सफल और प्रगतिशील समाज की ओर बढ़ सकेंगे।


 ✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है। 

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